प्रतिक चिन्ह
राज्य पशु ” चिंकारा ” ( वन्य जीव श्रेणी )c
चिंकारे को राज्य पशु का दर्जा 22 मई , 1981 मिला ।
चिंकारे का वैज्ञानिक नाम गजेला – गजेला है ।
चिंकारा एंटीलोप प्रजाति का जीव है ।
चिंकारे के लिए नाहरगढ़ अभयारण्य (जयपुर )प्रसिद्ध है ।
राज्य में सर्वाधिक चिंकारे जोधपुर में देखे जा सकते है ।
राज्य पक्षी ” गोडावण ”
गोडावण को राज्य पक्षी का दर्जा 21 मई 1981 में मिला ।
गोडावण का वैज्ञानिक नाम क्रायोटिस नाइग्रीसेप्स है ।
गोडावण को अंग्रेजी में ग्रेट इंडियन बस्टर्ड बर्ड कहा जाता है ।
गोडावण को स्थानीय भाषा में सोहन चिड़िया , शर्मीला पक्षी कहा जाता है ।
गोडावण के अन्य उपनाम — सारंग, हुकना, टुकड8, बड़ा तिलोर व गुधनमेर है ।
गोडावण को हाड़ौती क्षेत्र में मालमोरड़ी कहा जाता है ।
राजस्थान में गोडावण सर्वाधिक तीन क्षेत्रो में पाया जाता है – सोरसन ( बारां ) , सोंकलिया (अजमेर ) , मरूद्यान ( जैसलमेर , बाड़मेर )।
गोडावण के प्रजनन हेतु जोधपुर जंतुआलय प्रसिद्ध है ।
– गोडावण का प्रजनन काल अक्टूबर , नवम्बर का महिना माना जाता है ।
गोडावण मूलतः अफ्रीका का पक्षी है ।
गोडावण की कुल ऊंचाई लगभग 4 (NCRT book में 1 मीटर ) होती है ।
इसका प्रिय भोजन मूंगफली व तारामीरा है ।
गोडावण राजस्थान के अलावा गुजरात में भी देखा जा सकता है ।
गोडावण शुतुरमुर्ग की तरह दिखाई देता है ।
2011 में की IUCN की रेड डाटा लिस्ट में इसे Critically Endangered प्रजाति मन गया है ।
5 जून 2013 को राष्ट्रीय मरू उद्यान , जैसलमेर में प्रोजेक्ट ग्रेट इंडियन बस्टर्ड प्रारम्भ किया ।
1980 में जयपुर में गोडावण पर पहला अंर्तराष्ट्रीय सम्मलेन आयोजित किया गया ।
राजस्थान का राज्य पशु
1-वन्य जीव श्रेणी मे- चिंकारा
2-पशुधन श्रेणी मे – ऊँट
चिंकारा-:
1981 मे राज्य पशु घोषित किया गया।
– वैज्ञानिक नाम – गजेला-गजेला
– चिंकारा सामान्यतया जोधपुर मे पाया जाता है।
ऊँट
-राज्य पशु की घोषणा -30 जून, 2014
-अधिसूचना जारी- 19 सितम्बर, 2014
-वैज्ञानिक नाम – केमिलस् डेमेटेरियस्
– रेगिस्तान का जहाज🐫
– ऊँट बिना पानी पिये लम्बे समय तक रह सकता है-कुबड़ की वजह से क्योंकि कूबड़ मे अत्यधिक वसा होती है।
– ऊँट के बच्चे को- टोल्डया
-ऊँट की बच्ची को- टोल्डी
-बूढे ऊँट को- पाकट🐫
-ऊँट पालक जाति- रायका-रेबारी
– ऊँटो के देवता- पाबूजी
– ऊँटो की देवी- अन्ता देवी
– ऊँट का आभूषण – गोरबंद🕶🐫
-ऊँट महोत्सव – बीकानेर
– ऊँट का मेला- पुष्कर (अजमेर)
-केमल मेन- अशोक टांक
-कैमल सफारी- सम गांव(जैसलमेर)
