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राजस्थान के लोक देवी- देवता

राजस्थान के लोक देवी- देवता

– 1. रामदेवजी

 

रामदेव जी राजस्थान के एक लोक देवता हैं।

 

15वी. शताब्दी के आरम्भ में भारत में लूट खसोट, छुआछूत, हिंदू-मुस्लिम झगडों आदि के कारण स्थितियाँ बड़ी अराजक बनी हुई थीं। ऐसे विकट समय में पश्चिम राजस्थान के पोकरण नामक प्रसिद्ध नगर के पास रुणिचा नामक स्थान में रुणिचा के शासक अजमाल

जी के घर भादो शुक्ल पक्ष दूज के दिन वि•स• 1409 को बाबा रामदेव पीर अवतरित हुए

 

रामदेवजी को हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रतीक के रूप में जाना जाता है।  सभी प्रकार के भेद-भाव को मिटाने एवं सभी वर्गों में एकता स्थापित करने की पुनीत प्रेरणा के कारण बाबा रामदेव जहाँ हिन्दुओ के देव है तो मुस्लिम भक्त बाबा को रामसा पीर कह कर पुकारते

हैं।

 

राजस्थान के जनमानस में पॉँच पीरों की प्रतिष्ठा है जिनमे बाबा रामसा पीर का विशेष स्थान है।

 

संवत् 1942 को रामदेव जी ने अपने हाथ से श्रीफल लेकर सब बड़े बुढ़ों को प्रणाम किया तथा सबने पत्र पुष्प् चढ़ाकर रामदेव जी का हार्दिक तन मन व श्रद्धा से अन्तिम पूजन किया। रामदेव जी ने समाधी में खड़े होकर सब के प्रति अपने अन्तिम उपदेश देते हुए कहा

प्रति माह की शुक्ल पक्ष की दूज को पूजा पाठ, भजन कीर्तन करके पर्वोत्सव मनाना, रात्रि जागरण करना।

 

प्रतिवर्ष मेरे जन्मोत्सव के उपलक्ष में तथा अन्तर्ध्यान समाधि होने की स्मृति में मेरे समाधि स्तर पर मेला लगेगा। मेरे समाधी पूजन में भ्रान्ति व भेद भाव मत रखना। मैं सदैव अपने भक्तों के साथ रहुँगा। इस प्रकार श्री रामदेव जी महाराज ने समाधी ली।

 

गरीबों के रखवाले रामदेव जी का अवतार ही भक्तों के संकट हरने के लिए ही हुआ था। राजस्थान में जोतपुर के पास रामदेवरा नामक स्थान है। जहाँ प्रतिवर्ष रामदेव जंयती पर विशाल मेला लगता है। दूर-दूर से भक्त इस दिन रामदेवरा पहुँचते है। कई लोग तो नंगे पैर

चलकर रामदेवरा जाते है।

 

– 2. तेजा जी

 

लोक देवता तेजाजी का जन्म नागौर जिले में खड़नाल गाँव में ताहरजी (थिरराज) और रामकुंवरी के घर माघ शुक्ला, चौदस संवत 1130 यथा 29 जनवरी 1074 को जाट परिवार में हुआ था

 

तेजाजी राजस्थान, मध्यप्रदेश और गुजरात प्रान्तों में लोकदेवता के रूप में पूजे जाते हैं।  किसान वर्ग अपनी खेती की खुशहाली के लिये तेजाजी को पूजता है।

 

तेजाजी के प्रमुख मंदिरों में खरनाल नागौर में तेजाजी का मंदिर एवं सुरसुरा अजमेर में तेजाजी का धाम है

 

लोग तेजाजी के मन्दिरों में जाकर पूजा-अर्चना करते हैं और दूसरी मन्नतों के साथ-साथ सर्प-दंश से होने वाली मृत्यु के प्रति अभय भी प्राप्त करते हैं।

 

स्वयं तेजाजी की मृत्यु, जैसा कि उनके आख्यान से विदित होता है, सर्प- दंश से ही हुई थी।  बचनबद्धता का पालन करने के लिए तेजाजी ने स्वयं को एक सर्प के सम्मुख प्रस्तुत कर दिया था। वे युद्ध भूमि से आए थे और उनके शरीर का कोई भी हिस्सा हथियार

की मार से अक्षत् नहीं था। घावों से भरे शरीर पर अपना दंश रखन को सर्प को ठौर नजर नहीं आई, तो उसने काटने से इन्कार कर दिया। वचन-भंग होता देख घायल तेजाजी ने अपना मुँह खोल कर जीभ सर्प के सामने फैला दी थी और सर्प ने उसी पर अपना दंश रख

कर उनके प्राण हर लिए थे।

 

तेजाजी के देवरो में साँप के काटने पर जहर चूस कर निकाला जाता है तथा तेजाजी की तांत बाँध का सर्पदंश का इलाज किया जाता है।

 

तेजाजी की घोड़ी का नाम ‘लीलण’ था

 

– 3. जाम्भोजी

 

जन्म : वि. संवत् 1508 भाद्रपद बदी 8 कृष्ण जन्माष्टमी को अर्द्धरात्रि कृतिका नक्षत्र में (सन् 1451)

 

जन्म स्थान: पींपासर जिला नागौर (राज.), यह सुरापुर, जांगला में स्थित है।

 

पिताजी : ठाकुर श्री लोहटजी पंवार

 

काकाजी : श्री पुल्होजी पंवार (इनको प्रथम बिश्नोई बनाया था।)

 

सात वर्ष तक मौन एवं सत्ताईस वर्ष गायें चराने के बाद, 34 वर्ष की आयु में गृह त्याग कर समराथल धोरे पर गमन एवं सन्यास धारण।

 

विश्नोई समाज में उनतीस नियमों का पालन करना आवश्यक है। इस सम्बन्ध में एक कहावत बहुत प्रसिद्ध है, जो इस प्रकार है- उन्नतीस धर्म की आखडी हिरदे धरियो जोय, जम्भोजी कृपा करी नाम विश्नोई होय।

 

जाम्भोजी महाराज का भ्रमण व्यापक था। 51 वर्ष तक देश-विदेशों में भ्रमण किया। राजा-महाराजा, अमीर -गरीब, साधु-गृहस्थों को विभिन्न चमत्कार दिखाए। उपदेश दिए एवं वि.सं. 1593 मिंगसर बदी नवमी चिलतनवमी के दिन लालासर की साथरी पर निर्वाण को

प्राप्त हुए।

 

जाम्भोजी की शिक्षाओं पर अन्य धर्मों का प्रभाव स्पष्ट रुप से दृष्टिगोचर होता है। उनकी शिक्षाओं पर वैष्णव सम्प्रदाय तथा नानकपंथ का भी बड़ा प्रभाव है। इस सम्प्रदाय में गुरु दीक्षा एवं डोली पाहल आदि संस्कार साधुओं द्वारा सम्पादित करवाये जाते हैं, जिनमें कुछ

महन्त भी भाग लेते हैं।

 

– 4. गोगाजी

 

गोगाजी का जन्म विक्रम संवत 1003 में चुरू जिले के ददरेवा, चुरू में हुआ था सिद्ध वीर गोगादेव के जन्मस्थान, जो राजस्थान के चुरू जिले के दत्तखेड़ा ददरेवा में स्थित है।

 

गोगाजी राजस्थान के लोक देवता हैं जिन्हे जहरवीर गोगा जी के नाम से भी जाना जाता है। राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले का एक शहर गोगामेड़ी है। यहां भादव शुक्लपक्ष की नवमी को गोगाजी देवता का मेला भरता है। इन्हे हिन्दु और मुस्लिम दोनो पूजते है|

 

यहाँ सभी धर्म और सम्प्रदाय के लोग मत्था टेकने के लिए दूर-दूर से आते हैं। कायम खानी मुस्लिम समाज उनको जाहर पीर के नाम से पुकारते हैं तथा उक्त स्थान पर मत्था टेकने और मन्नत माँगने आते हैं। इस तरह यह स्थान हिंदू और मुस्लिम एकता का

प्रतीक है।  मध्यकालीन महापुरुष गोगाजी हिंदू, मुस्लिम, सिख संप्रदायों की श्रद्घा अर्जित कर एक धर्मनिरपेक्ष लोकदेवता के नाम से पीर के रूप में प्रसिद्ध हुए।

 

गोगाजी का जन्म राजस्थान के ददरेवा (चुरू) चौहान वंश के राजपूत शासक जैबर (जेवरसिंह) की पत्नी बाछल के गर्भ से गुरु गोरखनाथ के वरदान से भादो सुदी नवमी को हुआ था। चौहान वंश में राजा पृथ्वीराज चौहान के बाद गोगाजी वीर और ख्याति प्राप्त राजा थे।

गोगाजी का राज्य सतलुज सें हांसी (हरियाणा) तक था।

 

लोकमान्यता व लोककथाओं के अनुसार गोगाजी को साँपों के देवता के रूप में भी पूजा जाता है। लोग उन्हें गोगाजी चौहान, गुग्गा, जाहिर वीर व जाहर पीर के नामों से पुकारते हैं। यह गुरु गोरक्षनाथ के प्रमुख शिष्यों में से एक थे।

 

लोक देवता जाहरवीर गोगाजी की जन्मस्थली ददरेवा में भादवा मास के दौरान लगने वाले मेले के दृष्टिगत पंचमी (सोमवार) को श्रद्धालुओं की संख्या में और बढ़ोतरी हुई। मेले में राजस्थान के अलावा पंजाब, हरियाणा, उत्तरप्रदेश व गुजरात सहित विभिन्न प्रांतों से श्रद्धालु

पहुंच रहे हैं।

 

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– 5. जीणमाता

 

जीण माता राजस्थान के सीकर जिले में स्थित धार्मिक महत्त्व का एक गाँव है। यह सीकर से 29किलोमीटर दक्षिण में स्थित है।

 

यहाँ पर जीणमाता (शक्ति की देवी) एक प्राचीन मन्दिर स्थित है। जीणमाता का यह पवित्र मंदिर सैकड़ों वर्ष पुराना माना जाता है।

 

कलयुग में शक्ति का अवतार माता जीण भवानी का भव्य धाम जयपुर से से लगभग 115 किलोमीटर दूर सीकर ज़िले (Sikar District) के सुरम्य अरावली पहाड़ियों (रेवासा पहाडियों) में स्थित है।

 

लोक मान्यताओं के अनुसार जीण का जन्म चौहान परिवार में हुआ। उनके भाई का नाम हर्ष था जो बहुत खुशी से रहते थे। एक बार जीण का अपनी भाभी के साथ विवाद हो गया और इसी विवाद के चलते जीन और हर्ष में नाराजगी हो गयी। इसके बाद जीण

आरावली के ‘काजल शिखर’ पर पहुँच कर तपस्या करने लगीं।

 

मान्यताओं के अनुसार इसी प्रभाव से वो बाद में देवी रूप में परिवर्तित हुई। यह मंदिर चूना पत्थर और संगमरमर से बना हुआ है। यह मंदिर आठवीं सदी में निर्मित हुआ था।

 

जीण माता मंदिर में हर वर्ष चैत्र सुदी एकम् से नवमी (नवरात्रा में) व आसोज सुदी एकम् से नवमी में दो विशाल मेले लगते है जिनमे देश भर से लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते है। भक्तों की मण्डली द्विवार्षिक नवरात्रि समारोह (हर साल चैत्र और अश्विन/आसोज

माह में शुक्ल पक्ष की नवरात्रि मेले के समय) के दौरान एक बहुत रंगीन नज़र हो जाती है।

 

राजस्थानी लोक साहित्य में जीणमाता का गीत सबसे लम्बा है। इस गीत को कनफटे जोगी केसरिया कपड़े पहन कर, माथे पर सिन्दूर लगाकर, डमरू एवं सारंगी पर गाते हैं। यह गीत करुण रस से ओतप्रोत है।

 

  1. शाकम्भरी माता

 

शाकम्भरी माता का प्राचीन सिद्धपीठ जयपुर जिले के साँभर क़स्बे में स्थित है। शाकम्भरी माता साँभर की अधिष्ठात्री देवी हैं। साँभर एक प्राचीन कस्बा है जिसका पौराणिक, ऐतिहासिक, धार्मिक और पुरातात्त्विक महत्त्व है।

 

इतिहास के अनुसार चौहान वंश के शासक वासुदेव ने सातवीं शताब्दी में साँभर झील और साँभर नगर की स्थापना शाकम्भरी देवी के मंदिर के पास में की। विक्रम संवत 1226 (1169 ई.) के बिजोलिया शिलालेख में चौहान शासक वासुदेव को साँभर झील का निर्माता

व वहाँ के चौहान राज्य का संस्थापक उल्लेखित किया गया है।

 

शाकम्भरी के नामकरण के विषय में  उल्लेख है की एक बार इस भू-भाग में भीषण अकाल पड़ने पर देवी ने शाक वनस्पति के रूप में अंकुरित हो जन-जन की बुभुक्षा शांत कर उनका भरण पोषण किया तभी से इसका नाम शाकम्भरी पड़ गया, जिसका अपभ्रंश ही

साम्भर है।

 

शाकम्भरी माता का मंदिर साँभर से 18-19 कि.मी. दूर साँभर झील के पेटे में स्थित है, जहाँ दर्शनार्थी श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। साँभर का ऐतिहासिक और पुरातात्त्विक महत्त्व भी अत्यधिक है।

 

शाकम्भरी देवी की पीठ के रूप में साँभर की प्राचीनता महाभारत काल तक चली जाती है। महाभारत (वनपर्व), शिव पुराण (उमा संहिता), मार्कण्डेय पुराण आदि पौराणिक ग्रन्थों में शाकम्भरी की अवतार-कथाओं में शाकादि प्रसाद दान द्वारा धरती के भरण-पोषण  कथायें

उल्लेखनीय हैं।

 

प्रतिवर्ष भादवा सुदी अष्टमी को शाकम्भरी माता का मेला भरता है। इस अवसर पर सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु देवी के दर्शनार्थ यहाँ आते हैं। चैत्र तथा आसोज के नवरात्रों में यहां विशेष चहल-पहल रहती है। यहाँ तीर्थयात्रियों व श्रद्धालुओं के विश्राम हेतु धर्मशालाओं की

