राजस्थान में स्वतंत्रता संग्राम के चरण
राजस्थान में स्वतंत्रता संग्राम 3 चरणों में विभाजित किया गया था
1 पहला चरण➖ प्रारम्भ से 1927ई.के पूर्व
2 दूसरा चरण➖ 1927 से 1938ई.
3 तीसरा चरण 1938 से 1949 ई.
प्रथम चरणमें प्रत्येक राज्य में यह संघर्ष अन्य राज्य की घटनाओं से प्रभावित रहकर सामाजिक अथवा मानवतावादी समस्याओंपर केंद्रित था
1920 में कांग्रेस ने प्रस्ताव पास किया था कि वह भारतीय राज्यों के मामलों में हस्तक्षेपनहीं करेगी
इस कारण प्रत्येक राज्य में संघर्ष प्राय: राजनीतिक लक्ष्यसे विहीन ही रहा
दूसरा चरण की 1927 में ऑल इंडियन स्टेट पीपुल्स कॉन्फ्रेंस (अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद)की स्थापना से प्रारंभ हुआ
इस संस्था के स्थापित हो जाने से विभिन्न राज्यों के राजनीतिक कार्यकर्ताओं को एक ऐसा मंच मिल गया था जहां से वे अपनी बात लोगों तक पहुंचासकते थे
1927 में देशी राज्य लोक परिषद् का प्रथम अधिवेशन हुआ था
इस अधिवेशन के बाद राजस्थान के कार्यकर्ता अत्यधिक उत्साह से वापस आए थे
यह सभी कार्यकर्ता इस संस्था की क्षेत्रीय परिषद का गठनकरना चाहते थे
जिससे राजस्थान के सभी राज्यों की गतिविधियों में समन्वय में बना रहे
1931 में राम नारायण चौधरी ने अजमेर में इस संस्था का प्रथम प्रांतीय अधिवेशन किया
जोधपुर में भी जयनारायण व्यास ने इस प्रकार का सम्मेलन करने का प्रयास किया था
लेकिन जोधपुर दरबार की दमनात्मक नीति के कारण इस सम्मेलन का आयोजन ब्यावर नगर में किया गया
इतने प्रयासों के बावजूद भी राजस्थान के राज्य की क्षेत्रीय परिषद का गठन नहीं हो पाया
इस कारण राजस्थान के विभिन्न राज्यों के नेताओ ने अपने अपने राज्यों में अपने ही साधनों से आंदोलन चलाने का निश्चयकिया
प्रजामंडल की स्थापना का आंदोलन यही से प्रारंभ हुआ
तीसरा चरण 1980 कांग्रेस के प्रस्ताव से आरंभ हुआ
इस प्रस्ताव में देशी राज्यों में स्वतंत्रता संघर्ष संबंधित राज्यों के लोगों द्वाराचलाने की बात कही ई गई थी
तीसरे चरणसे ही प्रजामंडल की स्थापना के आंदोलन की शुरुआत हुई
1938 के बाद विभिन्न राज्यों में प्रजामंडल अथवा राज्य परिषदकी स्थापना हुई
प्रत्येक राज्य के लोगों ने राजनीतिक अधिकारों और उत्तरदायी शासन के लिए आंदोलन किए
🎄🌺राजस्थान में स्वतंत्रता संग्राम🌺🎄
राजस्थान के स्वाधीनता संघर्षके आरंभिक चरण में किसान और जनजातियों का रियासती शासन के विरुद्ध संघर्षथा
इस चरण में 1897 प्रारंभ होकर 1941 तक चलने वाला बिजोलिया किसान आंदोलन प्रमुखथा
यह आंदोलन स्थानीय आर्थिक धार्मिक मुद्दोंपर आधारित थे
इन आंदोलनों में राष्ट्रीयता की भावना और सामान्य जन भागीदारीका भी अभाव था
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना 1885 में हुई थी
लेकिन रियासतोंमें लंबे समय तक कांग्रेस या उसके समानांतर संगठननहीं बन पाए थे
क्योंकि रियासतों की जनता दोहरी गुलामी का शिकार थी और जनता राष्ट्रीय धारा से अलग पड़ गई थी
कांग्रेस भी रियासतों के प्रति तटस्थथी
कांग्रेस नहीं चाहती थी कि अंग्रेजों के साथ साथ रियासती राजाओं के साथ भी संघर्ष प्रारंभ हो
महात्मा गांधी के राजनीतिक उत्थानके पश्चात ब्रिटिश आंदोलन की हवा रियासतों में भी पहुंचने लगी
स्थानीय समस्याओं को लेकर विभिन्न प्रकार के आंदोलन होने लगे और विभिन्न राजनीतिक संगठनों की स्थापना होने लगी होने लगा
नारायणी देवी वर्मा
नारायणी देवी वर्मा का जन्म मध्यप्रदेश की सिंगोली कस्बे मे रामसहाय भटनागर के यहां 1902 में हुआ था
12 वर्ष की आयु में इनका विवाह माणिक्य लाल वर्मा के साथ संपन्न हुआ था
जो बिजोलिया ठिकाने मे नौकरी किया करते थे
जागीरदार के अत्याचारों को देख माणिक्य लाल जी ने जब आजीवन आम जन की सेवा का संकल्प लिया तो नारायणी देवी इस व्रत में उनकी सहयोगिनी बनी
बीमारी के दौरान इलाज के अभाव में इनके दो पुत्रों की मृत्युभी उन्हें इस सेवा कार्य से विरत नहीं कर सकी
माणिक्य लाल वर्मा द्वारा 1934 में सागवाड़ा में खांडलोई आश्रम की स्थापना की गई थी नारायणी देवी द्वारा खांडलोई में भी भीलों के मध्य शिक्षा प्रसार हेतु कार्य किया गया था
1939 में प्रजामंडल के कार्य में भाग लेने के कारण उन्हें जेल जानापड़ा और राज्य से निर्वासित कर दिया गया
वह अजमेर आई और राज्य की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए प्रयास किए ताकी रचनात्मक कार्य प्रयास प्रारंभ किए जा सकते हैं
इसी समय मेवाड़ में भयंकर अकाल पड़ा तो इन्होंने अकाल सहायता समिति का गठन किया
भारत छोड़ो आंदोलन के समय भी नारायणी देवी वर्मा अपनी 6माह के पुत्र के साथ जेल गई थी
1944 में भीलवाड़ाआ गई और यहां पर 14 नवंबर 1944 को महिला आश्रम की स्थापना की
संस्था की स्थापना का उद्देश्य स्वतंत्रता सेनानियों की पत्नियां और उनके परिवारजनों को शिक्षितकरना
उनके परिवारों के भरण पोषण की व्यवस्थाकरना था
1952-53 में माणिक्य लाल वर्मा के साथ मिलकर आदिवासी कन्या छात्रावास की स्थापनाकी
वर्मा जी के निधन के बाद 1970 से 76 तक राज्यसभा की सदस्य रही
12 मार्च 1977 को उनका देहांत हो गया
स्वतंत्रता संग्राम के लिए स्थापित राजस्थान के विभिन्न में संगठन
🍁राजपूताना मध्य भारत सभा🍁
जयपुर स्टेट इन ब्रिटिश राज 1933 के लेखक रॉबर्ट डब्ल्यू स्टेर्न के द्वारा सन् 1918 में दिल्लीमें आयोजित कांग्रेस अधिवेशन में राजस्थान के कई व्यक्तियों ने भाग लिया था
जिसके परिणाम स्वरुप उनका संपर्क अंग्रेजी भारत और अन्य राज्यों के नेताओंसे हुआ
इस अधिवेशन के बाद गणेश शंकर विद्यार्थी, विजय सिंह पथिक, जमुनालाल बजाज ,चांद करण शारदा ,गिरधर , स्वामी नृसिंहदेव सरस्वती आदि ने इस अधिवेशन में भाग लिया था
इन सभी के प्रयासों से 1918 में राजपूताना मध्य भारत सभा नाम की एक राजनीतिक संस्था की स्थापना की गई
इस संस्था री स्थापना दिल्ली के चांदनी चौक स्थित मारवाड़ी पुस्तकालय में हुई थी
जहां इस का प्रथम अधिवेशन महामहोपाध्याय पंडित गिरधर की अध्यक्षता में आयोजित किया गया था
इस सभा का मुख्य उद्देश्य रियासतों में उत्तरदायी सरकार की स्थापना करना
रियासत के लोगों को कांग्रेस का सदस्यबनाना
इस संस्था का मुख्य कार्यालय कानपुर में रखा गया
कानपुर उत्तरी भारत में मारवाड़ी पूजीपत्तियों और मजदूरों का सबसे बड़ाकेंद्र था
राजपूताना मध्य भारत सभा का अध्यक्ष सेठ जमुनालाल बजाज को बनाया गया
इस सभा का उपाध्यक्ष गणेश शंकर विद्यार्थीको बनाया गया
यहां से गणेश शंकर विद्यार्थी द्वारा प्रताप नामक साप्ताहिक पत्र प्रकाशित होता था
जो इस क्षेत्र का प्रमुख राष्ट्रीय पत्रथा
प्रताप समाचार पत्र नें ही बिजोलिया किसान आंदोलन को अखिल भारतीय स्तर पर चर्चित किया था
इस पत्र मैं राजस्थान में राजनीतिक हलचल के प्रसार में अपना योगदान दिया
सभा के सदस्य ने इस सभा को कांग्रेस की सहयोगी संस्था बनाने की कोशिश की
लेकिन प्रारंभ में यह सफल नहींहुए
राजपुताना मध्य भारत का दूसरा अधिवेशन कांग्रेस अधिवेशन के साथ ही दिसंबर 1919 में अमृतसर में हुआ था
इस संस्था का तीसरा अधिवेशन मार्च 1920 में सेठ जमनालाल बजाज की अध्यक्षता में अजमेर में आयोजित किया गया था
इस सभा का चौथा अधिवेशन दिसंबर 1920 में नागपुर में हुआ था
उस समय भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अधिवेशन भी नागपुर में हो रहा था
नागपुर अधिवेशन के समय 1920 में राजपूताना मध्य भारत सभा को कांग्रेस की सहयोगी संस्था मान लिया गया
राजपूताना मध्य भारत सभा के चौथे अधिवेशन के अध्यक्ष नरसिंह चिंतामणि केलकर निर्वाचित हुए थे
कुछ कारणें से वह नागपुर नहीं पहुंच पाए
इस कारण जयपुर के गणेश नारायण सोमानी को सर्वसम्मति से सभा का अध्यक्षचुना गया
अधिवेशन में एक प्रदर्शनी भी लगाई थी जो किसानों की दयनीय स्थिति को दर्शाती थी
राजस्थान के नेताओं के दबाव के कारण कांग्रेस में एक प्रस्ताव पारित किया
जिसमें राजस्थान के राजाओं से आग्रह किया गया कि वह अपनी प्रजा को शासनमें भागीदार बनाएं
राजपूताना मध्य भारत सभा 1920 के बाद सक्रिय नहीं रह पाई
🍁राजस्थान सेवा संघ🍁
राजस्थान सेवा संघ का गठन 1919 में वर्धा मे श्री अर्जुनलाल सेठी केसरी सिंह बारहठ और विजय सिंह पथिक के संयुक्त प प्रयासों से किया गया था
इस संस्था ने स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी
इस संस्था का मुख्य उद्देश्य जनता की समस्याओं का निवारण करना
जागीरदारों और राजाओं का अपनी प्रजा के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध स्थापित करवाना
जनता में राष्ट्रीय और राजनीति चेतना जाग्रत करना
इस संस्था ने राजस्थान में राजनीतिक प्रचार के लिए 22 अक्टूबर 1920 से वर्धा से राजस्थान केसरी नामक समाचार पत्र प्रकाशित किया गया था
#impविजय सिंह पथिक इस पत्रिका के संपादक थे और रामनारायण चौधरी सह संपादक थे
राजस्थान केसरी समाचार पत्र के लिए आर्थिक सहायता मुख्य रूप से जमुनालाल बजाज ने की थी
#impयह पहला पत्रथा जो राजस्थानी लोगों द्वारा प्रकाशितकिया गया था
1920 में इस संस्था का मुख्यालय अजमेर में स्थानांतरित किया गया
राजस्थान सेवा संघ की शाखाएं बूंदी जयपुर जोधपुर सीकर खेतडी कोटा आदि स्थानों पर खोली गई थी
राजस्थान सेवा संघ ने बिजोलिया और बेगू में किसान आंदोलन सिरोही और उदयपुर में भील आंदोलन का मार्गदर्शन किया था
ब्रिटिश सरकार राजस्थान सेवा संघ की गतिविधियों से सशंकित थी
#impश्री विजय सिंह पथिक ने 1921 में अजमेर से नवीन राजस्थान समाचार पत्रिका प्रकाशन प्रारंभ किया गया
#impब्रिटिश सरकार द्वारा नवीन राजस्थान समाचार पत्र पर प्रतिबंधलगा दिया गया
#impउसके बाद यह समाचार पत्र तरुण राजस्थान के नाम से निकाला गया
तरूण राजस्थान पत्रके संपादन में शोभालाल गुप्त रामनारायण चौधरी जयनारायण व्यासआदि नेताओं ने योगदान दिया
#impमार्च 1924 में राम नारायण चौधरी और शोभालाल गुप्त को तरुण राजस्थान में देशद्रोहात्मक सामग्री प्रकाशित करने के अपराध में गिरफ्तार किया गया
1924 में मेवाड़ राज्य सरकार द्वारा पथिक को कैद किएजाने के बाद से राजस्थान सेवा संघ के पदाधिकारियों और सदस्यों में आपसी मतभेदशुरू हो गए
धीरे-धीरे मतभेद की खाई इतनी गहरी हो गई की 1928-29 तक राजस्थान सेवा संघ पूर्णतया प्रभावहीन हो गया
🍁सर्व हितकारिणी सभा🍁
#impसर्व हितकारिणी सभाकी स्थापना सन् 1907में स्वामी गोपाल दास व कन्हैया लाल ढूंढ ने चूरुमें की थी
इन्होने बालिका शिक्षा को प्रोत्साहित करने हेतु चूरु में पुत्री पाठशाला की स्थापना की थी
#impदलितों में शिक्षा के प्रचार प्रसार हेतु इन्होनें कबीर पाठशाला की स्थापनाकी गई
