राजस्थान में स्वतंत्रता संग्राम और प्रजामंडल आंदोलन
प्रजामंडल का अर्थ
राजस्थान में जन जागृति पैदा कर रियासती कुशासन को समाप्त करने उस में व्याप्त बुराइयोंको दूर करने और नागरिकों को उनके मौलिक अधिकार दिलवाने की लड़ाई वाले राजस्थान संगठनों को प्रजामंडल कहा जाता है
अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद के प्रांतीय इकाईद्वारा चलाए गए आंदोलन प्रजा मंडल/प्रजा परिषद/लोक परिषद आंदोलनों के नाम से जाने जाते हैं
प्रजामंडल आंदोलन देसी रियासतों में देशी राजाओं के विरुद्धचलाए गए थे
प्रजा मंडल स्थापना के उद्देश्य
रियासती कुशासनउस में व्याप्त बुराइयों को समाप्त करना
नागरिकों के मौलिक अधिकारोंकी रक्षा करना
राजा के संरक्षण में रियासतों में उत्तरदायी शासन की स्थापना करना राजा के संरक्षण में
राजस्थान में राष्ट्रीय चेतना और जनजागृति के विकास के विभिन्न चरण
राजस्थान में राष्ट्रीय चेतना और जन जागृतिका विकास ब्रिटिश आधिपत्य के बाद ही हो गया था
लेकिन यह प्रयास सफल नहीं हो पाया था
राजस्थान में राष्ट्रीय चेतना और जन जागृति के विकासमें राज्य कई महत्वपूर्ण परिस्थितियों ,घटनाओं, और कारणों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी
🌸1857के संग्राम की पृष्ठभूमि🌸
यह सीमित जनाक्रोश का पहला विस्पोट था
जिसमें भावी लोक चेतना की एक ऐसी पृष्ठभूमितैयार करी थी
जिसने आगे चलकर राष्ट्रीय चेतना और जन जागृतिकी प्रेरणा दी
🌸सामाजिक एवं धार्मिक सुधारको का योगदान🌸
आर्य समाज के प्रवर्तक स्वामी दयानंद सरस्वती में राजस्थान में स्थान स्थान पर घूमकर अपने विचारोंसे स्वर्धम, स्वदेश ,स्वभाषा,स्वराजपर जोर दिया
जिससे सामाजिक धार्मिक सुधारों के साथ ही राष्ट्रीय नवचेतना और जन जागृति का संचार हुआ
इसी प्रकार स्वामी विवेकानंद,साधू निश्चलदास सन्यासी, आत्माराम ,गुरु गोविंद आदि के सतत प्रयासों से राजस्थान में राष्ट्रीय चेतनाउत्पन्न हुई
🌸पाश्चात्य शिक्षा का प्रभाव🌸
ब्रिटिश आधिपत्य के बाद राजस्थान में अंग्रेजी शिक्षा का प्रारंभ हुआ
इसके प्रभाव से महत्वपूर्ण राजनीतिक मामलों पर विचार-विमर्शहोने लगे
शासकों में पारस्परिक एकता की भावना बढी
स्वतंत्रता ,समानता ,उदारता बंधुत्व, देश प्रेम आदि पाश्चात्य विचारों से जनता प्रभावित होकर अपने देश की मुक्ति और अधिकारोंके प्रति सजग होने लगी
🌸समाचार पत्रों और साहित्य की भूमिका🌸
ब्रिटिश एवं रियासती सरकारों की दमनकारी नीति के बावजूद
राजस्थान केसरी,लोकवाणी, सज्जन कीर्ति सुधाकर जैसे अनेक समाचारपत्रों के माध्यम से जन जाग्रति पैदा की गयी
सूर्यमल मिश्रण से लेकर केसरिया बारहठऔर आगे के अनेक कवियों का जनजागृति में महत्वपूर्ण योगदान रहा
इन्होने अपने लेखों के माध्यम से निरंकुश शासन के दोष देशप्रेम और उसकी मुक्तिके प्रयास किए गए
जनकल्याण एक प्रजातांत्रिक संस्थाओंके निर्माण की आवश्यकता का प्रचार-प्रसार कर राष्ट्रीय विचारधाराएव जन जागृति उत्पन्न की गई
🌸यातायात संचार के साधनों की भूमिका🌸
अंग्रेजों ने रेल-सड़क डाक आदि का विकास साम्राज्यवादी हितोंके लिए किया था
लेकिन इसके माध्यम से सभी व्यक्ति और राज्यों का संबंधआपस में बढ़ा
भारत के विभिन्न क्षेत्रों से संपर्क और एकता स्थापितहोने लगी
इससे जनसामान्य के विचारोंका आदान प्रदान हुआ
जिस कारण लोगों में राष्ट्रीय चेतनाका विकास हुआ
🌸जनता की शोचनीय आर्थिक दशा🌸
जनता अपनी दुर्बल आर्थिक दशा का कारण निरंकुश एवं अत्याचारी राजशाही एव उसकी भोगविलास की प्रवृत्ति और अंग्रेजी शासनको मानने लगी
इसका उनमूलन सामूहिक रुप से ही हो सकता है ऐसे विचारलोगों में पनपने लगे
🌸प्रथम विश्व युद्ध का प्रभाव🌸
प्रथम विश्व युद्ध में राजस्थान के सैनिक विदेशोंमें भेजे गए थे
वहां से वे स्वतंत्रता, समानता ,प्रजातंत्,र देश प्रेमआदि विचार अपने साथ लेकर आए
जिससे यहां की जनता को अवगत कराया और उनमें राजनीतिक जागृति उत्पन्नकी गई
अनेक अवसरों पर सैनिकों ने राजशाही के आदेशों की अवहेलना कर जनता पर गोली नहींचलाई
यह परिवर्तन-घटनाएक नए युग की सूचक थी
🌸शासकों में अंग्रेज विरोधी भावना का पनपना🌸
मेवाड़ अलवर भरतपुर आदि के ब्रिटिश विरोधी शासकों को जब ब्रिटिश सरकार ने हटाकर उनके पुत्रों को शासक बनाया
इन घटनाओं ने जनता को उद्वेलित कर दिया
इस घटना ने लोगों को अंग्रेज विरोधी बना दिया
जिससे राजनीतिक चेतनाको बढ़ावा दिया गया
🌸क्रांतिकारियों का योगदान🌸
बीसवीं सदी के प्रारंभ में देश में सशस्त्र क्रांतिके द्वारा अंग्रेजी राज्य के उन्मूलन की योजना बनाई गई
इस योजना में राजस्थान के अनेक क्रांतिकारी शहीदहुए
इन्होने राजस्थान के सोये हुए पौरूष को जगा कर राष्ट्रवाद की भावना की पैदा की
आदिवासी क्षेत्रों में किसान और जनजातीय आंदोलन में राजनीतिक चेतना जागृत करने की दिशा में असाधारण भूमिका का निर्वाह किया
🌸विभिन्न राजनीतिक संगठनों कानिर्माण🌸
उन्नीसवीं सदी के अंतिम दशक और बीसवी सदी के प्रथमार्द्ध में सम्य सभा (1883),सेवा समिति (1915 ),अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद (1927) आदि ने राजस्थान की जनता के विचारों को मूर्त रूप दे दिया
राजनीतिक चेतनाका संचार कर दिया
जिसकी पूर्णाहुति प्रजामंडल आंदोलन के द्वारा हुई
🌹यह सभी कारण ,घटनाएं प्रजामंडल आंदोलन और स्वतंत्रता संग्राम की जननीबने
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राजस्थान में स्वतंत्रता संग्राम के चरण
राजस्थान में स्वतंत्रता संग्राम 3 चरणों में विभाजित किया गया था
1⃣पहला चरण प्रारम्भ से 1927ई.के पूर्व
2⃣दूसरा चरण 1927 से 1938ई.