समुचित व्यवस्था है।

 

देशभर में मां शाकंभरी माता के तीन शक्तिपीठ हैं: पहला प्रमुख राजस्थान से सीकर जिले में उदयपुर वाटी के पास सकराय मां के नाम से प्रसिद्ध है। दूसरा स्थान राजस्थान में ही सांभर जिले के समीप शाकंभर के नाम से स्थित है और तीसरा उत्तरप्रदेश में

सहारनपुर से 42 किलोमीटर दूर कस्बा बेहट से शाकंभरी देवी का मंदिर 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

 

– 7. मल्लीनाथ जी

 

मल्लीनाथ जी का जन्म मारवाड़ के रावल सलखा तथा माता जाणीदे के ज्येष्ठ पुत्र के रूप में सन् 1358 में हुआ था। मल्लीनाथ जी एक कुशल शासक थे। उन्होंने सन् 1378 में मालवा के सूबेदार निजामुद्दीन को हरा कर अपनी वीरता का लोहा मनवाया था।

 

मल्लीनाथ जी ने लगभग सन् 1389 में संत उगमसी माही की शरण में जाकर उनको अपना गुरु बनाया तथा दीक्षा प्राप्त की। दस वर्ष बात 1399 में उन्होंने मारवाड़ में संतों का एक विशाल कीर्तन करवाया।

 

मल्लीनाथ जी निर्गुण निराकार ईश्वर में विश्वास करते थे तथा उन्होंने नाम स्मरण का पुरजोर समर्थन किया। लोकदेवता मल्लीनाथ जी के नाम पर ही जोधपुर के पश्चिम के भाग का नाम मालानी पड़ा जिसे आजकल बाड़मेर कहा जाता है। सन् 1399 में ही चैत्र शुक्ला

द्वितीया को उनका देवलोकगमन हुआ।

 

इनका मंदिर तथा स्मारक बाड़मेर जिले में तिलवाड़ा गाँव में है जहाँ प्रतिवर्ष चैत्र कृष्ण एकादशी से चैत्र शुक्ल एकादशी एक विशाल पशु मेले का आयोजन किया जाता है। यह बाड़मेर जिले के तिलवाडा गांव में चैत्र बुदी एकादशी से चैत्र सुदी एकादशी (मार्च-अप्रैल) में

आयोजित किया जाता है। इस मेले में उच्च प्रजाति के गाय, ऊंटों, बकरी और घोडों की बिक्री के लिए लाया जाता है। इस मेले में भाग लेने के लिए सिर्फ गुजरात से ही नहीं बल्कि गुजरात और मध्य प्रदेश से भी लोग आते हैं।

 

तिलवाड़ा के मल्लीनाथ जी के अलावा एक अन्य संत श्री मल्लीनाथ जी भी थे जो जैनियों के 19 वें तीर्थंकर थे। भगवान मल्लीनाथ स्त्री देह से तीर्थंकर हुए | इसे अच्छेराभुत (आश्चर्य -जनक घटना ) माना गया है | अनन्त अतीत मे जितने भी तीर्थंकर हुए , सभी

पुरुष देह मे ही हुए |  मिथिला नरेश महाराज कुम्भ की रानी प्रभावती की रत्नकुक्षी से मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी को प्रभु का कन्या रूप में जन्म हुआ |

 

– 8. पाबूजी

 

राजस्थान के लोक देवता पाबूजी राठौड़ का जन्म वि.संवत 1313 में जोधपुर ज़िले में फलोदी के पास कोलू नामक गाँव में हुआ था। पाबूजी के पिताजी का नाम धाँधल जी राठौड़ था। धाँधल जी एक दुर्गपति थे ।

 

पाबूजी राठौड़ का विवाह अमरकोट के निवासी सोढ़ा राणा सूरजमल की बेटी के साथ हुआ था। पाबूजी राठौड़ ने फेरे लेते हुए सुना कि कुछ चोर एक अबला देवल चारणी की गायों को अपहरण कर ले जा रहे हैं। पाबूजी ने उस अबला औरत को उसकी गायों की रक्षा का

वचन दिया था कि वो उनकी गायों की रक्षा करेंगे । पाबूजी गायों की रक्षा करते-करते वीरगति को प्राप्त हो गये

 

पाबूजी को लक्ष्मणजी का अवतार माना जाता है। राजस्थान में इनके यशगान स्वरूप ‘पावड़े’ (गीत) गाये जाते हैं व मनौती पूर्ण होने पर फड़ भी बाँची जाती है। ‘पाबूजी की फड़’ पूरे राजस्थान में विख्यात है।

 

प्रतिवर्ष चैत्र अमावस्या को पाबूजी के मुख्य ‘थान’ (मंदिर गाँव कोलूमण्ड) में विशाल मेला लगता है, जहाँ भक्तगण हज़ारों की संख्या में आकर उन्हें श्रृद्धांजलि अर्पित करते हैं।

 

राजस्थान के लोक जीवन में कई महान व्यक्तित्व देवता के रूप में सदा के लिए अमर हो गए। इन लोक देवताओं में कुछ को ‘पीर’ की संज्ञा दी गई है। एक जनश्रुति के अनुसार राजस्थान में पाँच पीर हुए हैं, जिनके नाम इस प्रकार हैं- पाबूजी, हड़बूजी, रामदेवजी,

मंगलियाजी, मेहाजी

 

– 9. केसरिया जी

 

केसरिया जी का मंदिर उदयपुर से लगभग 40 किमी. दूर गाँव ‘धूलेव’ में स्थित भगवान ऋषभदेव का मन्दिर है। यह प्राचीन तीर्थ अरावली पर्वतमाला की कंदराओं के मध्य कोयल नदी के किनारे पर स्थित है। ऋषभदेव मन्दिर को जैन धर्म का प्रमुख तीर्थ माना जाता

है।

 

यह प्राचीन तीर्थ अरावली पर्वतमाला की कंदराओं के मध्य कोयल नदी के किनारे स्थित है। ऋषभदेव मंदिर को जैन धर्म का प्रमुख तीर्थ माना जाता है।

 

यह मंदिर न केवल जैन धर्मावलंबियों अपितु वैष्णव हिन्दू लोगों तथा मीणा और भील आदिवासियों एवं अन्य जातियों द्वारा भी पूजा जाता है। भगवान ऋषभदेव को तीर्थयात्रियों द्वारा अत्यधिक मात्रा में केसर चढ़ाए जाने के कारण ‘केसरियाजी’ कहा जाता है।

 

यहाँ प्रथम जैन तीर्थंकर भगवान ‘आदिनाथ’ या ‘ऋषभदेव’ की काले रंग की प्रतिमा स्थापित है। यहाँ के आदिवासियों के लिए ये केसरियाजी कालिया बाबा के नाम से प्रसिद्ध व पूजित हैं।

 

मंदिर में काले पत्थर का एक-एक हाथी दोनों द्वारों की ओर खड़े हुए हैं। हाथी के पास एक हवनकुंड उत्तर की तरफ़ बना है, जहाँ नवरात्रि के दिनों में दुर्गा का हवन होता है। उक्त द्वार के दोनों ओर के ताखों में से एक में ब्रह्मा की तथा दूसरे में शिव की मूर्ति है।

सीढ़ियों के ऊपर के मंडप में मध्यम क़द के हाथी पर बैठी हुई मरुदेवी की मूर्ति है। मंडप में 9 स्तम्भों के होने के कारण यह नौ-चौकी के रूप में जाना जाता है।

 

मन्दिर के उक्त द्वार के बाहर उत्तर के ताख में शिव तथा दक्षिण के ताख में सरस्वती की मूर्ति स्थापित है। वहाँ पर खुदे अभिलेख इसे विक्रम संवत 1676 में बना बताते हैं।

 

– 10. राजस्थान के अन्य प्रमुख लोकदेवता

 

शाकम्भरी माता = शाकम्भरी माता सांभर में स्थित है।

सीमल माता = सीमल माता बसंतगढ़, सिरोही में स्थित है।

हर्षनाथ जी = हर्षनाथ जी सीकर में स्थित है।

शिला देवी = शिला देवीआमेर में स्थित है।

कैला देवी = करौली में स्थित है।

ज्वाला देवी =  ज्वाला देवी, जोबनेर में स्थित है।

कल्ला देवी = कल्ला देवी सिवाना में स्थित है।

खैरतल जी = खैरतल जी अलवर में स्थित है।

करणी माता = करणी माता देशनोक (बीकानेर) में स्थित है।

 

राजस्थान के प्रमुख युद्ध

राजस्थान के प्रमुख युद्ध

युद्ध _______________वर्ष

 

अब_____आबू का युद्ध कब हुआ था- 1178

ता________तराइन प्रथम का युद्ध 1191

त_________तराइन का द्वितीय युद्ध 1192

रण________रणथम्भोर का युद्ध 1301

चुनो_______चित्तोड का प्रथम युद्ध 1303

सिवाना_________सिवाना का युद्ध 1308

जै_________जालोर का युद्ध 1311

सा_________सारगंपुर का युद्ध 1437

खत_________खातोली का युद्ध 1517

बाडी_____बाड़ी(धौलपुर)का युद्ध 1518-19

गान_________गागरोन का युद्ध 1519

बयान________बयाना का युद्ध  1527

सुन_________$ilent word

खान________खानवा का युद्ध 1527

गिरा_________गिरीसुमेल का युद्ध 1544

चित्तोड़____चित्तोड का द्वितीय युद्ध 1567-68

हार_________हल्दीघाटी का युद्ध 1576

कर________कुम्भलगढ का युद्ध 1578

दिवेर_________दिवेर का युद्ध 1582

जीता___________$ilent word

मतीरे_की_______मतीरे का युद्ध 1644

दारू__________दोराई का युद्ध 1659

पी____________पिलसुद का युद्ध 1715

मंदसोर________मंदसोर का युद्ध 1733

राज__________राजमहल का युद्ध1747

बगरू_______बगरू का युद्ध कब हुआ1748

भटकता_______भटवाडा का युद्ध1761

तुंगा_________तुंगा का युद्ध 1787

गिंगोली______गिंगोली का युद्ध1807

बीच_____बिथोरा का युद्ध 8Sep.1857

चला_____चेलावास का युद्ध18 Sep.1857

आया_____आउवा का युद्ध 20 jan.1858

 

राजस्थान के ऐतिहासिक युद्ध – भाग 1

 

खानवा का युद्ध कब हुआ- 1527

 

खानवा का युद्ध किसके बीच हुआ- महाराणा सांगा एवं बाबर के बीच

 

कोसाणा का युद्ध कब हुआ- 1492

 

कोसाणा का युद्ध किसके बीच हुआ- मारवाड़ के सातलदेव व अजमेर के सूबेदार मल्लू खां के बीच

 

सांरंगपुर का युद्ध कब हुआ- 1437

 

सारंगपुर का युद्ध किसके बीच हुआ- महाराणा कुम्भा एवं महमूद ख़िलजी के बीच

 

जालौर का युद्ध कब हुआ- 1308

 

जालौर का युद्ध किसके बीच हुआ- कान्हड़देव एवं अलाउद्दीन के बीच

 

तराइन का प्रथम युद्ध किस-किस के बीच लड़ा गया- पृथ्वीराज चौहान तृतीया और मोहम्मद गौरी के बीच

 

तराइन का द्वितीय युद्ध कब हुआ- 1192 में

 

तराइन का द्वितीय युद्ध किसके बीच हुआ- पृथ्वीराज चौहान तृतीया और मोहम्मद गौरी के बीच

 

रणथम्भौर का युद्ध कब हुआ- 1301

 

चित्तौड़गढ़ का युद्ध कब हुआ – 1303

 

चित्तौड़गढ़ का युद्ध किसके बीच हुआ- अलाउद्दीन ख़िलजी एवं महाराणा रत्नसिंह

 

सिवाना का युद्ध कब हुआ- 1308

 

सिवाना का युद्ध किसके बीच हुआ- परमार शीतलदेव एवं अलाउद्दीन ख़िलजी

 

हल्दीघाटी का युद्ध कब हुआ- 1576

 

हल्दीघाटी का युद्ध किसके बीच हुआ – मुग़ल सेनानायक आसफखां , मानसिंह एवं महाराणा प्रताप

 

गिरी सुमेल का युद्ध कब हुआ- 1544

 

गिरी सुमेल का युद्ध किसके बीच हुआ- शेरशाह सूरी एवं मालदेव के सेनानायक जैता व कूपा के बीच

 

पहोवा का युद्ध कब हुआ- 1541

 

पहोवा का युद्ध किसके बीच हुआ- मारवाड़ के मालदेव व बीकानेर के महाराजा राज जैतसी

 

बाड़ी का युद्ध कब हुआ- 1519

 

बाड़ी का युद्ध किसके बीच हुआ- महाराणा सांगा एवं इब्राहिम लोदी के बीच

 

गागरोन का युद्ध कब हुआ- 1519

 

गागरोन का युद्ध किसके बीच हुआ- महाराणा सांगा एवं महमूद ख़िलजी द्वितीय

 

बयाना का युद्ध कब हुआ- 1527

 

बयाना का युद्ध किसके बीच हुआ- महाराणा सांग एवं मुगलों के बीच

 

नागदा का युद्ध कब हुआ- 1234

 

नागदा का युद्ध किसके बीच हुआ- मेवाड़ के राणा जैत्रसिंह एवं इल्तुतमिश

 

अजमेर का युद्ध कब हुआ था- 1135

 

अजमेर का युद्ध किसके बीच हुआ था- अर्णोराज व तुर्कों के बीच

 

तैहंद का युद्ध कब हुआ- 1008

 

तैहंद का युद्ध किसके बीच हुआ- राजा अनंतपाल एवं महमूद गजनवी के बीच

 

किस युद्ध में सांभर के चौहानों ने आनंदपाल का साथ दिया- वैहंद के युद्ध में

 

आबू का युद्ध कब हुआ था- 1178

 

आबू का युद्ध किसके बीच हुआ- मूलराज द्वितीय व मोहम्मद गौरी

 

खातोली का युद्ध कब हुआ- 1517

 