-प्रसिद्ध ऊँट – नाँचना🐫🐫
– उस्ताँ कला -ऊँट की खाल पर सोने-चाँदी एवं अन्य धातु से की जाने वाली नक्काशी । (बीकानेर)
– जटकटराई -ऊँट के बाल पर चित्रकारी -(बीकानेर)
-ऊँट की कुर्बानी के लिए प्रसिद्ध महल- मुबारक महल (टोंक)
– BSF द्वारा संचालित बैण्ड- केमिलस् बैण्ड🎺🎷🎻
🔰 *राज्य पुष्प ‘ रोहिड़ा’* 🔰
➡ रोहिड़े को राज्य पुष्प का *दर्जा 1983* में दिया गया ।
➡ रोहिड़े का *वैज्ञानिक नाम टिकोमेला अन्डूलेटा* है ।
➡ रोहिड़े के *पुष्प मार्च , अप्रैल* में खिलते है ।
➡ जोधपुर में रोहिड़े के पुष्प को *मारवाड़ टीक* कहा जाता है ।
➡ रोहिड़े को *जरविल नामक रेगिस्तानी चूहा* नुकसान पहुंचा रहा है ।
🔰 *राज्य वृक्ष ‘ खेजड़ी ‘* 🔰
➡ *दर्जा :- 31 अक्टूबर , 1983* को ।
➡ *5 जून 1988* को *विश्व पर्यावरण दिवस* के अवसर पर खेजड़ी वृक्ष पर *60 पैसे का डाक टिकट* जारी किया गया ।
➡ *वैज्ञानिक नाम :- प्रोसेपिस सिनरेरिया* है ।
➡ खेजड़ी को राजस्थान का *कल्प वृक्ष , थार का कल्प वृक्ष , रेगिस्तान का गौरव* आदि नामो से जाना जाता है ।
➡ खेजड़ी को *Wonder Tree* व भारतीय मरुस्थल का *सुनहरा वृक्ष* भी कहा जाता है ।
➡ खेजड़ी के *सर्वाधिक वृक्ष शेखावाटी* क्षेत्र में देखे जा सकते है ।
➡ खेहड़ी के *सर्वाधिक वृक्ष नागौर* जिले में देखे जाते है ।
➡ खेजड़ी के वृक्ष की *पूजा विजय दशमी / दशहरे ( आश्विन शुक्ल -10 )* के अवसर पर की जाती है ।
➡खेजड़ी के वृक्ष के नीचे *गोगा जी व झुंझार बाबा* के मंदिर बने होते है ।
➡ खेजड़ी को *हरियाणवी व पंजाबी भाषा में जांटी* के नाम से जाना जाता है।
➡ खेजड़ी को *तमिल भाषा में पेयमेय* के नाम से जाना जाता है ।
➡ खेजड़ी को *कन्नड़ भाषा में बन्ना-बन्नी* के नाम से जाना जाता है ।
➡ खेजड़ी को *सिंधी भाषा में छोकड़ा* के नाम से जाना जाता है ।
➡ खेजड़ी को *बंगाली भाषा में शाईगाछ* के नाम से जाना जाता है ।
➡ खेजड़ी को *विश्नोई* संप्रदाय में *शमी* के नाम से जाना जाता है ।
➡ खेजड़ी को *स्थानीय* भाषा में *सीमलो* कहा जाता है ।
➡ खेजड़ी की हरी फलियां *सांगरी ( फल गर्मी में लगते है )* कहलाती है तथा *पुष्प मींझर* कहलाता है ।
➡ खेजड़ी कि सूखी फलियां *खोखा* कहलाती है ।
– वैज्ञानिको ने खेजड़ी जे वृक्ष की आयु पांच हजार वर्ष बताई है ।
➡ राज्य में सर्वाधिक प्राचीन खेजड़ी के दो वृक्ष एक हजार वर्ष पुराने *मांगलियावास गांव ( अजमेर )* में है ।
➡ मांगलियावास गांव में *हरियाली अमावस्या (श्रावण )* को वृक्ष मेला लगता है ।
