किले/महल/हवेली/छतरिया
किले/महल
- आमेर का किला
आमेर का किला जयपुर, राजस्थान के उपनगर आमेर में जयपुर शहर से 11 किमी. दूर स्थित है।
निर्माण: 1592
निर्माण कर्ता: राजा मानसिंह प्रथम तत्पश्चात सवाई जयसिंह द्वारा अनेक योगदान व सुधार
निर्माण सामग्री: लाल बलुआ पत्थर पाषाण एवं संगमरमर
यह मुगलों और हिन्दूओं के वास्तुशिल्प का मिलाजुला और अद्वितीय नमूना है।
- चित्तौड़गढ़ का दुर्ग
चित्तौड़गढ़ दुर्ग भारत का सबसे विशाल दुर्ग है।
इस किले का निर्माण मौर्यवंशीय राजा चित्रांगद ने सातवीं शताब्दी में करवाया था और इसे अपने नाम पर चित्रकूट के रुप में बसाया।
सन् 738 में गुहिलवंशी राजा बाप्पा रावल ने राजपूताने पर राज्य करने वाले मौर्यवंश के अंतिम शासक मानमोरी को हराकर यह किला अपने अधिकार में कर लिया।
मालवा के परमार राजा मुंज ने इसे गुहिलवंशियों से छीनकर अपने राज्य में मिला लिया। इस प्रकार 9-10वीं शताब्दी में इस पर परमारों का आधिपत्य रहा।
चित्तौड़गढ़ किले के बारे में कहा जाता है “गढ़ तो चित्तौड़गढ़ और सब गढ़ैया”
- मेहरानगढ़ का किला
मेहरानगढ़ का किला जोधपुर में स्थित है
राव जोधा ने 12 मई 1459 को इस पहाडी पर किले की नीव डाली महाराज जसवंत सिंह (1638-78) ने इसे पूरा किया।
मूल रूप से किले के सात द्वार (पोल) (आठवाँ द्वार गुप्त है) हैं। प्रथम द्वार पर हाथियों के हमले से बचाव के लिए नुकीली कीलें लगी हैं।
पन्द्रहवी शताब्दी का यह विशालकाय किला, पथरीली चट्टान पहाड़ी (चिड़िया टूंक) पर, मैदान से 125मीटर ऊँचाई पर स्थित हैं
- कुम्भलगढ़ दुर्ग
यह किला उदयपुर से 70 किमी दूर कुम्भलगढ़, राजसमन्द जिले में स्थित है।
इस दुर्ग का निर्माण महाराणा कुम्भा ने कराया था। इस किले को ‘अजेयगढ’ कहा जाता था क्योंकि इस किले पर विजय प्राप्त करना दुष्कर कार्य था।
इस दुर्ग का निर्माण सम्राट अशोक के द्वितीय पुत्र संप्रति के बनाये दुर्ग के अवशेषों पर 1443 से शुरू होकर 15 वर्षों बाद 1458 में पूरा हुआ था।
वास्तुशास्त्र के नियमानुसार बने इस दुर्ग में प्रवेश द्वार, प्राचीर, जलाशय, बाहर जाने के लिए संकटकालीन द्वार, महल, मंदिर, आवासीय इमारतें, यज्ञ वेदी, स्तम्भ, छत्रियां आदि बने है।
माड गायक इस दुर्ग की प्रशंसा में अक्सर गीत गाते है :
कुम्भलगढ़ कटारगढ़ पाजिज अवलन फेर।
संवली मत दे साजना, बसुंज, कुम्भल्मेर॥
- रणथंभोर दुर्ग, सवाईमाधोपुर
रणथंभोर दुर्ग दिल्ली-मुंबई रेल मार्ग के सवाई माधोपुर रेल्वे स्टेशन से 13 कि॰मी॰ दूर रन और थंभ नाम की पहाडियों के बीच समुद्रतल से 481 मीटर ऊंचाई पर 12 कि॰मी॰ की परिधि में बना है।
इतिहासकारों के अनुसार इस दुर्ग का निर्माण चौहान राजा रणथंबन देव द्वारा 944 में निर्मित मानते है, इस किले का अधिकांश निर्माण कार्य चौहान राजाओं के शासन काल में ही हुआ है।
रणथंभोर दुर्ग पर आक्रमणों की भी लम्बी दास्तान रही है जिसकी शुरुआत दिल्ली के कुतुबुद्दीन ऐबक से हुई और मुगल बादशाह अकबर तक चलती रही |
दुर्ग के तीनो और पहाडों में प्राकृतिक खाई बनी है जो इस किले की सुरक्षा को मजबूत कर अजेय बनाती है।
- जूनागढ़ क़िला बीकानेर
जूनागढ़ क़िला राजस्थान राज्य के बीकानेर शहर में स्थित है।
जूनागढ़ क़िले का निर्माण सन् 1588 से 1593 के बीच किया गया था।
इस किले की स्थापना अकबर की सेना के एक सेनापति राजा राय सिंह ने 1593 में की परन्तु इसे आधुनिक रूप महाराजा गंगा सिंह ने दिया
इसमें कई आकर्षक महल हैं, लाल बलुए एवं संगमरमर पत्थर से बने महल प्रांगण, छज्जों, छतरियों व खिड़कियाँ जो सभी इमारतों में फैली हुई है।
इस क़िले के चारों ओर लगभग 986 मीटर लंबी दीवार के साथ 37 सुरक्षा चौकियाँ भी हैं।
क़िले को दो मुख्य दरवाज़े हैं, जिसे दौलतपोल और सुरजपोल कहा जाता है। दोलतपोल में सती हुई राजपूत महिलाओं के हाथों की छाप है।
इस क़िले के अंदर अनेक खुबसूरत महल भी हैं। इनमें से अनूप महल, दिवान-ए-ख़ास, हवा महल, बादल महल, चंद्र महल, फूल महल, रंग महल, दुंगर महल और गंगा महल आदि प्रमुख हैं।
- सिटी पैलेस, जयपुर
सिटी पैलेस का निर्माण महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय ने 1729 से 1732 ई. के मध्य कराया था।
राजपूत और मुग़ल स्थाणपत्य में बना महाराजा का यह राजकीय आवास चन्द्र महल के नाम से विख्यात हुआ।
सिटी पैलेस जयपुर, राजस्थान के सबसे प्रसिद्ध ऐतिहासिक तथा पर्यटन स्थलों में से एक है। यह एक महल परिसर है।
सिटी पैलेस की भवन शैली राजपूत, मुग़ल और यूरोपियन शैलियों का अतुल्य मिश्रण है।