3⃣तीसरा चरण 1938 से 1949 ई.
🌹प्रथम चरणमें प्रत्येक राज्य में यह संघर्ष अन्य राज्य की घटनाओं से प्रभावित रहकर सामाजिक अथवा मानवतावादी समस्याओंपर केंद्रित था
1920 में कांग्रेस ने प्रस्ताव पास किया था कि वह भारतीय राज्यों के मामलों में हस्तक्षेपनहीं करेगी
इस कारण प्रत्येक राज्य में संघर्ष प्राय: राजनीतिक लक्ष्यसे विहीन ही रहा
🌹दूसरा चरण की 1927 में ऑल इंडियन स्टेट पीपुल्स कॉन्फ्रेंस (अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद)की स्थापना से प्रारंभ हुआ
इस संस्था के स्थापित हो जाने से विभिन्न राज्यों के राजनीतिक कार्यकर्ताओं को एक ऐसा मंच मिल गया था जहां से वे अपनी बात लोगों तक पहुंचासकते थे
1927 में देशी राज्य लोक परिषद् का प्रथम अधिवेशन हुआ था
इस अधिवेशन के बाद राजस्थान के कार्यकर्ता अत्यधिक उत्साह से वापस आए थे
यह सभी कार्यकर्ता इस संस्था की क्षेत्रीय परिषद का गठनकरना चाहते थे
जिससे राजस्थान के सभी राज्यों की गतिविधियों में समन्वय में बना रहे
1931 में राम नारायण चौधरी ने अजमेर में इस संस्था का प्रथम प्रांतीय अधिवेशन किया
जोधपुर में भी जयनारायण व्यास ने इस प्रकार का सम्मेलन करने का प्रयास किया था
लेकिन जोधपुर दरबार की दमनात्मक नीति के कारण इस सम्मेलन का आयोजन ब्यावर नगर में किया गया
इतने प्रयासों के बावजूद भी राजस्थान के राज्य की क्षेत्रीय परिषद का गठन नहीं हो पाया
इस कारण राजस्थान के विभिन्न राज्यों के नेताओ ने अपने अपने राज्यों में अपने ही साधनों से आंदोलन चलाने का निश्चयकिया
प्रजामंडल की स्थापना का आंदोलन यही से प्रारंभ हुआ
🌹तीसरा चरण 1980 कांग्रेस के प्रस्ताव से आरंभ हुआ
इस प्रस्ताव में देशी राज्यों में स्वतंत्रता संघर्ष संबंधित राज्यों के लोगों द्वाराचलाने की बात कही ई गई थी
तीसरे चरणसे ही प्रजामंडल की स्थापना के आंदोलन की शुरुआत हुई
1938 के बाद विभिन्न राज्यों में प्रजामंडल अथवा राज्य परिषदकी स्थापना हुई
प्रत्येक राज्य के लोगों ने राजनीतिक अधिकारों और उत्तरदायी शासन के लिए आंदोलन किए
🎄राजस्थान में स्वतंत्रता संग्राम
राजस्थान के स्वाधीनता संघर्षके आरंभिक चरण में किसान और जनजातियों का रियासती शासन के विरुद्ध संघर्षथा
इस चरण में 1897 प्रारंभ होकर 1941 तक चलने वाला बिजोलिया किसान आंदोलन प्रमुखथा
यह आंदोलन स्थानीय आर्थिक धार्मिक मुद्दोंपर आधारित थे
इन आंदोलनों में राष्ट्रीयता की भावना और सामान्य जन भागीदारीका भी अभाव था
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना 1885 में हुई थी
लेकिन रियासतोंमें लंबे समय तक कांग्रेस या उसके समानांतर संगठननहीं बन पाए थे
क्योंकि रियासतों की जनता दोहरी गुलामी का शिकार थी और जनता राष्ट्रीय धारा से अलग पड़ गई थी
कांग्रेस भी रियासतों के प्रति तटस्थथी
कांग्रेस नहीं चाहती थी कि अंग्रेजों के साथ साथ रियासती राजाओं के साथ भी संघर्ष प्रारंभ हो
महात्मा गांधी के राजनीतिक उत्थानके पश्चात ब्रिटिश आंदोलन की हवा रियासतों में भी पहुंचने लगी
स्थानीय समस्याओं को लेकर विभिन्न प्रकार के आंदोलन होने लगे और विभिन्न राजनीतिक संगठनों की स्थापना होने लगी होने लगा
नारायणी देवी वर्मा
🌹 नारायणी देवी वर्मा का जन्म मध्यप्रदेश की सिंगोली कस्बे मे रामसहाय भटनागर के यहां 1902 में हुआ था
🌹12 वर्ष की आयु में इनका विवाह माणिक्य लाल वर्मा के साथ संपन्न हुआ था
🌹जो बिजोलिया ठिकाने मे नौकरी किया करते थे
🌹जागीरदार के अत्याचारों को देख माणिक्य लाल जी ने जब आजीवन आम जन की सेवा का संकल्प लिया तो नारायणी देवी इस व्रत में उनकी सहयोगिनी बनी
🌹बीमारी के दौरान इलाज के अभाव में इनके दो पुत्रों की मृत्युभी उन्हें इस सेवा कार्य से विरत नहीं कर सकी
🌹माणिक्य लाल वर्मा द्वारा 1934 में सागवाड़ा में खांडलोई आश्रम की स्थापना की गई थी नारायणी देवी द्वारा खांडलोई में भी भीलों के मध्य शिक्षा प्रसार हेतु कार्य किया गया था
🌹1939 में प्रजामंडल के कार्य में भाग लेने के कारण उन्हें जेल जानापड़ा और राज्य से निर्वासित कर दिया गया
🌹 वह अजमेर आई और राज्य की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए प्रयास किए ताकी रचनात्मक कार्य प्रयास प्रारंभ किए जा सकते हैं
🌹इसी समय मेवाड़ में भयंकर अकाल पड़ा तो इन्होंने अकाल सहायता समिति का गठन किया
🌹भारत छोड़ो आंदोलन के समय भी नारायणी देवी वर्मा अपनी 6माह के पुत्र के साथ जेल गई थी
🌹1944 में भीलवाड़ाआ गई और यहां पर 14 नवंबर 1944 को महिला आश्रम की स्थापना की
🌹संस्था की स्थापना का उद्देश्य स्वतंत्रता सेनानियों की पत्नियां और उनके परिवारजनों को शिक्षितकरना
🌹उनके परिवारों के भरण पोषण की व्यवस्थाकरना था
🌹1952-53 में माणिक्य लाल वर्मा के साथ मिलकर आदिवासी कन्या छात्रावास की स्थापनाकी
🌹वर्मा जी के निधन के बाद 1970 से 76 तक राज्यसभा की सदस्य रही
🌹12 मार्च 1977 को उनका देहांत हो गया
राजस्थान में स्वतंत्रता संग्राम के चरण
राजस्थान में स्वतंत्रता संग्राम 3 चरणों में विभाजित किया गया था
1⃣पहला चरण प्रारम्भ से 1927ई.के पूर्व
2⃣दूसरा चरण 1927 से 1938ई.