#impसर्व हितकारिणी सभा एक सामाजिक शैक्षणिक संस्था थी
🍁वर्धमान विद्यालय🍁
#impइसकी स्थापना श्री अर्जुनलाल सेठी द्वारा 1907 में जयपुर में की गई थी
यह संस्था स्वतंत्रता संग्राम के समय राजस्थान की क्रांतिकारी गतिविधियों का केंद्र बन गई थी
🍁जयपुर हितकारिणी सभा🍁
#impपंडित हीरालाल शास्त्रीकी प्रेरणा से जयपुर हितकारिणी सभा का गठन किया गया
इस के अध्यक्ष श्री बाल चंद शास्त्री व मंत्री केसर लाल कटारिया थे
🍁मारवाड़ सेवा संघ🍁
इस संघ का गठन 1920 में श्री जयनारायण व्यास में जोधपुरमें किया था
इस संघ के अध्यक्ष श्री दुर्गा शंकर और मंत्री श्री प्रयाग राज भंडारी थे
#impयह मारवाड़ राज्य की दूसरी राजनीतिक संस्थाथी
#impइस संस्था के नेतृत्व में ही चांदमल सुराणा और उनके साथियों ने जोधपूर मे मारवाड़ का तोल आंदोलन किया था
मारवाड़ सरकार ने 100तौले के स्थान पर 80 तौले का सेर प्रचलितकरने का निर्णय लिया था
मारवाड़ सेवासंघ ने इसके विरुद्ध सफल हड़ताल का आयोजन किया
आंदोलन के बाद सरकार को नया तौल जारी करने का निर्णय निरस्त करना पडा
इस संघ का कार्यक्षेत्र अधिक विस्तृत था
🍁मारवाड़ हितकारिणी सभा🍁
जोधपुर में जन आंदोलन की शुरुआत 1918 में चांदमल सुराणा द्वारा मारवाड़ हितकारिणी सभा की स्थापना से मानी जाती है
मारवाड़ सेवा संघ के निष्क्रिय हो जाने के पश्चात जय नारायण व्यास द्वारा इस सभा को 1923 में पुनर्गठित किया गया था
#impमारवाड़ हितकारिणी सभा की पहली स्थापना चांदमल सुराणाद्वारा की गई थी
#impमारवाड़ हितकारिणी सभा द्वारा किसानों की ओर ध्यान आकर्षित करने के उद्देश्य से “”पोपाबाई की पोल”” और “”मारवाड़ की अवस्था”” नाम से दो पुस्तकेंप्रकाशित की गई थी
🍁मारवाड यूथ लीग🍁
10 मई 1931 को जोधपुर में जय नारायण व्यासके निवास स्थान पर मारवाड यूथ लीग नामक संस्था की स्थापना की गई थी
इस संस्था का प्रमुख उद्देश्य जोधपुर के साथ साथ आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में जन चेतना का प्रसार करना था
इस लीग को राज्य सरकार द्वारा अवैध घोषित करने से पूर्व ही एक अन्य संस्था बाल भारत सभा बनाई गई
बाल भारत सभा का मंत्री छगन लाल चौपासनीवाला को बनाया गया
🍁मारवाड़ राज्य लोक परिषद🍁
मारवाड़ राज्य लोक परिषद के गठन में जोधपुर राज्य में किसान आंदोलन के नए युगका शुभारंभ किया
इस परिषद का प्रथम सम्मेलन 25 नवंबर 1931 को चांद करण शारदा की अध्यक्षतामें अजमेर के निकट पुष्कर में आयोजित किया गया था
कस्तूरबा गांधी काकासाहेब कालेलकर मनीभाई कोठारीने इस सम्मेलन में भाग लिया था
🍁हरि कीर्तन समाज🍁
1925 26 में अलवर में हरि कीर्तन समाज की स्थापना की गई
इस संस्था को आगे चलकर राजर्षि अभय समाज के नाम से जाना गया अलवर आंदोलनों से ही प्रजामंडल आंदोलन की वास्तविक शुरुआत हुई थी
🍁साहित्य प्रचारिणी सभा🍁
इस सभा का गठन कुँवर मदन सिंह और पूरण सिंह ने 1915 में करौलीमें किया था
बाद में इसका नाम साहित्य परिषदकर दिया गया
1920 में करौली के तत्कालीन दीवान ने इस सभा को करौली की प्रतिनिधि सभा के रूपमें स्वीकार कर लिया था
🍁आचार सुधारनी सभा🍁
#imp1910 में यमुना प्रसाद वर्मा ने धौलपुर में आचार सुधारिणी सभा की स्थापना की थी 1911 में यमुना प्रसाद और ज्वाला प्रसादनें धौलपुर में आर्य समाज की स्थापना की थी
8 अगस्त 1918 को स्वामी श्रद्धानंद के नेतृत्व में धौलपुर में प्रशासन और स्वदेशी आंदोलन प्रारंभ हुआ था
स्वामी श्रद्धानंद की मृत्युके बाद यह आंदोलन समाप्त हो गया था
🍁तिलक समिति🍁
#impशेखावाटी में 1924 में तिलक समित की स्थापना की गई थी
इस समिति की शाखाएंअलग-अलग स्थानों पर स्थापित की गई थी
इस समिति का उद्देश्य समाजसेवाथा
वास्तव में समिति शेखावाटी में राष्ट्रीय विचारों के प्रसार का कार्य करती थी
🍁मित्र मंडल🍁
#impमित्र मंडल नामक संगठन की स्थापना बाबू मुक्ता प्रसाद ने बीकानेर में की थी
#impइसके द्वारा बीकानेर स्टेशन पर पानी पिलाने व लावारिस मृतकों का दाह संस्कार आदि कार्य किया जाता था
किंतु यह संस्था वास्तव में कांग्रेस के सिद्धांतों के प्रचारका कार्य करती थी
🍁हिंदी साहित्य समिति🍁
हिंदी साहित्य समिति की स्थापना 1912में जगन्नाथ दास अधिकारी द्वारा भरतपुर में की गई थी
इस समिति ने भरतपुर में एक विशाल पुस्तकालयकी स्थापना की थी
#impजगन्नाथदास अधिकारी द्वारा 1920 में दिल्ली से वैभव नामक समाचार पत्र प्रकाशित किया था
#imp1927 में हिंदी साहित्य समितिद्वारा भरतपुर में विश्व हिंदी सम्मेलनका आयोजन किया था
इस सम्मेलन की अध्यक्षता पंडित गौरीशंकर हीरानंद ओझाने की थी
#impइस सम्मेलन में रविंद्र नाथ टैगोर ,जमनालाल बजाजआदि ने भाग लिया था
इस सम्मेलन से व भरतपुर आए विशिष्टजनों के प्रभाव के कारण भरतपुर के महाराजा किशन सिह ने भरतपुर में हिंदी को राजभाषाबनाने गांव व नगरों में स्वायत्तशासी संस्थाओंको विकसित करने और रियासत में उत्तरदायी शासन की स्थापना का प्रचार
प्रारंभ करने की घोषणाकी थी
महाराजा की घोषणाओं से नाराज अंग्रेजों ने किशन सिह को गद्दी से हटा दिया था और दीवान मैकेन्जीको भरतपुर का प्रशासक नियुक्त किया था
जगन्नाथदास अधिकारी को राज्य से निवासितकर दिया गया था
🍁सिवील लिबर्टीज यूनियन🍁
1936 में इस संस्था की प्रांतो और देशी राज्यो में कांग्रेस की सहयोगी संस्था के रुप में स्थापना की गई थी
जोधपुर में भी इस यूनियन की शाखा की स्थापना हुई थी
स्वतंत्रता संग्राम के प्रथम चरण के बाद राजस्थान मैं बदलाव
स्वतंत्रता संग्राम के प्रथम चरण में राजस्थान के क्रांतिकारियों की राजद्रोहात्मक गतिविधियों से पूर्ण सफलता प्राप्त नहीं हुई
लेकिन आंदोलनों ने राजस्थान की जनता में राष्ट्रीय चेतना और जन जागरूकताका विकास विकास किया
इन आंदोलनों का राज्य में अंग्रेज विरोधी जनमत तैयारकरने में महत्वपूर्ण योगदान रहा
बेगू बिजोलिया बूंदीकिसान आन्दोलन और सूर्जी भगत गोविंद गुरु और मोतीलाल तेजावत के नेतृत्व में हुए भील आंदोलन ने स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई
इन आंदोलनों के द्वारा राज्य की जनता में राजनीतिक चेतना का विकास हुआ
आत्मविश्वासउत्पन्न हुआ और यहां की जनता अपने अधिकारोंके प्रति सजग हुई
1921 में महात्मा गांधीचलाए गए असहयोग आंदोलनका प्रभाव राजस्थान पर भी पड़ा
इस आंदोलन से राजस्थान के लोगों में भी देशप्रेम की भावना जागृत हुई और राज्य में निरंकुश शासन के प्रति रोष उत्पन्न हुआ
जोधपुर में भवरलाल सरार्फ सत्याग्रही ने तिरंगा झंडा लेकर शहर में घुमाया
झंडे पर एक और महात्मा गांधी और दूसरी ओर स्वराज्य लिखा हुआ था
भवरलाल सरार्फ ने जोधपुर में एक भाषण दिया था
जिसे लोगों ने पूर्ण एकाग्रता और उत्साहसे सुना था
टोंक राज्य की जनता ने भी कांग्रेस के प्रति पूर्ण सहानुभूति और असहयोग आंदोलनका अनुमोदन किया था
इस घटना के कारण अंग्रेजों ने यहां के नेता मौलवी अब्दुल रहीम सय्यद जुबेर मियां सेयद इस्माइल मियांआदि को गिरफ्तार कर लिया गया था
जयपुर राज्य में जमनालाल बजाज ने अपनी रायबहादुर की उपाधि लौटा दी और एक लाख रुपए तिलक स्वराज्य कोष में जमा किया था
जमना लाल बजाज को अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की कार्यकारिणी का सदस्य बनाया गया
जमनालाल बजाज से प्रेरित होकर राजस्थान के व्यापारी ने भी इस आंदोलन के दौरान कांग्रेस को आर्थिक सहयोग दिया था
1921 में बिकानेर में मुक्ताप्रसाद वकील आदि ने विदेशी कपड़ों की होली जलाईऔर खादी पहनने का व्रत लिया
बीकानेर में अंग्रेजों के विरुद्ध प्रदर्शनप्रदर्शित करने के लिए खादी भंडार भी खोला गया
15 मार्च 1931 को अजमेर में वित्तीय राजनीतिक सम्मेलन का आयोजन किया गया
सम्मेलन की अध्यक्षता मौलाना शौकत अलीद्वारा की गई
इस सम्मेलन में मोतीलाल नेहरू भी उपस्थित थे
मौलाना शौकत अली के नेतृत्व में विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार का आह्वान किया गया
अजमेर में पंडित गौरीशंकरके नेतृत्व में विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार किया गया
इस कार्य में अर्जुन लाल सेठी, चांद करण शारदा आदि ने भाग लिया
प्रथम विश्वयुद्धके समय राजस्थान के राजाओं ने पूरी श्रद्धा से ब्रिटिश सरकार को सहायता प्रदान करी थी और ब्रिटिश साम्राज्य के प्रति पूर्ण निष्ठा का परिचय दिया था
ब्रिटीश सरकार ने भी उन्हें अपना विश्वसनीय सहयोगी मानकर युद्ध संचालन में भागीदार बनाया था
बीकानेर के महाराजा गंगासिंह को साम्राज्य युद्ध मंत्रिमंडल और साम्राज्य युद्ध सम्मेलन का सदस्य मनोनीत किया गया था
इन्हें जर्मनी से वार्ता में भाग लेने के लिए भारत का प्रतिनिधित्व करने हेतु पेरिस भेजा गया
प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद वायसराय की अध्यक्षता में नरेंद्र मंडल की स्थापनाकी गई थी इस
नरेंद्र मंडल के द्वारा देशी राजा अपने राज्य और भारत सरकार से संबंधित समस्याओं पर विचार विमर्श कर सकते थे
: ब्रिटिश सरकार द्वारा देशी राजा को बताया गया कि राष्ट्रवादी मध्यवर्गी लोग किसान मजदूरआदि ब्रिटिश सरकार और देशी नरेशों के लिए अशांति और खतरा उत्पन्न करने का कारण बन सकते हैं
ब्रिटिश प्रशासकों ने मेवाड़ के बिजोलिया ठिकाने में किसान पंचायतोंकी स्थापना की गई
इन पंचायतों की आत्मनिर्भरता की तुलना रूसी सोवियतो से की गई और
बिजोलिया किसान आंदोलन के सूत्रधार पथिक को विप्लववादी कहा गया और ब्रिटिश साम्राज्य द्वारा समान हितों की बात कह कर देशी राज्यों का सहयोगप्राप्त करने का प्रयास किया गया
देसी राज्य ब्रिटिश सत्ता के साथ जुड़े होने के कारण राजस्थान के राजाओं ने असहयोग आंदोलन को अपने अस्तित्व के लिए खतरा माना
इस कारण बीकानेर के महाराजा गंगा सिंह ने अपने राज्य के शिव मूर्ति सिह, संपूर्णानंद और आनंद वर्माको सरकारी नौकरी से निकाल दिया
इन सभी को सरकारी नौकरी से निकालने का कारणइनके द्वारा स्वदेशी वस्त्र पहनना और तिलक स्वराज्य कोष मे चंदाजमा करना था
उदयपुर के महाराणा फतेह सिंहने विवश हो कर अपने युवराज भूपाल सिंह को 28 जुलाई 1921 को शासनाधिकार सौंप दिये
युवराज ने अंग्रेज सरकार की इच्छा अनुसार मंत्री मंडल बनाया और राजस्व विभाग जैसा महत्व विवाग एक अंग्रेज अधिकारी मिस्टर ट्रेंच को सौंप दिया गया
ब्रिटिश सरकार का लगभग अब यह प्रयास था की राजस्थान के राज्यों में अंग्रेज मंत्रियों की नियुक्ति की जाए
जिस से राज्य में बढ़ती हुई राजनीतिक चेतना पर नियंत्रण रखा जा सके
इस कारण राज्य के कई जिले सिरोही बूंदी जोधपुर जयपुर में अंग्रेज नियुक्ति की गई और जहां ऐसा संभव नहीं हुआ वहां बाहर के व्यक्तियों को उच्च पदों पर नियुक्त किया गया