लाल और गुलाबी सेंडस्टोन से निर्मित इन इमारतों में पत्थर पर की गई बारीक कटाई और दीवारों पर की गई चित्रकारी मन मोह लेती है।
- सिटी पैलेस, उदयपुर
सिटी पैलेस काम्प,लेक्स राजस्थान राज्य के ख़ूबसूरत शहर उदयपुर का सबसे आकर्षक पर्यटन स्थल माना जाता है।
उदयपुर में सिटी पैलेस की स्थासपना 16वीं शताब्दी में आरम्भ हुई।
सिटी पैलेस को स्थालपित करने का विचार एक संत ने राणा उदयसिंह को दिया था। इस प्रकार यह परिसर 400 वर्षों में बने भवनों का समूह है।
यह एक भव्य परिसर है। इसे बनाने में 22 राजाओं का योगदान था।
सिटी पैलेस परिसर में प्रवेश करते ही आपको भव्य ‘त्रिपोलिया गेट’ दिखेगा।
इस परिसर में एक जगदीश मंदिर भी है।
- लोहागढ़ क़िला, भरतपुर
इस किले का निर्माता, जाट राजा सूरजमल ने अठारहवीं सदी में किया था ।
भरतपुर का लोहागढ़ दुर्ग भी ऐसा ही दुर्ग है, जिसने राजस्थान के जाट शासकों का वर्षों तक संरक्षण किया।
छह बार इस दुर्ग को घेरा गया, लेकिन आखिर शत्रु को हारकर पीछे हटना पड़ा। लोहे जैसी मज़बूती के कारण ही इस दुर्ग को ‘लोहागढ़’ कहा जाता है।
सुरक्षा को और अधिक पुख्ता करने के लिए लोहागढ़ के चारों ओर गहरी खाई खुदवाकर पानी भरवाया गया। आज भी इस दुर्ग के चारों ओर खाई और पानी मौजूद है।
यह क़िला दो ओर से मिट्टी की दीवारों से सुरक्षित किया गया था। इन मिट्टी की दीवारों पर तोप के गोलों और गोलियों का असर नहीं होता था और इनके अंदर छुपा दुर्ग सुरक्षित रहता था।
मिट्टी की दीवारों से इतनी पुख्ता सुरक्षा के कारण एक कहावत घर-घर में चल पड़ी थी कि “जाट मिट्टी से भी सुरक्षा के उपाय खोज लेते हैं।”
- राजस्थान के किले- महत्वपूर्ण तथ्य:
राजस्थान के 6 किलों को जून 2013 में UNESCO विश्व धरोहर की सूची में शामिल किया गया है।
UNESCO विश्व धरोहर के 6 किले: जयपुर का आमेर किला, चित्तौड़गढ़ किला, कुंभलगढ़ किला, रणथंभौर किला, गागरौन किला और जैसलमेर किला
अन्य महत्वपूर्ण किले
अचलगढ किला, सिरोही = परमार शासक ने बनवाया (900 ई)
अहिछत्रगढ़ किला, नागौर = चौथी शताब्दी
जालौर दुर्ग, जालौर = परमार राजा ने बनवाया
जयगढ़ दुर्ग, जयपुर= सवाई जयसिंह ने बनवाया (1726)
खिमसर किला, सिरोही = करम सिंह ने बनवाया (सोलहवीं शताब्दी)
नीमराना दुर्ग, अलवर = चौहान शासक ने बनवाया (14वीं शताब्दी)
विजय पैलेस, अलवर = विजयसिंह ने बनवाया (1918)
सावन भादो महल = शाहबाद दुर्ग, बारां
फुलवाड़ी महल = वैर, भरतपुर
गोपाल महल = भरतपुर
सुख महल = बूंदी के जैतसागर झील के किनारे
उम्मीद भवन पैलेस (छीतर पैलेस), जोधपुर = महाराजा
उम्मेदसिंह ने अकाल राहत कार्य के रूप में बनवाया (1928-1940)
हवामहल, जयपुर = सवाई प्रतापसिंह (1799)
सिसोदिया रानी का महल, जयपुर = सवाई जयसिंह (1730)
सज्जनगढ़ पैलेस, उदयपुर = बांसदर्रा पहाड़ी पर स्थित है
राई का बाग़ पैलेस, जोधपुर = जसवंत सिंह-I ने बनवाया (1663)
अबली मीणी का महल, कोटा = मुकुंद सिंह हाड़ा ने बनवाया
हवेली~~~~
– 1. जैसलमेर की हवेलियाँ
पटुओं के हवेली: 18 वीं शताब्दी के उतरार्द्ध में जैसलमेर के एक व्यवसायी गुमानाचंद पटुआ के 5 पुत्रो ने इस हवेली का निर्माण करवाया था । छियासठ झरोखों से युक्त ये हवेलियाँ निसंदेह कला का सर्वेतम उदाहरण है। ये कुल मिलाकर पाँच हैं, जो कि एक-दूसरे से
सटी हुई हैं। ये हवेलियाँ भूमि से 8-10 फीट ऊँचे चबूतरे पर बनी हुई है व जमीन से ऊपर छः मंजिल है व भूमि के अंदर एक मंजिल होने से कुल 7 मंजिली हैं। पाँचों हवेलियों के अग्रभाग बारीक नक्काशी व विविध प्रकार की कलाकृतियाँ युक्त खिङ्कियों, छज्जों व रेलिंग
से अलंकृत है। जिसके कारण ये हवेलियाँ अत्यंत भव्य व कलात्मक दृष्टि से अत्यंत सुंदर व सुरम्य लगती है।
नथमलजी की हवेली : जैसलमेर राज्य के दीवान मेहता नाथमल ने इसका निर्माण 1884-85 में करवाया था
यह हवेली पाँच मंजिली पीले पत्थर से निर्मित है। हवेली में सुक्ष्म खुदाई मेहराबों से युक्त खिङ्कियों, घुमावदार खिङ्कियाँ तथा हवेली के अग्रभाग में की गई पत्थर की नक्काशी पत्थर के काम की दृष्टि से अनुपम है। इस अनुपम काया कृति के निर्माणकर्त्ता हाथी व
लालू उपनाम के दो मुस्लिम कारीगर थे।
सालिमसिंह की हवेली – जैसलमेर राज्य के प्रधानमंत्री सालिमसिंह मेहता ने 18 वीं शताब्दी में इस हवेली का निर्माण करवाया था . इस हवेली को “मोती” महल भी कहते है. जहाजनुमा इस विशाल भवन आकर्षक खिङ्कियाँ, झरोखे तथा द्वार हैं। नक्काशी यहाँ
के शिल्पियों की कलाप्रियता का खुला प्रदर्शन है। इस हवेली का निर्माण दीवान सालिम सिंह द्वारा करवाया गया, जो एक प्रभावशाली व्यक्ति था और उसका राज्य की अर्थव्यवस्था पर पूर्ण नियंत्रण था।