3⃣तीसरा चरण 1938 से 1949 ई.
🌹प्रथम चरणमें प्रत्येक राज्य में यह संघर्ष अन्य राज्य की घटनाओं से प्रभावित रहकर सामाजिक अथवा मानवतावादी समस्याओंपर केंद्रित था
1920 में कांग्रेस ने प्रस्ताव पास किया था कि वह भारतीय राज्यों के मामलों में हस्तक्षेपनहीं करेगी
इस कारण प्रत्येक राज्य में संघर्ष प्राय: राजनीतिक लक्ष्यसे विहीन ही रहा
🌹दूसरा चरण की 1927 में ऑल इंडियन स्टेट पीपुल्स कॉन्फ्रेंस (अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद)की स्थापना से प्रारंभ हुआ
इस संस्था के स्थापित हो जाने से विभिन्न राज्यों के राजनीतिक कार्यकर्ताओं को एक ऐसा मंच मिल गया था जहां से वे अपनी बात लोगों तक पहुंचासकते थे
1927 में देशी राज्य लोक परिषद् का प्रथम अधिवेशन हुआ था
इस अधिवेशन के बाद राजस्थान के कार्यकर्ता अत्यधिक उत्साह से वापस आए थे
यह सभी कार्यकर्ता इस संस्था की क्षेत्रीय परिषद का गठनकरना चाहते थे
जिससे राजस्थान के सभी राज्यों की गतिविधियों में समन्वय में बना रहे
1931 में राम नारायण चौधरी ने अजमेर में इस संस्था का प्रथम प्रांतीय अधिवेशन किया
जोधपुर में भी जयनारायण व्यास ने इस प्रकार का सम्मेलन करने का प्रयास किया था
लेकिन जोधपुर दरबार की दमनात्मक नीति के कारण इस सम्मेलन का आयोजन ब्यावर नगर में किया गया
इतने प्रयासों के बावजूद भी राजस्थान के राज्य की क्षेत्रीय परिषद का गठन नहीं हो पाया
इस कारण राजस्थान के विभिन्न राज्यों के नेताओ ने अपने अपने राज्यों में अपने ही साधनों से आंदोलन चलाने का निश्चयकिया
प्रजामंडल की स्थापना का आंदोलन यही से प्रारंभ हुआ
🌹तीसरा चरण 1980 कांग्रेस के प्रस्ताव से आरंभ हुआ
इस प्रस्ताव में देशी राज्यों में स्वतंत्रता संघर्ष संबंधित राज्यों के लोगों द्वाराचलाने की बात कही ई गई थी
तीसरे चरणसे ही प्रजामंडल की स्थापना के आंदोलन की शुरुआत हुई
1938 के बाद विभिन्न राज्यों में प्रजामंडल अथवा राज्य परिषदकी स्थापना हुई
प्रत्येक राज्य के लोगों ने राजनीतिक अधिकारों और उत्तरदायी शासन के लिए आंदोलन किए
राजस्थान में स्वतंत्रता संग्राम
राजस्थान के स्वाधीनता संघर्षके आरंभिक चरण में किसान और जनजातियों का रियासती शासन के विरुद्ध संघर्षथा
इस चरण में 1897 प्रारंभ होकर 1941 तक चलने वाला बिजोलिया किसान आंदोलन प्रमुखथा
यह आंदोलन स्थानीय आर्थिक धार्मिक मुद्दोंपर आधारित थे
इन आंदोलनों में राष्ट्रीयता की भावना और सामान्य जन भागीदारीका भी अभाव था
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना 1885 में हुई थी
लेकिन रियासतोंमें लंबे समय तक कांग्रेस या उसके समानांतर संगठननहीं बन पाए थे
क्योंकि रियासतों की जनता दोहरी गुलामी का शिकार थी और जनता राष्ट्रीय धारा से अलग पड़ गई थी
कांग्रेस भी रियासतों के प्रति तटस्थथी
कांग्रेस नहीं चाहती थी कि अंग्रेजों के साथ साथ रियासती राजाओं के साथ भी संघर्ष प्रारंभ हो
महात्मा गांधी के राजनीतिक उत्थानके पश्चात ब्रिटिश आंदोलन की हवा रियासतों में भी पहुंचने लगी
स्थानीय समस्याओं को लेकर विभिन्न प्रकार के आंदोलन होने लगे और विभिन्न राजनीतिक संगठनों की स्थापना होने लगी होने लगा
नारायणी देवी वर्मा
🌹 नारायणी देवी वर्मा का जन्म मध्यप्रदेश की सिंगोली कस्बे मे रामसहाय भटनागर के यहां 1902 में हुआ था
🌹12 वर्ष की आयु में इनका विवाह माणिक्य लाल वर्मा के साथ संपन्न हुआ था
🌹जो बिजोलिया ठिकाने मे नौकरी किया करते थे
🌹जागीरदार के अत्याचारों को देख माणिक्य लाल जी ने जब आजीवन आम जन की सेवा का संकल्प लिया तो नारायणी देवी इस व्रत में उनकी सहयोगिनी बनी
🌹बीमारी के दौरान इलाज के अभाव में इनके दो पुत्रों की मृत्युभी उन्हें इस सेवा कार्य से विरत नहीं कर सकी
🌹माणिक्य लाल वर्मा द्वारा 1934 में सागवाड़ा में खांडलोई आश्रम की स्थापना की गई थी नारायणी देवी द्वारा खांडलोई में भी भीलों के मध्य शिक्षा प्रसार हेतु कार्य किया गया था
🌹1939 में प्रजामंडल के कार्य में भाग लेने के कारण उन्हें जेल जानापड़ा और राज्य से निर्वासित कर दिया गया
🌹 वह अजमेर आई और राज्य की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए प्रयास किए ताकी रचनात्मक कार्य प्रयास प्रारंभ किए जा सकते हैं
🌹इसी समय मेवाड़ में भयंकर अकाल पड़ा तो इन्होंने अकाल सहायता समिति का गठन किया
🌹भारत छोड़ो आंदोलन के समय भी नारायणी देवी वर्मा अपनी 6माह के पुत्र के साथ जेल गई थी
🌹1944 में भीलवाड़ाआ गई और यहां पर 14 नवंबर 1944 को महिला आश्रम की स्थापना की
🌹संस्था की स्थापना का उद्देश्य स्वतंत्रता सेनानियों की पत्नियां और उनके परिवारजनों को शिक्षितकरना