राजस्थान के अनेक राज्यों में राजाओं से उनके प्रशासन का अधिकार छीन कर दीवानों और निरकुंश नौकर तंत्र को दे दिया गया था
बीसवीं शताब्दीके तृतिय दशक तक राज्य में बहुत बड़ी संख्या में शिक्षित लोग मौजूदथे
जिन्हें राज्य में कार्य करने का अवसर प्रदान नहीं किया गया था
इसके कारण इन में असंतोष फेल गया
इस शिक्षित वर्ग ने प्रचलित व्यवस्था में अनियमिताओं को उजागर कर जनता में जागृति उत्पन्न की
इन्होंने नागरिक अधिकारों और उत्तरदायी सरकारकी स्थापना के लिए संघर्ष प्रारंभ किया और जन आंदोलनों को नेतृत्वप्रदान किया
इन संघर्ष और आंदोलन से राजस्थान में एक नए युग का सूत्रपातहुआ और प्रजामंडल आंदोलन की शुरुआत हुई
: अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद् का गठन (द्वितीय चरण1927-1938)
🌱स्वतंत्रता संग्राम के द्वितीय चरण में 1927 मैं अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषदका गठन किया गया
🌱अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद का गठन देसी रियासतों के कार्यकर्ताओंने मिलकर किया था
🌱कांग्रेस का समर्थन मिल जाने के बाद इसकी शाखाएं स्थापित की जाने लगी
🌱अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद की स्थापना के बाद राजस्थान में सक्रिय राजनीति का कालप्रारंभ हुआ
🌱अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद के प्रथम अध्यक्ष बाबा रामचंद्र राव थे और श्री विजय पथिक को उपाध्यक्ष बनाया गया
🌱श्रीराम नारायण चौधरीराजपूताना और मध्य भारत के प्रांतीय सचिव बनाए गए
🌱देशी राज्य लोक परिषद् का मुख्यालय मुंबई में रखा गया था
🌱1928 में राजपूताना देशी राज्य लोक परिषद के प्रांतीय सम्मेलन में रियासतों में राजाओं के संरक्षण में उत्तरदायी सरकार की स्थापना करने का प्रस्तावपारित किया गया था
🌱श्री रामनारायण चौधरी में देशी राज्य लोक परिषद का प्रांतीय अधिवेशन 1931 में अजमेर में आयोजित किया था
🌱अखिल भारतीय देशी राज्य परिषद के कराची अधिवेशन 1936 में जयनारायण व्यास को महामंत्री बनाया गया था
🌱31 दिसंबर 1945 से 1 जनवरी 1946तक अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद् का सातवां अधिवेशन उदयपुर के सलोदिया मैदान में आयोजित किया गया था
🌱 उदयपुर के सलोटिया मैदान में आयोजित सम्मेलन की अध्यक्षता पंडित नेहरूने की थी
🌱यह राजपूताना”में आयोजित किया जाने वाला लोक परिषद का प्रथम अधिवेशन था
🐾राजपूताना सेंटर इंडिया छात्र एसोसिएशन🐾
🌱राजपूताना और मध्य भारत में विद्यार्थियों ने स्वतंत्रता आंदोलनमें सक्रिय रुप से भाग लिया था
🌱राज्य में इन गतिविधियों का केंद्र अजमेर था
🌱विद्यार्थियों की गतिविधियों को संगठित रूप प्रदान करने के लिए राजपूताना सेंट्रल इंडिया छात्र अधिवेशन संपन्न किया गया
🌱यह अधिवेशन 31 दिसंबर 1935 से 2 जनवरी 1938 तक ब्यावर में K.F.नारीमनकी अध्यक्षता में हुआ था तृतीय चरण 1938 प्रजामंडल आंदोलन व स्थापना
स्वतंत्रता संग्राम का तृतीय चरण राज्य में 1938 से प्रारंभ हुआ जो आजादी के बाद तक चला
तृतीय चरण में प्रजामंडल आंदोलन अत्यधिक सक्रिय हुए
इन आंदोलनों के परिणाम स्वरुप राज्य में प्रजामंडल की स्थापना होने लगी
ब्रिटिश भारत का प्रशासन ब्रिटिश सरकार द्वारा नियुक्त गवर्नर जनरल, गवर्नर अन्य अधिकारी के हाथ में था
जबकि भारत में राजाओं का निरंकुश शासन था
1857 के असफल स्वतंत्रता संग्राम ने जनमानस में स्वतंत्रता की ललक पैदा कर दी थी
1885 में ब्रिटिश भारत में राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी की स्थापना के बाद स्वतंत्रता आंदोलन को एक नया स्वरूप मिला था
इसमेे जनता को राष्ट्रीय कांग्रेस की धारा से नहींजोड़ा गया था
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और महात्मा गांधी की यही नीति थी की रियासतों के मामले में कोई हस्तक्षेप नहीं किया जाए
रियासतों के नेता स्थानीय स्तर पर भी अपनी समस्याओं से निपटे
कांग्रेस पार्टी के द्वारा नागपुर और मद्रास अधिवेशन के बाद कांग्रेस ने दृढ शब्दों में प्रस्ताव पारित किया
इस प्रस्ताव के तहत देशी राजाओंको अपने राज्यों में शीघ्र प्रतिनिधि संस्थाएं और उत्तरदायी शासन स्थापित करना चाहिए
दिसंबर 1927 में मुंबई में अखिल भारतीय देशी लोकराज्य परिषद की स्थापना की गई
हरिपुरा अधिवेशन
1938 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के द्वारा हरिपुरा में अधिवेशन का आयोजन किया गया
इस अधिवेशन की अध्यक्षता सुभाष चंद्र बोस ने की थी
इस अधिवेशन के द्वारा रियासतों की जनता को अपने अपने राज्यों में उत्तरदायी शासन का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए
स्वतंत्र संगठन बनाकर आंदोलन करने और जन जागृति फैलाने का आह्वान किया गया
पंडित जवाहरलाल नेहरु अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद के अध्यक्ष बने थे
इस अधिवेशन में कांग्रेस ने पहली बार निर्णय लिया कि कांग्रेस को रियासती जनता के संघर्षमें साथ देना चाहिए
हरिपुरा अधिवेशन में देशी रियासतों को अपना कार्य क्षेत्र घोषित किया गया
यह आंदोलन स्थानीय नेताओं के द्वारा स्थानीय संगठनोंके माध्यम से चलाया जावेगा
इन संगठनों को प्रजामंडल या प्रजा परिषद कहा गया
1938 के बाद राजस्थान की लगभग सभी रियासतों में प्रजामंडलकी स्थापना हुई
सभी रियासतों में उत्तरदायी शासनकी मांग को लेकर आंदोलन किए जाने लगे
इससे देसी राज्यों में असाधारण जागृति उत्पन्न हुई और देशी राज्य की जनता को राष्ट्र की मुख्यधारा में सम्मिलित किया गया
राज्य में संचालित हो रहे आंदोलनों को इन संस्थाओं से नवीन प्रेरणा मिली
जिससे स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद देसी राज्यों के एकीकरण का कार्य संभव हो सका
प्रजामंडलो की भूमिका भारत को आजाद कराने की दिशा में उल्लेखनीय थी
कांग्रेस ने अपने त्रिपुरी अधिवेशन 1939 में देशी रियासतों की राजनीतिक संस्थाओंकी गतिविधियों के साथ अपनी अहस्तछेप नीति का परित्याग कर पूर्ण सहयोग देने की नीति का प्रस्तावपारित किया गया
अखिल भारतीय देशी राज्य परिषद ने पंडित जवाहरलाल नेहरु की अध्यक्षता में लुधियाना अधिवेशन 19 मार्च 1939में संकल्प पारित किया
रियासतों की जनता द्वारा उत्तरदायी शासन की स्थापना के लिए संघर्ष कांग्रेस के पूर्ण सहयोग से कांग्रेस के मार्गदर्शन में शुरू होना चाहिए
इन सभी वजह से राज्य में प्रजामंडल की स्थापना कि गआ राज्य में पहला प्रजामंडल जयपुर प्रजामंडलथा
इसकी स्थापना 1931 में की गई थी
लेकिन यह प्रजामंडल लगातार 5 वर्षों तक निष्क्रिय बना रहा
1938 में जमनालाल बजाज और अर्जुन लाल सेठी के द्वारा जयपुर प्रजामंडल का फिर से पुनर्गठन किया गया
प्रजामंडलो की मुख्य मांग रियासतो मैं उत्तरदायी शासन की स्थापना थी
राज्य में स्थापित विभिन्न प्रजामंडल
📚🌻जयपुर प्रजामंडल🌻📚
श्री अर्जुनलाल सेठीने राजस्थान में क्रांति और जनजागृतीपैदा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई
अर्जुन लाल सेठी ने जयपुर में 1905 में जैन शिक्षा प्रसार समितिकी स्थापना की इसके अंतर्गत वर्द्धमान विद्यालय, वर्द्धमान छात्रावास और वर्द्धमान पुस्तकालय चलाए गए
#Imp.सेठ जी ने देश में भावी क्रांति के लिए युवकों को तैयार किया
अर्जुन लाल सेठीने भारत में अंग्रेजी राज पर रचना करी थी
अर्जुन लाल सेठी के निधन पर पंडित सुंदरलाल ने श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा था की “”दधीचि जैसा त्याग और दृढ़ता लेकर वे जन्में थे और उसी दृढ़ता में उन्होंने मृत्यु को गले”” लगाया
जयपुर उत्तरदायी शासन की स्थापना करने,नागरिक अधिकारों की मांग और शासन की दमनात्मक नीतियोंका संगठित व प्रभावी मुकाबला करने हेतु
जयपुर के कार्यकर्ताओं द्वारा कई संस्थाओं की सनातन धर्म मंडल, समाज सुधार मंडल, जयपुर हितकारिणी सभाकी स्थापना की गई
इन संस्थाओं ने समाज सुधार के साथ राजनीतिक जागृतिका कार्य भी किया गया
#Imp.जयपुर राज्य में प्रशासनिक कार्यों में फारसी भाषा का प्रयोगकिया जाता था
रीजेन्सी की हुकूमत के समय अंग्रेजी का अधिक प्रचलन बढ़ने लगा
स्थानीय लोगों को फारसी भाषा का ज्ञान होने के बावजूद उन्हें सरकारी नौकरियों में नहीं लिया जाता था
इस कारण जनता के प्रबुद्ध वर्ग मे असंतोष व्याप्त हो गया
#Imp.परिणाम स्वरूप ठाकुर कल्याण सिंह, श्यामलाल वर्मा आदि के नेतृत्व में 1922में जयपुर में हिंदी को राजभाषा बनाने के लिए आंदोलनकिया गया
#Imp.जयपुर में राजनीतिक आंदोलन का प्रारंभ अर्जुन लाल सेठीद्वारा किया गया
#Imp.बाद में यह कार्य सेठ जमुनालाल बजाज द्वारा रचनात्मक कार्यमें परिवर्तित हो गया
1921 के असहयोग आंदोलन से प्रभावित होकर राज्य में सेवा समितियोंकी स्थापना हुई
#Imp.जमनालाल बजाज द्वारा 1927 में चरखा संघ की स्थापना की गई
#Imp.1931 में श्री कपूरचंद पाटनीद्वारा जयपुर राज्य प्रजामंडल की स्थापनाकी गई थी
#Imp.यह राज्य का पहला प्रजामंडल था
लेकिन सरकार द्वारा इसके कार्यों में तरह-तरह की बाधाएंउत्पन्न करने और अपेक्षित जनसहयोग व उत्साहित कार्यकर्ताओं के अभावके कारण यह अगले 5 वर्षों तक राजनीतिक दृष्टि से प्रभावी भूमिकानहीं निभा पाया
इस कारण अगले 5 वर्षों तक यह प्रजामंडल निष्क्रियबना रहा
इस दौरान इसकी संपूर्ण गतिविधियां खादी उत्पादन और प्रचार जैसेे रचनात्मक कार्यतक ही सीमित रही
यह प्रजामंडल राजनीतिक दृष्टिसे अधिक प्रभावशाली नहींरहा
#Imp.कांग्रेस के हरिपुरा प्रस्ताव के बाद जमनालाल बजाज लाल बजाज की प्रेरणा व हीरालाल शास्त्री के सक्रिय सहयोग से 1936-37जयपुर राज्य प्रजामंडल का पुनर्गठन किया गया
इस प्रजामंडल का मूल उद्देश्य उत्तरदायित्व शासन की स्थापना करना था
प्रारंभ में जयपुर के एडवोकेट श्री चिरंजीलाल मिश्रा को प्रजा मंडल का अध्यक्ष बनाया गया
श्री हीरालाल शास्त्री को महामंत्री व श्री कपूरचंद पाटनी को संयुक्त मंत्री बनाया गया
#Imp.प्रजामंडल के अन्य प्रमुख सदस्य बाबा हरिश्चंद्र, सर्व श्री हंस दी राय ,लादूराम जोशी, टीकाराम पालीवाल, पूर्णानंद जैन, हरिप्रसाद ,रामकरण जोशी, सरदार मल गोलेछा ,रूप चंद सोगानी आदि थे
इसी समय श्री हीरालाल शास्त्री ने वनस्थली में स्थापित अपनी संस्था जीवन कुटीर के माध्यम से कार्यकर्ताओं की एक अच्छी मंडली तैयार कर ली गई थी
श्री हीरा लाल शास्त्रीद्वारा तैयार की गई कार्यकर्ताओं की मंडली में गांव-गांव जाकर प्रजामंडल का संदेश पहुंचाया
नवगठित प्रजामंडल ने 1937 से अपना कार्य करना प्रारंभ कर दिया था
1938में प्रजामंडल का प्रथम अधिवेशन जयपुर में करने और सेठ जमुनालाल बजाज को इस प्रजामंडल का अध्यक्ष बनाने का निर्णय लिया गया