खातोली का युद्ध किसके बीच हुआ- महाराणा सांगा एवं इब्राहिम लोदी के बीच

 

राजस्थान के ऐतिहासिक युद्ध – भाग 2

 

लस्करी का युद्ध कब लड़ा गया- 1803

 

लस्करी का युद्ध किसके बीच लड़ा गया  – दौलतराम सिंधिया व लार्ड लेक के मध्य

 

हरमाड़ा का युद्ध कब हुआ- 1557

 

हरमाड़ा का युद्ध किसके बीच हुआ- हाजीखां एवं राणा उदयसिंह

 

हडक्याखाल का युद्ध किसके बीच  हुआ- मराठों व सिसोदिया राजा के मध्य

 

बासणी का युद्ध किसके बीच हुआ- बीकानेर व जैसलमेर की सेनाओं के बीच

 

लक्ष्मणगढ़ का युद्ध कब हुआ- 1778

 

लक्ष्मणगढ़ का युद्ध किसके बीच हुआ- सवाई प्रतापसिंह व मिर्ज़ा नजफखां

 

आउवा का युद्ध कब हुआ- 1857

 

आउवा का युद्ध किसके मध्य  हुआ- ठाकुर कुशालसिंह ने अंग्रेज व जोधपुर की संयुक्त सेनाओं को हराया

 

बिठोड़ा का युद्ध कब हुआ- 1857

 

बिठोड़ा का युद्ध किसके बीच हुआ- ठाकुर कुशालसिंह व कैप्टेन हीथकोट

 

मंगरोल का युद्ध कब हुआ- 1821

 

मंगरोल का युद्ध किसके बीच हुआ- कर्नल जेम्स टॉड व जालमसिंह जी सेना ने कोटा महारावल किशोरसिंह को हराया

 

लासबाड़ी का युद्ध कहाँ लड़ा गया- अलवर के  निकट

 

गीगोली का युद्ध कब हुआ- 1807

 

गीगोली का युद्ध किसके बीच हुआ- जयपुर व जोधपुर की सेना के मध्य

 

पाटन का युद्ध कब हुआ- 1790

 

पाटन का युद्ध किसके बीच हुआ- सिंधिया व जोधपुर-जयपुर की संयुक्त सेना

 

तुंगा का युद्ध कब हुआ- 1787

 

तुंगा का युद्ध किसके बीच हुआ- सवाई प्रतापसिंह व जोधपुर महाराजा विजयसिंह की संयुक्त सेना ने मराठा सरदार धिया के बीच

 

भटवाड़ा का युद्ध कब हुआ- 1761

 

भटवाड़ा का युद्ध किसके बीच हुआ- कोटा सेनानायक जालमसिंह झाला व जयपुर के माधोसिंह

 

कंकोड का युद्ध कब हुआ- 1759

 

कंकोड का युद्ध किसके बीच हुआ – जयपुर महाराजा सवाई माधोसिंह व मराठा होल्कर के बीच

 

पीपाड़ का युद्ध कब हुआ- 1750

 

पीपाड़ का युद्ध किसके बीच हुआ- बख्तसिंह व रामसिंह के मध्य

 

बगरू का युद्ध कब हुआ- 1748

 

बगरू का युद्ध किसके बीच हुआ- ईश्वरीसिंह व माधोसिंह

 

राजमहल का युद्ध कब हुआ- 1747

 

राजमहल का युद्ध किसके बीच हुआ- ईश्वरीसिंह व माधोसिंह

 

मन्दसौर का युद्ध कब हुआ- 1733

 

मन्दसौर का युद्ध किसके बीच हुआ- सवाई जयपुर व मराठों के मध्य

 

पिलसूद का युद्ध कब हुआ- 1715

 

पिलसूद का युद्ध किसके बीच हुआ- सवाई जयपुर व मराठों के मध्य

 

खजुवाहा का युद्ध कब हुआ- जनवरी 1659

 

खजुवाहा का युद्ध किसके बीच हुआ- शाहशुजा व औरंगजेब के बीच

 

दौराई का युद्ध कब हुआ- 1659

 

दौराई का युद्ध किसके बीच हुआ- दाराशिकोह व औरंगजेब के बीच

 

सामगढ़ का युद्ध कब हुआ- 1658

 

सामगढ़ का युद्ध किसके बीच हुआ- दाराशिकोह व औरंगजेब के बीच

 

धरमत का युद्ध कब हुआ- अप्रैल 1658

 

धरमत का युद्ध किसके बीच हुआ- दाराशिकोह व औरंगजेब के बीच

 

बहादुरगढ़ का युद्ध कब हुआ- 1658

 

बहादुरगढ़ का युद्ध किसके बीच हुआ- मिर्ज़ा राजा जयसिंह व सुलेमान शिकोह

 

मतीरे की राड कब हुई- 1644

 

मतीरे की राड किसके बीच हुई- महाराजा कर्णसिंह व नागौर शासक अमरसिंह

 

: 🍀🌹राजस्थान के इतिहास से संबंधित तथ्य🌹🍀

चतुरसिंह

मेवाड़ के महाराणा (1879-1929)है

 

जिसने सुखेर गांव में झोपड़ी में रहकर जनोपयोगी साहित्य का सृजनकिया

 

यह संस्कृत हिंदी राजस्थानी मेवाड़ीके अच्छे ज्ञाता थे

 

शंख लिपि

इस में प्रयुक्त अक्षर शंख की आकृति से मेल खाते हैं

अभी तक अपढय,

जयपुर में विराट नगर की ग्रेनाइट पहाड़ियों की कंदराओं, बीजक की पहाड़ी भीम जी की डूंगरी, गणेश डूंगरीसे इस लिपि के प्रमाण मिले हैं

 

धर्मत का युद्ध

मारवाड़ के राजा जसवंत सिंह प्रथम द्वारा उत्तराधिकारी संघर्ष में शहजादा दाराकी ओर से औरंगजेब के विरुद्धयह युद्ध लड़ा गया था

 

यह युद्ध धरमत नामक स्थान पर लड़ा गया था

इस युद्ध मे औरंगजेब की विजयहुई थी

वर्तमान में धरमत मध्य प्रदेश राज्यमें स्थित है

 

30 वर्षीय युद्ध

मारवाड़ के राठौड़ द्वारा वीर दुर्गादास के नेतृत्व में यह युद्ध लड़ा गया था

अजीत सिंह को जोधपुर का शासक बनाने हेतु मुगलों के विरुद्ध यह युद्ध (लंबा संघर्ष) किया गया था

 

जांगलन्धर बादशाह

बीकानेर का शासक (1631-69) महाराणा करण सिंहहै

 

यह औरंगजेब का विशेष कृपापात्रथा

 

इस को औरंगजेब ने ही जांगलन्धर बादशाह की उपाधि दी थी

 

यतुन्निसा

यतुन्निसा औरंगजेब के विद्रोही शहजादे अकबर की पुत्रीथी

 

इसका लालन-पालन और कुरान की शिक्षा व्यवस्था दुर्गादास राठौर ने अपने सान्निध्य मे की थी

 

जोधपुर लीजन

ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा 1818की संधि के बाद जोधपुर के सवारों को अकुशल बताकर जोधपुर लीजन का गठन किया गया

 

जिसका खर्चा एक लाख पंद्रह हजार रुपए था

जोधपुर लीजन का मुख्यालय अजमेर बड़गांव (सिरोही) एरिनपुरा (पाली) में था

 

जाखरी सम्मेलन

डूंगरपुर के कारावाडा गांव में 1946 में सम्मेलन का आयोजन किया गया था

जिसमें डूंगरपुर सेवा संघ के 18 सूत्री कार्यक्रमों की जानकारी दी गई थी

यह सभी जानकारियां राजनीतिक सुधार से संबंधित थी

 

अभिनव भारत

यह एक क्रांतिकारी संगठन था

जिसकी स्थापना राज्य के क्रांतिकारियोंद्वारा की गई थी

राज्य में सशस्त्र क्रांति के सूत्रदार केसरी सिंह बारहठ, राव गोपाल सिंह ,अर्जुन लाल सेठी, व दामोदर दास राठीने इस क्रांतिकारी संगठन की स्थापना की थी

 

कूरब

शासक द्वारा सामंत को दिए जाने वाले विशेष सम्मान की एक प्रथा है

इस प्रथा में शासक सामंत के कंधे पर हाथ रख कर अपनी छाती तक लेजाते हैं

इस प्रक्रिया से यह बताते हैं कि आप का स्थान मेरे हृदयमें है

 

बॉह पसाव

शासक द्वारा सामंत को दिए जाने वाले सम्मान की एक रस्म है

इस रस्म में सामंत का अभिवादन स्वीकार कर महाराणा या राजा सामंत के कंधे पर अपने हाथरखते थे

 

तासिमों

तासिमों धौलपुर जिलेका एक गांव है

यहां पर अप्रैल 1947 में श्री छतरसिंह व श्री पंचमसिंह ने तिरंगे झंडेके लिए अपने प्राणों की आहुति दी थी

 

भोमिये

राजस्थान में रियासत काल में राजपूतों की एक जातिथी

यह वह राजपूत हैं जो राज्य की रक्षार्थ या राजकीय सेवाके लिए अपना बलिदान करते थे वह भोमियेकहलाए.

 

ग्रास व ग्रासिये

सैनिक सेवा के बदले शासकद्वारा दी गई भूमि ग्रासकहलाती थी

इस भूमि की उपज का उपयोग करने वाले सामंत जागीरदार ग्रासिये कहलाते थे

 

अभित्र हरि

इनका जन्म कोटा में हुआ था

यह एक प्रसिद्ध पत्रकार और कोटा प्रजामंडल के अध्यक्षथे

हाडौती में स्वतंत्रता आंदोलन के जनक कहलाते हैं

 

देश के दीवाने राजस्थान सरकार द्वारा प्रकाशित एक पुस्तक है

 

जिसमें राज्य के स्वतंत्रता  सेनानियोंकी कीर्ति कथाओं का वर्णनहै

स्वतंत्रता  सेनानियों की कीर्ति कथाओंके लिए इस पुस्तक में 51 सेनानियों के नामों को सम्मिलित किया गया था

 

डाण

एक राज्य से दूसरे राज्य में माल को ले जाने पर वसूली जाने वाली लाग डाण कहलाती है

 

राजस्थान के दुर्ग

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राजस्थान के दुर्ग

 

राजस्थान के दुर्गों के प्रकार

राजस्थान में हर 12 कौस पर एक दुर्ग मिल जाता है केवल मेवाड़ राज्य में 84 दुर्ग है। जिन मे से 32 दुर्ग महाराणा कुम्भा ने निर्माण करवाया था।

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कोटिल्य ने दुर्ग को राज्य की बाहु या हाथ बताते हुए दुर्गों की चार श्रेणिया बताई है-

 

1) ओदक दुर्ग

2) एरण दुर्ग

3) वन दुर्ग

4) धानवन्त दुर्ग

 

शुक्रनीति में दुर्गो के 9 भेद बताए गए है जिसमें कोटिल्य द्वारा वर्णित ये चार भेद भी सम्मिलित है जो निम्न है-

 

1 ) एरण दुर्ग:-

वे दुर्ग जिसका मार्ग खाई, कांटों तथा कठौर पत्थरों से युक्त जहां पहुंचना कठिन हो

जैसे – रणथम्भौर दुर्ग ,शाहबाद दुर्ग (बांरा) ।

 

2) पारिख दुर्ग:-

जिसके चारों ओर खाई हो जैसे -भरतपुर का लोहगढ़ दुर्ग व बैर का किला।

 

3) पारिध दुर्ग :-

ईट, पत्थरों से निर्मित मजबूत परकोटा -युक्त

जैसे -चित्तौड़गढ दुर्ग

 

4) वन/ओरण दुर्ग :-

वे दुर्ग जिसके चारों ओर से काटेदार झाडियों और सघन वृक्षों के जंगलों से घिरा हुआ हो वह दुर्ग ओरण दूर्ग कहलाते है। जैसे- सिवाणा दुर्ग(बाड़मेर) रणथम्भोर दुर्ग।

 

5) धान्व दुर्ग/धान्वन/धनवन ( मरूस्थलिय दुर्ग) :-

जो चारों ओर रेत के ऊंचे टीलों से घिरा हो जैसे-सोनारगढ( जैसलमेर), जूनागढ (बीकानेर) ।

 

6) जल/ओदक दुर्ग :-

वे दुर्ग जिसके चारो और जल हो उसे ओदकदुर्ग कहते है। 2 या 3 और से नदियों के प्रवाह से घिरे दुर्ग इस श्रेणी में रखे जाते है। जैसे – गागरोन , भैसरोड़गढ , भटनेर तथा शेरगढ दुर्ग प्रमुख है।

 

7) गिरी दुर्ग :-

एकांत में पहाड़ी पर हो तथा जल संचय प्रबंध हो

जैसे-, कुम्भलगढ़ दुर्ग

 

8) सैन्य दुर्ग :-

जिसकी व्यूह रचना चतूर वीरों के होने से अभेद्य हो यह सैन्य दुर्ग माना जाता हैं। जैसे -तारागढ (बून्दी) , बयाना का दुर्ग , चितौडगढ , नाहरगढ , नागौर का दुर्ग , आदि।

 

9) सहाय दुर्ग :-

वह दुर्ग जिसमें राजपरिवार और उन्के बन्धुबाधवों तथा अधिकारियों व सैनिको आदि की आवास कि व्यवस्था है  जैसे__रणथम्भौर दुर्ग

 

राजस्थान के के प्रमुख दुर्ग

 

रणथम्भौर दुर्ग /रन्त:पुर/रणस्तम्भपुर(सवाई माधोपुर)

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सवाई माधोपुर से लगभग 10 किमी दूर अरावली श्रृखला की ऊँची निची विसम आकृति वाली 7 पहाडियों के मध्य स्थित रणथम्भौर दुर्ग कि स्थिती इतनी विलक्षण है कि यह दुर्ग इसके अत्यन्त पास जाने पर दिखाई देता है।

 

अबुल फजल ने इस दुर्ग के लिए लिखा है कि

 

“यह दुर्ग पहाडी प्रदेश के बीच में है इसी लिए लोग कहते है कि अन्य दुर्ग निरवशन (नंगे) है किन्तु यह बख्तरबंद है।“