🌹उनके परिवारों के भरण पोषण की व्यवस्थाकरना था
🌹1952-53 में माणिक्य लाल वर्मा के साथ मिलकर आदिवासी कन्या छात्रावास की स्थापनाकी
🌹वर्मा जी के निधन के बाद 1970 से 76 तक राज्यसभा की सदस्य रही
🌹12 मार्च 1977 को उनका देहांत हो गया
स्वतंत्रता संग्राम के लिए स्थापित राजस्थान के विभिन्न में संगठन
🎋🍁राजपूताना मध्य भारत सभा🍁🎋
जयपुर स्टेट इन ब्रिटिश राज 1933 के लेखक रॉबर्ट डब्ल्यू स्टेर्न के द्वारा सन् 1918 में दिल्लीमें आयोजित कांग्रेस अधिवेशन में राजस्थान के कई व्यक्तियों ने भाग लिया था
जिसके परिणाम स्वरुप उनका संपर्क अंग्रेजी भारत और अन्य राज्यों के नेताओंसे हुआ
इस अधिवेशन के बाद गणेश शंकर विद्यार्थी, विजय सिंह पथिक, जमुनालाल बजाज ,चांद करण शारदा ,गिरधर , स्वामी नृसिंहदेव सरस्वती आदि ने इस अधिवेशन में भाग लिया था
इन सभी के प्रयासों से 1918 में राजपूताना मध्य भारत सभा नाम की एक राजनीतिक संस्था की स्थापना की गई
इस संस्था री स्थापना दिल्ली के चांदनी चौक स्थित मारवाड़ी पुस्तकालय में हुई थी
जहां इस का प्रथम अधिवेशन महामहोपाध्याय पंडित गिरधर की अध्यक्षता में आयोजित किया गया था
इस सभा का मुख्य उद्देश्य रियासतों में उत्तरदायी सरकार की स्थापना करना
रियासत के लोगों को कांग्रेस का सदस्यबनाना
इस संस्था का मुख्य कार्यालय कानपुर में रखा गया
कानपुर उत्तरी भारत में मारवाड़ी पूजीपत्तियों और मजदूरों का सबसे बड़ाकेंद्र था
राजपूताना मध्य भारत सभा का अध्यक्ष सेठ जमुनालाल बजाज को बनाया गया
इस सभा का उपाध्यक्ष गणेश शंकर विद्यार्थीको बनाया गया
यहां से गणेश शंकर विद्यार्थी द्वारा प्रताप नामक साप्ताहिक पत्र प्रकाशित होता था
जो इस क्षेत्र का प्रमुख राष्ट्रीय पत्रथा
प्रताप समाचार पत्र नें ही बिजोलिया किसान आंदोलन को अखिल भारतीय स्तर पर चर्चित किया था
इस पत्र मैं राजस्थान में राजनीतिक हलचल के प्रसार में अपना योगदान दिया
सभा के सदस्य ने इस सभा को कांग्रेस की सहयोगी संस्था बनाने की कोशिश की
लेकिन प्रारंभ में यह सफल नहींहुए
राजपुताना मध्य भारत का दूसरा अधिवेशन कांग्रेस अधिवेशन के साथ ही दिसंबर 1919 में अमृतसर में हुआ था
इस संस्था का तीसरा अधिवेशन मार्च 1920 में सेठ जमनालाल बजाज की अध्यक्षता में अजमेर में आयोजित किया गया था
इस सभा का चौथा अधिवेशन दिसंबर 1920 में नागपुर में हुआ था
उस समय भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अधिवेशन भी नागपुर में हो रहा था
नागपुर अधिवेशन के समय 1920 में राजपूताना मध्य भारत सभा को कांग्रेस की सहयोगी संस्था मान लिया गया
राजपूताना मध्य भारत सभा के चौथे अधिवेशन के अध्यक्ष नरसिंह चिंतामणि केलकर निर्वाचित हुए थे
कुछ कारणें से वह नागपुर नहीं पहुंच पाए
इस कारण जयपुर के गणेश नारायण सोमानी को सर्वसम्मति से सभा का अध्यक्षचुना गया
अधिवेशन में एक प्रदर्शनी भी लगाई थी जो किसानों की दयनीय स्थिति को दर्शाती थी
राजस्थान के नेताओं के दबाव के कारण कांग्रेस में एक प्रस्ताव पारित किया
जिसमें राजस्थान के राजाओं से आग्रह किया गया कि वह अपनी प्रजा को शासनमें भागीदार बनाएं
राजपूताना मध्य भारत सभा 1920 के बाद सक्रिय नहीं रह पाई
🎋🍁राजस्थान सेवा संघ🍁🎋
राजस्थान सेवा संघ का गठन 1919 में वर्धा मे श्री अर्जुनलाल सेठी केसरी सिंह बारहठ और विजय सिंह पथिक के संयुक्त प प्रयासों से किया गया था
इस संस्था ने स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी
इस संस्था का मुख्य उद्देश्य जनता की समस्याओं का निवारण करना
जागीरदारों और राजाओं का अपनी प्रजा के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध स्थापित करवाना
जनता में राष्ट्रीय और राजनीति चेतना जाग्रत करना
इस संस्था ने राजस्थान में राजनीतिक प्रचार के लिए 22 अक्टूबर 1920 से वर्धा से राजस्थान केसरी नामक समाचार पत्र प्रकाशित किया गया था
विजय सिंह पथिक इस पत्रिका के संपादक थे और रामनारायण चौधरी सह संपादक थे
राजस्थान केसरी समाचार पत्र के लिए आर्थिक सहायता मुख्य रूप से जमुनालाल बजाज ने की थी
यह पहला पत्रथा जो राजस्थानी लोगों द्वारा प्रकाशितकिया गया था
1920 में इस संस्था का मुख्यालय अजमेर में स्थानांतरित किया गया
राजस्थान सेवा संघ की शाखाएं बूंदी जयपुर जोधपुर सीकर खेतडी कोटा आदि स्थानों पर खोली गई थी
राजस्थान सेवा संघ ने बिजोलिया और बेगू में किसान आंदोलन सिरोही और उदयपुर में भील आंदोलन का मार्गदर्शन किया था
ब्रिटिश सरकार राजस्थान सेवा संघ की गतिविधियों से सशंकित थी