#Imp.1938में सेठ जमुनालाल बजाज को जयपुर प्रजामंडल का अध्यक्षबनाया गया
#Imp.जमनालाल बजाज की अध्यक्षता में जयपुर प्रजामंडल का प्रथम अधिवेशन 8 और 9 मई 1938 को जयपुर में आयोजित किया गया था
जयपुर प्रजामंडल के प्रथम अधिवेशन में श्रीमती कस्तूरबा गांधी ने भी भाग लिया था
जयपुर प्रजामंडल के प्रथम अधिवेशन में जयपुर महाराजा से उत्तरदायी शासन की मांगकी गई थी
साथ ही में 1 फरवरी को राज्य सभाए करने, जुलूस निकालने और संगठन बनाने की स्वतंत्रता राज्य नहीं देता है तो प्रजामंडल सिविल नाफरमानी करने को मजबूर होगा
सरकार ने मांगे स्वीकार करने की जगह इस प्रजामंडल को गैर कानूनी संस्था घोषितकर दिया था
जयपुर सरकार द्वारा कानून बनाकर इस प्रजामंडल को गैरकानूनी घोषित करने का मुख्य उद्देश्य
प्रजामंडल की जनता को हतोत्साहितकरना था
#Imp.श्री जमुनालाल बजाज जयपुर राज्य की सीमा में नहीं रहते थे इस कारणइस संस्था का पंजीकरण नहीं हो पाया था
#Imp.जमुनालाल बजाज सीकर के निवासीथे और उस समय यह वर्धा में रहते थे
यह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कोषाध्यक्षथे
शेखावाटी किसान सभाजो कई वर्षों से शेखावाटी के किसानों में राजनीतिक जागृति उत्पन्न कर ठिकानेदारों के अत्याचारों के विरुद्ध संघर्ष कर रही थी “1938 में श्री हीरालाल शास्त्री के प्रयासोंसे शेखावाटी किसान सभा का जयपुर प्रजामंडल में विलय कर लिया
गया
जयपुर प्रजामंडल में किसान शक्ति के व्यापक समर्थन के जुडजाने से जयपुर प्रजामंडल की शक्ति और लोकप्रियता में असाधारण वृद्धि हुई
30 मार्च 1938को सरकार ने आदेश जारी किया कि राज्य की कोई भी संस्था बिना पंजीकरण करवाएंकिसी भी तरह की गतिविधियां नहींकर सकती हैं
संस्था के पंजीकरण के लिए सरकार द्वारा ऐसी शर्तें लागू कर दी गई जिसे प्रजामंडल अपनी गतिविधियां नहींचला सकता
यही से संघर्ष की शुरुआत हुई
जयपुर राज्य में प्रशासन पर अंग्रेज अधिकारियों का नियंत्रण था
जयपुर सरकार ने जमुनालाल बजाज के जयपुर राज्य में प्रवेश पर प्रतिबंधलगा दिया था
राज्य द्वारा लगाए गए प्रतिबंध को तोड़कर 1 फरवरी 1939 को जयपुर में प्रवेश कर नागरिक अधिकारों की मांग पूरजोर शब्दोंमें रखने का निर्णय लिया
सरकार ने प्रजामंडल की मांगों पर विचार करने की वजह प्रजामंडल को अवैध घोषितकर दिया और राज्य में प्रवेश करते समय 1 फरवरी 1939 को श्री जमुनालाल बजाज को बंदी बना लिया गया और इन्हें मोरा सागर डाक बंगले में रखा गया था
वहां इन्हें पढ़ने के लिए अखबार तक नहींदिया जाता था
उन्हीं के साथ अन्य नेता श्री हीरालाल शास्त्री चिरंजीलाल अग्रवाल व कपूरचंद पाटनीभी बंदी बनाए गए
राज्य सरकार द्वारा प्रजामंडल को अवैध घोषित करने के बाद प्रजामंडल का कार्यालय आगरा स्थानांतरितकर दिया गया
5 फरवरी 1939से सरकार की दमनकारी नीति के विरोध में प्रजामंडल ने सत्याग्रह प्रारंभकिया
जयपुर में सत्याग्रह का संचालन गुलाबचंद कासलीवाल व दौलतमंद भंडारी के नेतृत्व में शुरू हुआ
राज्य में सत्याग्रह के लिए जत्थे जयपुर राज्य के बाहर से मुंबई, वर्धा ,धूलियाआदि से आए थे
#Imp.इस सत्याग्रह में स्त्रियों ने भी पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर सहयोगकिया
5 मार्च 1939को हीरालाल शास्त्री की पत्नी रतन देवी के नेतृत्व में 6महिला स्त्रियों का जत्था गिरफ्तार हुआ था
12 मार्च 1939 को हीरालाल शास्त्री (जयपुर सत्याग्रह काउंसिल के संयोजक) ने जयपुर दिवसमनाने की घोषणा की थी
जयपुर दिवस के अवसरपर जमुना लाल बजाज ने संदेश भेजा था कि हम लड़ाई के मध्य में पहुंचचुके हैं
इस सत्याग्रह में मुसलमानों ने भी प्रजामंडलका पूरा साथ दिया था
18 मार्च 1939को जयपुर में श्रीमती दुर्गा देवी के नेतृत्व में महिला सत्याग्रह के प्रथम जत्थेने गिरफ्तारी दी
अखिल भारतीय स्तर पर इस प्रश्न को गांधी जीने उठाया व जयपुर के महाराजा को समझौते के लिए चेतावनी दी
जेल में बंद प्रजामंडल के नेताओं और सरकारों के बीच औपचारिक रूप से समझौता वार्ता शुरू हुई
5 अगस्त को प्रजामंडल की कार्यकारिणी के सदस्य रिहा कर दिए गए
औपचारिक बातचीत के बाद 7 अगस्त 1939 को समझौता हुआ
जिसके तहत प्रजामंडल को सोसाइटी रजिस्ट्रेशन एक्ट के अंतर्गत पंजीयनकराना स्वीकार कर लिया गया
दूसरा सरकार ने प्रजामंडल की मूलभूत अधिकारों की मांग स्वीकार कर ली
इन सभी कारणों से गांधीजी के निर्देश से 18 मार्च 1939 को सत्याग्रह स्थगितकर दिया गया
गांधी जी द्वारा जयपुर सत्याग्रह को अचानक स्थगित करने के कारण राधा-कृष्ण बजाज और श्रीमती रतन शास्त्री दिल्ली गई दिल्ली में
उन्होंने गांधीजी को आंदोलन के बारेमें बताया गया और सत्याग्रह की स्थिति से अवगत कराया
गांधी जी ने सत्याग्रह को स्थगितकरना उचित बताते बताया और लिखित रूप में श्रीमती रतन शास्त्रीको आदेश दिया
2 अप्रैल 1940 को प्रजामंडल और जयपुर सरकार के मध्य समझौता हुआ समझौते के तहत प्रजामंडल को 2 अप्रैल 1940 को पंजीकृतकर लिया गया
इस विधिवत पंजीकृत प्रजामंडल के प्रथम अध्यक्ष श्री हीरालाल शास्त्री 1940 में बने
2 अप्रैल 1940 को जयपुर सरकार और प्रजा मंडल के बीच हुए समझौते में निम्न शर्तें रखी गई
1⃣जन-संस्था का नाम प्रजामंडल ही रहेगा
2⃣प्रजा मंडल का सदस्य जयपुर राज्य के बाहर भी किसी भी राजनीतिक संस्था का सदस्य बनसकेगा
3⃣जनता को भाषण का अधिकार होगा
4⃣प्रजामंडल का उद्देश्यराज्य में महाराजा की छत्रछाया में उत्तरदायी शासनकी स्थापना करना है
यह सभी बातें जयपुर प्रजामंडल के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि थी
इसके साथ ही जयपुर राज्य की राजनीतिक इतिहासमें एक नया अध्याय प्रारंभ हुआ
मई 1940में आपसी मतभेदों की वजह से कहीं कार्यकर्ताओं ने प्रजामंडल छोड़ दिया
चिरंजीलाल अग्रवाल की अध्यक्षता में प्रजामंडल प्रगतिशील दलनामक संगठन की स्थापना की गई
जेंटलमेन एग्रीमेंट 1942
1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के समय श्री हीरालाल शास्त्री और जयपुर के प्रधानमंत्री की मिर्जा इस्माइल से एक समझौता हुआ था
इस समझौते के तहत जयपुर में भारत छोड़ो आंदोलन नहीचलाया गया था
इस समझौते से नाराज प्रजामंडल के कुछ कार्यकर्ताओं ने अलग से आजाद मोर्चा का गठन किया और जयपुर में भारत छोड़ो आंदोलन चलाया गया
1942 में जयपुर राज्य प्रजामंडल की भूमिका विवादस्पदरही
जयपुर प्रजामंडल के अध्यक्ष श्री हीरालाल शास्त्री और जयपुर के प्रधान-मंत्री सर इस्माइल मिर्जा के संबंध अच्छेथे
इस कारण जयपुर राज्य द्वारा प्रजामंडल को उनकी मांगों के प्रति संतुष्टकर दिया गया था
जिस वजह से हीरालाल शास्त्री ने जयपुर में आंदोलन प्रारंभ करने का विचार त्याग दिया था
लेकिन इस प्रजामंडल में एक ऐसा वर्ग था जो शास्त्री जी से सहमत नहींथा
इस कारण समझोता वादी नीति के विरूद्ध हरिश्चंद्र के नेतृत्व में आंदोलन प्रारंभ कर दिया गया
इस कारण शास्त्री जी को झुकना पड़ा
16 सितंबर 1942 को जयपुर प्रजामंडल के तत्कालीन अध्यक्ष श्री हीरालाल शास्त्री जी ने जयपुर के प्रधानमंत्री सर मिर्जा इस्माइल को पत्र लिखकर कुछ शर्तेंरखी
1⃣युद्ध के लिए राज्य अंग्रेजो को जन-धन की सहायता नहीं करेगा
2⃣प्रजामंडल को राज्य में शांतिपूर्वक युद्ध विरोधी अभियान चलानेकी अनुमति होगी
3⃣राज्य द्वारा उत्तरदायी शासन देने की दृष्टि से कार्यवाही जल्दी शुरु की जाएगी
इन शर्तो की पालना न करने पर आंदोलन की चेतावनीदी गई
26 अक्टूबर 1942को जयपुर नरेश ने राज्य में संवैधानिक सुधारों के लिए विशेष समिति नियुक्त कि
समिति ने राज्य में प्रतिनिधि सभा और लेजिस्लेटिव असेंबली के गठनका सुझाव दिया
इस कारण शास्त्री जी ने महाराजा के विरुद्ध आंदोलन नहींछेड़ा थ
शास्त्री जी के इस फैसले का विरोध किया गया
यह समझौता भारत छोड़ो आंदोलन की मूल भावनाओंके विपरीत था
जिस कारण कुछ लोगों ने अलग संगठन बनाकर भारत छोड़ो आंदोलन को सक्रिय बनाये
जिससे शास्त्री जी को झुकना पड़ा और जयपुर के प्रधानमंत्री को आंदोलन की चेतावनी दी गई
आंदोलन की चेतावनी मिलते ही प्रधानमंत्री सर इस्माइल मिर्जा ने पत्र द्वारा हीरालाल शास्त्री को वार्ता हेतु आमंत्रितकिया और हीरालाल शास्त्री और सरकार के बीच प्रजामंडल की शर्तों को स्वीकार कर लिया गया
इनके बीच एक समझौता हुआ जिसे जेंटलमेन एग्रीमेंटकहा गया
लेकिन यह एग्रीमेंट एक धोखा था
#Imp.हीरालाल शास्त्री द्वारा प्रधानमंत्री सर मिर्जा को दिए गए अल्टीमेटम में एक मागं थी
वह मांग महाराजा ब्रिटिश सरकार से संबंध विच्छेदकरने किथी
लेकिन इस एग्रीमेन्ट इस मांग का कोई जिक्रनहीं था
इस प्रकार जयपुर के प्रधानमंत्री सर मिर्जा ने जयपुर प्रजामंडल को कुछ किए बिना ही निष्क्रिय कर दिया
इन सब वजह से हीरालाल शास्त्री जी की सर्वत्र आलोचना हुई
आजाद मोर्चा
#Imp.जेंटलमेन एग्रीमेंट समझौते के तहत भारत छोड़ो आंदोलन में हीरालाल शास्त्री द्वारा निष्क्रिय बने रहने के कारण और महाराजा जयपुर के विरुद्ध आंदोलन करने का विचार त्याग देने के कारण एक अलग संगठन बनाकर जयपुर में भारत छोड़ो आंदोलन
का शुभारंभ किया
इस संगठन का गठन 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के समय किया गयान
#Imp. इस संगठन का नाम आजाद मोर्चा रखा गया था
यह आन्दोलन बाबा हरिश्चंद्र के नेतृत्व में चलाया गया
आजाद मोर्चा के अन्य कार्यकर्ता➖ गुलाबचंद कासलीवाल, चंद्रशेखर , राधेश्याम ,ओम दत्त शास्त्री, मदनलाल खेतान ,चिरंजीलाल, मिश्रीलाल, मुक्तिलाल मोदी, विजय चंद जैन ,अलाबक्ष चौहान, मास्टर आनंदीलाल नाई, भवरलाल सामोदिया आदि थे
आजाद मोर्चा ने अपना आंदोलन जारी रखा
आंदोलन जारी रखने के कारण और जेंटलमेन एग्रीमेंट का उल्लंघन करने के कारण सरकार ने आजाद मोर्चा के नेताओं को गिरफ्तारकर लिया गया था
#Imp.आजाद मोर्चा के नेताओं ने हीरालाल शास्त्री पर विश्वासघात का आरोपलगाया था
#Imp.छात्राओं ने भी इस आंदोलन में अपना योगदान दिया था
वनस्थली विद्या पीठकी कुछ छात्राओं ने धरने दिये थे
#Impइनमें से एक छात्रा शांति देवी ने 5 अक्टूबर 1942 को एक सभा में जनता को संबोधित किया था
श्रीमती रतन शास्त्री ने बनस्थली विद्यापीठ के कार्यकर्ताओं और छात्रोंको आंदोलन में भाग लेने की खुली छूट दे दी थी
इस कारण कार्यकर्ताओं ने बाहर जाकर काम किया
बाहर भूमिगत रहते हुए आंदोलन का संचालन करने वालों में डॉक्टर बी केस्तकर मोहनलाल गौतम द्वारकानाथ कचरूआदि प्रमुख थे
आंदोलन में जयपुर के कॉलेज और स्कूल के विद्यार्थियों ने भी भाग लिया सर्वोदयी नेताजी सिद्धराज ढड्डाने भी इस आंदोलन के दौरान गिरफ्तारी दी थी
1942 के आंदोलन का प्रभाव कम होने के साथ ही आजाद मोर्चा के कार्यकर्ताओं को रिहाकर दिया गया