➡ खेजड़ी के वृक्ष को *सेलेस्ट्रेना व ग्लाइकोट्रमा* नामक कीड़े नुकसान पंहुचा रहे है ।
➡ *माटो :- बीकानेर के शासकों* द्वारा *प्रतीक चिन्ह* के रूप रूपये में खेजड़ी के वृक्ष को अंकित करवाया ।
➡ *ऑपरेशन खेजड़ा* नमक अभियान *1991* में चलाया गया ।
➡ वन्य जीवो के रक्षा के लिए राज्य में सर्वप्रथम बलिदान *1604* में जोधपुर के *रामसडी गांव में करमा व गौरा* के द्वारा दिया गया ।
➡ खेजड़ी के लिए प्रथम बलिदान *अमृता देवी बिश्नोई ने 17030 में 363* लोगो के साथ जोधपुर के खेजड़ली ग्राम या गुढा बिश्नोई गांव में *भाद्रपद शुक्ल दशमी* को दिया ।
➡ *भाद्रपद शुक्ल दशमी*को विश्व का एकमात्र *वृक्ष मेला* खेजड़ली गांव में लगता है ।
➡ *बिश्नोई सम्प्रदाय* के द्वारा दिया गया यह बलिदान *साका या खड़ाना* कहलाता है ।
➡ इस बलिदान के समय *जोधपुर का राजा अभयसिंह* था ।
➡ अभयसिंह के आदेश पर *गिरधर दास के द्वारा 363* लोगों की हत्या की गई ।
➡ खेजड़ली दिवस प्रत्येक वर्ष *12 सितंबर* को मनाया जाता है ।
➡ *अमृता देवी वन्य जीव पुरस्कार की शुरुआत 1994* में की गई ।
➡ खेजड़ली आंदोलन *चिपको आंदोलन* का प्रेरणा स्त्रोत रहा है ।
🔰 *राज्य खेल – बास्केटबाल*🔰
➡ *दर्जा :- 1948 में*
➡ *खिलाड़ियों की संख्या :- 5*
➡ बास्केटबाल *अकादमी जैसलमेर* में प्रस्तावित है ।
🔰 *राज्य गीत ‘ केसरिया बालम ‘* 🔰
➡ इस गीत को सर्वप्रथम *उदयपुर* की *मांगी बाई* के द्वारा गया गया ।
➡ इसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति दिलाने का श्रेय *बीकानेर* की *अल्लाजिल्ला बाई* को है ।
➡ *अल्लाजिल्ला बाई* को *राजस्थान की मरू कोकिला* कहा जाता है ।
➡ यह गीत *माण्ड गायिकी* शैली में गाया जाता है ।
🔰 *राज्य का शास्त्रीय ‘ कत्थक ‘* 🔰
➡ कत्थक *उत्तरी भारत* का प्रमुख नृत्य है ।
➡ दक्षिणी भारत का प्रमुख नृत्य *भरतनाट्यम* है ।
➡ कत्थक का भारत में प्रमुख *घराना लखनऊ* है ।
➡ कत्थक के राजस्थान में प्रमुख *घराना जयपुर* है ।
➡ कत्थक के *जन्मदाता भानू जी महाराज* को माना जाता है ।
🔰 *राज्य की राजधानी ‘ जयपुर ‘* 🔰
➡ जयपुर की स्थापना सवाई जयसिंह द्वितीय के द्वारा *18 नवम्बर 1927* में की गई ।
➡ जयपुर के वास्तुकार *विद्याधर भट्टाचार्य* को माना जाता है ।
➡ जयपुर के निर्माण के बारे में *बुद्धि विलास नामक ग्रंथ* से जानकारी मिलती है ।
➡ जयपुर जा निर्माण *जर्मनी के शहर द एल्ट स्टड एर्लग* के आधार पर करवाया गया है ।
➡ जयपुर का निर्माण *चौपड़ पैटर्न* के आधार पर किया गया है ।
➡ जयपुर को राजधानी *30 मार्च 1949* को बनाया गया ।