श्री विजय सिंह पथिक ने 1921 में अजमेर से नवीन राजस्थान समाचार पत्रिका प्रकाशन प्रारंभ किया गया
ब्रिटिश सरकार द्वारा नवीन राजस्थान समाचार पत्र पर प्रतिबंधलगा दिया गया
उसके बाद यह समाचार पत्र तरुण राजस्थान के नाम से निकाला गया
तरूण राजस्थान पत्रके संपादन में शोभालाल गुप्त रामनारायण चौधरी जयनारायण व्यासआदि नेताओं ने योगदान दिया
मार्च 1924 में राम नारायण चौधरी और शोभालाल गुप्त को तरुण राजस्थान में देशद्रोहात्मक सामग्री प्रकाशित करने के अपराध में गिरफ्तार किया गया
1924 में मेवाड़ राज्य सरकार द्वारा पथिक को कैद किएजाने के बाद से राजस्थान सेवा संघ के पदाधिकारियों और सदस्यों में आपसी मतभेदशुरू हो गए
धीरे-धीरे मतभेद की खाई इतनी गहरी हो गई की 1928-29 तक राजस्थान सेवा संघ पूर्णतया प्रभावहीन हो गया
🎋🍁सर्व हितकारिणी सभा🍁🎋
सर्व हितकारिणी सभाकी स्थापना सन् 1907में स्वामी गोपाल दास व कन्हैया लाल ढूंढ ने चूरुमें की थी
इन्होने बालिका शिक्षा को प्रोत्साहित करने हेतु चूरु में पुत्री पाठशाला की स्थापना की थी
दलितों में शिक्षा के प्रचार प्रसार हेतु इन्होनें कबीर पाठशाला की स्थापनाकी गई
सर्व हितकारिणी सभा एक सामाजिक शैक्षणिक संस्था थी
🎋🍁वर्धमान विद्यालय🍁🎋
इसकी स्थापना श्री अर्जुनलाल सेठी द्वारा 1907 में जयपुर में की गई थी
यह संस्था स्वतंत्रता संग्राम के समय राजस्थान की क्रांतिकारी गतिविधियों का केंद्र बन गई थी
🎋🍁जयपुर हितकारिणी सभा🍁🎋
पंडित हीरालाल शास्त्रीकी प्रेरणा से जयपुर हितकारिणी सभा का गठन किया गया
इस के अध्यक्ष श्री बाल चंद शास्त्री व मंत्री केसर लाल कटारिया थे
🎋🍁मारवाड़ सेवा संघ🍁🎋
इस संघ का गठन 1920 में श्री जयनारायण व्यास में जोधपुरमें किया था
इस संघ के अध्यक्ष श्री दुर्गा शंकर और मंत्री श्री प्रयाग राज भंडारी थे
यह मारवाड़ राज्य की दूसरी राजनीतिक संस्थाथी
इस संस्था के नेतृत्व में ही चांदमल सुराणा और उनके साथियों ने जोधपूर मे मारवाड़ का तोल आंदोलन किया था
मारवाड़ सरकार ने 100तौले के स्थान पर 80 तौले का सेर प्रचलितकरने का निर्णय लिया था
मारवाड़ सेवासंघ ने इसके विरुद्ध सफल हड़ताल का आयोजन किया
आंदोलन के बाद सरकार को नया तौल जारी करने का निर्णय निरस्त करना पडा
इस संघ का कार्यक्षेत्र अधिक विस्तृत था
🎋🍁मारवाड़ हितकारिणी सभा🍁🎋
जोधपुर में जन आंदोलन की शुरुआत 1918 में चांदमल सुराणा द्वारा मारवाड़ हितकारिणी सभा की स्थापना से मानी जाती है
मारवाड़ सेवा संघ के निष्क्रिय हो जाने के पश्चात जय नारायण व्यास द्वारा इस सभा को 1923 में पुनर्गठित किया गया था
मारवाड़ हितकारिणी सभा की पहली स्थापना चांदमल सुराणाद्वारा की गई थी
मारवाड़ हितकारिणी सभा द्वारा किसानों की ओर ध्यान आकर्षित करने के उद्देश्य से “”पोपाबाई की पोल”” और “”मारवाड़ की अवस्था”” नाम से दो पुस्तकेंप्रकाशित की गई थी
🎋🍁मारवाड यूथ लीग🍁🎋
10 मई 1931 को जोधपुर में जय नारायण व्यासके निवास स्थान पर मारवाड यूथ लीग नामक संस्था की स्थापना की गई थी
इस संस्था का प्रमुख उद्देश्य जोधपुर के साथ साथ आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में जन चेतना का प्रसार करना था
इस लीग को राज्य सरकार द्वारा अवैध घोषित करने से पूर्व ही एक अन्य संस्था बाल भारत सभा बनाई गई
बाल भारत सभा का मंत्री छगन लाल चौपासनीवाला को बनाया गया
🎋🍁मारवाड़ राज्य लोक परिषद🍁🎋
मारवाड़ राज्य लोक परिषद के गठन में जोधपुर राज्य में किसान आंदोलन के नए युगका शुभारंभ किया
इस परिषद का प्रथम सम्मेलन 25 नवंबर 1931 को चांद करण शारदा की अध्यक्षतामें अजमेर के निकट पुष्कर में आयोजित किया गया था
कस्तूरबा गांधी काकासाहेब कालेलकर मनीभाई कोठारीने इस सम्मेलन में भाग लिया था
🎋🍁हरि कीर्तन समाज🍁🎋
1925 26 में अलवर में हरि कीर्तन समाज की स्थापना की गई
इस संस्था को आगे चलकर राजर्षि अभय समाज के नाम से जाना गया अलवर आंदोलनों से ही प्रजामंडल आंदोलन की वास्तविक शुरुआत हुई थी
🎋🍁साहित्य प्रचारिणी सभा🍁🎋
इस सभा का गठन कुँवर मदन सिंह और पूरण सिंह ने 1915 में करौलीमें किया था
बाद में इसका नाम साहित्य परिषदकर दिया गया
1920 में करौली के तत्कालीन दीवान ने इस सभा को करौली की प्रतिनिधि सभा के रूपमें स्वीकार कर लिया था
🎋🍁आचार सुधारनी सभा🍁🎋
1910 में यमुना प्रसाद वर्मा ने धौलपुर में आचार सुधारिणी सभा की स्थापना की थी 1911 में यमुना प्रसाद और ज्वाला प्रसादनें धौलपुर में आर्य समाज की स्थापना की थी
8 अगस्त 1918 को स्वामी श्रद्धानंद के नेतृत्व में धौलपुर में प्रशासन और स्वदेशी आंदोलन प्रारंभ हुआ था
स्वामी श्रद्धानंद की मृत्युके बाद यह आंदोलन समाप्त हो गया था