- बीकानेर की हवेलियाँ
बीकानेर की प्रसिद्ध ‘बच्छावतों की हवेली’ का निर्माण सोलहवीं सदी के उत्तरार्द्ध में कर्णसिंह बच्छावत ने करवाया था।
इसके अतिरिक्त बीकानेर में रामपुरिया हवेली, कोठारी हवेली, मोहता हवेलीड़ा आदि की हवेलियाँ अपने शिल्प वैभव के कारण विख्यात है।
बीकानेर की हवेलियाँ लाल पत्थर से निर्मित है। इन हवेलियों में ज्यॉमितीय शैली की नक्काशी है एवं आधार को तराश कर बेल-बूटे, फूल-पत्तियाँ आदि उकेरे गये हैं।
इनकी सजावट में मुगल, किशनगढ़ एवं यूरोपीय चित्रशैली का प्रयोग किया गया है।
- जोधपुर की हवेलियाँ
जोधपुर में बड़े मियां की हवेली, पोकरण की हवेली, राखी हवेली, टोंक की सुनहरी कोठी, उदयपुर में बागौर की हवेली, जयपुर का हवामहल, नाटाणियों की हवेली, रत्नाकार पुण्डरीक की हवेली, पुरोहित प्रतापनारायण जी की हवेली, फल हवेली इत्यादि हवेली स्थापत्य के
विभिन्न रूप हैं।
राजस्थान में मध्यकाल के वैष्णव मंदिर भी हवेलियों जैसे ही बनाये गये हैं। इनमें नागौर का बंशीवाले का मंदिर, जोधपुर का रणछोड़जी का मंदिर, घनश्याम जी का मंदिर, जयपुर का कनक वृंदावन आदि प्रमुख हैं।
देशी-विदेशी पर्यटकों को लुभानें तथा राजस्थानी स्थापत्य कला को संरक्षण देने के लिए वर्तमान में अनेक हवेलियों का जीर्णोद्धार किया जा रहा है।
- सीकर की हवेलियाँ
सीकर में गौरीलाल बियाणी की हवेली, रामगढ़ (सीकर) में ताराचन्द रूइया की हवेली समकालीन भित्तिचित्रों के कारण प्रसिद्ध है।
फतहपुर (सीकर) में नन्दलाल देवड़ा, कन्हैयालाल गोयनका की हवेलियाँ भी भित्तिचित्रों के कारण प्रसिद्ध है।
चूरू की हवेलियों में मालजी का कमरा, रामनिवास गोयनका की हवेली, मंत्रियों की हवेली इत्यादि प्रसिद्ध है।
खींचन (जोधपुर) में लाल पत्थरों की गोलेछा एवं टाटिया परिवारों की हवेलियाँ भी कलात्मक स्वरूप लिए हुए है।
अन्य हवेलियाँ पंसारी की हवेली (श्रीमाधोपुर) एवं केडिया एवं राठी की हवेली (लक्ष्मणगढ़) प्रमुख है
- चित्तौड़गढ़ की हवेलियाँ
पत्ता तथा जैमल की हवेलियाँ: गौमुख कुण्ड तथा कालिका माता के मंदिर के मध्य जैमल पत्ता के महल हैं, जो अभी भगनावशेष के रुप में अवस्थित हैं। राठौड़ जैमल (जयमल) और सिसोदिया पत्ता चित्तौड़ की अंतिम शाका में अकबर की सेना के साथ युद्ध करते हुए
वीरगति को प्राप्त हो गये थे। महल के पूर्व में एक बड़ा तालाब है, जिसे जैमल-पत्ता का तालाब कहा जाता है। जलाशय के तट पर बौद्धों के ६ स्तूप हैं। इन स्तूपों से यह अनुमान लगाया जाता है कि प्राचीन काल में अवश्य ही यहाँ बौद्धों का कोई मंदिर रहा होगा।
राव रणमल की हवेली: गोरा बादल की गुम्बजों से कुछ ही आगे सड़क के पश्चिम की ओर एक विशाल हवेली के खण्डहर नजर आते हैं। इसको राव रणमल की हवेली कहते हैं। राव रणमल की बहन हंसाबाई से महाराणा लाखा का विवाह हुआ। महाराणा मोकल हँसा
बाई से लाखा के पुत्र थे।
भामाशाह की हवेली: अब भग्नावस्था में मौजूद यह इमारत, एक समय मेवाड़ की आनबान के रक्षक महाराणा प्रताप को मातृभूमि की रक्षा के लिए अपना सब कुछ दान करने वाले प्रसिद्ध दानवीर दीवार भामाशाह की याद दिलाने वाली है। कहा जाता है कि हल्दीघाटी के
युद्ध के पश्चात् महाराणा प्रताप का राजकोष खाली हो गया था व मुगलों से युद्ध के लिए बहुत बड़ी धनराशि की आवश्यकता थी। ऐसे कठिन समय में प्रधानमंत्री भामाशाह ने अपना पीढियों से संचित धन महाराणा को भेंट कर दिया। कई इतिहासकारों का मत है कि
भामाशाह द्वारा दी गई राशि मालवा को लूट कर लाई गई थी, जिसे भामाशाह ने सुरक्षा की दृष्टि से कहीं गाड़ रखी थी।
आल्हा काबरा की हवेली: भामाशाह की हवेली के पास ही आल्हा काबरा की हवेली है। काबरा गौत्र के माहेश्वरी पहले महाराणा के दीवान थे।
- कोटा की हवेलियाँ
झालाजी की हवेली – जालिम सिंह द्वारा
देवताजी की हवेली – देवता श्रीधरजी की हवेली
- चुरू की हवेलियाँ
गोयनका की हवेली
सुराणा की हवेली – इसमें 1100 दरवाजे एवं खिड़कियाँ है
- झुंझुनूं की हवेलियाँ
बिसाऊ= नाथूराम पोद्दार की हवेली , हीराराम बनारसी लाल की हवेली , जयदयाल केडिया की हवेली, सीताराम सिगतिया की हवेली
नवलगढ़ –
पौद्दार और भगेरिया की हवेलियाँ, भगतो की हवेली
चिड़ावा = बागडिया व डालमिया की हवेली
महनसर – सोने-चांदी की हवेली
मुकन्दगढ़ – केसरदेव , कानोडीयाँ की हवेली
डूंडलोद – गोयनका की हवेली
मण्डावा – सागरमल लाडिया, रामदेव चौखाणी तथा रामनाथ गोयनका की हवेली
झुंझुनू –
टीबड़े वाला की हवेली, ईसरदास मोदी की हवेली
छतरिया
- 84 खम्बों की छतरी
बूंदी के देवपुरा गांव के निकट स्थित है