➡ जयपुर को राजधानी *श्री पी सत्यनारायण राव समिति* की सिफारिश पर बनाया गया ।
➡ जयपुर को गुलाबी रंग में रंगवाने का श्रेय *रामसिंह द्वितीय* को है ।
🔰🔰🔰🔰🔰🔰🔰🔰🔰
प्रतिक चिन्ह
राज्य पशु ” चिंकारा ” ( वन्य जीव श्रेणी )c
चिंकारे को राज्य पशु का दर्जा 22 मई , 1981 मिला ।
चिंकारे का वैज्ञानिक नाम गजेला – गजेला है ।
चिंकारा एंटीलोप प्रजाति का जीव है ।
चिंकारे के लिए नाहरगढ़ अभयारण्य (जयपुर )प्रसिद्ध है ।
राज्य में सर्वाधिक चिंकारे जोधपुर में देखे जा सकते है ।
राज्य पक्षी ” गोडावण ”
गोडावण को राज्य पक्षी का दर्जा 21 मई 1981 में मिला ।
गोडावण का वैज्ञानिक नाम क्रायोटिस नाइग्रीसेप्स है ।
गोडावण को अंग्रेजी में ग्रेट इंडियन बस्टर्ड बर्ड कहा जाता है ।
गोडावण को स्थानीय भाषा में सोहन चिड़िया , शर्मीला पक्षी कहा जाता है ।
गोडावण के अन्य उपनाम — सारंग, हुकना, टुकड8, बड़ा तिलोर व गुधनमेर है ।
गोडावण को हाड़ौती क्षेत्र में मालमोरड़ी कहा जाता है ।
राजस्थान में गोडावण सर्वाधिक तीन क्षेत्रो में पाया जाता है – सोरसन ( बारां ) , सोंकलिया (अजमेर ) , मरूद्यान ( जैसलमेर , बाड़मेर )।
गोडावण के प्रजनन हेतु जोधपुर जंतुआलय प्रसिद्ध है ।
– गोडावण का प्रजनन काल अक्टूबर , नवम्बर का महिना माना जाता है ।
गोडावण मूलतः अफ्रीका का पक्षी है ।
गोडावण की कुल ऊंचाई लगभग 4 (NCRT book में 1 मीटर ) होती है ।
इसका प्रिय भोजन मूंगफली व तारामीरा है ।
गोडावण राजस्थान के अलावा गुजरात में भी देखा जा सकता है ।
गोडावण शुतुरमुर्ग की तरह दिखाई देता है ।
2011 में की IUCN की रेड डाटा लिस्ट में इसे Critically Endangered प्रजाति मन गया है ।
5 जून 2013 को राष्ट्रीय मरू उद्यान , जैसलमेर में प्रोजेक्ट ग्रेट इंडियन बस्टर्ड प्रारम्भ किया ।
1980 में जयपुर में गोडावण पर पहला अंर्तराष्ट्रीय सम्मलेन आयोजित किया गया ।
🔰 *राज्य पुष्प ‘ रोहिड़ा’* 🔰
➡ रोहिड़े को राज्य पुष्प का *दर्जा 1983* में दिया गया ।
➡ रोहिड़े का *वैज्ञानिक नाम टिकोमेला अन्डूलेटा* है ।
➡ रोहिड़े के *पुष्प मार्च , अप्रैल* में खिलते है ।
➡ जोधपुर में रोहिड़े के पुष्प को *मारवाड़ टीक* कहा जाता है ।
➡ रोहिड़े को *जरविल नामक रेगिस्तानी चूहा* नुकसान पहुंचा रहा है ।
🔰 *राज्य वृक्ष ‘ खेजड़ी ‘* 🔰
➡ *दर्जा :- 31 अक्टूबर , 1983* को ।
➡ *5 जून 1988* को *विश्व पर्यावरण दिवस* के अवसर पर खेजड़ी वृक्ष पर *60 पैसे का डाक टिकट* जारी किया गया ।
➡ *वैज्ञानिक नाम :- प्रोसेपिस सिनरेरिया* है ।