#Imp.1945 में श्री जवाहरलाल नेहरू की प्रेरणा से आजाद मोर्चा को बाबा हरिश्चंद्र ने पुनः प्रजामंडल में विलीन कर दिया
///// जी /////
🍭🍭🍭🍭जयपुर प्रजामण्डल पार्ट_2🍭🍭🍭🍭
26 अक्टूबर 1942को जयपुर महाराजा द्वारा संवैधानिक सुधार हेतु एक समिति का गठन किया गया था
इस समिति में प्रतिनिधि सभा और लेजिस्लेटिव असेंबली के गठन का सुझाव दिया गया था
इस समिति ने 2 अप्रैल 1943 को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की
1⃣जिसके तहत एक विधानसभा
2⃣एक प्रतिनिधि सभा की स्थापना करने
3⃣कार्यपालिका में कम से कम आधे मंत्री जनता द्वारा निर्वाचित विधानसभा से लेने की सिफारिश की गई
1944 के जयपुर प्रजामंडल के अधिवेशन की अध्यक्षता जानकी देवी बजाज ने की थी
जिसमें 1 जून 1944को जयपुर राज्य में उत्तरदायी सरकार की स्थापना के लिए संवैधानिक सुधारों की घोषणा के तहत जयपुर राज्य सरकार अधिनियम पास हुआ
जिसके तहत 1945 में विधानसभा और प्रतिनिधि सभा के निर्वाचन हुए
इस निर्वाचन में जयपुर प्रजामंडल ने भी भागलिया था लेकिन विशेष सफलता प्राप्त नहीं होती
सितंबर 1945 में नए व्यवस्थापक मंडल का गठन हुआ
#imp.मार्च 1946 में टीकाराम पालीवाल ने विधानसभा में राज्य में उत्तरदायी शासन की स्थापना संबंधी प्रस्ताव प्रस्तुत किया जिसे स्वीकृत कर लिया गया
#imp.1946 में राज्य में विधानसभा और विधान परिषद की स्थापना हुई
#imp.प्रजा मंडल के सदस्य श्री देवी शंकर तिवारी व श्री दौलत राम भंडारी को 15 मई 1946 को राज्य मंत्रिमंडल में लिया गया
#imp.इस प्रकार जयपुर राज्य राजस्थान का पहला राज्य बन गया जिसमें अपने मंत्रिमंडल में गैरसरकारी मंत्री की नियुक्ति की थी
मार्च 1946 में जयपुर धारासभा में स्वीकृत उत्तरदायी सरकार संबंधी प्रस्तावका ध्यान रखते हुए राज्य का संशोधित विधान तैयार करने के लिए 14 मई 1947 को एक समिति नियुक्त की गई
जयपुर सरकार और प्रजा मंडल के मध्य संवैधानिक सुधारों संबंधी 3 महीने बाद एक समझौता हुआ
राज्य में इस समझौते के तहत राज्य में उत्तरदायी शासन की स्थापना का निश्चय हुआ
1 मार्च 1948को जयपुर के प्रधानमंत्री वी.टी. कृष्णामाचारी में संवैधानिक सुधारों की घोषणाकी
इसमें यह निश्चय कियागया कि मंत्रीमंडल को विकसित किया जाएगा और प्रधानमंत्री को छोड़कर शेष सभी मंत्री धारा सभा के समस्त दलो में से लिए जायेंगे
प्रधानमंत्री को दीवान मुख्यमंत्री को मुख्य सचिव और मंत्रियों को सचिव कहा जाएगा
अब मंत्रिमंडल में एक दीवान एक मुख्य सचिव और पांच सचिव होंगे
यह सब वर्तमान विधान के अधीन एक उत्तरदायी मंत्रिमंडल की भांति मिलकर कार्य करेंगे
#imp.28 मार्च 1948 को महाराजा ने वी.टी. कृष्णाचार्य को दीवान नियुक्तकिया हीरालाल शास्त्री को मुख्य सचिव बनाया गया
देवी शंकर तिवारी ,दौलतमल भंडारी, और टीकाराम को प्रजा मंडल की ओर से सचिवबनाए गए
गीजगढ़ के ठाकुर कुशल सिंह और अजय राजपुरा के मेजर जनरल रावल अमरसिह को जागीरदारों का प्रतिनिधिकरने वाले सचिव थे
वृहद राजस्थान का निर्माण होने तक यही लोकप्रिय मंत्रीमंडल बना रहा
🌻📚जयपुर प्रजामंडल से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य📚🌻
#imp.मार्च 1945 में नया मंत्रीमंडल बना था परंतु उत्तरदायी सरकार की स्थापना 30 मार्च 1949 को ही हो सकी थी
#imp.5 अप्रैल 1931को जयपुर में मोतीलाल दिवसमनाया गया था
1931 के जयपुर प्रजामंडल के प्रथम अधिवेशन के अवसर पर श्रीमती कस्तूरबा गांधी जयपुर आए और उन्होंने प्रजा मंडल के अधिवेशन के बाद नाथमल जी के कटले में स्त्रियों की एक विशेष सभाको संबोधित किया था
हीरालाल शास्त्री ने प्रत्यक्ष जीवनशास्त्र कृती भी लिखी थी
दौलतमंद भंडारी व ठाकुर कुशल सिंह (गीजगढ़) लोकप्रिय मंत्रीबने
1946 में प्रजामंडल अखिल भारतीय लोग परिषद का अंग बन गया और यह जयपुर जिला कांग्रेस के नाम से अभिभूतहो गया
#imp.राजस्थान में चरखा संघकी स्थापना 1925 में अजमेरमें हुई थी
#imp.जिसे 1927 में जमनालाल बजाज ने जयपुर में स्थापित कर खादी के माध्यम से जनचेतना फैलाने का प्रयास किया
#imp.जयपुर प्रजामंडल के अध्यक्ष हीरा लाल शास्त्री ने जयपुर प्रजामंडल को भारत छोड़ो आंदोलन से पूर्णतया अलग रखा था
1938-39 में राजस्थान के अन्य भागों की तरह जयपुर राज्य में भी अकाल पड़ा था
प्रजा मंडल के अध्यक्ष श्री बजाज ने 1 नवंबर 1938 को एक विज्ञप्तिजारी कर प्रजा मंडल के कार्यकर्ताओंसे अपील की थी कि यह सब अपनी प्रवृतियां त्याग कर राज्य में अकाल राहत कार्यमें लग जाएं
जमनालाल बजाज के राज्य में प्रवेश पर प्रतिबंध लगाने पर जमुनालाल बजाज जयपुर राज्य में प्रवेश करने के लिए 29 दिसंबर को सवाई माधोपुर स्टेशन पहुंचे थे
जहां आईजी पुलिस एफ. एस .यंग की उपस्थिति में उन्हें बताया गया कि उनके राज्य प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया गया है
जब यह खबर जयपुर पहुंची तो प्रजा मंडल का एक प्रतिनिधिमंडल श्री हीरालाल शास्त्री के नेतृत्व में बारदोली गांधीजी से मिलने गए थे
गांधी जी ने सलाह दी थी कि प्रजा मंडल को राज्य से बोलने ,लिखने और संगठन बनाने के मूलभूत नागरिक अधिकारोंकी मांग करनी चाहिए
#imp.11 फरवरी 1939 को जयपुर राज्य में प्रवेश करते हुए जमनालाल बजाज को बैराट के निकट गिरफ्तारकर लिया गया
फरवरी 1942 में जमनालाल बजाजका देहांत हो गया था
जयपुर प्रजामंडल 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय रुप से भाग नहींलेने वाला प्रजामंडल था
राजकीय सेवा के प्रस्ताव को ठुकराते हुए स्वतंत्रता प्रेमी अर्जुन लाल सेठीने कहा “”🌸यदि अर्जुन लाल राज्य सेवा करेगा तो अंग्रेजो को देश से बाहर निकाल फेंकने का काम कौन करेगा
होनहार बिरवान के होत चिकने पात यह कहावत श्री अर्जुन लाल सेठी की राजनीतिक जीवनमें पूरी खरी उतरती है
अर्जुन लाल सेठी का श्री रासबिहारी बोस उनके साथी सचिंद्र सान्याल और मास्टर अमीरचंद से गहरे सम्बंध थे
: इन क्रांतिकारियों ने अंग्रेजी सत्ता को उखाड़ फेंकने के लिए भारत भर में हिसंक-क्रांतिकी योजना बनाई थी
राजस्थान में इस क्रांति के आयोजन का भार शाहपूरा के श्री केसरी सिंह बारहठ, खरवा ठाकुर गोपाल सिंह, ब्यावर के सेठ दामोदर दास राठी और जयपुर के सेठी जी पर छोड़ा गया था
सेठी जी की जिम्मेदारी नवयुवकों को वर्धमान विद्यालय में समुचित प्रशिक्षण देकर भावी क्रांतिके लिए तैयार करना था
श्री केसरी सिंह बारहठ के पुत्र प्रताप सिंह, शोलापुर के श्रीमाणकचंद और श्री मोतीचंद एवं मिर्जापुर के श्री विष्णु दत्तने अर्जुन लाल सेठी के वर्धमान विद्यालय में ही क्रांति का प्रशिक्षण प्राप्त किया था
देश मैं सशस्त्र क्रांति के आयोजन के लिए धन की आवश्यकता थी
क्रांतिकारियों ने इसके लिए देश के धनी लोगों पर डाका डालनाशुरू किया
#imp.विष्णु दत्त के नेतृत्व में वर्धमान विद्यालय की 4 विद्यार्थियों ने बिहार के आरा जिलेमें नीमेज के एक जैन महंत पर डाका डाला महंत मारा गया लेकिन धन हाथ नहीं लगा
इस कांड का जब भेद खुला तो इसमें अर्जुन लाल सेठी का नाम भी आया
सबूतों के अभाव में इनका अदालत में चालान नहीं हो सका लेकिन इन्हें जयपुर में नजर बंद करदिया गया था
#imp.वहां से यह मद्रास प्रेसिडेंसी के वेलूर जेल में चले गए थे
#imp. यहा इनको 7 वर्ष तक कैदरखा और 1920में रिहा किया गया
#imp.जेल से रिहा होकर लौटते हुए पुणे में स्वागतकिया गया
#imp.इस अवसर पर बाल गंगाधर तिलक ने अर्जुन लाल सेठी के लिए कहा कि “”🌸आप जैसे त्यागी देशभक्त और महान तपस्वी का स्वागत करते हुए अपने को धन्य”” समझता हूं
वैलूर जेल से मुक्त होने के बाद सेठी जी ने अजमेर को अपनी कर्मभूमि बनाया
#imp.यहां यह 1921 के सविनय अवज्ञा आंदोलन में जेलगए थे इन्हें सागर जेल में रखा गया था
#imp.अर्जुन लाल सेठी का अधिकतर जीवन हिंदू मुस्लिम एकता स्थापित करने में बीता था
#imp.उन्होंने अजमेरमें हुए सांप्रदायिक दंगों में अल्पसंख्यकों की रक्षा हेतु कई बार जान की बाजीलगा दी थी
#imp.23 दिसंबर 1945 को उनकी मृत्यु हो गई और उनकी इच्छा अनुसार उन्हें कब्र में दफनाया गया
#imp.अर्जुन लाल सेठी धर्मनिरपेक्षता के सबसे बड़े उदाहरणहै
अर्जून लाल सेठी द्वारा जयपुर की धरती पर जागृति की अलख जगाई गई थी
पर अजमेर को अपना घर बनालेने से जयपुर में राजनीतिक गतिविधियां लगभग निष्क्रियहो गई थी
: ☘मेवाड़ प्रजामंडल आंदोलन☘पार्ट_1
#Imp.राजस्थान में सर्वाधिक प्रतिष्ठित राज्य मेवाड़का था
यहां जन जागरण की पृष्ठभूमि किसान आंदोलन व जनजातिय आंदोलनसे बनी थी
#Imp.उदयपुर में प्रजामंडल आंदोलन की स्थापना का श्रेय माणिक्य लाल वर्माको दिया जाता है
#Imp.बिजोलिया किसान आंदोलन में भाग लेने के कारण माणिक्य लाल वर्मा को उदयपुर राज्य से निष्कासित कर दिया गया था
माणिक्य लाल वर्मा ने अजमेर में रहते हुए मेवाड़ प्रजामंडल स्थापित करने की योजना बनाई
इन्होंने कुछ पर्चे, प्रजामंडल के गीत और मेवाड़ राज्य का शासन नाम से एक पुस्तिकाछपवाई थी
मेवाड़ में संगठित राजनीतिक आंदोलन की शुरुआत 1938में श्री माणिक्य लाल वर्माद्वारा की गई
जो उस समय डूंगरपुर में भीलों के लिए रचनात्मक कार्यकर रहे थे
#Imp.हरिपुरा कांग्रेस अधिवेशन की घोषणा के पश्चात श्री माणिक्य लाल वर्मा डूंगरपुर का कार्य श्री भोगीलाल पांडेय को सौंपकर मेवाड़ लौट आए थे
कांग्रेस के हरिपुरा अधिवेशन के पश्चात माणिक्य लाल वर्मा ने बलवंत राय मेहता, भवानी शंकर वैद्य, जमुनालाल वैद्य ,परसराम ,भूरेलाल बया और दयाशंकर क्षोत्रीयके साथ मिलकर 24 अप्रैल 1938 को मेवाड़ प्रजामंडल की स्थापना गई
#Imp.इस संस्था का प्रथम सभापति बलवंत सिंह मेहता और उपसभापति भूरेलाल बयां को बनाया गया
माणिक्य लाल वर्मा को इसका का महामंत्री नियुक्त किया गया
इस संस्था का प्रमुख उद्देश्य 1-जनता के अधिकारों को संवैधानिक सुधारोंकी मांग करना था 2-प्रजा की आर्थिक कष्टों को दूरकरने का प्रयास करना था
मेवाड़ प्रजामंडल का विधान बलवंत सिंह मेहता वह प्रेम नारायण माथुर द्वारा तैयार किया गया था
प्रजामंडल की स्थापना के समाचारों से मेवाड़ की जनता में अभूतपूर्व उत्साह का संचार हुआ लेकिन जैसे ही मेवाड़ सरकार को इसकी सूचना मिली
राज्य द्वारा प्रजामंडल की स्थापना हेतु राज्य से स्वीकृतिप्राप्त करने हेतु कहा गया
इसे प्रजामंडल द्वारा अस्वीकार कर दिया गया
फलस्वरुप 24 सितंबर 1938 को उदयपुर राज्य के तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री धर्म नारायण ने इस संस्था को गैरकानूनी घोषितकर दिया गया
उदयपुर सरकार ने माणिक्य लाल वर्मा को मेवाड़ से निष्कासित कर दिया था