इसका निर्माण राव अनिरुद्ध सिंह ने अपने भाई देवा की याद में 1740 में कराया था
यह तीन मंजिला छतरी 84 खम्भों पर स्थित है
इस छतरी के मध्य, शिवलिंग है
– 2. मुसी रानी की छतरी
मुसी रानी की छतरी अलवर के महल के पास सरोवर के किनारे स्थित है
मुसी रानी की छतरी का निर्माण महाराजा बख्तावरसिंह एवं उनकी रानी मूसी की याद में विनयसिंह ने करवाया था
इसकी निचली मंजिल लाल पत्थर एवं उपरी मंजिल सफ़ेद पत्थर से बनी है
यह 19वीं सदी के राजपूत स्थापत्य का एक नमूना है
इसे 80 खम्भों की छतरी के नाम से भी जाना जाता है
- गैटोर की छतरियाँ
गैटोर की छतरियाँ जयपुर के पास गैटोर में स्थित है
यह छतरियां पंचायन शैली में बनी है
यह जयपुर के शाही शमशान स्थल है, जहाँ जयपुर के राजाओं की छतरिया है
यह छतरियाँ, सवाई जयसिंह से प्रारम्भ होती है
यहाँ जयपुर के सभी राजाओं की छतरियों है, सिवाय सवाई ईश्वर सिंह के जिनकी छतरी चन्द्रमहल (सिटी पैलेस) में है
- सवाई ईश्वर सिंह की छतरियाँ
सवाई ईश्वर सिंह की छतरियाँ, चन्द्रमहल (सिटी पैलेस) के जयनिवास उद्यान में स्थित है
इसका निर्माण सवाई माधोसिंह ने करवाया था
- जसवंत थड़ा
जोधपुर दुर्ग मेहरानगढ़ के पास ही सफ़ेद संगमरमर का एक स्मारक बना है जिसे जसवंत थड़ा कहते है।
इसे सन 1899 में जोधपुर के महाराजा जसवंत सिंह जी (द्वितीय)(1888-1895) की यादगार में उनके उत्तराधिकारी महाराजा सरदार सिंह जी ने बनवाया था।
जसवंत थड़ा जोधपुर राजपरिवार के सदस्यों के दाह संस्कार के लिये स्थान है ।
जसवंत थड़े के पास ही महाराजा सुमेर सिह जी, महाराजा सरदार सिंह जी, महाराजा उम्मेद सिंह जी व महाराजा हनवन्त सिंह जी के स्मारक बने हुए हैं।
- मंडोर की छतरिया
मंडोर (जोधपुर) में जसवंत-II के पूर्व के शाशकों की छतरियां है
यहाँ सबसे बड़ी छतरी अजित सिंह की है
- महासतिया
महासतिया उदयपुर में आहड़ नाम की जगह पर है
महाराणा प्रताप के बाद बनने वाले राजाओं की छतरिया यहाँ पर है
यहाँ पहली छतरी महाराणा अमरसिंह की है
- देवी कुण्ड की छतरियाँ
यह बीकानेर के शाही शमशान स्थल है, जहाँ बीकानेर के राजाओं की छतरिया है
कल्याण सागर के किनारे स्थित इन छतरियों में रायसिंह एवं बीकाजी की छतरियाँ प्रमुख है
- केसर बाग की छतरियाँ
केसर बाग की छतरियाँ बूंदी में स्थित है
यह बूंदी के शाही शमशान स्थल है, जहाँ बूंदी के राजाओं की छतरिया है
- अन्य प्रमुख छतरियां
राणा प्रताप की छतरी = चावंड के निकट बाड़ोली गॉव में
चेतक की समाधी = हल्दीघाटी के निकट बलीचा गांव में
रैदास की छतरी = चित्तौड़गढ़ दुर्ग में
मामा भांजा की छतरी = मेहरानगढ़ दुर्ग में
उड़ना राजकुमार की छतरी = कुम्भलगढ़ दुर्ग में
दुर्गादास की छतरी = उज्जैन के निकट शिप्रा नदी के तट पर
32 खम्बों की छतरी = रणथम्भोर दुर्ग में, जैतसिंह की याद में
बोहरा भगत की छतरी = करौली के कैलादेवी मंदिर के पास
मूमल की मेढ़ी = लोद्रवा में काक नदी के तट पर, राजकुमारी मूमल (भाटी वंश) की याद में
नटनी का चबूतरा = पिछोला झील के किनारे, उदयपुर में
जोगीदास की छतरी = उदयपुर वाटी (झुंझुनू) में, भित्तिचित्रण के लिए प्रसिद्ध
राजस्थान की स्थापत्य कला~भाग~2
मंदिर/मस्जिद/मकबरे/स्तम्भ/टॉवर
मंदिर
- ब्रह्माजी का मन्दिर, पुष्कर (अजमेर)
पुष्कर राजस्थान में विख्यात तीर्थस्थान है जहाँ विश्व का एकमात्र ब्रह्मा कामन्दिर है एवं प्रतिवर्ष ‘पुष्कर मेला’ लगता है।
यहां पर कार्तिक पूर्णिमा को पुष्कर मेला लगता है, जिसमें बड़ी संख्या में देशी-विदेशी पर्यटक भी आते हैं। यह कार्तिक शुक्ल एकादशी को प्रारम्भ हो कार्तिक पूर्णिमा तक पाँच दिन तक आयोजित किया जाता है। मेले का समय पूर्ण चन्द्रमा पक्ष, अक्टूबर–नवम्बर का
होता है। भक्तगण एवं पर्यटक श्री रंग जी एवं अन्य मंदिरों के दर्शन कर आत्मिक लाभ प्राप्त करते हैं।
सन् 1911 ईस्वी बाद अंग्रेज़ी शासनकाल में महारानी मेरी ने यहां घाट बनवाया था । इसी स्थान पर महात्मा गांधी की अस्थियां प्रवाहित की गईं, तब से इसे गांधी घाट भी कहा जाता है।
भगवान ब्रह्मा ने जगत भलाई के लिए यज्ञ करना चाहा। यज्ञ के लिए ब्रह्मा यहां पहुंचे। लेकिन उनकी पत्नी सावित्री वक्त पर नहीं पहुंच पाईं। यज्ञ का समय निकल रहा था। लिहाजा ब्रह्मा जी ने एक स्थानीय ग्वाल बाला से शादी कर ली और यज्ञ में बैठ गए। सरस्वती
जी ने जब अपने स्थान पर दूसरेी स्त्री को बैठे देखा तो वे क्रोध से भर गई और ब्रह्मा जी को श्राप देते हुए कहा कि आपकी धरती पर कहीं भी और कभी भी पूजा नहीं होगी। जब उनका क्रोध थोड़ा शांत हुआ तो देवी-देवताओं की बात का मान रखते हुए मां सरस्वती ने