➡ खेजड़ी को राजस्थान का *कल्प वृक्ष , थार का कल्प वृक्ष , रेगिस्तान का गौरव* आदि नामो से जाना जाता है ।
➡ खेजड़ी को *Wonder Tree* व भारतीय मरुस्थल का *सुनहरा वृक्ष* भी कहा जाता है ।
➡ खेजड़ी के *सर्वाधिक वृक्ष शेखावाटी* क्षेत्र में देखे जा सकते है ।
➡ खेहड़ी के *सर्वाधिक वृक्ष नागौर* जिले में देखे जाते है ।
➡ खेजड़ी के वृक्ष की *पूजा विजय दशमी / दशहरे ( आश्विन शुक्ल -10 )* के अवसर पर की जाती है ।
➡खेजड़ी के वृक्ष के नीचे *गोगा जी व झुंझार बाबा* के मंदिर बने होते है ।
➡ खेजड़ी को *हरियाणवी व पंजाबी भाषा में जांटी* के नाम से जाना जाता है।
➡ खेजड़ी को *तमिल भाषा में पेयमेय* के नाम से जाना जाता है ।
➡ खेजड़ी को *कन्नड़ भाषा में बन्ना-बन्नी* के नाम से जाना जाता है ।
➡ खेजड़ी को *सिंधी भाषा में छोकड़ा* के नाम से जाना जाता है ।
➡ खेजड़ी को *बंगाली भाषा में शाईगाछ* के नाम से जाना जाता है ।
➡ खेजड़ी को *विश्नोई* संप्रदाय में *शमी* के नाम से जाना जाता है ।
➡ खेजड़ी को *स्थानीय* भाषा में *सीमलो* कहा जाता है ।
➡ खेजड़ी की हरी फलियां *सांगरी ( फल गर्मी में लगते है )* कहलाती है तथा *पुष्प मींझर* कहलाता है ।
➡ खेजड़ी कि सूखी फलियां *खोखा* कहलाती है ।
– वैज्ञानिको ने खेजड़ी जे वृक्ष की आयु पांच हजार वर्ष बताई है ।
➡ राज्य में सर्वाधिक प्राचीन खेजड़ी के दो वृक्ष एक हजार वर्ष पुराने *मांगलियावास गांव ( अजमेर )* में है ।
➡ मांगलियावास गांव में *हरियाली अमावस्या (श्रावण )* को वृक्ष मेला लगता है ।
➡ खेजड़ी के वृक्ष को *सेलेस्ट्रेना व ग्लाइकोट्रमा* नामक कीड़े नुकसान पंहुचा रहे है ।
➡ *माटो :- बीकानेर के शासकों* द्वारा *प्रतीक चिन्ह* के रूप रूपये में खेजड़ी के वृक्ष को अंकित करवाया ।
➡ *ऑपरेशन खेजड़ा* नमक अभियान *1991* में चलाया गया ।
➡ वन्य जीवो के रक्षा के लिए राज्य में सर्वप्रथम बलिदान *1604* में जोधपुर के *रामसडी गांव में करमा व गौरा* के द्वारा दिया गया ।
➡ खेजड़ी के लिए प्रथम बलिदान *अमृता देवी बिश्नोई ने 17030 में 363* लोगो के साथ जोधपुर के खेजड़ली ग्राम या गुढा बिश्नोई गांव में *भाद्रपद शुक्ल दशमी* को दिया ।
➡ *भाद्रपद शुक्ल दशमी*को विश्व का एकमात्र *वृक्ष मेला* खेजड़ली गांव में लगता है ।
➡ *बिश्नोई सम्प्रदाय* के द्वारा दिया गया यह बलिदान *साका या खड़ाना* कहलाता है ।
➡ इस बलिदान के समय *जोधपुर का राजा अभयसिंह* था ।
➡ अभयसिंह के आदेश पर *गिरधर दास के द्वारा 363* लोगों की हत्या की गई ।
➡ खेजड़ली दिवस प्रत्येक वर्ष *12 सितंबर* को मनाया जाता है ।