🎋🍁तिलक समिति🍁🎋
शेखावाटी में 1924 में तिलक समित की स्थापना की गई थी
इस समिति की शाखाएंअलग-अलग स्थानों पर स्थापित की गई थी
इस समिति का उद्देश्य समाजसेवाथा
वास्तव में समिति शेखावाटी में राष्ट्रीय विचारों के प्रसार का कार्य करती थी
🎋🍁मित्र मंडल🍁🎋
मित्र मंडल नामक संगठन की स्थापना बाबू मुक्ता प्रसाद ने बीकानेर में की थी
इसके द्वारा बीकानेर स्टेशन पर पानी पिलाने व लावारिस मृतकों का दाह संस्कार आदि कार्य किया जाता था
किंतु यह संस्था वास्तव में कांग्रेस के सिद्धांतों के प्रचारका कार्य करती थी
🎋🍁हिंदी साहित्य समिति🍁🎋
हिंदी साहित्य समिति की स्थापना 1912में जगन्नाथ दास अधिकारी द्वारा भरतपुर में की गई थी
इस समिति ने भरतपुर में एक विशाल पुस्तकालयकी स्थापना की थी
जगन्नाथदास अधिकारी द्वारा 1920 में दिल्ली से वैभव नामक समाचार पत्र प्रकाशित किया था
1927 में हिंदी साहित्य समितिद्वारा भरतपुर में विश्व हिंदी सम्मेलनका आयोजन किया था
इस सम्मेलन की अध्यक्षता पंडित गौरीशंकर हीरानंद ओझाने की थी
इस सम्मेलन में रविंद्र नाथ टैगोर ,जमनालाल बजाजआदि ने भाग लिया था
इस सम्मेलन से व भरतपुर आए विशिष्टजनों के प्रभाव के कारण भरतपुर के महाराजा किशन सिह ने भरतपुर में हिंदी को राजभाषाबनाने गांव व नगरों में स्वायत्तशासी संस्थाओंको विकसित करने और रियासत में उत्तरदायी शासन की स्थापना का प्रचार
प्रारंभ करने की घोषणाकी थी
महाराजा की घोषणाओं से नाराज अंग्रेजों ने किशन सिह को गद्दी से हटा दिया था और दीवान मैकेन्जीको भरतपुर का प्रशासक नियुक्त किया था
जगन्नाथदास अधिकारी को राज्य से निवासितकर दिया गया था
🎋🍁सिवील लिबर्टीज यूनियन🍁🎋
1936 में इस संस्था की प्रांतो और देशी राज्यो में कांग्रेस की सहयोगी संस्था के रुप में स्थापना की गई थी
जोधपुर में भी इस यूनियन की शाखा की स्थापना हुई थी
स्वतंत्रता संग्राम के प्रथम चरण के बाद राजस्थान मैं बदलाव
स्वतंत्रता संग्राम के प्रथम चरण में राजस्थान के क्रांतिकारियों की राजद्रोहात्मक गतिविधियों से पूर्ण सफलता प्राप्त नहीं हुई
लेकिन आंदोलनों ने राजस्थान की जनता में राष्ट्रीय चेतना और जन जागरूकताका विकास विकास किया
इन आंदोलनों का राज्य में अंग्रेज विरोधी जनमत तैयारकरने में महत्वपूर्ण योगदान रहा
बेगू बिजोलिया बूंदीकिसान आन्दोलन और सूर्जी भगत गोविंद गुरु और मोतीलाल तेजावत के नेतृत्व में हुए भील आंदोलन ने स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई
इन आंदोलनों के द्वारा राज्य की जनता में राजनीतिक चेतना का विकास हुआ
आत्मविश्वासउत्पन्न हुआ और यहां की जनता अपने अधिकारोंके प्रति सजग हुई
1921 में महात्मा गांधीचलाए गए असहयोग आंदोलनका प्रभाव राजस्थान पर भी पड़ा
इस आंदोलन से राजस्थान के लोगों में भी देशप्रेम की भावना जागृत हुई और राज्य में निरंकुश शासन के प्रति रोष उत्पन्न हुआ
जोधपुर में भवरलाल सरार्फ सत्याग्रही ने तिरंगा झंडा लेकर शहर में घुमाया
झंडे पर एक और महात्मा गांधी और दूसरी ओर स्वराज्य लिखा हुआ था
भवरलाल सरार्फ ने जोधपुर में एक भाषण दिया था
जिसे लोगों ने पूर्ण एकाग्रता और उत्साहसे सुना था
टोंक राज्य की जनता ने भी कांग्रेस के प्रति पूर्ण सहानुभूति और असहयोग आंदोलनका अनुमोदन किया था
इस घटना के कारण अंग्रेजों ने यहां के नेता मौलवी अब्दुल रहीम सय्यद जुबेर मियां सेयद इस्माइल मियांआदि को गिरफ्तार कर लिया गया था
जयपुर राज्य में जमनालाल बजाज ने अपनी रायबहादुर की उपाधि लौटा दी और एक लाख रुपए तिलक स्वराज्य कोष में जमा किया था
जमना लाल बजाज को अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की कार्यकारिणी का सदस्य बनाया गया
जमनालाल बजाज से प्रेरित होकर राजस्थान के व्यापारी ने भी इस आंदोलन के दौरान कांग्रेस को आर्थिक सहयोग दिया था
1921 में बिकानेर में मुक्ताप्रसाद वकील आदि ने विदेशी कपड़ों की होली जलाईऔर खादी पहनने का व्रत लिया
बीकानेर में अंग्रेजों के विरुद्ध प्रदर्शनप्रदर्शित करने के लिए खादी भंडार भी खोला गया
15 मार्च 1931 को अजमेर में वित्तीय राजनीतिक सम्मेलन का आयोजन किया गया
सम्मेलन की अध्यक्षता मौलाना शौकत अलीद्वारा की गई
इस सम्मेलन में मोतीलाल नेहरू भी उपस्थित थे
मौलाना शौकत अली के नेतृत्व में विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार का आह्वान किया गया
अजमेर में पंडित गौरीशंकरके नेतृत्व में विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार किया गया
इस कार्य में अर्जुन लाल सेठी, चांद करण शारदा आदि ने भाग लिया