कहा कि ब्रह्मा जी का केवल एक ही मंदिर होगा जो पुष्कर में स्थित होगा और वो केवल यहीं पर पूजे जाएंगे। उसी दिन से पुष्कर धाम ब्रह्मा जी का घर बन गया।
- खाटूश्यामजी मन्दिर, सीकर
खाटूश्यामजी, भारत देश के राजस्थान राज्य के सीकर जिले में एक प्रसिद्ध कस्बा है, जहाँ पर बाबा श्याम का जग विख्यात मन्दिर है।
प्रमुख देवता: भगवान कृष्ण
प्रमुख उत्सव: फाल्गुन महोत्सव
यह मंदिर फरवरी और माच्र महीनों में लगने वाले खाटूश्यामजी मेले के लिए प्रसिद्ध है। भारतीय कैलेंडर के अनुसार फाल्गुन में सुदी दशमी और द्वादशी के बीच यहाँ तीन दिवसीय वार्षिक मेला लगता है।
खाटू श्याम बर्बरीक के रूप है। श्रीकृष्ण ने ही बर्बरीक को खाटूश्यामजी नाम दिया था। भगवान श्रीकृष्ण के कलयुगी अवतार खाटू श्यामजी खाटू में विराजित हैं। वीर घटोत्कच और मौरवी को एक पुत्ररतन की प्राप्ति हुई जिसके बाल बब्बर शेर की तरह होने के कारण
इनका नाम बर्बरीक रखा गया
कृष्ण बर्बरीक के महान बलिदान से काफ़ी प्रसन्न हुये और वरदान दिया कि जैसे जैसे कलियुग का अवतरण होगा, तुम श्याम के नाम से पूजे जाओगे।
- हर्षनाथ मंदिर, सीकर
हर्षनाथ राजस्थान राज्य में सीकर ज़िले के निकट स्थित एक ऐतिहासिक मंदिर है। वर्तमान में हर्षनाथ नामक ग्राम हर्षगिरि पहाड़ी की तलहटी में बसा हुआ है और सीकर से आठ मील दक्षिण-पूर्व में हैं। हर्षगिरि ग्राम के पास हर्षगिरि नामक पहाड़ी है, जो 3,000 फुट
ऊँची है और इस पर लगभग 900 वर्ष से अधिक प्राचीन मंदिरों के खण्डहर हैं।
इन मंदिरों में एक काले पत्थर पर उत्कीर्ण लेख प्राप्त हुआ है, जो शिवस्तुति से प्रारम्भ होता है और जो पौराणिक कथा के रूप में लिखा गया है लेख में हर्षगिरि और मन्दिर का वर्णन है और इसमें कहा गया है कि मन्दिर के निर्माण का कार्य आषाढ़ शुक्ल त्रयोदशी,
सोमवार 1030 विक्रम सम्वत् (956 ई.) को प्रार[[म्भ होकर विग्रहराज चौहान के समय में 1030 विक्रम सम्वत (973 ई.) को पूरा हुआ था।
चाहमान शासकों के कुल देवता – शिव हर्षनाथ का यह मंदिर हर्षगिरी पर स्थित हैं तथा महामेरु शैली में निर्मित हैं। विक्रम संवत 1030 (973 ई.) के एक अभिलेख के अनुसार इस मंदिर का निर्माण चाहमन शासक विग्रहराज प्रथम के शासनकाल मे एक शैव
संत भावरक्त द्वारा करवाया गया था।
स्थापत्य शैली: महामेरु शैली, वास्तु शास्त्र एवं पंचरात्र शास्त्र
- जीण माता मंदिर, सीकर
जीण माता राजस्थान के सीकर जिले में स्थित धार्मिक महत्त्व का एक गाँव है। यह सीकर से 29किलोमीटर दक्षिण में स्थित है।
यहाँ पर जीणमाता (शक्ति की देवी) एक प्राचीन मन्दिर स्थित है। जीणमाता का यह पवित्र मंदिर सैकड़ों वर्ष पुराना माना जाता है।
लोक मान्यताओं के अनुसार जीण का जन्म चौहान परिवार में हुआ। उनके भाई का नाम हर्ष था जो बहुत खुशी से रहते थे। एक बार जीण का अपनी भाभी के साथ विवाद हो गया और इसी विवाद के चलते जीन और हर्ष में नाराजगी हो गयी। इसके बाद जीण
आरावली के ‘काजल शिखर’ पर पहुँच कर तपस्या करने लगीं।
मान्यताओं के अनुसार इसी प्रभाव से वो बाद में देवी रूप में परिवर्तित हुई। यह मंदिर चूना पत्थर और संगमरमर से बना हुआ है। यह मंदिर आठवीं सदी में निर्मित हुआ था।
- कैला देवी मंदिर, करौली
त्रिकूट मंदिर की मनोरम पहाड़ियों की तलहटी में स्थित इस मंदिर का निर्माण राजा भोमपाल ने 1600 ई. में करवाया था।
मुख्य मन्दिर संगमरमर से बना हुआ है जिसमें कैला (दुर्गा देवी) एवं चामुण्डा देवी की प्रतिमाएँ हैं। कैलादेवी की आठ भुजाऐं एवं सिंह पर सवारी करते हुए बताया है।
कैलादेवी शक्तिपीठ आने वाले श्रद्वालुओं में मां कैला के साथ लांगुरिया भगत को पूजने की भी परंपरा रही है।लांगुरिया को मां कैला का अनन्य भक्त बताया जाता है। इसका मंदिर मां की मूर्ति के ठीक सामने विराजमान है।
यहाँ प्रतिवर्ष मार्च – अप्रॅल माह में एक बहुत बड़ा मेला लगता है।
- श्री सांवलिया सेठ मंदिर, मण्डफिया
श्री सांवलिया सेठ मंदिर भगवान श्री कृष्ण को समर्पित एक प्रमुख मंदिर है जो चित्तौड़गढ़ से 40 किमी दूर मण्डफिया ग्राम में स्थित है।
श्री सांवलिया सेठ मंदिर में भगवान कृष्ण की काले रंग की प्रतिमा है, इन्हें साँवरिया सेठ मंदिर के नाम से भी जाना जाता है।
किवदंतियों के अनुसार सन 1840 मे भोलराम गुर्जर नाम के ग्वाले को एक सपना आया की भादसोड़ा – बागूंड के छापर मे 3 मूर्तिया ज़मीन मे दबी हुई है. जब उस जगह पर खुदाई की गयी तो भोलराम का सपना सही निकला और वहा से 3 एक जैसे मूर्तिया
निकली. सभी मूर्तिया बहुत ही मनोहारी थी.