➡ *अमृता देवी वन्य जीव पुरस्कार की शुरुआत 1994* में की गई ।
➡ खेजड़ली आंदोलन *चिपको आंदोलन* का प्रेरणा स्त्रोत रहा है ।
🔰 *राज्य खेल – बास्केटबाल*🔰
➡ *दर्जा :- 1948 में*
➡ *खिलाड़ियों की संख्या :- 5*
➡ बास्केटबाल *अकादमी जैसलमेर* में प्रस्तावित है ।
🔰 *राज्य गीत ‘ केसरिया बालम ‘* 🔰
➡ इस गीत को सर्वप्रथम *उदयपुर* की *मांगी बाई* के द्वारा गया गया ।
➡ इसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति दिलाने का श्रेय *बीकानेर* की *अल्लाजिल्ला बाई* को है ।
➡ *अल्लाजिल्ला बाई* को *राजस्थान की मरू कोकिला* कहा जाता है ।
➡ यह गीत *माण्ड गायिकी* शैली में गाया जाता है ।
🔰 *राज्य का शास्त्रीय ‘ कत्थक ‘* 🔰
➡ कत्थक *उत्तरी भारत* का प्रमुख नृत्य है ।
➡ दक्षिणी भारत का प्रमुख नृत्य *भरतनाट्यम* है ।
➡ कत्थक का भारत में प्रमुख *घराना लखनऊ* है ।
➡ कत्थक के राजस्थान में प्रमुख *घराना जयपुर* है ।
➡ कत्थक के *जन्मदाता भानू जी महाराज* को माना जाता है ।
🔰 *राज्य की राजधानी ‘ जयपुर ‘* 🔰
➡ जयपुर की स्थापना सवाई जयसिंह द्वितीय के द्वारा *18 नवम्बर 1927* में की गई ।
➡ जयपुर के वास्तुकार *विद्याधर भट्टाचार्य* को माना जाता है ।
➡ जयपुर के निर्माण के बारे में *बुद्धि विलास नामक ग्रंथ* से जानकारी मिलती है ।
➡ जयपुर जा निर्माण *जर्मनी के शहर द एल्ट स्टड एर्लग* के आधार पर करवाया गया है ।
➡ जयपुर का निर्माण *चौपड़ पैटर्न* के आधार पर किया गया है ।
➡ जयपुर को राजधानी *30 मार्च 1949* को बनाया गया ।
➡ जयपुर को राजधानी *श्री पी सत्यनारायण राव समिति* की सिफारिश पर बनाया गया ।
➡ जयपुर को गुलाबी रंग में रंगवाने का श्रेय *रामसिंह द्वितीय* को है ।
🔰🔰🔰🔰🔰🔰🔰🔰🔰
प्रतिक चिन्ह
राज्य पशु ” चिंकारा ” ( वन्य जीव श्रेणी )c
चिंकारे को राज्य पशु का दर्जा 22 मई , 1981 मिला ।
चिंकारे का वैज्ञानिक नाम गजेला – गजेला है ।
चिंकारा एंटीलोप प्रजाति का जीव है ।
चिंकारे के लिए नाहरगढ़ अभयारण्य (जयपुर )प्रसिद्ध है ।
राज्य में सर्वाधिक चिंकारे जोधपुर में देखे जा सकते है ।
राज्य पक्षी ” गोडावण ”
गोडावण को राज्य पक्षी का दर्जा 21 मई 1981 में मिला ।
गोडावण का वैज्ञानिक नाम क्रायोटिस नाइग्रीसेप्स है ।
गोडावण को अंग्रेजी में ग्रेट इंडियन बस्टर्ड बर्ड कहा जाता है ।
गोडावण को स्थानीय भाषा में सोहन चिड़िया , शर्मीला पक्षी कहा जाता है ।
गोडावण के अन्य उपनाम — सारंग, हुकना, टुकड8, बड़ा तिलोर व गुधनमेर है ।
गोडावण को हाड़ौती क्षेत्र में मालमोरड़ी कहा जाता है ।