 

रणथम्भौर नाम- रण की घाटी में स्थित नगर अर्थात रण उस पहाड़ी घाटी का नाम है जिसके समिप थम्म नामक पहाड़ी पर यह दुर्ग है।

 

इतिहासकारो का मत है कि इस दुर्ग का निर्माण 8वी शताब्दी के लगभग अजमेर के चौहान शासकों ने करवाया था।

 

1192 ई में तराइन के युद्ध में पृथ्वीराज चौहान कि पराजय के पश्चात उसका पुत्र गोविन्दराज गोरी का सामन्त की हैसियत से रणथम्भौर का शासक बना और रणथम्भौर सल्तनतकाल मे कुतुबुद्दीन ऐबक इल्तुतमिश और बलबल आदि सुलतानों के अधिपत्य में रहा बाद में

चौहानों ने पुर्न अधिकार कर लिया।

 

👉🏻रणथम्भौर दुर्ग तक पहुचने का मार्ग एक सकरी और तंग सक्रिलाकार घाटी से जाता है।यह मार्ग अत्यन्त दुर्गम है इस लिए रणथम्भौर दुर्ग को एरण दुर्ग की श्रेणी मे रखा जाता है।

 

रणथम्भौर दुर्ग मे प्रवेस हेतु नोलखा दरवाजा , हाथिपोल , गणेशपोल , सुरजपोल और त्रिपोलिया इस दुर्ग के प्रमुख प्रवेश द्वार है।

 

रणथम्भौर दुर्ग में हम्मीर महल , रानीमहल , सुपारी महल , बादल महल आदि उल्लेखनिय महल है। इन में सुपारी महल इस दृष्टि से विलक्षण है सुपारी महल में एक ही स्थान पर मन्दिर और गिर्जाघर स्थित है।

 

जौरां भौरा तथा हम्मिर कि कचहरी आदि भी उल्लेखनिय है

 

 

रणथम्भौर दुर्ग मे लाल पत्थरों से निर्मित 32 कम्भों की एक कलात्मक छत्रि है जिसका निर्माण हम्मिर देव चौहन ने अपने पिता जेत्र सिंह के 32 वर्ष के शासन के प्रतिक के रूप है

 

रणथम्भौर दुर्ग मे स्थित त्रिनेत्र गणेश जी का मन्दिर सम्पूर्ण भारत में प्रसिध्द है। और इन्हे रणकभंवर कहा जाता है देश भर से हजारों वैवाहिक निमन्त्रण पत्र रणकभंवर जी को भेजे जाते है।

 

रणथम्भौर दुर्ग मे स्थित शिव मन्दिर , लक्ष्मीनारायण मन्दिर भी दर्शनिय है। रणकभंवर में पीर सदरूद्दीन कि दरगाह है। जहा प्रतिवर्ष ऊर्स आयोजित हता है।

 

रणथम्भौर दुर्ग के शासको मे हम्मीर देव का नाम इतिहास के पन्नों पर सर्वाधिक गौरवमय है और हम्मीर को राजस्थान का महानायक माना जाता है संस्कृत व राजस्थानी में हम्मीर पर अनेक ग्रन्थों की रचना है ।

 

1301 में अलाउद्दीन खिलजी ने हम्मीर के दो मन्त्रियों रतीपाल व रणमल को बून्दी का राज्य देने का प्रलोभन दे कर दुर्ग में प्रवेश होने कि सफलता प्राप्त कर ली थी।

 

1301 में रणथम्भौर दुर्ग में राजस्थान का पहला साखा सम्पन्न हुआ। हम्मीर कि रानी रंगदेवी के नेत्तृव में विरागनाओं ने जोहर किया और हम्मिर के नेत्तृव में केसरीया हुआ।

 

रणथम्भौर में ही पहला व एकमात्र जल जोहर सम्पन्न हुआ।

 

अलाउद्दीन खिलजी के बाद कुछ समय तक यह दुर्ग तुगलक वश के अधिन रहा बाद में राणा सांगा ने अधिकार कर लिया और अपनी हाडी रानी कर्मावती और उनके पुत्र विक्रमादित्य और उदयसिंह को प्रदान किया था।

 

सन 1533 में गुजरात के सुलतान बहादुर शाह ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया तो कर्मावती ने सन्धि कर यह दुर्ग बहादुर शाह को दे दिया था।

 

बाद में मेवाड ने इस दुर्ग पर पुन: अधिकार कर लिया और बुन्दी के राव सुर्जन हाडा को यहा का किलेदार नियुक्त किया।

 

सन 1569 में सुर्जन हाड़ा ने अकबर से सन्धि कर उसे यह दुर्ग सोप दिया राजपूताना के इतिहास मे यह पहला उदाहरण था जब किसी किलेदार ने बिना युद्ध किये ही अपने स्वार्थ सिद्धी के लिये दुर्ग शत्रु को सोप दिया हो।

 

अकबर ने रणथम्भौर मे साहित्यिक शाला स्थापित की और उसके बाद अन्त: तक मुगलों के अधीन रहा।

 

दर्शनिय स्थल___

  1. रनिहाड़ तालाब 2. जोगी महल 3. सुपारी
  2. जोरां-भोरां/जवरां- भवरां के महल 5. त्रिनेत्र गणेश
  3. 32 कम्भों की छत्तरी 7. रानी महल

 

 

 

चित्तौड़गढ दुर्ग

 

चित्तौड़गढ गिरी दुर्गों में ‘राजस्थान का गौरव’ चित्तौड़गढ का किला राज्य के सबसे प्राचीन और प्रमुख किलों में से एक है यह मौर्य कालिन दुर्ग राज्य का प्रथम या प्राचीनतम दुर्ग माना जाता है

 

अरावली पर्वत श्रृखला के मेशा पठार पर  यह दुर्ग राजस्थान के क्षेत्रफल व आकार की द्रष्टी से सबसे विसालकाय दुर्ग है जिसकी तुलना बिट्रीश पुरातत्व दुत सर हूयूज केशर ने एक भीमकाय जहाज से की थी उन्होंने लिखा हैं-

 

“चित्तौड़ के इस सूनसान किलें मे विचरण करते समय मुझे ऐसा लगा मानों मे किसी भीमकाय जहाज की छत पर चल रहा हूँ”

 

चित्तौड़गढ दुर्ग में राज्य का एकमात्र ऐसा दुर्ग है जिसमें तीन युगों के स्थापत्य शिल्प के अवशेष आज भी सुंरक्षित अवस्था में विधमान है

 

चित्तौड़गढ में इतने मन्दिर है की इसे हिन्दू देवी देवता का म्यूजियम भी कहा जाता है।

 

दिल्ली, मालवा,गुजरात के मार्ग पर स्थित होने के कारण प्राचीन काल व मध्यकाल मे यह दुर्ग सामरिक दृष्टि से अत्यधिक महत्त्वपूर्ण रहा है।

 

यहा के राजपूत योद्धाओं के शोर्य व वीरागनाओं के बलीदान व सुदुढता आदि के कारण चित्तौड़गढ दुर्ग को सब किलों का सिरामोण माना जाता है। इस के लिए यह लोकक्ति प्रसिद्ध है कि-

 

‘गढ तो गढ चित्तौड़गढ बाकि सब गढिया’

 

चित्तौड़गढ दुर्ग ही राज्य का एकमात्र एसा दुर्ग है जो शुक्रनिती में वर्णित दुर्गों के अधिकांश प्रकार के अर्न्तगत रखा जा सकता है। जैसे गिरी दुर्ग, सैन्य दुर्ग, सहाय दुर्ग आदि।

 

 

अरावली श्रृखला के मेशा पठार पर औसत समुद्र तल से 616 मीटर ऊंचे व 16 वर्ग किमी. क्षेत्रफल में विस्तृत यह विशालकाय दुर्ग प्राचीन दुर्ग स्थापत्यकला का उत्कृष्ट उदाहरण माना जाता है।

 

मेवाड़ राज्य के इतिहास ग्रन्थ वीर विनोद के रचयिता कवि श्यामलदास के अनुसार मौर्यनरेश चिंत्रागद ने इस का निर्माण करवाया था तब इस का नाम चित्रकूट था जो कालान्तर में  चित्तौड हो गया।

 

मौर्य वशीय शासक मानमोरी के समय गुहिल वश के बप्पा रावल ने मेवाड पर विजय प्राप्त की थी किन्तु बप्पा ने अपनी राजधानी नागदा को बनाई थी।

 

गुहिल वंश के अल्लट ने देवपाल प्रतिहार को परास्त कर कुछ समय के लिए चित्तौड़गढ दुर्ग पर अधिकार किया था किन्तु बाद मे मालवा के परमार राजा मुंज के पुत्र भोजपरमार ने चित्तौड़गढ दुर्ग में त्रिभुवन नारायण का मन्दिर बनवाया था जिसे बाद में मोकल ने

जिर्णोधार करवाकर सामधेश्वर मन्दिर नाम दिया।

 

सिद्ध् राज सोलकि ने परमारो से इसे छिना और अत: 1213 में गुहिल वशीय जेत्र सिंह ने चित्तौड दुर्ग पर अधिकार करके राजधानी बनाई चित्तौड को रजधानी बनाने वाला गुहिल वशीय प्रथम शासन था।

 

1303 में अलाउद्दीन खीलजी ने रावल रतन सिंह को परास्त कर चित्तौड़गढ पर अधिकार कर लिया व इसका नाम ख्रिजाबाद रखा था।

 

1326 में सीसोदिया वंश के राणा हम्मीर ने चित्तौड़गढ दुर्ग पर पुन अधिकार कर लिया और विषमघाटी पंचानन् व मेवाड़ का तारणहार के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

 

हम्मीर के वंशज महाराणा कुम्भा ने चित्तौड़गढ दुर्ग का पुन: निर्माण करवाया व प्राचिरे पुन: मजबुत करवाई व रथ मार्ग का निर्माण करवाया इसनें चित्तौड़गढ को विचित्रकुट का रूप देते हुए सात दरवाजों से सुरक्षित किया चित्तौड़गढ के सात द्ववार पांडवपोल , भैरवपोल ,

गणेशपोल , लक्ष्मणपोल , जोड़लापोल , रामपोल व त्रिपोलिया( हनुमानपोल) द्ववार कहलाते है।

 

चित्तौड़गढ दुर्ग में रावल बाघसिंह , जयमल राठौड , कल्ला जी राठौड तथा सिसोदिया पत्ता के स्मारक तथा छत्तरिया है। चित्तौड़गढ दुर्ग की प्रमुख इमारतों में बनवीर द्वारा बनवाया गया नवलख भण्डार , कुम्भा के महल ,रतन सिंह के महल , पदमनी महल , भामाशाह की

हवेली , जयमल की हवेली , पूरोहितो की हवेली आदि तत्कालिन स्थापत्यकला के परिचायक है।

 

मालवा के सुल्तान महबूबशाह खिलजी पर अपनी विजय की स्मृति मे महाराणा कुम्भा द्वारा 1438 में बनवाया गया विजय स्तम्भ स्थापत्य एंव शिल्प कला का उत्कृष्ट उदाहरण है।

 

 

जैता सूत्रधार और उसके पुत्रों नापा एंव पूंजा के निर्देशन में 10 वर्षों में निर्मित 120 फिट ऊचे इस 9 मजिला विजय स्तम्भ कि प्रत्येक मजिल पर हिन्दू देवी देवता उर्त्कीण है। इस लिए डां उपेन्द्रनाथ डे ने इसे ‘विष्णुस्तम्भ’ का नाम दिया है।जब की फार्गीयूसन ने

रोम के टार्जन स्तम्भ से आदि कलाकृतियों से भी अधिक उत्कृष्ट बताया है।

 

विजय स्तम्भ की आठवी मंजिल पर अल्लाह उर्त्कीण है चित्तौड़गढ दुर्ग में विजयस्तम्भ के अतिरिक्त 11वी शताब्दी में निर्मित जैन किर्ती स्तम्भ भी उल्लेखनिय है।

 

जैन श्रेष्ठी सेठ जीजा शाह बगेरवाला द्वारा निर्मित यह किर्ती स्तम्भ आदिनाथ का स्मारक है और इसके शिर्ष पर चारो और आदिनाथ की मूर्तिया लगी है।

 

चित्तौड़गढ दुर्ग में स्थित श्रृँगार चवरी भी जैन मन्दिर है, जैन तीर्थकर शान्तिनाथ जी के इस मन्दिर का जीर्णोधार 1448 में महाराणा कुम्भा के भण्डारी वेलाख ने करवाया था।

 

श्रृँगार चवरी के अतिरिक्त चित्तौड़गढ दुर्ग में सात बीस देवरी का जैन मन्दिर भी उल्लेखनिय है इस मन्दिर 24 तीर्थक के साथ 3 जैन महिला तीर्थक है।

 

इस के अतिरिक्त अदबुध नाथ जी का जैन मन्दिर है।

 

चित्तौड़गढ दुर्ग में महाराणा कुम्भा द्वारा निर्मित कुम्भा श्याम मन्दिर में मीरा हरिकिर्तन के लिए जाया करती थी। 1567 में चितौड़ विजय के उपरान्त राजा मानसिंह इस मन्दिर की मूर्ति जयपुर ले गया था और अपने पुत्र जगतसिंह के स्मारक में स्थित जगत सिरोमणी

मन्दिर मे स्थापित की थी।

 

चित्तौड़गढ दुर्ग में स्थित तुजला माता का मन्दिर (प्रतिहार/परमार की कुल देवी ) ,कालिका माता मन्दिर , बाणमाता मन्दिर ( सिसोदिया की कुल देवी ) तथा अन्नपुर्णा देवी और लक्ष्मी जी का मन्दिर भी उल्लेखनिय है।

 

कालिका माता का मन्दिर प्राचीन सूर्य मन्दिर था जिसे किसी शासक ने रूपान्तिरत कराकर महाकाली की मूर्ति स्थापित करावा दी थी।

 

1303 में अलाउद्दीन खीलजी के आक्रमण के समय रावल रतन सिंह व गौरा व बादल के नेतृत्व में हुआ व रानी पदमिनी ने जौहर का नैतृत्व किया।