इन मूर्तियो मे साँवले रूप मे श्री कृष्ण भगवान बाँसुरी बजा रहे है. इनमे से एक मूर्ति मण्डपिया ग्राम ले जायी गयी और वहा पर मंदिर बनाया गया । दूसरी मूर्ति भादसोड़ा ग्राम ले जायी गयी और वहा पर भी मंदिर बनाया गया । तीसरी मूर्ति को यही प्राकट्य स्थल
पर ही मंदिर बना कर स्थापित की गयी । कालांतर में तीनो मंदिरों की ख्याति भी दूर-दूर तक फेली। आज भी दूर-दूर से हजारों यात्री प्रति वर्ष दर्शन करने आते हैं।
- सालासर बालाजी, चूरू
सालासर बालाजी भगवान हनुमान के भक्तों के लिए एक धार्मिक स्थल है। यह राजस्थान के चूरू जिले में स्थित है।
श्री हनुमान जयंती का उत्सव हर साल चैत्र शुक्ल चतुर्दशी और पूर्णिमा को मनाया जाता है।
किद्वंतियों के अनुसार श्रावण शुक्ल नवमी, संवत् 1811- शनिवार को नागौर जिले में असोटा गांव का एक गिन्थाला-जाट किसान अपने खेत को जोत रहा तब उन्हें मिट्टी में सनी हुई दो मूर्तियां मिलीं। जब किसान की पत्नी ने मूर्ति को साफ़ किया तो यह मूर्ति
बालाजी भगवान श्री हनुमान की थी। उन्होंने समर्पण के साथ अपने सिर झुकाए और भगवान बालाजी की पूजा की। बाद में इनमें से एक मूर्ति को चुरू जिले के सालासर भेजा गया एवं दूसरी मूर्ति को इस स्थान से 25 किलोमीटर दूर पाबोलाम (भरतगढ़) में स्थापित कर
दिया गया।
- करणी माता, देशनोक
मां करणी देवी का विख्यात मंदिर राजस्थान के बीकानेर से लगभग 30 किलोमीटर दूर जोधपुर रोड पर गांव देशनोक की सीमा में स्थित है। यह भी एक तीरथ धाम है, लेकिन इसे चूहे वाले मंदिर के नाम से भी देश और दुनिया के लोग जानते हैं।
अनेक श्रद्धालुओं का मत है कि करणी देवी साक्षात मां जगदम्बा की अवतार थीं। अब से लगभग साढ़े छह सौ वर्ष पूर्व जिस स्थान पर यह भव्य मंदिर है, वहां एक गुफा में रहकर मां अपने इष्ट देव की पूजा अर्चना किया करती थीं। यह गुफा आज भी मंदिर परिसर में
स्थित है।
मां के ज्योर्तिलीन होने पर उनकी इच्छानुसार उनकी मूर्ति की इस गुफा में स्थापना की गई। बताते हैं कि मां करणी के आशीर्वाद से ही बीकानेर और जोधपुर राज्य की स्थापना हुई थी।
मंदिर में चूहों की बहुतायत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पैदल चलने के लिए अपना अगला कदम उठाकर नहीं, बल्कि जमीन पर घसीटते हुए आगे रखना होता है। लोग इसी तरह कदमों को घसीटते हुए करणी मां की मूर्ति के सामने पहुंचते हैं।
इन चूहों की उपस्थिति की वजह से ही श्री करणी देवी का यह मंदिर चूहों वाले मंदिर के नाम से भी विख्यात है।
मान्यता के अनुसार संवत 1595 की चैत्र शुक्ल नवमी गुरुवार को श्री करणी ज्योर्तिलीन हुईं। संवत 1595 की चैत्र शुक्ला 14 से यहां श्री करणी माता जी की सेवा पूजा होती चली आ रही है।
वर्ष में दो बार नवरात्रों पर चैत्र व आश्विन माह में इस मंदिर पर विशाल मेला भी लगता है। तब भारी संख्या में लोग यहां पहुंचकर मनौतियां मनाते हैं।
- एकलिंगजी मंदिर
एकलिंगजी मंदिर उदयपुर जिले के कैलाशपुरी गांव में NH-8 पर स्थित एक प्राचीन मंदिर है।
एकलिंगजी को शिव का ही एक रुप माना जाता है। माना जाता है कि एकलिंगजी ही मेवाड़ के शासक हैं। राजा तो उनके प्रतिनिधि के रुप में यहां शासन करता था।
इस मंदिर का निर्माण बप्पाी रावल ने 8वीं शताब्दीत में करवाया था। बाद में यह मंदिर टूटा और पुन: बना।
वर्तमान मंदिर का निर्माण महाराणा रायमल ने 15वीं शताब्दीत में करवाया था। इस परिसर में कुल 108 मंदिर हैं।
मुख्यत मंदिर में एकलिंगजी की चार सिरों वाली मूर्त्ति स्थावपित है।
- त्रिपुर सुंदरी मंदिर, बांसवाड़ा
प्रमुख आराध्य: त्रिपुर सुंदरी (काली माँ)
स्थापत्य शैली: हिन्दू शैली
निर्माण तिथि (वर्तमान संरचना): तीसरी शती से पूर्व
निर्माता: पांचाल जाति के चांदा भाई लुहार
राजस्थान में बांसवाड़ा से लगभग 14 किलोमीटर दूर तलवाड़ा ग्राम से मात्र 5 किलोमीटर की दूरी पर ऊंची रौल श्रृखलाओं के नीचे सघन हरियाली की गोद में उमराई के छोटे से ग्राम में माताबाढ़ी में प्रतिष्ठित है मां त्रिपुरा सुंदरी। कहा जाता है कि मंदिर के आस-पास
पहले कभी तीन दुर्ग थे। शक्तिपुरी, शिवपुरी तथा विष्णुपुरी नामक इन तीन पुरियों में स्थित होने के कारण देवी का नाम त्रिपुरा सुन्दरी पड़ा
तीनों पुरियों में स्थित देवी त्रिपुरा के गर्भगृह में देवी की विविध आयुध से युक्त अठारह भुजाओं वाली श्यामवर्णी भव्य तेजयुक्त आकर्षक मूर्ति है। इसके प्रभामण्डल में नौ-दस छोटी मूर्तियां है जिन्हें दस महाविद्या अथवा नव दुर्गा कहा जाता है।
यह स्थान कितना प्राचीन है प्रमाणित नहीं है। वैसे देवी मां की पीठ का अस्तित्व यहां तीसरी शती से पूर्व का माना गया है। गुजरात, मालवा और मारवाड़ के शासक त्रिपुरा सुन्दरी के उपासक थे। गुजरात के सोलंकी राजा सिद्धराज जयसिंह की यह इष्ट देवी रही।
- श्रीनाथजी मन्दिर, नाथद्वारा