सरकार ने आदेश दिया कि बिना सरकार की आज्ञा के सभा, समारोह करने ,संस्था बनाने और जूलुस निकालनेपर प्रतिबंध लगा दिया गया है
मेवाड़ प्रजामंडल को जिस दिन गैरकानूनी घोषितकिया गया था
उसी दिन नाथद्वारा में निषेधाज्ञा के बावजूद कार्यकर्ताओं द्वारा विशाल जुलूस निकाला गया था
माणिक्य लाल वर्मा उदयपुर से निष्कासित होकर अजमेर आ गए और वहां पर उन्होंने प्रेस के माध्यम से प्रजामंडल आंदोलन का प्रचार किया
उदयपुर से निष्कासित होने से पहले ही शंकर सहाय सक्सेना के द्वारा मेवाड प्रजामंडल का समस्त रिकार्ड गुप्त रुप से अजमेरभिजवा चुके थे
#Imp.माणिक्य लाल वर्मा ने अजमेर से मेवाड़ का वर्तमान शासन नामक एक छोटी सी पुस्तिका प्रकाशित की थी
इस पुस्तिका के प्रकाशन से राज्य सरकार अत्यंत क्रुद्धहुई 😤
माणिक्य लाल वर्मा लगातार मेवाड प्रजामंडल से प्रतिबंध हटाने की मांग करते रहे
#Imp.मेवाड़ राज्य के बाहर रहने वाले मेवाड़ीयोंने मेवाड़ प्रजामंडल की चार शाखाएं मुंबई नागपुर जलगांव और अकोलामें स्थापित की थी
प्रजामंडल कार्यकर्ताओं ने उदयपुर सरकार को अल्टीमेटम दिया कि अगर 4 अक्टूबर 1938तक प्रजामंडल से प्रतिबंध नहींहटाया गया तो सत्याग्रह प्रारंभ कर दिया जाएगा
इसके साथ ही प्रजामंडल को कानूनी संस्था माना जाए और माणिक्य लाल वर्मा को पुन:उदयपुर में प्रवेश दिया जाए
लेकिन मेवाड़ शासन के असहयोगी रवैये के कारणयह निर्णय लिया गया कि
महात्मा गांधी के आशीर्वाद से 4 अक्टूबर 1938 को विजयदशमी के दिन सत्याग्रहप्रारंभ कर दिया जाएगा
महात्मा गांधी जी से आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए श्री भूरेलाल बयांको भेजा गया था
भूरेलाल बयां को दिल्ली से लौटते समय उदयपुर स्टेशन पर गिरफ्तार कर लिया गया
भूरेलाल बयां को सराड़ा के किले में नजर बंदकर दिया गया
सराडा के किले को मेवाड़ का काला पानीकहा जाता है
विजयादशमी के दिन 4 अक्टूबर 1938 को मेवाड़ प्रजामंडल द्वारा व्यक्तिगत सत्याग्रह प्रारंभ किया गया
जिसके पहले सत्याग्रही श्री रमेश चंद्र व्यास थे
सत्याग्रहियों पर पुलिस दमन चक्रप्रारंभ हो गया
इसकी परवाह किए बिना सत्याग्रहीयो ने जगह-जगह जुलूस निकाले ,आमसभाए,और सरकार की आलोचना की गयी
#Imp.इस सत्याग्रह में जो महिलाएं जेल गई थी उनमें प्रमुख महिलाएं श्री माणिक्य लाल वर्मा की पत्नी श्रीमती नारायणी देवी वर्मा, उनकी पुत्री श्रीमती स्नेह लता वर्मा, श्रीमती भगवती देवी विश्नोई और श्रीमती रमा देवी ओझाथी
24 जनवरी 1939 को माणिक्य लाल वर्मा की पत्नी नारायणी देवी, उनकी पुत्री स्नेहलता वर्मा,और प्यार चंद बिश्नोई की पत्नी भगवती देवी को मेवाड़ प्रजामंडल के आंदोलन में भाग लेने के कारण राज्य से निष्कासितकर दिया गया था
Impमाणिक्य लाल वर्मा की पत्नी उदयपुर से निष्काषित होने के बाद अजमेर चलीगई
वे मेवाड़ प्रजामंडल की आर्थिक स्थिति सुधार कर रचनात्मक कार्यआरंभ करना चाहते थे
सर्वप्रथम उन्होंने गणपत लाल वर्मा के साथ मिलकर प्रत्येक गांव से दो से तीन प्रमुख व्यक्ति बुला कर चंदा इकट्ठाकरना प्रारंभ किया गया
दयाशंकर क्षोत्रीय ने वर्धा आश्रम से चंद्रकांता कुमारी को उदयपुर आ कर उनकी पत्नी कमला देवी के साथ रचनात्मक कार्य करनेके लिए आमंत्रित किया
प्यार चंद बिश्नोई की पत्नी भगवती देवी और रमेश चंद्र की पत्नी रमा देवी ने भी प्रजामंडल की रचनात्मक कार्यमें सहयोग किया
प्रजा मंडल के कार्यकर्ताओं ने डूंगरपुर सेवा संघ के भेरु लाल वर्माको मेंवाड मे रचनात्मक कार्यकरने के लिए आमंत्रित किया
माणिक्य लाल वर्मा को 2 फरवरी 1939 को उदयपुर सीमा के पास देवली के निकट ऊँजा गांवसे धोखे से घसीटकर गिरफ्तार कर लिया गया और उनकी पिटाईकी गई
वर्मा जी पर देशद्रोह का मुकदमा चलाया गया
जिसमें उंहें 2 वर्ष की सजा सुनाकर कुंभलगढ़ के किले में बंद कर दिया गया
इस आंदोलन का सर्वाधिक जोर नाथद्वारामें रहा
Impवहां पर नरेंद्र पाल सिंह और नारायण दास को गिरफ्तारकर लिया गया था
वर्मा जी को गिरफ्तार कर पीटनेकी घटना की गांधी जी ने फरवरी 1939 के हरिजन अंक में कड़ी भत्सर्नाकी थी
इसी वर्ष मेवाड़ में भयंकर अकाल पड़ने के कारण प्रजामंडल ने गांधीजी के आदेश पर 3 मार्च 1939 को सत्याग्रह स्थगितकर दिया गया
मेवाड़ में अकाल पड़ने के कारण प्रजा मंडल के कार्यकर्ताओं ने अकाल सेवा समिति की स्थापना की और अभूतपूर्व कार्यकिए
वर्मा जी के स्वास्थ्य से चिंतित होकर जवाहर लाल नेहरू ने मेवाड सरकार को पत्रलिखा और 8 जनवरी 1940 को माणिक्य लाल वर्मा को जेल से रिहाकिया गया
माणिक्य लाल वर्मा ने प्रजा मंडल के कार्यकर्ताओं के साथ मिल कर बेगार और बलेठा प्रथा के विरुद्ध अभियानचलाया
फलस्वरुप मेवाड़ सरकार को विवश होकर इन दोनों प्रथाओ पर रोक लगानीपड़ी
यह मेवाड़ प्रजामंडल की पहली नैतिक विजय थी
6अप्रैल से 13 अप्रैल 1940 के बीच जलियांवाला बाग कांड की जयंती के अवसर पर मेवाड़ में राष्ट्रीय सप्ताहमनाया गया
इस राष्ट्रीय सप्ताहमें प्रतिदिन सभाए होती थी
जिसमें बहुत बड़ी संख्या में लोग मौजूद रहते थे
इस सभा में खादी-प्रचारकिया जाता था
इस समारोह में महिलाओं ,लड़कियों ने भी उत्साह से भाग लिया
वर्ष 1940 में गांधी जयंती समारोह 15 दिनोंतक चला
29 सितंबर 1940 को भीलवाड़ा में मिडिल स्कूल के हेडमास्टर की पत्नी सुभद्रा देवी की अध्यक्षतामें एक सभा हुई
जिसमें कृष्णा कुमारी ,निर्मला और कमला कुमारी चौधरीने भाषण दिया
सुभद्रा देवी ने अपने भाषण में महिला शिक्षा और स्वदेशी के प्रयोगपर बल दिया
प्रजामंडल मेवाड सरकार से निरंतर प्रतिबंध हटाने की मांग कर रहा था
मेवाड़ सरकार के प्रधानमंत्री दीवान धर्मनारायण के स्थान पर सर टी विजय राघवाचार्य 1940 में मेवाड़ सरकार के दीवाननियुक्त हुए जो प्रगतिशील विचारोंके थे
मेवाड़ के नए प्रधानमंत्री श्री टी विजय राघवाचार्यके सहयोगी दृष्टिकोण के कारण महाराजा के जन्मदिन के अवसर पर 22 फरवरी 1941 को प्रजामंडल से प्रतिबंध हटा दिया गया
यह मेवाड़ प्रजामंडल की पहली जीतथी
सरकार ने अपेक्षा कि शीघ्र ही प्रजामंडल का पंजीकरणकरा लिया जाएगा
प्रतिबंध हटते ही नवम्बर 1941 में मेवाड़ प्रजामंडल का प्रथम अधिवेशन माणिक्य लाल वर्मा की अध्यक्षता में उदयपुर में शाहपुरा हवेली में हुआ
इस अधिवेशन में कांग्रेस के दो बड़े नेताओंने भाग लिया
इस अधिवेशन का उद्घाटन आचार्य जे बी कृपलानी ने किया और श्रीमती विजय लक्ष्मी पंडित ने इस अधिवेशन में भाग लिया
इस अवसर पर खादी और ग्रामोद्योग प्रदर्शनी का उद्घाटन श्रीमती विजय लक्ष्मी पंडित ने किया था
इस अधिवेशन में मेवाड़ में उत्तरदायी शासन की स्थापना और जनता द्वारा चुनी गई विधानसभास्थापित करने की मांग की गई
इस अवसर पर मेवाड़ की राजनैतिक क्षितिज पर एक नया सितारा मोहनलाल सुखाडया के रूपमें सामने आया
जिसने बाद में राजस्थान की राजनैतिक क्षेत्र में अपना अमूल्य योगदान दिया
इस अधिवेशन में हरिजनों की सेवा के लिए मेवाड़ हरिजन सेवक संघ की स्थापना की गई
हरिजन सेवक संघ का कार्यभार फरवरी 1942 में ठक्कर बाबा ने मोहनलाल सुखाड़िया को सौंपा गया
भील मीणा व आदिवासी की सेवा का कार्य बलवंत सिंह मेहताको दिया गया
माणिक्य लाल वर्मा ने मेवाड़ प्रजामंडल के प्रतिनिधि के रूप में अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के 7 अगस्त 1942 के मुंबई के ऐतिहासिक सत्र में भाग लिया
यह अधिवेशन रियासती कार्यकर्ताओं की बैठकका था
इस समय महात्मा गांधी का भारत छोड़ो आंदोलन 1942 सारे देश में फैला हुआ था
मेवाड़ राज्य प्रजामंडल ने भी कांग्रेस द्वारा 9 अगस्त 194 को शुरू किए गए भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय रुप से भाग लिया
उदयपुर आते ही माणिक्य लाल वर्मा ने 20 अगस्त 1942 को महाराणा को ब्रिटिश सरकार से संबंध विच्छेद करने के लिए पत्र भेजा
महाराणा ब्रिटिश सरकार से संबंध विच्छेद नहींकरता है तो आंदोलन प्रारंभ करनेकी धमकी दी गई
21 अगस्त को वर्मा जी को गिरफ्तार कर लिया गया
राजधानी में पूर्ण हड़ताल के साथ ही राज्य में आंदोलन प्रारंभ हो गया
इस आंदोलन के प्रमुख केंद्र उदयपुर नाथद्वारा चित्तौड़ और भीलवाड़ा थे
1942 का यह आंदोलन राजस्थान के अन्य भागों में चल रहे आंदोलन से अलगथा
यहां के नेता इस आंदोलन को अखिल भारतीय स्तर पर चल रहे आंदोलन का भागमानते थे
मेवाड सरकार ने 23 अगस्त 1942को प्रजामण्डल पर प्रतिबंध लगा दिया
Imp 2 सितंबर 1942 को कानोड निवासी वीरभद्र जोशी और रोशन लालने उदयपुर उच्च न्यायालय की बालकोनी मे तिरंगा झंडाफहराया
सरकारी दमन प्रारंभ हो गया बहुत बड़ी संख्या में सत्याग्रह गिरफ्तार कर लिए गए
माणिक्य लाल वर्मा की पत्नी नारायणी देवी अपने छह माह के पुत्र दिनबंधुको अपने साथ लेकर जेल गई
उनकी बड़ी पुत्री सुशीला और प्यार चंद बिश्नोई की पत्नी भगवतीने भी अपनी गिरफ्तारी दी
छात्र वर्ग भी अपना उत्तरदायित्व जानता था
लगभग 600 छात्रों को आंदोलन में भाग लेने के कारण गिरफ्तार कर लिया गया
एक छात्र शिवचरण माथुर (जो बाद में राजस्थान के मुख्यमंत्री भी रहे) ने उन दिनों अपने साथियों के साथ गुना कोटा के बीच एक रेलवे पुल उड़ा दिया था
मेवाड़ प्रजामंडल को गैरकानूनी घोषित कर दिया गया
मोहनलाल सुखाड़िया माणिक्य लाल वर्मा की गिरफ्तारीके बाद नाथद्वारा में भी हड़ताल हुई
मेवाड सरकार येन-केन-प्रकारेण आंदोलन को कुचल देना चाहती थी
ग्वालियर महाराजाने कुछ समय पहले ही उत्तरदायी शासन की स्थापना का आश्वासन देकर आंदोलन शांत कर दिया था
मेवाड़ के चतुर और अनुभवी दीवान सर टी.विजय राघवाचार्य भी इसी युक्ति से मेवाड़ प्रजामंडल को पंगु बना देना चाहते थे लेकिन सफल नहीं हुए
मेवाड़ में प्रधानमंत्री सर tv विजय राघवाचार्य को यह अफसोस था कि जयपुर और ग्वालियर की तरह मेवाड़ में इस आंदोलन को रोकानहीं जा सकता था
1943 में उनके निमंत्रण पर श्री राजगोपालाचारी उदयपुर आए इसके बाद भी वर्मा जी को जेलसे रिहा किया गया
#Imp.राजगोपालाचारी ने वर्मा जी से उत्तरदायी शासन स्थापित करने के एवज में भारत छोड़ो आंदोलन को वापसलेने को कहा
वर्मा जी ने इस शर्त को अस्वीकारकर दिया था
जब भारत के अन्य भागों में भारत छोड़ो आंदोलन समाप्तहो गया तो मेवाड़ सरकार ने धीरे-धीरे प्रजामंडल के कार्यकर्ताओं को रिहा कर दिया
21 नवंबर 1943 को 3000 भीलो ने नांदेश्वर महादेव के मंदिर में एकत्र होकर जंगलात के नियमों के उल्लंघन की शपथ ली
प्रजामंडल ने भील सेवा कार्य भील छात्रावासअादि कार्यों को पुन्: प्रारंभ किया
ठक्कर बापा की सलाह से उचित योजना बनाकर मेवाड़ हरिजन सेवक संघ के कार्य को पुनर्गठित कर वहां गृह उद्योगों का विकास किया गया
///// जी /////