राजस्थान में गोडावण सर्वाधिक तीन क्षेत्रो में पाया जाता है – सोरसन ( बारां ) , सोंकलिया (अजमेर ) , मरूद्यान ( जैसलमेर , बाड़मेर )।
गोडावण के प्रजनन हेतु जोधपुर जंतुआलय प्रसिद्ध है ।
– गोडावण का प्रजनन काल अक्टूबर , नवम्बर का महिना माना जाता है ।
गोडावण मूलतः अफ्रीका का पक्षी है ।
गोडावण की कुल ऊंचाई लगभग 4 (NCRT book में 1 मीटर ) होती है ।
इसका प्रिय भोजन मूंगफली व तारामीरा है ।
गोडावण राजस्थान के अलावा गुजरात में भी देखा जा सकता है ।
गोडावण शुतुरमुर्ग की तरह दिखाई देता है ।
2011 में की IUCN की रेड डाटा लिस्ट में इसे Critically Endangered प्रजाति मन गया है ।
5 जून 2013 को राष्ट्रीय मरू उद्यान , जैसलमेर में प्रोजेक्ट ग्रेट इंडियन बस्टर्ड प्रारम्भ किया ।
1980 में जयपुर में गोडावण पर पहला अंर्तराष्ट्रीय सम्मलेन आयोजित किया गया ।
🔰 *राज्य खेल – बास्केटबाल*🔰
➡ *दर्जा :- 1948 में*
➡ *खिलाड़ियों की संख्या :- 5*
➡ बास्केटबाल *अकादमी जैसलमेर* में प्रस्तावित है ।
🔰 *राज्य गीत ‘ केसरिया बालम ‘* 🔰
➡ इस गीत को सर्वप्रथम *उदयपुर* की *मांगी बाई* के द्वारा गया गया ।
➡ इसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति दिलाने का श्रेय *बीकानेर* की *अल्लाजिल्ला बाई* को है ।
➡ *अल्लाजिल्ला बाई* को *राजस्थान की मरू कोकिला* कहा जाता है ।
➡ यह गीत *माण्ड गायिकी* शैली में गाया जाता है ।
🔰 *राज्य का शास्त्रीय ‘ कत्थक ‘* 🔰
➡ कत्थक *उत्तरी भारत* का प्रमुख नृत्य है ।
➡ दक्षिणी भारत का प्रमुख नृत्य *भरतनाट्यम* है ।
➡ कत्थक का भारत में प्रमुख *घराना लखनऊ* है ।
➡ कत्थक के राजस्थान में प्रमुख *घराना जयपुर* है ।
➡ कत्थक के *जन्मदाता भानू जी महाराज* को माना जाता है ।
🔰 *राज्य की राजधानी ‘ जयपुर ‘* 🔰
➡ जयपुर की स्थापना सवाई जयसिंह द्वितीय के द्वारा *18 नवम्बर 1927* में की गई ।
➡ जयपुर के वास्तुकार *विद्याधर भट्टाचार्य* को माना जाता है ।
➡ जयपुर के निर्माण के बारे में *बुद्धि विलास नामक ग्रंथ* से जानकारी मिलती है ।
➡ जयपुर जा निर्माण *जर्मनी के शहर द एल्ट स्टड एर्लग* के आधार पर करवाया गया है ।
➡ जयपुर का निर्माण *चौपड़ पैटर्न* के आधार पर किया गया है ।
➡ जयपुर को राजधानी *30 मार्च 1949* को बनाया गया ।
➡ जयपुर को राजधानी *श्री पी सत्यनारायण राव समिति* की सिफारिश पर बनाया गया ।
➡ जयपुर को गुलाबी रंग में रंगवाने का श्रेय *रामसिंह द्वितीय* को है ।
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