श्रीनाथजी का तकरीबन 337 वर्ष पुराना मन्दिर वैष्णव सम्प्रदाय की प्रधान (प्रमुख) पीठ है। यहाँ नंदनंदन आनन्दकंद श्रीनाथजी का भव्य मन्दिर है जो करोडों वैष्णवो की आस्था का प्रमुख स्थल है, प्रतिवर्ष यहाँ देश-विदेश से लाखों वैष्णव श्रृद्धालु आते हैं जो यहाँ के
प्रमुख उत्सवों का आनन्द उठा भावविभोर हो जाते हैं।
भारत के मुगलकालीन शासक बाबर से लेकर औरंगजेब तक का इतिहास पुष्टि संग्रदाय के इतिहास के सामानान्तर यात्रा करता रहा। सम्राट अकबर ने पुष्टि संप्रदाय की भावनाओं को स्वीकार किया था। गुसाईं श्री विट्ठलनाथजी के समय सम्राट की बेगम बीबी ताज तो
श्रीनाथजी की परम भक्त थी, तथा तानसेन, बीरबल, टोडरमल तक पुष्टि भक्ति मार्ग के उपासक रहे थे।
श्रीनाथजी को गिरिराज के मन्दिर से पधराकर सिहाड़ के मन्दिर में बिराजमान करने तक दो वर्ष चार माह सात दिन का समय लगा था। श्रीनाथजी के नाम के कारण ही मेवाड़ का वह अप्रसिद्ध सिहाड़ ग्राम अब श्रीनाथद्वारा नाम से भारत वर्ष में सुविख्यात है। संवत्
1728 कार्तिक माह में श्रीनाथजी सिहाड़ पहुँचें वहा मन्दिर बन जाने पर फाल्गुन कृष्ण सप्तमी शनिवार को उनका पाटोत्सव किया गया।
- राजस्थान के अन्य प्रमुख हिन्दू मन्दिर
नीमच माता मंदिर, उदयपुर
जग मंदिर, उदयपुर
बिड़ला मन्दिर, जयपुर
शिला देवी मंदिर, जयपुर
सुनधा माता मंदिर, जालौर
तनोत माता, जैसलमेर
चामुंडा माता मंदिर, जोधपुर
रानी सती मंदिर। , झुन्झुनू
देव धाम जोधपुरिया, टोंक
मेहंदीपुर बालाजी मंदिर, दौसा
दधिमती माता मंदिर, नागौर
शीतला माता मंदिर , भीलवाड़ा
सवाई भोज मंदिर, भीलवाड़ा
रघुनाथ मंदिर, सीकर
*****मस्जिद/मकबरे
ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह, अजमेर
ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह अजमेर में स्थित है
मोइनुद्दीन चिश्ती का जन्म 1941 में और निधन 1236 ई॰ में हुआ था, उन्हें ग़रीब नवाज़ के नाम से भी जाना जाता है।
हज़रत ख्वाजा गरीब नवाज़ विश्व् के महान सूफी सन्त माने जाते हैं। गरीब नवाज़ का असली नाम “ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन” है, और चिश्तिया तरीक़े या सिलसिले से हैं इस लिए “चिश्ती” कहलाते हैं।
मोईनुद्दीन चिश्ती हिन्दुस्तान का रुख किया। मुल्तान में पान्च वर्श रहे, यहां इन्हों ने संस्कृत भाषा सीखी। थोडे दिन लाहोर में रुके, बाद में अजमेर आये। अपने हमराह मोइज़ुद्दीन के साथ अजमेर अपना निवास स्थल बना लिया।
वो भारतीय उपमहाद्वीप के चिश्ती क्रम के सूफ़ी सन्तों में सबसे प्रसिद्ध सन्त थे। मोइनुद्दीन चिश्ती ने भारतीय उपमहाद्वीप में इस क्रम की स्थापना एवं निर्माण किया था। जब इनका उर्स होता है तो देश विदेशों से अक़ीदतमन्द लोग इन्के दर्गाह पर हाज़री देते हैं और
दुआयें कर्ते हैं।
- नरहड़ शरीफ की दरगाह, झुंझुनू
नरहड़ शरीफ की दरगाह को शकरबार पीर की दरगाह एवं बांगड़ के धणी भी कहा जाता है
अजमेर के गरीब नवाज ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती की तरह ही राजस्थान में झुंझुनूं जिले की नरहड़ शरीफ भी कौमी एकता की अनूठी मिसाल है। जन्माष्टमी के दिन नरहड़ शरीफ में लगने वाले मेले में हिंदू और मुस्लिम दोनों ही धर्मों के लाखों अनुयायी जायरीन के
लिए उमड़ते हैं।
जायरीन में प्रवेश करने वाले प्रत्येक जायरीन को यहां तीन दरवाजों से गुजरना पड़ता है। पहला दरवाजा बुलंद दरवाजा है, दूसरा बसंती दरवाजा और तीसरा बगली दरवाजा है। इसके बाद मजार शरीफ और मस्जिद है।
बुलंद दरवाजा 75 फिट ऊंचा और 48 फिट चौड़ा है। मजार का गुंबद चिकनी मिट्टी से बना हुआ है, जिसमें पत्थर नहीं लगाया गया है। कहते है कि इस गुंबद से शक्कर बरसती थी, इसलिए बाबा को शकरबार नाम मिला।
बी3. जामा मस्जिद, भरतपुर
जामा मस्जिद, भरतपुर का नक्शा दिल्ली की जामा मस्जिद के समान है
इसका निर्माण लाल पत्थरों से किया गया है
इस मंदिर का प्रवेश द्वार बुलंद दरवाजा कहलाता है
- ढाई दिन का झोपड़ा, अजमेर
ढाई दिन का झोपड़ा एक मस्जिद है जो अजमेर में स्थित है।
इसके साथ कई मान्यताएँ प्रचलित हैं। किसी का कहना है कि इस मस्जिद को बनने में ढाई दिन का वक्त लगा था, इसलिए इसे अढ़ाई-दिन का झोपड़ा कहा गया। बहुत से लोग ये मानते हैं कि, चूँकि हर साल यहाँ ढाई साल का मेला लगता था, इसलिए इसे यह
नाम दिया गया।
पहले यह संस्कृत कॉलेज था लेकिन मोहम्मद गौरी ने इसे 1198 में मस्जिद में तब्दील कर दिया। इस मस्जिद की डिजाइन अबु बकर ने तैयार की थी। मस्जिद का अंदरूनी हिस्सा किसी मस्जिद की तुलना में मंदिर की तरह दिखता है।
इस खंडहरनुमा इमारत में 7 मेहराब एंव हिन्दु-मुस्लिम कारीगिरी के 70 खंबे बने हैं तथा छत पर भी शानदार कारीगिरी की गई है।
- फ़तहगंज का मक़बरा, अलवर
फ़तहगंज का मक़बरा अलवर शहर में स्थित है, यह 5 मंजिला है।
फ़तहगंज का मक़बरा दिल्ली में स्थित अपनी समकालीन सभी इमारतों में सबसे उच्च कोटि का है।