☘मेवाड़ प्रजामण्डल☘ पार्ट__2
: भारतीय राजनीति का परिदृश्य बदलने पर प्रजामंडल नेताओं को छोड़दिया गया
Imp1945 में प्रजामंडल पर लगा प्रतिबंध हटादिया गया
राजनीतिक चेतना को विकसित करने के लिए प्रभातफेरियां और राष्ट्रीय नेताओं की जयंती मनाई जाने लगी
31दिसंबर 1945 और 1 जनवरी 1946 को उदयपुर के सलोटिया मैदान में अखिल भारतीय देशी लोक सेवा परिषदका छठा अधिवेशन पंडित जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में किया गया
इस अधिवेशन में शेर-ए-कश्मीर शेख अब्दुल्ला समेत अनेक रियासतों के नेता शामिल हुए
Imp इस सम्मेलन में देशी रियासतों की 435 प्रतिनिधियों ने भाग लिया
जिसमें प्रस्ताव पारित कर देशी रियासतों के शासको से बदलती राजनीतिक परिस्थितियों के अनुरुप अविलम्ब उत्तरदायी शासन की स्थापना करवाना था
Impयह पहला अधिवेशन था जो किसी रियासत में हुआ और जिसे राज्य की तरफ से सुविधाएं प्रदान की गई
Impइसी अधिवेशन के दौरान श्री मोहनलाल सुखाड़िया जैसे व्यक्तित्वका उदय हुआ था
इस सम्मेलन से रियासतों में अभूतपूर्व जागृति आयी
इसी संदर्भ में मेवाड सरकार ने विधान निर्मात्री समिति का निर्माण किया
इस समिति में प्रजा मंडल के सदस्य भी शामिल किए गए
मेवाड़ सरकार के द्वारा 8 मई 1946 को ठाकुर गोपाल सिंह की अध्यक्षता में सविधान निर्मात्री समिति का गठन किया गया
जिसमें प्रजा मंडल के पांच सदस्य शामिल किए गए
समिति ने 29 सितंबर 1946 को राज्य में उत्तरदायी शासन की स्थापना और शासन जनता की निर्वाचित प्रतिनिधियों को सौपनेऔर एक 50 सदस्य सविधान सभा का गठन करने का सुझाव दिया गया
परंतु इस सुझाव को सरकार ने समिति की रिपोर्ट अस्वीकार कर दी गई
बदलती हुई परिस्थितियोंको देखकर महाराणा ने अक्टूबर 1946 में मेवाड़ प्रजामंडल के सदस्य मोहनलाल सुखाड़िया और हीरालाल कोठारी को कार्यकारी परिषद का सदस्य नियुक्त किया और शीघ्र ही संवैधानिक सुधार करनेका आश्वासन दिया
16 फरवरी 1947 को महाराणा ने अपने जन्मदिवस पर घोषणा की कि वे शीघ्र ही राज्य में विधान सभा की स्थापना करेंगे और जनता के प्रतिनिधियों को सरकार में शामिल करेंगे
2मार्च 1947 को मेवाड़ के भावी सविधान की रूपरेखा की घोषणा की गई
इसके अनुसार 46 सदस्य की धारा सभा में 18 स्थान विशिष्ट वर्गों हेतु सुरक्षित रखे गए हैं
सिर्फ 28 स्थान सयुक्त चुनाव प्रणाली द्वारा जनता से चुने जाएंगे
इनमे से कुछ सदस्य की विधानसभा की स्थापनाकी जानी थी और राज्य के लिए कानून का निर्माण करती
महाराणा द्वारा किए गए सुधार अपूर्णथे और जन आकांक्षाओंके अनुरूप नहीं थे
इस कारण प्रजामंडल ने इन सुधारों को ठुकरा दिया
इसी बीच प्रधानमंत्री विजय राघवाचार्य राज दरबार के षडयंत्रों का शिकार हो गए
जिन्होंने मार्च 1947 में इस्तीफा देकर यहां से चले गए
राघवाचार्य के स्थान पर बेदला ठाकुर राव मनोहर सिंहराज्य के नए प्रधानमंत्री बने
उनके परामर्श से महाराणा ने के.एम. मुंशी को उदयपुर राज्य का वैधानिक सलाहकार नियुक्त किया
मुंशी ने सुधारों की एक नई योजना प्रस्तुत की
जिसकी महाराणा ने 23 मई 1947 को जनता के समक्ष घोषणा की
: इस सुधार को प्रताप जयंती के अवसर पर राज्य में लागू किया गया
इस योजना में 56 सदस्य विधान सभा के गठन का प्रावधान था
इसमे कुछ विषयों को छोड़कर शेष पर कानून बनानेका अधिकार था और राज्य में प्रथम विश्व विद्यालय की स्थापनाका प्रावधान था
महाराणा में संविधान लागू करने के साथ ही विधान सभा के चुनाव तक प्रजामंडल के 2 प्रतिनिधियों को मंत्रिमंडल में लेने की घोषणा की थी
इस कारण श्री मोहनलाल सुखाड़िया व श्री हीरालाल कोठारी को मंत्री पद की शपथ दिलाई गई थी
मेवाड़ प्रजामंडल ने मुंशी योजना को जन विरोधी बताते हुए अस्वीकार कर दिया
क्योंकि इसमें जागीरदारों और पूंजी पतियों को अधिक प्रतिनिधित्व प्रदान किया गया
इस योजना में संशोधन की मांग की गई
मेवाड़ में नए दीवान एसपी राममूर्तिकी नियुक्ति के बाद उनके परामर्श से महाराणा ने मोहन सिंह मेहता को मुंशी संविधान में संशोधन करने हेतु नियुक्तकिया
11 अक्टूबर 1947को संशोधन प्रस्तुत किए गए इसके पश्चात मेवाड़ प्रजामंडल के विधानसभा चुनाव में भाग लेने का निश्चय किया गया
मई 1947 से फरवरी 1948 के मंत्रिमंडल में प्रजामंडल के केवल दो ही सदस्य रहे
फरवरी 1948 में विधानसभा के चुनावों की प्रक्रियाशुरु हुई
जिसमें प्रजा मंडल के 8 उम्मीदवार निर्विरोधनिर्वाचित हुए
6 मई 1948को महाराणा ने अंतिम सरकार बनाने और विधानसभा निर्वाचन के बाद उत्तरदायी सरकार का गठन करने की घोषणा की
इसी दौरान 18 अप्रैल 1948 को उदयपुर राज्य का राजस्थान में विलय हो गया
उदयपुर का राजस्थान में विलय होने के कारण यह योजना लागू नहींहो सकती
इस प्रकार मेवाड़ प्रजामंडल के प्रयासों के आगे वहॉ की सरकार को झुकना पड़ा
धीरे धीरे उत्तरदायी शासन की स्थापना के कदम उठाने पडे
☘मेवाड़ प्रजामंडल से संबंधित तथ्य☘
11 अक्टूबर 1938को नाथद्वारा से सविनय अवज्ञा आंदोलनप्रारंभ किया जिसे
महात्मा गांधी के परामर्श से 3 मार्च 1939 को यह आन्दोलन स्थगित किया
मेवाड़ प्रजामंडल द्वारा भील मजदूरों के बच्चों की शिक्षा के लिए फरवरी 1945 में भीलवाड़ा जिले के गोपालगंज में विद्यालय प्रारंभ किया गया था
इस विद्यालय के प्रधानाध्यापक श्री रमेश चंद्र व्यास को नियुक्त किया गया था
Impमेवाड़ में भीम सिंह के बाद जवान सिंह, सरदार सिंह ,स्वरूप सिंह ,शंभू सिंह, सज्जन सिंह, फतेह सिंह व भोपालसिह शासक बने थे
इन सभी शासकों में सरदार सिह , स्वरूप सिंह ,सज्जन सिंह और शंभू सिंह को बागौर (भीलवाड़ा) से गोद लिया गया था
शंभू सिंह ने इतिहास विभाग की स्थापना करी थी
श्यामलदास को मेवाड़ का इतिहास लिखनेका कार्य सौंपा गया था
क्योंकि शम्भूसिह की मृत्युके कारण यह कार्य नहीं हो सका था
सज्जन सिंह ने भी श्यामलदास को यह कार्य सौंपाथा
इस कारण उसने वीरविनोद ग्रंथ की रचनाकी थी
Impसज्जन सिंह ने श्यामलदास को कविराजाऔर मेवाड़ के पॉलिटिकल एजेंट कर्नल इम्पी ने केसर ए हिंद की उपाधिदी थी
मेवाड़ में मालगुजारी लाग बाघ और बेगार आदि समस्याओं को लेकर कहीं शक्तिशाली आंदोलनहो चुके थे
इन आंदोलनों ने ब्रिटिश सरकार को ही नहीं बल्कि वहां पर संगठित राजनीतिक आंदोलनकी शुरुआत कर दी
माणिक्य लाल वर्मा ने प्रजामंडल आंदोलन की जिम्मेदारी डोगरा शूटिंग अभीयोग के ख्याति प्राप्त क्रांतिकारी आमली (भीलवाड़ा) निवासी श्री रमेश चंद्र व्यास को दी थी
वर्मा जी साइकिल की सहायता से सारे मेवाड़में घूमें और राजनीतिक चेतना का बिगुल बजा कर राजनीति संगठनके लिए उचित वातावरण तैयार किया
बलवंत सिह मेहता के निवास स्थान साहित्य कुठीर पर भूरेलाल बयां भवानीशंकर वेद दयाशंकर छत्रिय हीरालाल कोठारी रमेशचंद्र बिहार यमुना लाल वैद्यआदि को राजनीतिक संगठन के लिए बुलाया गया
इस बैठक में प्रजामंडल की स्थापना का निर्णय लिया गया
🌳🎯जैसलमेर प्रजामंडल की स्थापना🎯🌳
🏀सागरमल गोपा की हत्या के बाद सारे शहर में खून के बदले खून के नारेलिख दिए गए
🏀पंडित जवाहरलाल नेहरू सहित अनेक नेताओं ने इस हत्याकांड की घोर निंदा की
🏀जैसलमेर की जनता ने जांच की मांग उठाई
#imp.🏀जनता की मांग के कारण गोपाल स्वरूप पाठक आयोग का गठन किया गया
🏀इस आयोग का गठन जैसलमेर सरकार द्वारा गोपा की मृत्यु के कारणों की जांच करने के लिए किया गया था
#imp.🏀आयोग द्वारा गोपा जी की मृत्यु को आत्महत्या करार दिया गया था
#imp.🏀गोपाल स्वरूप द्वारा सागरमल गोपा की हत्या को आत्महत्या करार देने का कारण थानेदार गुमान सिंह का भय था
🏀जैसलमेर में राष्ट्रीय प्रेम की अग्नि लग चुकी थी
#imp.🏀सागरमल गोपा की जेल में रहते हुए 15 दिसंबर 1945 को मीठालाल व्यास द्वारा जोधपुर में जैसलमेर राज्य प्रजा मंडलका गठन किया गया
🏀जैसलमेर राज्य प्रजा मंडल की स्थापना से जन आंदोलन को और प्रखरबना दिया
🏀इस प्रजामंडल के द्वारा उत्तरदायी शासन स्थापना की मांग की गई थी
🏀सागरमल गोपा की दर्दनाक मृत्यु के बाद 6 मई 1946 को जय नारायण व्यास अखिलेश्वर प्रसाद के साथ जैसलमेरपहुंचे और प्रजामंडल को नवीन ऊर्जा प्रदानकी
🏀जैसलमेर पहुंचकर जयनारायण व्यास ने एक सार्वजनिक सभा में भाषण दिया,जिसमें 4000 लोगमौजूद थे
🏀 इस सभा में जनता काफी उत्तेजना में थी और इस उत्तेजना ने आंदोलन को और उग्रबना दिया
#imp.🏀अगस्त 1947 में जैसलमेर के राजकुमार गिरधारी सिंह ने महाराजा जोधपुर के साथ मिलकर जैसलमेर को पाकिस्तान में शामिल करने की योजना बनाई थी
🏀 लेकिन भारत सरकार के प्रयत्नों से इस योजना को सफल नहीं होने दिया गया
#imp.🏀2 अक्टूबर 1947 को यहां के लोगों ने गांधी जयंतीमनाई
🏀इस अवसर पर भी निकाले गए जुलूस पर पुलिस ने लाठियांबरसाई
🏀स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी महारावल का रूप राष्ट्रविरोधी ही रहा और पाकिस्तान में मिलने का विचारकरने लगा
#imp.🏀इस प्रकार के उग्र वातावरण में जैसलमेर 30 मार्च 1949 को वृहत राजस्थानमें विलीन हो गया
: 💢🛢बूंदी प्रजामंडल आंदोलन🛢💢
🌰बूंदी में राजनीतिक चेतना जागृत करने का कार्य किसान आंदोलनमें किया था
🌰बूंदी मे सार्वजनिक सूचना के लक्षण 1922 में परिवर्तित हुए थे
🌰इसका श्रेय बिजोलिया किसान आंदोलन के नेता पथिक जी को ही जाता है
🌰पथिक जी के बरड आंदोलन को समर्थन देने से राजनीतिक चेतना का संचारहुआ
🌰बूंदी में भी कई लागे व बेगारें ली जाती थी और भूमि कर की दर भी ऊंची थी
#imp.🌰पथिक जी ने रामनारायण चौधरी के साथ मिलकर कर वृद्धि व बेगार प्रथा के विरुद्ध आंदोलन छेड़ा था
🌰जब इस विरोध ने आंदोलन का रुप धारण कर लिया तो पुलिस आंदोलनकारियों पर अमानुषिक अत्याचार करने लगे
#imp.🌰आंदोलन को व्यापक होता देख बूंदी नरेश महाराज ईश्वरीसिंह ने बेगार प्रथा को प्रतिबन्धित कर दिया
🌰इसके पश्चात राजमहल मे एक अजीब सी घटना हुई
🌰महाराज की एक प्रिय पासवान की 1927 में मृत्युहो गई
🌰उसकी अन्तिम क्रिया कराने से राजपुरोहित ने इनकार कर दिया
🌰इसका उसने कारण बताया कि वह पासवान राज घराने की सदस्य नहीं थी
🌰 इस पर खुद महाराज ने पुलिस द्वारा उसका कत्लकरवा दिया
🌰राजपुरोहित के कत्ल से बूंदी में भारी असंतोष फैलगया
🌰नगर में 9 दिन हड़ताल रही
🌰इससे पुलिस का क्रोध और बड़ा और उसने जनता पर गोली चलादी
🌰इस से जनता राज-विरोधीहो गई
💢🛢बूंदी प्रजामंडल की स्थापना🛢💢
#imp.🌰इस वातावरण में कांतिलाल की अध्यक्षता में 1931 में बूंदी प्रजामंडलकी स्थापना की गई
#imp.🌰ऋषि दत्त मेहता ,नित्यानंद नगर, गोपाल कोटिया, गोपाल लाल जोशी मोतीलाल अग्रवाल ,पूनमचंदआदि बूंदी प्रजामंडल के प्रमुख सक्रिय कार्यकर्ताथे