प्रथम विश्वयुद्धके समय राजस्थान के राजाओं ने पूरी श्रद्धा से ब्रिटिश सरकार को सहायता प्रदान करी थी और ब्रिटिश साम्राज्य के प्रति पूर्ण निष्ठा का परिचय दिया था
ब्रिटीश सरकार ने भी उन्हें अपना विश्वसनीय सहयोगी मानकर युद्ध संचालन में भागीदार बनाया था
बीकानेर के महाराजा गंगासिंह को साम्राज्य युद्ध मंत्रिमंडल और साम्राज्य युद्ध सम्मेलन का सदस्य मनोनीत किया गया था
इन्हें जर्मनी से वार्ता में भाग लेने के लिए भारत का प्रतिनिधित्व करने हेतु पेरिस भेजा गया
प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद वायसराय की अध्यक्षता में नरेंद्र मंडल की स्थापनाकी गई थी इस
नरेंद्र मंडल के द्वारा देशी राजा अपने राज्य और भारत सरकार से संबंधित समस्याओं पर विचार विमर्श कर सकते थे
: ब्रिटिश सरकार द्वारा देशी राजा को बताया गया कि राष्ट्रवादी मध्यवर्गी लोग किसान मजदूरआदि ब्रिटिश सरकार और देशी नरेशों के लिए अशांति और खतरा उत्पन्न करने का कारण बन सकते हैं
ब्रिटिश प्रशासकों ने मेवाड़ के बिजोलिया ठिकाने में किसान पंचायतोंकी स्थापना की गई
इन पंचायतों की आत्मनिर्भरता की तुलना रूसी सोवियतो से की गई और
बिजोलिया किसान आंदोलन के सूत्रधार पथिक को विप्लववादी कहा गया और ब्रिटिश साम्राज्य द्वारा समान हितों की बात कह कर देशी राज्यों का सहयोगप्राप्त करने का प्रयास किया गया
देसी राज्य ब्रिटिश सत्ता के साथ जुड़े होने के कारण राजस्थान के राजाओं ने असहयोग आंदोलन को अपने अस्तित्व के लिए खतरा माना
इस कारण बीकानेर के महाराजा गंगा सिंह ने अपने राज्य के शिव मूर्ति सिह, संपूर्णानंद और आनंद वर्माको सरकारी नौकरी से निकाल दिया
इन सभी को सरकारी नौकरी से निकालने का कारणइनके द्वारा स्वदेशी वस्त्र पहनना और तिलक स्वराज्य कोष मे चंदाजमा करना था
उदयपुर के महाराणा फतेह सिंहने विवश हो कर अपने युवराज भूपाल सिंह को 28 जुलाई 1921 को शासनाधिकार सौंप दिये
युवराज ने अंग्रेज सरकार की इच्छा अनुसार मंत्री मंडल बनाया और राजस्व विभाग जैसा महत्व विवाग एक अंग्रेज अधिकारी मिस्टर ट्रेंच को सौंप दिया गया
ब्रिटिश सरकार का लगभग अब यह प्रयास था की राजस्थान के राज्यों में अंग्रेज मंत्रियों की नियुक्ति की जाए
जिस से राज्य में बढ़ती हुई राजनीतिक चेतना पर नियंत्रण रखा जा सके
इस कारण राज्य के कई जिले सिरोही बूंदी जोधपुर जयपुर में अंग्रेज नियुक्ति की गई और जहां ऐसा संभव नहीं हुआ वहां बाहर के व्यक्तियों को उच्च पदों पर नियुक्त किया गया
राजस्थान के अनेक राज्यों में राजाओं से उनके प्रशासन का अधिकार छीन कर दीवानों और निरकुंश नौकर तंत्र को दे दिया गया था
बीसवीं शताब्दीके तृतिय दशक तक राज्य में बहुत बड़ी संख्या में शिक्षित लोग मौजूदथे
जिन्हें राज्य में कार्य करने का अवसर प्रदान नहीं किया गया था
इसके कारण इन में असंतोष फेल गया
इस शिक्षित वर्ग ने प्रचलित व्यवस्था में अनियमिताओं को उजागर कर जनता में जागृति उत्पन्न की
इन्होंने नागरिक अधिकारों और उत्तरदायी सरकारकी स्थापना के लिए संघर्ष प्रारंभ किया और जन आंदोलनों को नेतृत्वप्रदान किया
इन संघर्ष और आंदोलन से राजस्थान में एक नए युग का सूत्रपातहुआ और प्रजामंडल आंदोलन की शुरुआत हुई
: अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद् का गठन (द्वितीय चरण1927-1938)
🌱स्वतंत्रता संग्राम के द्वितीय चरण में 1927 मैं अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषदका गठन किया गया
🌱अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद का गठन देसी रियासतों के कार्यकर्ताओंने मिलकर किया था
🌱कांग्रेस का समर्थन मिल जाने के बाद इसकी शाखाएं स्थापित की जाने लगी
🌱अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद की स्थापना के बाद राजस्थान में सक्रिय राजनीति का कालप्रारंभ हुआ
🌱अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद के प्रथम अध्यक्ष बाबा रामचंद्र राव थे और श्री विजय पथिक को उपाध्यक्ष बनाया गया
🌱श्रीराम नारायण चौधरीराजपूताना और मध्य भारत के प्रांतीय सचिव बनाए गए
🌱देशी राज्य लोक परिषद् का मुख्यालय मुंबई में रखा गया था
🌱1928 में राजपूताना देशी राज्य लोक परिषद के प्रांतीय सम्मेलन में रियासतों में राजाओं के संरक्षण में उत्तरदायी सरकार की स्थापना करने का प्रस्तावपारित किया गया था
🌱श्री रामनारायण चौधरी में देशी राज्य लोक परिषद का प्रांतीय अधिवेशन 1931 में अजमेर में आयोजित किया था
🌱अखिल भारतीय देशी राज्य परिषद के कराची अधिवेशन 1936 में जयनारायण व्यास को महामंत्री बनाया गया था