फ़तहगंज का मक़बरा भरतपुर रोड के नज़दीक, रेलवे लाइन के पार पूर्व दिशा में स्थित है।
- राजस्थान के अन्य मकबरे एवं मस्जिदें
एक मीनार मस्जिद = जोधपुर
अकबर की मस्जिद, जयपुर
नोहर खां की मीनार = कोटा
ख्वाजा फ़ख़रुद्दीन की दरगाह = सरवाड़, अजमेर
काकाजी की दरगाह, प्रतापगढ़
बड़े पीर की दरगाह = नागौर
मीठेशाह की दरगाह = गागरोन, झालावाड़
स्तम्भ/टॉवर
- कीर्ति स्तम्भ, चित्तौड़गढ़
कीर्ति स्तम्भ का निर्माण महाराणा कुम्भा ने 1448 ई. में करवाया था। यह स्तम्भ राजस्थान के चित्तौड़गढ़ क़िले में स्थित है।
कीर्ति स्तम्भ को ‘विजय स्तम्भ’ के रूप में भी जाना जाता है। महाराणा कुम्भा ने मालवा के सुल्तान महमूदशाह ख़िलजी को युद्ध में प्रथम बार परास्त कर उसकी यादगार में इष्टदेव विष्णु के निमित्त यह कीर्ति स्तम्भ बनवाया था।
भगवान विष्णु को समर्पित यह स्तम्भ 37.19 मीटर ऊँचा है तथा नौ मंजिलों में विभक्त है। कीर्ति स्तम्भ वास्तुकला की दृष्टि से अपने आप में एक अद्भुत मीनार है। मंज़िल पर झरोखा होने से इसके भीतरी भाग में भी प्रकाश रहता है।
चित्तौड़ के शासकों के जीवन तथा उपलब्धियों का विस्तृत क्रमवार लेखा-जोखा सबसे ऊपर की मंज़िल में उत्कीर्ण है, जिसे राणा कुम्भा की सभा के विद्वान अत्री ने लिखना शुरू किया था तथा बाद में उनके पुत्र महेश ने इसे पूरा किया।
इस मीनार के वास्तुविद् सूत्रधार जैता तथा उसके तीन पुत्रों- नापा, पुजा तथा पोमा के नाम पांचवीं मंज़िल में उत्कीर्ण हैं।
- जैन कीर्ति स्तम्भ, चित्तौड़गढ़
जैन कीर्ति स्तम्भ का निर्माण श्रेष्ठी जीजा द्वारा 1300 ई. में करवाया गया था। यह स्तम्भ राजस्थान के चित्तौड़गढ़ में स्थित है।
इस स्तम्भ की ऊँचाई लगभग 24.50 मीटर है।
यह छह मंजिला स्तम्भ प्रथम जैन तीर्थंकर आदिनाथ को समर्पित है।
यह कीर्ति स्तम्भ एक उठे हुए चबूतरे पर निर्मित है तथा इसमें आंतरिक रूप से व्यवस्थित सीढ़ियाँ बनाई गई हैं।
स्तम्भ की निचली मंज़िल में सभी चारों मूलभूत दिशाओं में आदिनाथ की खड़ी प्रतिमाएँ बनी हैं, जबकि ऊपर की मंजिलों में जैन देवताओं की सैकड़ों छोटी मूर्तियाँ स्थापित हैं।
- ईसरलाट, जयपुर
‘ईसरलाट’ उर्फ़ ‘सरगासूली’ का निर्माण वर्ष 1749 में महाराजा ईश्वरी सिंह ने जयपुर के गृहयुद्धों में विरोधी सात दुश्मनों पर अपनी तीन विजयों के बाद करवाया था।
ईसरलाट यानि सरगासूली जयपुर की विजय का प्रतीक है। यह सात मंजिला अष्टकोणीय मीनार त्रिपोलिया बाजार में दिखाई देती है, लेकिन इसका प्रवेश द्वार आतिश बाजार में से है।
अपने समय की इस अजूबा इमारत का निर्माण राजशिल्पी गणेश खोवान ने किया था। ईसरलाट के छोटे प्रवेश द्वार में प्रविष्ट होने के बाद एक संकरी गोलाकार गैलरी घूमती हुई उपर की ओर बढ़ती है। हर मंजिल पर एक द्वार बना है जो मीनार की बालकनी में
निकलता है।
लाट के शिखर पर एक खुली छतरी है जिसपर से जयपुर शहर के चारों ओर का खूबसूरत नजारा दिखाई देता है। अपनी उंचाई से स्वर्ग तक पहुंचने का आभास देने के कारण इस इमारत को ’सरगासूली’ भी कहा गया।
- निहाल टावर, धौलपुर
सन 1880 में तत्कालीन धौलपुर नरेश महाराजा निहाल सिंह ने इस इमारत की नींव रखी थी। जिसे 1910 तत्कालीन महाराज रायसिंह ने पूरा कराया।
सात धातुओं से बना यह भारत का सबसे बड़ा घंटाघर है ।
आठ मंजिल की इस इमारत में टॉप पर एक छतरी लगी है। इस छतरी में घंटा लगा हुआ है। इसकी ऊंचाई करीब 100 फीट है।
इमारत की छठीं मंजिल पर चारों दिशाओं में घड़ी लगी है।
निहाल टावर इंडो मुस्लिम शैली का उत्कृष्ट नमूना है।
- क्लॉक टॉवर, अजमेर
क्लॉक टॉवर, अजमेर रेलवे स्टेशन के ठीक सामने स्थित है
क्लॉक टॉवर 1888 में महारानी विटोरिया की स्वर्ण जयंती पर निर्मित है ।
- रामगढ़ टावर, जैसलमेर
जैसलमेर जिले के रामगढ़ नामक स्थान पर राजस्थान का सबसे ऊँचा टी. वी. टावर स्थापित किया गया है. इसकी ऊंचाई 300 मीटर है.
रामगढ़ टावर, रामेश्वरम(323M) एवं फाजिल्का(304.8 M) के बाद देश का तीसरा सबसे ऊँचा टी. वी. टावर है ।
- भीमलाट, बयाना (भरतपुर)
भीमलाट भरतपुर के बयाना दुर्ग में लाल पत्थरों से निर्मित एक ऊँचा टावर है ।
भीमलाट का निर्माण जाट शासक “महाराजा विष्णुवर्धन” ने 528 ईस्वी में हुंण शासक मिहिरकुला को हराने पर उपलक्ष में बनाया था ।
- अधर खम्भ, नागौर
अधर खम्भ, नागौर जिले के गोट मांगलोद गाँव में दधिमती माता मंदिर में स्थित है
दधिमती माता मंदिर उत्तरी भारत में सबसे पुराना जीवित मंदिरों में से एक है । यह 4 शताब्दी में गुप्त युग माना जाता है ।
अधर खम्भ जमीन से कुछ ऊपर उठा हुआ है इसलिए इसे अधर खम्भ कहा जाता है
- राजस्थान के अन्य प्रमुख स्तम्भ
समुंद्रगुप्त का विजय स्तम्भ – बयाना दुर्ग ( भरतपुर)
लोधी मीनार – बयाना दुर्ग ( भरतपुर)
वेली टावर – कोटा
धर्म स्तूप – चुरू
परमार कालीन कीर्ति स्तम्भ – जालोर