 

चित्तौडगढ़ के प्रथम साके/ युद्ध का आंखों देखी अलाउद्दीन का दरबारी कवि और लेखक अमीर ने अपनी कृति तारीख -ए-अलाई में प्रस्तुत किया।

 

1534 में गुजरात के शासक बहादुरशाह के आक्रमण के समय हुआ उस समय मेवाड़ का शासक हाड़ी रानी कर्मावती का पुत्र विक्रमादित्य था किन्तु उसे बुन्दी भेज कर डूगरपुर के रावत बाघ सिंह के नेतृत्व में साखा हुआ। तथा राजमाता कर्मावती ने जौहर का नेतृत्व

किया।

 

1567 में अकबर के चितौड़ के समय हुआ जब मेवाड़ का शासक उदय सिंह था। जो दुर्ग छोड कर पहाडों चला गया था और साखे का नेतृत्व जयमल राठौड और पत्ता शिशोदिया ने किया था दुर्ग में उपस्थित वीरागनाओं ने जौहर किया।

 

 

तारागढ दुर्ग ( अजमेर )

 

गंढ बिट्ठली / अजमेरू दुर्ग / राजस्थान का ह्रदय / राजपूताना की कुंजी आदि नामों से जाना जाता है।

 

अजमेर के पश्चिमी पहाड़ी पर भू तल से 1300 फिट ऊँचाई पर 80 एकड के क्षेत्र में स्थित तारागढ दुर्ग राजपुताना का एक सुदुढ दुर्ग रहा है।

 

डा. हरबिलास शारदा के मतानूसार

इस दुर्ग का निर्माण 7वी. श्ताब्दी में अजयपाल चौहान ने करवाया था किन्तु अधिकास इतिहासकारों का मत है इस दुर्ग का निर्माण 12वी. शताब्दी में चौहान नरेश अजयराज ने करवाया था । 12वी. शताब्दी तक यह दुर्ग अजयमेरू दुर्ग के नाम से जाना जाता था। जहा

मान सोमेश्वर 1170 ई. के बिजोलिया शिलालेख में भी इस दुर्ग का नाम अजयमेरु ही उल्लेखित है।

 

1141 के जैन धर्म आवश्यक निरयुक्ति से ज्ञात होता है की शाकम्भरी के चौहान शासक अजयराज ने अपने पिता पृथ्विराज प्रथम की समृति में 12वी शताब्दि में इस दुर्ग का निर्माण करवाकर इसके निचे पृथ्विपुर नगर की स्थापना की थी। जो बाद में अजयमेरू तथा अजमेर

के नाम से विख्यात हुआ।

 

1505 ई. मे मेवाड़ के महाराणा रायमल के पुत्र कुवर पृथ्वीराज ने माडू के सुल्तान के किलेदार को परास्त कर इस दुर्ग पर अधिकार कर लिया और यहा पर कुछ महल आदि बनवाकर इस किले का नाम अपनी प्रिय रानी ताराबाई के नाम पर तारागढ रख दिया।

 

17वी. शताब्दी में शाहजहाँ के सेनानायक बिट्ठलदास वोड ने 1644 से 1656 के मध्य इस दुर्ग का जीर्णोद्धार करवाया था। और बिठलदास के नाम से यह गढ बिट्ठली कहलाने लगा जबकि गोपीनाथ  का मत है की इस पहाड़ी का नाम बिठली था इसलिए यह किला

गढ बिट्ठली कहलाता था बाद मे इसे बिट्ठलदास के नाम से जोड दिया गया।

 

गिरीदुर्ग होने के कारण पहाड़ियों की बनावट के अनुसार इसकी सुदुढ प्राचीरें भी घुमावदार है और कहि तो 20 फिट चौड़ी है।

 

दुर्ग मे वर्ष भर पेयजल की आपूर्ति के लिए सक्षम 5 जलाशय है जिन मे से 4 जलाशय दुर्ग के भितर तथा तथा 1 बहार है। दुर्ग मे खाद्यय सामग्री भण्डारण की अपूर्व क्षमता थी और तेल व घी के कुएं थे। जिन्हे देख कर विसप हैब्बर ने तारागढ को “पूर्व का दूसरा

जिब्राल्टर बताया था।

 

इस भण्डार गृह और कुँओं को बाद में अग्रेजों ने नष्ट करवा दिये व तारागढ दुर्ग में स्थित जलाशय नाना साहब का झालरा कहालाते है क्योंकि इसका निर्माण 1791 में मराठा सरदार शिवाजी नाना सहाब द्वारा करवाया गया था।

 

19वी. शताब्दी में बिट्रीश सत्ता की अधिनता में खाली पडे दुर्गों को नष्ट करने के आदेश के तहत यह दुर्ग भी नष्ट कर दिया गया और अब इसके टूटे फूटे पूरावशेष ही शेष है जिनमे चौहान शासकों द्वारा निर्मित कचहरी भवन व कुछ बुर्जें ही शेष है।

 

तारागढ दुर्ग के सबसे ऊँचे भाग पर मिरान सहाब की दरगाह है जिसे मिरादाताना कहा जाता है।

 

मिरानसहाब की दरगाह की प्रतिष्ठा अकबर के शासनकाल में ही थी। और इस दरगाह का बुलन्द दरवाजा मिनारों ,आगन तथा बरामदे 16वी शताब्दी के स्थापत्य के उदाहरण है। प्रतिवर्ष यहा मीनार सहाब का ऊर्ष भरता है इस किले के सभी भवन नष्ट हो चूके है।

मिरानसहाब की दरगाह व चौहानों की कचहरी भवन के अवशेष ही शेष है। शेरशाह ने तारागढ में पानी पहुचाने के लिए शीरचश्म नामक झरने का निर्माण करवाया था।

 

तारागढ दुर्ग में घोड़े की मजार , नानाजी का झालरा , रूठी रानी उमादे की छतरी , पृथ्वीराज स्मारक स्थित है।

 

अकबर का किला ( अजमेर )मेग्जिन दुर्ग

 

इस्लामी स्थापत्य शैली मे निर्मित और मुगलो द्वारा राजस्थान में बनवाया गया एकमात्र किला अकबर का किला और अब मेग्जिन कहलाता है। और अजमेर के नए बाजार मे स्थित है।

 

मुगल बादशाह अकबर द्वारा 1570 में निर्मित यह दुर्ग सामरिक उद्देश्य के साथ अकबर की अजमेर जियारत के समय उसके आवास स्थल की दृष्टि से बनवाया गया था। इस लिए इसे अकबर का दौलतखाना भी कहा जाता है।

 

1570 से 1579 तक अकबर प्रतिवर्ष अजमेर आया और इसी दुर्ग में ठहरा था। इस लिए इसे राजस्थान का लाल किला भी कहा जाता है।

 

चतर्भुजकार आकृति में बने इस दुर्ग का सर्वाधिक आकर्षक भाग इसका 54 फिट ऊचां तथा 43 फिट चौड़ा दरवाजा है। जिसके मध्य सुन्दर झालीदार झरोखे बने है।

 

 

यह दरवाजा जहाँगीर दरवाजा कहलाता है। क्योंकि मुगल बादशाह जहाँगीर 18 नवंबर 1613 से 10 नवंबर 1616 तक तीन वर्षो तक अपने मेवाड़ अभियान के दौरान अजमेर स्थित इस किले में रहा था और यही से मेवाड़ के महाराणा अमरसिंह के विरुध अपना युद्ध अभियान

संचालित किया था।

 

अकबरी किले के मुख्य द्वार पर झरोखे में बैठकर जनता को दर्शन देता था और उनके अभाव अभियोग सुन कर न्याय प्रदान करता था।

 

इस द्वार पर जहाँगीर का प्रसिद्ध इन्साफ़ का घण्टा प्रसिद्ध है।

 

इग्लेण्ड के राजा जेम्स प्रथम के राजदूत सर टॉमस रॉ ने 10 जनवरी 1616 को इस जहाँगीर दरवाजे के सम्मुख प्रस्तुत हो कर अपना परिचय पत्र प्रस्तुत किया था। और जहाँगीर ने इस्ट इडिया कम्पनी के लिए भारत में व्यापार करने की अनुमति प्रदान की थी।

 

सर टॉमस रॉ लगभग 1 वर्ष तक जहाँगीर के मेहमान के रूप में इसी किले मे रहा था।

 

जहाँगीर के बाद शाहजहाँ , औरंगज़ेब और बहादूरशाह प्रथम आदि मुगल बादशाहों ने भी इस दुर्ग का उपयोग किया था। मुगलो के पतन के बाद यह किला रौठोडों और फिर मराठों के अधिपत्य मे रहा।

 

1801 में अग्रेजों ने इस किले पर अधिकार कर लिया और इसकी मजबूती देखकर इसे अपना शहस्त्रागाह ( मेग्जिन ) बना लिया तभी से यह दुर्ग मेग्जिन कहलाने लग गया।

 

1857 की क्रान्ति के समय अग्रेजों ने इस किले मे शरण ली थी।

 

19 अक्टूबर 1908 को कर्नल अर्सकिन ने इस किले के आन्तरिक भाग मे राजकिय पुरातत्व संग्रहालय का उदघाटन किया और पं. गौरी शंकत हिराचन्द औझा को इस संग्रहालय का क्यूरेटर नियुक्त किया था।

 

औजा ने अर्सकिन के राजपूताना गजेटियर मे सहायता प्रदात कि थी।

 

सन 1968 में राज्य सरकार द्वारा अकबर के किले को संरक्षीत स्मारक घोषित किया है।

 

1908 में इसे संग्रहालय में बदल दिया गया, जिसमें छठी एवं सातवी शताब्दी एवं उसके बाद की कई हिन्दू मूर्तियाँ रखी हुई हैं। इन मूर्तियों की अधिकतर बनावट राजपूत और मुगल शैली के मिश्रण को दर्शाती है।

 

काले संगमरमर से बनी देवी काली की एक बड़ी प्रतिमा यहाँ का सबसे प्रसिद्ध आकर्षण है। प्राचीन सैन्य और युद्ध उपकरण, प्राचीन तोपखाने और हथियार, मूर्तियाँ और पत्थर की मूर्तियाँ भी इस संग्रहालय में देखी जा सकती है

 

मेंहरानगढ दुर्ग / गढ चिन्तामणि ( जोधपुर )

 

जोधपुर के संस्थापक राव जोधा ने 13 मई 1459 ई. को मड़ोर से लगभग 10 किमी. दक्षिण में स्थित चिड़ीया की टूक नामक पहाड़ी पर लोकदेवी करणी माता के हाथों जोधपुर के विसालकाय दुर्ग की नीव रखवाई थी।

 

इस दुर्ग का प्रारम्भिक नाम गढ चिन्तामणि था किन्तु इसके विसाल आकार के कारण इसे मेहरान गढ कहा जाने लगा। इसकी आकृति मयूर जैसी है। इसलिए इसे मयूर ध्वजगढ या मोरधज का किला भी कहा जाता है।

 

किले की पहाड़ी पर प्रसिद्ध नाथयोगी चिड़ीयानाथ की सधना स्थली थी इस लिए इस पहाड़ी को चिड़ीया की टूक कहा जाता है।

 

जोधपुर का मेहरानगढ ही एकमात्र एसा दुर्ग है जिस की नीव में राजिया भाभी नामक जीवीत व्यक्ति को गाड़ कर बलि देने का लिखित शाक्य उपलब्ध है।

 

जिस स्थान पर राजिया को गाड़ा गया था उस स्थान पर कोषागार और नकारखाना का भवन बनवाया गया था।

 

500 x 200 गज के क्षेत्रफल में विस्तारित मेहरानगढ भूतल से लगभग 400 मीटर ऊँचा है।

 

और किले के चारों और 20 फिट 120 फिट ऊँचा और 12 से 70 फिट चौड़ा सुदुढ परकोटा है।

 

इस दुर्ग के प्रवेश दरवाजों में लोहपोल , जयपोल , और फतहपोल प्रमुख है। लोहपोल का निर्माण मालदेव ने प्रारम्भ करवाया था जिसे महाराणा विजय सिंह ने पूरा करवाया था। उत्तर पूर्व मे बने जयपोल का निर्माण महाराजा मानसिंह ने करवाया था।

 

जयपोल में लगा लोह का विसाल किवाड़ निम्बाज के ठाकुर अमर सिंह उदावत अहमदाबाद से लूट कर लाए थे। दक्षिण पश्चिम में बने फतहपोल का निर्माण जोधपुर से मुगल खालसा उठा लिये जाने के उपलक्ष्य में अजितसिंह ने करवाया था।

 

इसके द्वारों में ध्रवपोल , सूरजपोल , अमृतपोल और भैरवपोल आदि उल्लेखनिय है। 1544 में शेरशाह सूरी ने जोधपुर के किले मे अधिपत्य कर इसमें एक मस्जिद का निर्माण करवाया था।

 

बाद में मालदेव ने पुन: इस दुर्ग पर अधिकार कर लिया लालपत्थरों से निर्मित और अलकृत झरोखों से सुसोभित जोधपुर का किला अपने अनूठे राजपूत स्थापत्य कला और विशिष्ट संरचना के लिए अपनी पृथक पहचान रखना है।

 

इसलिए रूड यार्न किपलिन ने इस किले के बारे में लिखा है-

“ इसका निर्माण फरिस्तो , परियों और देवताओं कि करामत है। “

 

रूठीमेहरानगढ के महलों में मालदेव द्वारा निर्मित चौकालाव महल अपने भित्ति चित्रकलाओं के लिए अन्तरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त है।

 

मेहरानगढ के अन्य महलों में महाराजा शूरसिंह द्वारा निर्मित मोती महल व अभय सिंह द्वारा निर्मित फूलमहल भी दर्शनिय है। फूवलमहल की छत लादरवा तकनीक से बनी है।

 

महाराजा अजित सिंह द्वारा निर्मित फतहसागर तथा बीचलामहल ,ख्वाबगाह का महल , तख्तविलास , रानीवास आदि भी देखनीय महल है।

 

मेहरानगढ दुर्ग के दोलतखाने में महाराजा तख्तसिंह ( बख्तसिंह ) द्वारा निर्मित श्रृंगार चौकि है, जहा जोधपुर नरेश का राजतिलक होता था।