🌱31 दिसंबर 1945 से 1 जनवरी 1946तक अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद् का सातवां अधिवेशन उदयपुर के सलोदिया मैदान में आयोजित किया गया था
🌱 उदयपुर के सलोटिया मैदान में आयोजित सम्मेलन की अध्यक्षता पंडित नेहरूने की थी
🌱यह राजपूताना”में आयोजित किया जाने वाला लोक परिषद का प्रथम अधिवेशन था
🐾राजपूताना सेंटर इंडिया छात्र एसोसिएशन🐾
🌱राजपूताना और मध्य भारत में विद्यार्थियों ने स्वतंत्रता आंदोलनमें सक्रिय रुप से भाग लिया था
🌱राज्य में इन गतिविधियों का केंद्र अजमेर था
🌱विद्यार्थियों की गतिविधियों को संगठित रूप प्रदान करने के लिए राजपूताना सेंट्रल इंडिया छात्र अधिवेशन संपन्न किया गया
🌱यह अधिवेशन 31 दिसंबर 1935 से 2 जनवरी 1938 तक ब्यावर में K.F.नारीमनकी अध्यक्षता में हुआ था तृतीय चरण 1938 प्रजामंडल आंदोलन व स्थापना
स्वतंत्रता संग्राम का तृतीय चरण राज्य में 1938 से प्रारंभ हुआ जो आजादी के बाद तक चला
तृतीय चरण में प्रजामंडल आंदोलन अत्यधिक सक्रिय हुए
इन आंदोलनों के परिणाम स्वरुप राज्य में प्रजामंडल की स्थापना होने लगी
ब्रिटिश भारत का प्रशासन ब्रिटिश सरकार द्वारा नियुक्त गवर्नर जनरल, गवर्नर अन्य अधिकारी के हाथ में था
जबकि भारत में राजाओं का निरंकुश शासन था
1857 के असफल स्वतंत्रता संग्राम ने जनमानस में स्वतंत्रता की ललक पैदा कर दी थी
1885 में ब्रिटिश भारत में राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी की स्थापना के बाद स्वतंत्रता आंदोलन को एक नया स्वरूप मिला था
इसमेे जनता को राष्ट्रीय कांग्रेस की धारा से नहींजोड़ा गया था
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और महात्मा गांधी की यही नीति थी की रियासतों के मामले में कोई हस्तक्षेप नहीं किया जाए
रियासतों के नेता स्थानीय स्तर पर भी अपनी समस्याओं से निपटे
कांग्रेस पार्टी के द्वारा नागपुर और मद्रास अधिवेशन के बाद कांग्रेस ने दृढ शब्दों में प्रस्ताव पारित किया
इस प्रस्ताव के तहत देशी राजाओंको अपने राज्यों में शीघ्र प्रतिनिधि संस्थाएं और उत्तरदायी शासन स्थापित करना चाहिए
दिसंबर 1927 में मुंबई में अखिल भारतीय देशी लोकराज्य परिषद की स्थापना की गई
हरिपुरा अधिवेशन
1938 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के द्वारा हरिपुरा में अधिवेशन का आयोजन किया गया
इस अधिवेशन की अध्यक्षता सुभाष चंद्र बोस ने की थी
इस अधिवेशन के द्वारा रियासतों की जनता को अपने अपने राज्यों में उत्तरदायी शासन का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए
स्वतंत्र संगठन बनाकर आंदोलन करने और जन जागृति फैलाने का आह्वान किया गया
पंडित जवाहरलाल नेहरु अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद के अध्यक्ष बने थे
इस अधिवेशन में कांग्रेस ने पहली बार निर्णय लिया कि कांग्रेस को रियासती जनता के संघर्षमें साथ देना चाहिए
हरिपुरा अधिवेशन में देशी रियासतों को अपना कार्य क्षेत्र घोषित किया गया
यह आंदोलन स्थानीय नेताओं के द्वारा स्थानीय संगठनोंके माध्यम से चलाया जावेगा
इन संगठनों को प्रजामंडल या प्रजा परिषद कहा गया
1938 के बाद राजस्थान की लगभग सभी रियासतों में प्रजामंडलकी स्थापना हुई
सभी रियासतों में उत्तरदायी शासनकी मांग को लेकर आंदोलन किए जाने लगे
इससे देसी राज्यों में असाधारण जागृति उत्पन्न हुई और देशी राज्य की जनता को राष्ट्र की मुख्यधारा में सम्मिलित किया गया
राज्य में संचालित हो रहे आंदोलनों को इन संस्थाओं से नवीन प्रेरणा मिली
जिससे स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद देसी राज्यों के एकीकरण का कार्य संभव हो सका
प्रजामंडलो की भूमिका भारत को आजाद कराने की दिशा में उल्लेखनीय थी
कांग्रेस ने अपने त्रिपुरी अधिवेशन 1939 में देशी रियासतों की राजनीतिक संस्थाओंकी गतिविधियों के साथ अपनी अहस्तछेप नीति का परित्याग कर पूर्ण सहयोग देने की नीति का प्रस्तावपारित किया गया
अखिल भारतीय देशी राज्य परिषद ने पंडित जवाहरलाल नेहरु की अध्यक्षता में लुधियाना अधिवेशन 19 मार्च 1939में संकल्प पारित किया
रियासतों की जनता द्वारा उत्तरदायी शासन की स्थापना के लिए संघर्ष कांग्रेस के पूर्ण सहयोग से कांग्रेस के मार्गदर्शन में शुरू होना चाहिए
इन सभी वजह से राज्य में प्रजामंडल की स्थापना कि गआ राज्य में पहला प्रजामंडल जयपुर प्रजामंडलथा
इसकी स्थापना 1931 में की गई थी
लेकिन यह प्रजामंडल लगातार 5 वर्षों तक निष्क्रिय बना रहा
1938 में जमनालाल बजाज और अर्जुन लाल सेठी के द्वारा जयपुर प्रजामंडल का फिर से पुनर्गठन किया गया
प्रजामंडलो की मुख्य मांग रियासतो मैं उत्तरदायी शासन की स्थापना थी