 

मेहरानगढ दुर्ग मे राव जोधा द्वारा दुर्ग की स्थापना के समय निर्मित नागेणची माता का मन्दिर चामुण्डा माता के मन्दिर के नाम से जाना जाता है। 1857 में जोधपुर दुर्ग के बारुद खाने पर बिजली गिरने के कारण हुए विस्फोट के कारण यह मन्दिर क्षतिग्रस्त हो गया था।

बाद मे तख्तसिंह ने इसका पुन: निर्माण करवाया।

 

महाराण अभयसिंह द्वारा बनवाए गए मूरली मनोहर जी का मन्दिर , आन्नद धन जी का मन्दिर उल्लेखनीय है।

 

आन्नदधन जी के मन्दिर मे स्थापित बिल्लोर पत्थरों की पाँच मूर्तिया महाराज शूरसिंह को अकबर ने भेट की थी। मेहरानगढ में महाराजा मानसिंह द्वारा 1805 स्थापित पुस्तकालय भी उल्लेखनीय है।

 

इस पुस्तकालय में संस्कृत के हजारों दुर्लभ हस्थलिखित ग्रंथ है।

 

मेहरानगढ मे महाराजा अजित सिंह द्वारा बनवाई गई किलकिला तोप व महाराजा अभय सिंह द्वारा सर बुलन्द खाँ छिनी शम्भु तोप तथा महाराजा गजसिंह द्वारा जालौर विजय में प्राप्त गजनी खाँ तोप सहित जैसी विसाल तोपों सहित सेकडो तोपे स्थित है

 

कुम्भलगढ दुर्ग ( राजसमन्द )

 

कुम्भलगढ दुर्ग चितौड़ के बाद राज्य का दुसरा प्राचीनतम दुर्ग है राजसमन्द जिले के सादड़ी गाँव के समीप अरावली श्रृखला के जरगा पहाड़ की चौटी पर 3766 फिट की ऊँचाई पर स्थित इस दुर्ग का निर्माण ई पूर्व 3 शताब्दी में अशोक के पुत्र या पौत्र मौर्य राज सम्प्रति

ने करवाया था मौर्य राजा सम्प्रति राजस्थान में जैन धर्म को शासकीय संरक्षण प्रदान करने वाला प्रथम शासक था। और राजस्थान मे प्रचीन जैन मन्दिरों की विपुल संख्या सम्प्रति के संरक्षण का ही प्रतीफल है।

 

सम्प्रति के किले के भग्नावशेषों पर महाराणा कुम्भा ने अपने राज्य शिल्पी मंडन के नेतृत्व मे 1443 से 1458 के बीच कुम्भलगढ दुर्ग का निर्माण करवाया था। इसे कुम्भलमेर दुर्ग का पुर्न: निर्माण करवाया था।

 

मेवाड़ व मारवाड की सीमा पर स्थित होने के कारण कुम्भलगढ दुर्ग का सामरिक दुष्टि से अत्यधिक महत्त्वपूर्ण माना जाता है।

 

कुम्भलगढ दुर्ग जाने के लिए देलवाडा से पश्चिम की और पहाड़ी नाल से हो कर एक तंग रास्ता जाता है जिस पर कुम्भलगढ का प्रथम द्वार ओरठपोल आता है। यह दुर्ग का ना हो कर पहाड़ी घेराव का मार्ग है ओरठपोल से 1 मील आगे हल्लापोल है यह भी दुर्ग की सुरक्षा

के लिए निर्मित मार्ग अवरोधक द्वार है।

 

हल्लापोल के बाद हनुमानपोल आता है जो कि कुम्भलगढ दुर्ग का मुख्य प्रवेस दरवाजा है इस दरवाजे के बहार कुम्भा द्वारा मडोल से लाई गई हनुमान जी की प्रतिमा प्रतिष्ठित है।

 

हनुमान पोल के बाद विजय पोल और राम पोल आते है यहा से दुर्ग का भितरी भाग शुरु हो जाता है। और दुर्ग के चारो ओर बनी सुदुढ प्राचीरें स्पष्ट दिखाई देती है।

 

कुम्भलगढ दुर्ग की प्राचीरे इतनी चौड़ी है की इन पर चार घुड़सवार एक साथ चल सकते थे। कुम्भलगढ दुर्ग की प्राचीरो की तुलना चीन की दिवार से कि जाती है।

 

कुम्भलगढ दुर्ग के पूर्व में एक चौकोर संभाग मे एक निलकठ महादेव का मन्दिर है जो चारों ओर से बरामदो से घिरा है। इस लिए कर्नल टार्ड ने भ्रांतीवश इसे यूनानी शैली का मन्दिर मान लिया था।

 

यही पर दुर्ग की प्रतिष्ठता हेतु किये गये यज्ञ के लिए बनी दुमजिला भवनुमा यज्ञ वेदी है।

 

इसके निचे वाले भाग में झाली बावडी व मामा देव का कुण्ड़ है इस कुण्ड़ के समीप स्थित मामावट के स्थान पर कुम्भा ने कुम्भा स्वामी का विष्णुमन्दिर बनवाया था। जो अब जीर्णक्षीण अवस्था में है और मामादेव के मन्दिर के नाम से जाना जाता है।

 

कुम्भलगढ दुर्ग की सर्वप्रथम विशेषता यह है कि इस दुर्ग के भितर एक और किला है। जो इसके सबसे उचे भाग पर स्थित है जिसे इसकी सीधी चढाई के कारण कट्टारगढ कहते है।

 

अबुल फजल ने इसकी ऊचाई को लक्ष्यीत कर कहा की “कोई भी व्यक्ति पगडी बाध कर इस दुर्ग को नही देख सकता।“

 

कुम्भलगढ दुर्ग में स्थित कट्टारगढ को मेवाड़ की आँख कहा जाता है।

 

कट्टारगढ भी प्राचीरो और दरवाजों से सुरक्षीत है और राणा कुम्भा के महल रानीवास आदि इसी में स्थित है।

 

कुम्भलगढ में महाराणा रायसिंह के पुत्र कुवर पृथ्वीराज के स्मारक रूपी बाराह खम्भों की छत्री बनी हुई है। जिसमे लगे स्मारक स्तमभ पर कुँवर पृथ्वीराज के साथ सति होने वाली 16 रानियों व एक पासवान की मूर्तिया उर्त्कीण है जिन पर नाम भी लिखा है।

 

कर्नल टाड़ ने कुम्भलगढ दुर्ग को ‘एटक्सन’ की उपाधी दी

 

सोनारगढ दुर्ग ( जैसलमेर )

 

जैसलमेर के सोनारगढ दुर्ग को सोहनगढ के नाम से भी जाना जाता है और इसे उत्तरी सीमा का प्रहरी कहा जाता है यूनेस्को द्वारा 2008 में जैसलमेर के सोनारगढ दुर्ग को विश्व धरोहर में सम्मिलित किया गया थ॥

 

जैसलमेर के भाटी शासकों की गौरव के प्रतिक सौनारगढ दुर्ग की नीव 11 जुलाई 1156 ई. को जैसलमेर के संस्थापन राव जयमल (जैसल) ने नीव रखी थी।

 

जैसलमेर की त्रिभुजाकार त्रिकृट पहाडी पर 250 फिट की ऊचाई पर स्थित इस दुर्ग के निर्माण में 7 वर्षो का समय लगा था त्रिकुटाकृति के इस दुर्ग मे पिले पत्थरों का प्रयोग किया है।और कहि पर भी चूने व गारे का प्रयोर नही किया गया था।

 

पिले पत्थरों से निर्मित यह दुर्ग प्रात व सायेकाल सुर्य की किरोणों से प्रदिप्त हो कर सोने जैसे चमकता है इसी लिये इसे सोनारगढ कहते है। विख्यात फिल्मी निर्देशक सत्यजीत रै इस दुर्ग पर आधारित ‘सोनार किला ‘नामक फिल्म बनी थी।

 

।सोनारगढ किले के चारो और पर्वतों को ढकने के लिए पत्थरों से र्स्कटनूमा परकोटा तैयार किया गया है। इस परकोटे को कमर कोट कहा जाता है। यह मुख्य दुर्ग बहार दुर्ग की रक्षा प्राचीर का कार्य करता है।

 

व।सोनारगढ दुर्ग के चारों और बनी प्राचीर में मोर्चा बन्धी के लिए 99 बुर्जें बने है प्रत्येक बुर्ज लगभग 30 फिट ऊचा है और इनमे तोप तथा युद्ध सामग्री रखने की व्यवस्था है।

 

राजस्थन के दुर्गों में सर्वाधिक बुर्ज सोनारगढ दुर्ग मे ही है।

 

सोनारगढ का प्रवेश द्वार अक्षयपोल या अखेपोल( अजयपोल) कहलात है।

 

दुर्ग का द्वितीय दरवाजा सुरजपोल कहलाता है। इसके दाहिनी और बेरीशाला की बुर्ज नामक एक भव्य मिनार बनी है। इनके अतिरिक्त प्रवेश के लिए गणेश्पोल व हवापोल को पार करना होता है।

 

सोनारगढ के दुर्ग में पेयजल की अपूर्ती हेतु प्रसिद्ध जैसलू कुंआ है अनूश्रृति के अनुसार यह कूंए का निर्माण भगवान श्री कृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र से किया था। ताकि उनके वंशज यदूवशिय भाटियों को पेयजल उपलब्ध हो सके ।

 

सोनारगढ दुर्ग में महारावल अखेसिंह द्वारा निर्मित सर्वोत्तम विसाल भव्य राजमहल है जिसे शिशमहल कहते है। महारावल मूलराज द्वितीय द्वारा बनवाया गया रंगमहल तथा मोती महल और महारावल गजसिंह द्वारा निर्मित गजमहल इस दुर्ग के दर्शनिय महल है।

 

जैसलमेर दुर्ग के लिए कहा जाता है कि

“ केवल पत्थर कि टागे ही आपको इस दुर्ग तक पहुंचा सकती है”

 

जैसलमेर दुर्ग मे तीन साखे हुए थे। किन्तु 1550 ई. में राव लुणकरण के शासनकाल मे हुआ तीसरा साखा अर्ध्द माना जाता है क्योंकि इसके राजपूतों ने तो केशरिया किया था। परन्तु वीरागनाओं ने जौहर नही कर पाई। इस लिए जैसलमेरियों के ढाई साखे कहलाते है।

 

जैसलमेर के भाटी शासकों को उत्तरी सीमा का रक्षक माना जाता है पाटण की रानी ने यहा के शासन विजय राज भाट्टी को उत्तर भड किवाड़ भाटी की उपाधि से सम्मानित किया था।

 

जैसलमेर का सौनारगढ दुर्ग चितौड के बाद सबसे बडा लिविंग फोर्ट है

 

 

 

राजस्थान एक़ परीचय

RajasthanMap

राजस्थान एक़ परीचय

1.

भौगोलिक स्थिति

राजस्थान का क्षेत्रफल 3,42,239 वर्ग कि॰मी॰ जो इसे भारत का सबसे बड़ा राज्य बनाता है।

 

राजस्थान की भौगोलिक स्थिति :

– अक्षांक: 23.3′ उत्तर से 30.12′ उत्तरी अक्षांश

-देशान्तर: 69.30′ पूर्व से 78.17′ पूर्व देशान्तर

 

राजस्थान के पश्चिम में पाकिस्तान, दक्षिण-पश्चिम में गुजरात, दक्षिण-पूर्व में मध्यप्रदेश, उत्तर में पंजाब (भारत), उत्तर-पूर्व में उत्तरप्रदेश और हरियाणा है।

 

राजस्थान की आकृति लगभग पतंगाकार है।

 

2 राजस्थान की जनसँख्या (2011 के अनुसार)

कुल जनसंख्या = 68,548,437 (2011 के अनुसार)

ग्रामीण जनसंख्या = 51,500,352 (75.01%)

शहरी जनसंख्या = 17,048,085 (24.09%)

 

राजस्थान का जनसंख्या घनत्व = 200/किमी² (2011 के अनुसार )

 

कुल लिंगानुपात जनगणना 2001  में = 921

 

कुल लिंगानुपात जनगणना 2011 में  है = 928

(933 =ग्रामीण, 914 =शहरी )

 

लिंगानुपात (0-6 वर्ष) जनगणना 2001  में = 909

लिंगानुपात (0-6 वर्ष) जनगणना 2011 में घटा है = 888 (892=ग्रामीण, 874=शहरी )

 

सर्वाधिक लिंगानुपात वाला जिला = डूंगरपुर (994)

 

न्यूनतम लिंगानुपात वाला जिला = धौलपुर (846)

 

राजस्थान में अनुसुचित जाति (SC)  की जनसंख्या 2011 = 12,221,593 (17.8%)

 

राजस्थान में अनुसुचित जाति (SC) में लिंगानुपात 2011 = 923 (बढ़ा है)

 

अनुसुचित जाति (SC) जनसंख्या बहुलता वाले जिले (20% से अधिक ) = गंगानगर, हनुमानगढ़, बीकानेर, चुरू, नागौर, टोंक, कोटा, सवाईमाधोपुर, करौली, धौलपुर, दौसा और भरतपुर

 

राजस्थान में अनुसुचित जनजाति (ST) की जनसंख्या 2011 = 9,238,534 (13.5%)

 

राजस्थान में अनुसुचित जनजाति (ST) में लिंगानुपात 2011 = 948 (बढ़ा है )

 

अनुसुचित जनजाति (ST) जनसंख्या बहुलता वाले जिले (28% से अधिक ) = सिरोही, उदयपुर, डूंगरपुर, बांसवाड़ा और प्रतापगढ़

 

3 ..राजस्थान में साक्षरता (2011 के अनुसार)

राजस्थान में साक्षरता दर 2011 = 66.1 % (पुरुष=79.2%, 52.1%)

 

राजस्थान में सर्वाधिक साक्षरता वाला जिला = कोटा (76.6%)

 

राजस्थान में न्यूनतम साक्षरता वाला जिला = जालोर

(54.9 %)

 

राजस्थान में सर्वाधिक (पुरुष) साक्षरता वाला जिला = झुंझुनू (86.9 %)

 

राजस्थान में न्यूनतम (पुरुष) साक्षरता वाला जिला = प्रतापगढ़ एवं बांसवाड़ा (69.5%)

 

राजस्थान में सर्वाधिक (महिला) साक्षरता वाला जिला = कोटा (65.9 %)

 

राजस्थान में न्यूनतम (महिला) साक्षरता वाला जिला = जालोर(38.5%)

 

4 राजस्थान में प्रथम

“वृहत राजस्थान” या “राजस्थान” के प्रथम मुख्यमंत्री = हीरालाल शाश्त्री (30 मार्च 1949)

 

राजस्थान में “संयुक्त राजस्थान संघ” के प्रथम मुख्यमंत्री = माणिक्य लाल वर्मा (18 अप्रेल 1948)

 

राजस्थान में “मतस्य संघ” के प्रथम मुख्यमंत्री = शोभा राम (17 मार्च 1948)

 

राजस्थान के प्रथम विधानसभा अध्यक्ष = नरोत्तम लाल जोशी (31 मार्च 1952)

 

राजस्थान में “राजस्थान संघ” के प्रथम मुख्यमंत्री = गोकुल लाल असावा (23 मार्च 1948)

 

राजस्थान विधानसभा में विपक्ष के प्रथम नेता = जसवंत सिंह

 

राजस्थान की प्रथम महिला विधानसभा अध्यक्ष = सुमित्रा सिंह

 

राजस्थान की प्रथम महिला मुख्यमंत्री = वसुंधरा राजे

 

राजस्थान की प्रथम महिला विधायक = यशोदा देवी

 

राजस्थान शब्द का पहला प्रयोग = जेम्स टॉड की किताब Annals and Antiquities of Rajasthan में

 

राजस्थान की प्रथम 4-8 लेन राजमार्ग = NH-8

 

राजस्थान में प्रथम सीमेंट उत्पादन संयंत्र = लाखेरी, बूंदी

 

राजस्थान का प्रथम विश्वविद्यालय = राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर

 

राजस्थान में प्रथम महाविद्यालय = गवर्नमेंट कॉलेज, अजमेर (1836)

 

राजस्थान में प्रथम इंजीनियरिंग महाविद्यालय = MBM इंजीनियरिंग कॉलेज, जोधपुर (1951)

 

राजस्थान का प्रथम पूर्ण साक्षर जिला = अजमेर

 

राजस्थान का प्रथम राष्ट्रीय उद्यान = रणथम्भोर

 

राजस्थान का प्रथम आकाशवाणी केंद्र = जयपुर

 

राजस्थान का प्रथम दूरदर्शन केंद्र = जयपुर

 

राजस्थान की प्रथम नगरपालिका  = आबू

 

राजस्थान का प्रथम स्टॉक एक्सचेंज = जयपुर

 

राजस्थान में प्रथम सहकारी समिति = भिनाय, अजमेर (1905)

 

राजस्थान में प्रथम पद्म विभूषण पुरुस्कार = घनश्याम दास बिरला

 

राजस्थान में प्रथम पद्म भूषण पुरुस्कार = श्री कँवर सेन

 

राजस्थान में प्रथम पद्म विभूषण पुरुस्कार = श्रीमती रतन शाश्त्री

 

5 राजस्थान देश में प्रथम

क्षेत्रफल के आधार पर सबसे बड़ा राज्य = राजस्थान

 

देश का सबसे बड़ा मरुस्थल = थार रेगिस्तान

 

देश में सबसे अधिक सौर ऊर्जा से बिजली बनाने वाला राज्य = राजस्थान (1167 MW, जुलाई 2015)

 

सुचना का अधिकार अपनाने वाला देश का पहला देश = राजस्थान

 

देश का प्रथम जल विश्वविद्यालय = अलवर, राजस्थान

 

देश का प्रथम होम्योपैथी विश्वविद्यालय = जयपुर, राजस्थान

 

देश की प्रथम ज़ैतून रिफायनरी = लुणकसर, बीकानेर

 

देश का प्रथम चारा बैंक = जैसलमेर, राजस्थान

 

देश का एकमात्र ब्रह्मा मंदिर = पुष्कर, अजमेर

 

देश का प्रथम ऑनलाइन न्यायालय = जोधपुर जिला एवं सत्र न्यायलय

 

6 राजस्थान में सर्वाधिक

राजस्थान का सबसे ऊँचा पर्वत शिखर = गुरुशिखर ( 1,722 मीटर)

 

राजस्थान की सबसे लम्बी पर्वत श्रंखला = अरावली पर्वत

राजस्थान का सर्वाधिक आद्र जिला = झालावाड़

राजस्थान का सबसे गर्म जिला = चुरू

राजस्थान का सबसे बड़ा शहर = जयपुर

राजस्थान का सबसे अधिक क्षेत्रफल वाला जिला = जैसलमेर

राजस्थान की सबसे लम्बी नदी = चम्बल

राजस्थान की सबसे बड़ी नदी (पूर्ण बहाव के हिसाब से ) = बनास

राजस्थान का सबसे बड़ा कृषि फार्म = सूरतगढ़

राजस्थान का सबसे वन क्षेत्र वाला जिला = उदयपुर

राजस्थान का सबसे अधिक अभ्यारण वाला जिला = उदयपुर

राजस्थान का सबसे बड़ा अभ्यारण = राष्ट्रीय मरू उद्यान

राजस्थान में आदिवासियों का सबसे बड़ा मेला = बेणेश्वर मेला

(डूंगरपुर)

 

7 राजस्थान में न्यूनतम

राजस्थान का सबसे छोटा जिला (क्षेत्रफल के हिसाब से ) = धौलपुर

राजस्थान का सबसे छोटा जिला (जनसँख्या के हिसाब से ) = जैसलमेर

राजस्थान का सबसे छोटा राष्ट्रीय उद्यान = केवलादेव राष्ट्रीय पक्षी उद्यान

राजस्थान का सबसे कम वन क्षेत्र वाला जिला = चुरू

राजस्थान का बिना नदी वाला जिला = चुरू एवं बीकानेर

राजस्थान का सबसे छोटा संभाग = भरतपुर संभाग

सबसे काम अंतर्राष्ट्रीय सीमा वाला जिला = बीकानेर

राजस्थान का सबसे छोटा अभ्यारण = तालछापर अभ्यारण (7.19 km²)

राजस्थान का सबसे छोटा राष्ट्रीय राजमार्ग= NH 71B, 74KM (5KM राजस्थान में) ( परिवर्तित नाम=NH 919)

 

8 राजस्थान का भारत में स्थान

क्षेत्रफल की दृस्टि से भारत में स्थान = पहला

जनसंख्या की दृस्टि से भारत में स्थान = आठवाँ

मानव विकास सूचकांक (HDI) में भारत में स्थान = 17वां

29 राज्यो में में लिंगानुपात में स्थान==21वां

दशकीय जनसंख्या वृद्धि की दर से = 8 वां

कुल पर्यटकों के आगमन के अनुसार = 10वां (2014)

विदेशी पर्यटकों के आगमन के अनुसार = 5वां (2014)

मरुस्थल के आधार पर देश में स्थान = पहला

 

9.राजस्थान एक नजर में (2015) – प्रशासनिक:

राजस्थान में लोकसभा की कुल सीटें = 25

राजस्थान में राज्यसभा की कुल सीटें = 10

राजस्थान में विधानसभा की कुल सीटें = 200

राजस्थान में कुल जिले = 33

राजस्थान में कुल उपखण्ड=289

राजस्थान में कुल संभाग = 7

राजस्थान में कुल नगर निगम = 7

राजस्थान में कुल नगर परिषद = 34

राजस्थान में कुल छावनी बोर्ड = 1 (नसीराबाद)

राजस्थान में कुल नगर पलिकाएँ =147

राजस्थान में कुल नगर व् कस्बे=222

राजस्थान में कुल तहसील = 314

राजस्थान में कुल उपतहसील = 189

राजस्थान में कुल राजस्व गाँव = 45493

राजस्थान में कुल ग्राम पंचायत = 9900

राजस्थान में कुल पंचायत समिति = 295

राजस्थान उच्च न्यायालय = जोधपुर

राजस्थान उच्च न्यायालय की अन्य खण्डपीट / बैंच = जयपुर

 

👉 🌞राजस्थान का सामान्य परिचय👉 🌞

राजस्थान का कुल क्षेत्रफल 3,42,239 कि.वर्गमीटर है। जो कि देश का 10.41प्रतिशत है और क्षेत्रफल की दृष्टि से राजस्थान का देश में प्रथम स्थानहै।

 

👉 🌞1 नवम्बर 2000 को मध्यप्रदेश से छत्तीसगढ़ का गठन हुआ और उसी दिन से राजस्थान देश का प्रथम राज्य बना।

 

👉 🌞2011 में राजस्थान की कुल जनसंख्या 6,86,21,012 थी जो की देश की जनसंख्या का 5.67 प्रतिशत है।

 

👉🌞राजस्थान की स्थिति, विस्तार, आकृति,

एवं भौतिक स्वरूप👉 👉

 

👉 🌞भुमध्य रेखा के सापेक्ष राजस्थान उतरी गोलाद्र्व में स्थित है।

 

👉 🌞ग्रीन वीच रेखा के सापेक्ष राजस्थान पुर्वी गोलाद्र्व में स्थित है।

 

👉 🌞ग्रीन वीच व भुमध्य रेखा दोनों के सापेक्ष राजस्थान उतरी पूर्वी गोलाद्र्व में स्थित है।

 

राजस्थान राज्य भारत के उत्तरी-पश्चिमी भाग में 23० 3′ से 30० 12′ उत्तरी अक्षांश (विस्तार 7० 9′) तथा 69० 30′ से 78० 17′ पूर्वी देशान्तर (विस्तार 8० 47?) के मध्य स्थित है

map

राजस्थान का क्षेत्रीय विस्तार 342239 वर्ग किलोमीटर है जो भारत के कुल क्षेत्र का 10.41 प्रतिशत है। क्षेत्रफल की दृष्टि से यह भारत का सबसे बड़ा राज्य (1 नवम्बर,

2000 को मध्यप्रदेश से छत्तीसगढ़ के अलग होने के बाद) है।

कर्क रेखा अर्थात 23 ० 30′ अक्षांश राज्य के दक्षिण में बांसवाड़ा-डुंगरपुर जिलों से गुजरती है।

 

👉 🌞बांसवाड़ा शहर कर्क रेखा से राज्य का सर्वाधिक नजदीक शहर है

विस्तारः- उत्तर से दक्षिण तक लम्बाई 826 कि. मी. व विस्तार उत्तर में कोणा गाँव (गंगानगर) से दक्षिण में बोरकुण्ड गाँव(कुशलगढ़, बांसवाड़ा) तक है।

 

पुर्व से पश्चिम तक चौड़ाई 869 कि. मी. व विस्तार पुर्व में सिलाना गाँव(राजाखेड़ा, धौलपुर) से पश्चिम में कटरा(फतेहगढ़,सम, जैसलमेर) तक है।

 

👉 🌞राजस्थान का अक्षांशीय अंतराल – 7०9′

👉 🌞राजस्थान का देशान्तरीय अंतराल – 8०47′

 

 

आकृतिः-👉 👉

 

विषम कोणीय चतुर्भुज या पतंग के समान।

 

स्थलीय सीमाः- 👉

5920 कि.मी.(1070 अन्तराष्ट्रीय व 4850 अन्तराज्जीय)।

 

🌞रेडक्लिफ रेखाः-👉

रेडक्लिफ रेखा भारत और पाकिस्तान के मध्य स्थित है। इसके संस्थापक सर सिरिल एम  रेडक्लिफ को माना जाता है। इसकी स्थापना 14/15 अगस्त, 1947 को की गयी। इसकी भारत के साथ कुल सीमा 3310 कि.मी. है।

 

👉 🌞रेडक्लिफ रेखा पर भारत के चार राज्य स्थित है।

(1)जम्मू-कश्मीर(1216 कि.मी.)

(2)पंजाब(547 कि.मी.)

(3)राजस्थान(1070 कि.मी.)

(4)गुजरात(512 कि.मी.)

 

👉 🌞रेडक्लिफ रेखा के साथ सर्वाधिक सीमा- राजस्थान(1070 कि.मी.)

 

👉 🌞रेडक्लिफ रेखा के साथ सबसे कम सीमा- गुजरात(512 कि.मी.)

 

👉 🌞रेडक्लिफ रेखा के सर्वाधिक नजदीक राजधानी मुख्यालय- श्री गंगा नगर

 

👉 🌞रेडक्लिफ रेखा के सर्वाधिक दुर राजधानी मुख्यालय- जयपुर

 

👉 🌞रेडक्लिफ रेखा पर क्षेत्र में बड़ा राज्य- राजस्थान

रेडक्लिफ रेखा पर क्षेत्र में सबसे छोटा राज्य- पंजाब

रेडक्लिफ रेखा के साथ राजस्थान की कुल सीमा 1070 कि.मी. है। जो राजस्थान के चार जिलों से लगती है।

(1) श्री गंगानगर- 210 कि.मी.

(2)बीकानेर- 168 कि.मी.

(3)जैसलमेर- 464 कि.मी.

(4)बाड़मेर- 228 कि.मी.

 

👉 🌞रेडक्लिफ रेखा राज्य में उत्तर में गंगानगर के हिंदुमल कोट से लेकर दक्षिण में बाड़मेर के शाहगढ़ बाखासर गाँव तक विस्तृत है।

 

रेडक्लिफ रेखा पर पाकिस्तान के 9 जिले पंजाब प्रांत का बहावलपुर जिला

 

#facts

1 राजस्थान का प्रवेश द्वार किसे कहा जाता है

👉 🌞भरतपुर

 

2 महुआ के पेङ पाये जाते है

👉 🌞अदयपुर व चितैङगढ

 

3 राजस्थान में छप्पनिया अकाल किस वर्ष पङा

1956 वि

 

👉 🌞4 राजस्थान में मानसून वर्षा किस दिशा मे बढती है

दक्षिण पश्चिम से उत्तर पूर्व

 

5 राजस्थान में गुरू शिखर चोटी की उचाई कितनी है

1722 मीटर

 

6 राजस्थान में किस शहर को सन सिटी के नाम से जाना जाता है

👉 🌞जोधपुर को

 

7 राजस्थान की  आकृति है

👉 🌞विषमकोण चतुर्भुज

 

8 राजस्थान के किस जिले का क्षेत्रफल सबसे ज्यादा है

👉 🌞जैसलमेर

 

9 राज्य की कुल स्थलीय सीमा की लम्बाई है

👉 🌞5920 किमी

 

10 राजस्थान का सबसे पूर्वी जिला है

👉 🌞धौलपुर

 

11 राजस्थान का सागवान कौनसा वक्ष कहलाता है

👉 🌞रोहिङा

 

12 राजस्थान के किसा क्षेत्र में सागौन के वन पाये जाते है

👉 🌞दक्षिणी

 

13 जून माह में सूर्य किस जिले में लम्बत चमकता है

👉 🌞बॉसवाङा

 

14 राजस्थान में पूर्ण मरूस्थल वाले जिलें हैंा

👉 🌞जैसलमेर, बाडमेर

 

15 राजस्थान के कौनसे भाग में सर्वाधिक वर्षा होती है

👉 🌞दक्षिणी-पूर्वी

 

16 राजस्थान में सर्वाधिक तहसीलोंकी संख्या किस जिले में है

👉 🌞जयपुर

 

17 राजस्थान में सर्वप्रथम सूर्योदय किस जिले में होता है

👉 🌞धौलपुर

 

18 उङिया पठार किस जिले में स्थित है

👉 🌞सिरोही

 

19 राजस्थान में किन वनोंका अभाव है

👉 🌞शंकुधारी वन

 

20 राजस्थान के क्षेत्रफल का कितना भू-भाग रेगिस्तानी है

👉 🌞लगभग दो-तिहाई

 

21 राजस्थान के पश्चिम भाग में पाये जाने वाला सर्वाधिक विषैला सर्प

👉 🌞पीवणा सर्प

 

22 राजस्थान के पूर्णतया वनस्पतिरहित क्षेत्र

👉 🌞समगॉव (जैसलमेर)

 

23 राजस्थान के किस जिले में सूर्यकिरणों का तिरछापन सर्वाधिक होता है

👉 🌞श्रीगंगानगर

 

24 राजस्थान का क्षेतफल इजरायल से कितना गुना है

👉 🌞17 गुना बङा है

 

25 राजस्थान की 1070 किमी लम्बी पाकिस्तान से लगीसिमा रेखा का नाम

👉 🌞रेडक्लिफ रेखा

 

26 कर्क रेखा राजस्थान केकिस जिले से छूती हुई गुजरती है

👉 🌞डूंगरपुर व बॉसवाङा से होकर

 

27 राजस्थान में जनसंख्या की द़ष्टि से सबसे बङा जिला

👉 🌞जयपुर

 

28 थार के रेगिस्तान के कुल क्षेत्रफल का कितना प्रतिशत राजस्थान में है

👉 🌞58 प्रतिशत

 

29 राजस्थान के रेगिस्तान में रेत के विशाल लहरदार टीले को क्या कहते है

👉 🌞धोरे

30 राजस्थान का एकमात्र जीवाश्म पार्क स्थित है

👉 🌞आकलगॉव (जैसलमेर)

 

राजस्थान की अन्य राज्य से सीमा-____

👉 🌞1…पंजाब(89 कि.मी):-

 

👉 🌞राजस्थान के दो जिलो की सीमा पंजाब से लगती है।तथा पंजाब के दो जिले फाजिल्का व मुक्तसर की सीमा राजस्थान से लगती है।

 

👉 🌞पंजाब के साथ सर्वाधिक सीमा श्री गंगानगर व न्यूनतम सीमा हनुमानगढ़ की लगती है।

 

👉 🌞 पंजाब सीमा के नजदीक जिला मुख्यालय श्री गंगानगर तथा दुर जिला मुख्यालय हनुमानगढ़ हैं।

 

👉 🌞पंजाब सीमा पर क्षेत्रफल में बड़ा जिला श्री गंगानगर व छोटा जिला हनुमानगढ़ है।

 

👉 🌞2….हरियाणा(1262 कि.मी.):-

राजस्थान के 7 जिलों की सीमा हरियाणा के 8 जिलों(सिरसा, फतेहबाद, हिसार, भिवाणी, महेन्द्रगढ़, रेवाडी, गुडगाँव, मेवात) से  लगती है।

 

👉 🌞हरियाणा के साथ सर्वाधिक सीमा हनुमानगढ़ व न्युनतम सीमा जयपुर की लगती है।तथा सीमा के नजदीक जिला मुख्यालय हनुमानगढ़ व दुर मुख्यालय जयपुर का हैं।

 

👉 🌞हरियाणा सीमा पर क्षेत्रफल में बड़ा जिला चुरू व छोटा जिला झुंझुनू है।

 

👉 🌞मेवात(नुह) नवनिर्मित जिला है।जो राजस्थान के अलवर जिले को छुता है।

 

👉 🌞3……उत्तरप्रदेश(877 कि.मी.):-

राजस्थान के दो जिलों की सीमा उत्तरप्रदेश के दो जिलों(मथुरा व आगरा) से जगती है। उत्तरप्रदेश के साथ सर्वाधिक सीमा भरतपुर व न्युनतम धौलपुर कि लगती है।उत्तरप्रदेश की सीमा के नजदीक जिला मुख्यालय भरतपुर व दुर जिला मुख्यालय धौलपुर है। उत्तरप्रदेश की

सीमा पर क्षेत्रफल में बड़ा जिला भरतपुर व छोटा जिला धौलपुर है।

 

👉 🌞4.मध्यप्रदेश(1600 कि.मी.):-

राजस्थान के 10 जिलों की सीमा मध्यप्रदेश के 10 जिलों की सीमा से लगती है।(झाबुआ, रतलाम, मंदसौर, निमच, शाजापुर, राजगढ़, गुना, शिवपुरी, श्यौपुर, मुरैना)

मध्यप्रदेश के साथ सर्वाधिक सीमा झालावाड़ व न्यूनतम भीलवाड़ा की लगती है।तथा सीमा के नजदीक मुख्यालय धौलपुर व दुर जिला मुख्यालय भीलवाड़ा है।मध्यप्रदेश की सीमा पर क्षेत्रफल में बड़ा जिला भीलवाड़ा व छोटा जिला धौलपुर है।

 

👉 🌞5..गुजरात(1022 कि.मी.):-

राजस्थान के 6 जिलों की सीमा गुजरात के 6 जिलों से लगती है।

(कच्छ, बनासकांठा, साबरकांठा, अरावली, माहीसागर, दाहोद)

 

👉 🌞गुजरात के साथ सर्वाधिक सीमा उदयपुर व न्युनतम सीमा बाड़मेर की लगती है।तथा सीमा के नजदीक जिला मुख्यालय डुंगरपुर व दुर मुख्यालय बाड़मेर है।

 

👉 🌞गुजरात सीमा पर क्षेत्रफल में बड़ा जिला बाडमेर व छोटा जिला डंुगरपुर है।

 

👉 🌞राजस्थान के पांच पडौसी राज्य है।- पंजाब, हरियाणा, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, गुजरात।

सबसे कम अन्तराज्जीय सीमा बनाने वाला जिला बाडमेर व अधिक झालावाड़ बनाता है।

 

👉 🌞सन् 1800 में जाॅर्ज थामसन ने सर्वप्रथम इस भू-प्रदेश को राजपुताना नाम दिया सन् 1829 में कर्नल जेम्सटाॅड ने अपनी पुस्तक द एनाल्स एण्ड एन्टीक्यूटीज आॅफ राजस्थान में हमारे इस राज्य के लिए राजस्थान, रायथान, रजवाडा नाम दिया था।

 

तथ्यः-👉 🌞

👉 🌞26 जनवरी 1950 को संविधानिक रूप से हमारे राज्य का नाम राजस्थान पडा।

 

👉 🌞राजस्थान अपने वर्तमान स्वरूप में 1 नवंम्बर 1956 को आया।इस समय राजस्थान में कुल 26 जिले थे।

26 वां जिला-अजमेर-1 नवंम्बर, 1956

27 वां जिला-धौलपुर-15 अप्रैल, 1982

यह भरतपुर से अलग होकर नया जिला बना।

28 वां जिला- बांरा-10 अप्रैल, 1991

यह कोटा से अलग होकर नया जिला बना।

29 वां जिला-दौसा-10 अप्रैल,1991

यह जयपुर से अलग होकर नया जिला बना।

30 वां जिला- राजसंमद-10 अप्रैल, 1991

यह उदयपुर से अलग होकर नया जिला बना।

31 वां जिला-हनुमानगढ़-12 जुलाई, 1994

यह श्री गंगानगर से अलग होकर नया जिला बना।

32 वां जिला -करौली 19 जुलाई, 1997

यह सवाई माधोपुर से अलग होकर नया जिला बना।

 

👉 🌞33 वां जिला-प्रतापगढ़-26 जनवरी,2008

यह तीन जिलों से अलग होकर नया जिला बना।

 

  1. चित्तौडगढ़- छोटी सादडी, आरनोद,प्रतापगढ़ तहसील
  2. उदयपुर-धारियाबाद तहसील
  3. बांसवाडा- पीपलखुट तहसील

प्रतापगढ जिला परमेशचन्द कमेटी की सिफारिश पर बनाया गया।प्रतापगढ जिले ने अपना कार्य 1 अप्रैल, 2008 से शुरू किया। प्रतापगढ़ को प्राचीन काल में कांठल व देवला/देवलीया के नाम से जाना जाता था।

 

राजस्थान का गंगानगर शहर पहले एक बड़ा गांव हुआ करता था👉 🌞 रामगनगर।

 

👉 🌞राजस्थान का क्षेत्रफल की दृष्टि से सबसे बड़ा जिला जैसलमेर(38401 वर्ग कि.मी.)

है जो भारत का तीसरा बड़ा जिला है( प्रथम- कच्छ, द्वितीय- लदाख या लेह )।

 

👉 🌞राजस्थान के जैसलमेर जिले को सात दिशाओं वाले बहुभुज की संज्ञा दि है।

 

👉 🌞राजस्थान के सीकर जिले की आकृति अर्द्धचन्द्र या प्याले के समान है।

 

👉 🌞राजस्थान के टोंक जिले की आकृति पतंगाकार मानी गई है।

 

👉 🌞राजस्थान के अजमेर जिले की आकृति त्रिभुजाकार मानी गई है।

 

👉 🌞राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले की आकृति घोड़े के नाल के समान है।

 

👉 🌞राजस्थान के दो जिले खंण्डित जिले हैं-

  1. अजमेर – टाॅडगढ़

 

  1. चित्तौड़गढ़ – रावतभाटा

 

राजस्थान का एकीकरण~~~सम्पूर्ण ज्ञान With tricks

राजस्थान के प्रथम चरण से सप्तम चरण के

क्रमशः नाम व गठन की तिथि~~~

trick~~

मत्स्य पहले से वृहत fhir संयुक्त वृहत

hokar राजस्थान ko आधुनिक roop me laya

 

मत्स्य~~~~मत्स्य संघ~~18मार्च 1948*1

पहले~~पूर्व राजस्थान संघ~25 मार्च 1948*2

से~~~~संयुक्त राजस्थान~~18अप्रैल 1948*3

वृहत~~~वृहत राजस्थान~~30 मार्च 1949*4

संयुक्त वृहत~~संयुक्त वृहत राजस्थान

~~15मई 1949*5

राजस्थान~~~राजस्थान संघ~26jan.1950*6

आधुनिक~~आधुनिक राजस्थान~

~~~1Nov.1956*7 चरण

 

1.

मत्स्य संघ मे शामिल रियासत व् ठिकाना~~~4 रियासत व् 1 ठिकाना

trick~~

A B C D (in) Nimrana

A~~~Alwar

B~~~Bharatpur

C~~~Karoli

D~~~Dholpur

Nimrana~~~Nimrana ठिकाना

 

2.

पूर्व राजस्थान में शामिल रियासत व ठिकाने ~~9 रियासत व 1 ठिकाना

trick~~~

झाला प्रताप की बू-टो को (पहनकर)

शमर ब-डी कुशलता ( से लड़ा)!

 

झाला~~~~~~झालावाड

प्रताप~~~~~~~प्रतापगढ़

की~~~~~किशनगढ़

बू~~~~~~~बूंदी

टो~~~~~~टोंक

को~~~~~~कोटा

शमर(युद्ध)~~~~शाहपुरा

ब~~~~~~ बांसवाड़ा

डी~~~~~डूंगरपुर

कुशलता~~~~~ कुशलगढ़ ठिकाना

3.

संयुक्त राजस्थान का निर्माण~~

पूर्व राजस्थान संघ में 18 अप्रैल 1948 को उदयपुर रियासत को शामिल करने पर संयुक्त राजस्थान का उदय हुआ!

4.

वृहत राजस्थान में शामिल रियासते ~~~~

संयुक्त राजस्थान में जयपुर जोधपुर जैसलमेर

बीकानेर 4 रियासतो को शामिल करने पर

30 मार्च 1949 को वृहत राजस्थान का निर्माण हुआ!

5.

संयुक्त वृहत राजस्थान का निर्माण~~

वृहत राजस्थान में मत्स्य संघ को शामिल करने पर15 मई 1949 को संयुक्त वृहत राजस्थान कअ निर्माण हुआ!

6.

राजस्थान संघ का उदय~~~

संयुक्त वृहत राजस्थान में सिरोही (आबू देहलवाड़ा को छोड़कर) को शामिल करने पर

26जनवरी 1950 को राजस्थान संघ का उदय हुआ!

7.

आधुनिक राजस्थान का निर्माण~~~

राजस्थान संघ में अजमेर~मेरवाड़ा,, आबू~देहलवाड़ा व मध्यप्रदेश के मन्दसौर जिले की भानपुरा तहसिल का सुनेल टप्पा शमिल कर तथा सिरोंज उपखण्ड मध्यप्रदेश को देकर।

जो क्षेत्र बना वह आधुनिक राजस्थान कहलाया।