🌰प्रजामंडल ने सरकार के समक्ष उत्तरदायी शासन और नागरिक अधिकारोंकी मांग प्रस्तुत की
🌰महाराज ने इस मांग को अस्वीकार करते हुए जनसभाओं पर प्रतिबंध लगा दिए
🌰इसके फलस्वरुप जनता का आक्रोश और उग्रहो गया और प्रजा मंडल के माध्यम से प्रशासनिक सुधारोंकी मांग करने लगा
🌰 सरकार की दमन नीति भी उग्र होने लगी तब सरकार ने 1936 मे समाचार पत्र पर प्रतिबंध लगा दिए
🌰1937में प्रजामंडल के तत्कालीन अध्यक्ष श्री ऋषि दत्त मेहता को 3 वर्षों के लिए राज्य से निर्वासित कर दिया गया और प्रजामंडल को अवैध घोषित कर दिया गया
#imp.🌰ऋषि दत्त मेहता की गिरफ्तारी के बाद ब्रज सुंदर ने प्रजामंडल का नेतृत्व संभाला
///// जी /////
🌾🌺बीकानेर प्रजामंडल आंदोलन🌺🌾
#imp.💎बीकानेर के महाराजा गंगासिंह प्रतिक्रियावादी व निरंकुश शासक थे
#imp.💎गंगासिह प्रथम भरतपुर के बाद शांति समझौते पर हस्ताक्षर करने वाले एकमात्र भारतीय प्रतिनिधिथे
💎1931 में स्थापित नरेंद्र मंडलके संस्थापकों में से एक थे
💎बीकानेर क्षेत्र के प्रारंभिक नेता कन्हैया लाल ढूंढ़ स्वामी गोपाल दास है
💎इन्होने 1907 में चूरु में सर्व हितकारिणी सभाकी स्थापना की गई
💎यह एक सामाजिक शैक्षणिक संस्था और किसी हद तक राजनीतिक संस्थाथी
#imp.💎सर्व हितकारिणी सभा ने चुरू में लड़कियों की शिक्षा हेतु पुत्री पाठशाला खोली गयी
#imp.💎अनुसूचित जातियो की शिक्षा के लिए कबीर पाठशालास्थापित की गई
💎महाराजा इस रचनात्मक कार्य के प्रति आशंकितहो उठे और इस सभा को षड्यंत्र बताकर प्रतिबंधित कर दिया गया
#imp.💎बिकानेर में राजनीतिक चेतना महाराजा गंगा सिंह के शासन काल में प्रारंभ हो गई थी
💎गंगा सिंह जी वैसे प्रगतिशील विचारों के और ख्याति प्राप्त महाराज थे
#imp.💎इन्होंने गोलमेज सभा में भारत के नरेशोकी तरफ से भाग लिया था
💎 लेकिन यह अपनी रियासत में बिकानेर में राष्ट्रीय विचारों को पनपने नहीं देखना चाहते थे
💎1913मेबीकानेर के महाराजा गंगासिंह ने बिकानेर राज्य के लिए प्रतिनिधि सभा का गठन किया
💎महाराजा गंगासिंह ने बिकानेर राज्य में रिप्रेजेण्टेटिव असेंबली की स्थापना की घोषणा कर अगले वर्ष के इस सभा का प्रथम अधिवेशन का उद्घाटन किया
💎प्रतिनिधि सभा राजस्थान में ही नहीं बल्कि सारे उत्तरी भारत की राज्यों में उस समय अपने ढंग की एकमात्र उत्तरदायी राजनीतिक संस्थाथी
💎इस संस्था में कुल 35 सदस्य थे
💎1917में प्रतिनिधि सभा को विधानसभा का नामदिया गया
💎1937 में इस सभा में सदस्य की संख्या बढ़कर 45 कर दी गई
#imp.💎 इस प्रकार बिकानेर राजस्थान का पहला राज्य था जिसमें बिकानेर में प्रजामंडल आंदोलन को आगे बढ़ाकर संरक्षण प्रदान किया
🌸D.R.मानकेकर ने लिखा है कि उन्होंने भारत के राजाओं की ओर से भारत के लिए संघात्मक संविधान के सर तेज बहादुर सप्रू के प्रस्ताव को स्वीकारा और उसका समर्थन किया
💎महाराजा द्वारा किए गए संवैधानिक सुधारों के पक्ष में कहा जाता है कि 1910 में इन्होंने स्वतंत्र न्यायपालिका की स्थापना की थी
#imp.🌸डॉक्टर कर्ण सिहलिखते हैं कि बिकानेर गर्व के साथ कह सकता है कि यह राजपूताना में प्रथम राज्य था जिस ने कार्यपालिका और न्यायपालिका को अलग करने का कदम उठाया था
💎1928 मे महाराजा ने ग्राम पंचायतों को दीवानी फौजदारीऔर प्रबंध संबंधी निश्चित अधिकार प्रदान किया
💎महाराजा ने 1937में अपने राज्य में म्युनिसिपल बोर्ड और डिस्ट्रिक्ट बोर्ड कायम किए
#imp.💎महाराजा गंगा सिंह जी प्रथम भारतीय नरेश थे जिन्होंने अलग से प्रिवीपर्स और सिविल लिस्ट पद्धति चालूकी थी
💎प्रिवीपर्स की रकम राज्य की सामान्य आमदनी का 5% निश्चितकी गई थी
#imp.💎रीजेंसी कौंसिल के समय में उर्दू को बीकानेर रियासत की सरकारी भाषा बना दिया गया था जिसे 1912में बदल कर पुनः हिंदी को सरकारी कामकाज की राजभाषाबनाया गया
#imp.💎यह आदेश 1914 में पूर्ण रुप से लागू हुआ
#imp.💎महाराजा गंगा सिंह ने 1921 में जमीदार बोर्डकी स्थापना की
💎1892 से 93 में राज्य का प्रथम नियमित बंदोबस्त करवाया
///// जी /////
💎महाराजा गंगा सिंह द्वारा जहां अपनी जनता को सुखी बनाने के लिए कई प्रयासकिए गए वहीं का दूसरा पहलू बहुत ही शर्मनाक था
💎महाराजा गंगा सिंह जो आधुनिक विचारधारा के राजा थे
💎उन्होंने अपने राज्य में राजनीतिक आंदोलनों को पूरी तरह से कुचलाथा
#imp.🌸सुखबीर सिह गहलोत ने लिखा है कि जब यहा भी अंग्रेजी प्रांतों से असहयोग आंदोलन की हवा आने लगी और जनता में रियासती शासन के प्रति असंतोष फैलने लगा तो महाराजा ने 4 जुलाई 1932 से बिकानेर सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम
आरंभ कर दिया
💎यह अधिनियम मार्शल लॉ की ही भाति कठोर था
🌸शारंगधर दासने लिखा है कि रियासत में नागरिक स्वतंत्रताओं का दमन इस सीमा तक प्रबल था कि लोग कानाफूसी में बातकरते थे की पूरी रियासत एक जेलखानाथी
#imp.💎1920 में बीकानेर में सदविद्या प्रचारिणी सभा की स्थापना हुई
#imp.💎इस संस्था का उद्देश्य रिश्वतखोरी और अन्याय के विरुद्ध अभियान चलाना था
🌸महकमा खास बीकानेर की रिपोर्ट में लिखा गया कि इस संस्था में राज्य में धर्म विजय और सत्य विजय नामक दो नाटक मंचित किए थे
💎 इन नाटको से समस्त सरकारी क्षेत्र में हलचलमच गई थी
💎26 जनवरी 1930को चूरू में धर्मस्तूप पर महंत गणपति दास, चंदन मल बहड़ ,वेद शांत द्वारा तिरंगा फहरानेपर महाराजा ने महंत से मंदिर ही जप्त कर लिया था
💎पंडित मदन मोहन मालवीय और घनश्याम दास बिरला के हस्तक्षेप पर महाराजा ने मंदिर पुन: खोल दिया और नगर पालिका के सदस्यको सौंप दिया
#imp.💎महाराजा की स्वेच्छाचारितापर प्रकाश डालते हुए विजयसिंह मोहता ने बीकानेर राज्य में नादिरशाही नामक पुस्तक लिखी
#imp.💎सत्यनारायण सर्राफ खूबराम सर्राफ और उनके साथियों ने बीकानेर राज्य की निरंकुशता और अत्याचारों का पर्दाफाश प्रभावशाली लेख द्वारा किया
💎 इंहोने दिल्ली के प्रिंसली इंडिया और रियासती तथा अजमेर के त्याग भूमि नामक समाचार पत्र में बीकानेर राज्य की निरंकुशता और अत्याचारों के समाचार प्रकाशित किए
💎इन खबरों के प्रकाशन से राज्य सरकार बौखला उठी थी
#imp.💎बीकानेर महाराज गंगासिह ने अप्रैल 1932 में लंदन में हुए दितीय गोलमेज सम्मेलन में देशी राज्यों के प्रतिनिधिके रूप में भाग लिया था
#imp.💎बीकानेर राज्य के राजनीतिक कार्यकर्ताओंसे प्राप्त सूचना के आधार पर बीकानेर एक दिग्दर्शन नामक ज्ञापन तैयार करके सम्मेलन के सदस्यों में बांटागया था
💎इन पेंपलेट में बिकानेर की वास्तविक दमनकारी नीतियोंका खुलासा किया गया था
#imp.💎गोलमेज सम्मेलन के अध्यक्ष लार्ड सेंकी ने उस ज्ञापन को महाराजा गंगा सिंहके सामने ठीक उस समय रखा जब वे बड़े जोश के साथ अपने विचार व्यक्तकर रहे थे
💎लार्ड सेंकी ने ज्ञापनपर यह लिख दिया था कि “”बीकानेर महाराज को उसका उत्तर देना चाहिए””
💎ज्ञापन को देखकर महाराज अत्यधिक खिन्न हुए और गोलमेज सम्मेलन के समाप्त होने से पहले ही भारत लौट आए
💎गोलमेज सम्मेलन से लौटने के बाद महाराजा ने सार्वजनिक सुरक्षा कानून लागू किया
#imp.💎स्वामी गोपाल दास, चंदन मल बहड,सत्यनारायण सर्राफ खूबचंद सर्राफआदि को बिकानेर षड्यंत्र के नाम पर गिरफ्तार कर लिया गया
♻🐾बीकानेर प्रजामंडल की स्थापना🐾♻
#imp.💎4 अक्टूबर 1936 को बीकानेर प्रजामंडल की स्थापना मद्याराम वेद बाबू मुक्ता प्रसाद रघुवीर गोयल के प्रयासोसे की गई
💎इस प्रजामंडल का प्रथम अध्यक्ष मद्याराम वैद्य को बनाया गया
💎इस संस्था में किसानो पर होने वाले अत्याचार ,लागबाग ,हरिजन समस्याएं और पुलिस द्वारा जनता पर किए जाने वाले अत्याचार के विरुद्ध अपने कार्यक्रम चलाए
#imp.💎इस समय बिकानेर में महाराजा गंगा सिंह का शासन था
#imp.💎मार्च 1937में महाराज सरकार ने प्रजामंडल के नेताओं को गिरफ्तार कर लिया
💎कुछ समय बाद रिहा करके तत्काल 6 वर्ष के लिए राज्य से निर्वासित कर दिया गया
#imp.💎राज्य से निर्वासित किये गये नेताओं में वकील मुक्ता प्रसाद मद्याराम वैद, लक्ष्मी दासशामिल थे
💎प्रजामंडल मंडल के नेताओं को बिकानेर से बाहर निकालकर प्रजामंडल को निष्क्रियबना दिया
#imp.💎बिकानेर महाराज गंगासिह द्वारा बीकानेर प्रजामंडल की स्थापना की कुछ समय बाद ही उसे निष्क्रियकर देने की घटना बिकानेर प्रजामंडल की शैशव काल में ही दमन की घटना बनी
#imp.💎इस घटना को बीकानेर प्रजामंडल की भ्रूण हत्या कहा जाता है
💎22 मार्च 1937 को अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषदके तत्वाधान में दिल्ली स्थित मारवाड़ी लाइब्रेरी में एक सभा का आयोजन किया गया
💎इस सभा में बीकानेर राज्य की निष्कासन पद्धति की निंदा की गई
#imp.💎बीकानेर से निष्काषित लोगों ने कलकत्ता में निवास कर रहे प्रवासी राजस्थानियोंके सहयोग से मघाराम ने कलकत्ता में बिकानेर राज्य प्रजामंडल की स्थापना की और बीकानेर की “”थोथी-पोथी”” नाम की पुस्तिका प्रकाशित करवाई गई
#imp.💎इस प्रकार बीकानेर राज्य प्रजामंडल की स्थापना राजस्थान से बाहर ही हो पायी
#imp.💎इस प्रकार बीकानेर में संगठन स्थापित करने का प्रथम प्रयास मद्याराम वेद्य ने किया
♻🐾बीकानेर राज्य परिषद की स्थापना🐾♻
💎इस दिशा में दूसरा प्रयास एडवोकेट रघुवरदयाल गोयलने किया था
💎उन्होंने 1942 में बीकानेर राज्य प्रजा परिषद की स्थापना की थी
💎इस परिषद का मुख्य उद्देश्य महाराजा के नेतृत्व में उत्तरदायी शासन की स्थापना करना था
💎महाराज ने 1 सप्ताह पश्चात ही श्री रघुवरदयाल गोयल को राज्य से निर्वासितकर दिया गया
💎अत: महाराजा गंगा सिंह की निरंकुश कार्यकाल में कार्यकर्ता असंगठित होने के कारण अधिक कार्य नहींकर पाए
#imp.💎महाराजा गंगा सिंह ने अपने प्रभाव से बिकानेर में पोलिटिकल एजेंट की नियुक्ति भी नहींहोने दी थी
#imp.💎उन दिनों बीकानेर राज्य को राष्ट्रीय आंदोलन से सुरक्षित माना जाता था
♻🐾रायसिंहनगर हत्याकांड🐾♻
💎राज्य में चल रहे किसान आंदोलन से सरकार घबरा गयी और आंदोलनकारियो की मांगे माननेके लिए विवश हो गई
#imp.💎21 जून 1946 को महाराजा ने घोषणा की राज्य में उत्तरदायी शासन की स्थापना की जाएगी
💎30 जून 1946 में बीकानेर परिषद का अधिवेशन रायसिहनगर में आयोजित किया गया था
💎इस सम्मेलन के अध्यक्ष श्री सत्यनारायण सर्राफ थे
💎सम्मेलन के अध्यक्ष श्री सत्यनारायण सर्राफ 1 जुलाई को सम्मेलन में शरीक होने जा रहे थे
💎उनके साथ हाथ में तिरंगा लिए कुछ कार्यकर्ताभी थे
💎पुलिस ने हाथ से झंडे छीन कर उन पर गोलीबारीकर दी
💎इस गोलीबारी में कार्यकर्ताओं का नेतृत्व करने वाला एक हरिजन नौजवान बीरबल सिंह शहीद हुआ
💎इन्हीं बीरबल सिंह की स्मृति में इंदिरा गांधी नहर की एक प्रमुख वितरिका का नाम शहीद बीरबल शाखा रखा है
💎एक तरफ महाराजा उत्तरदायी शासन की घोषणा कर रहे थे
💎दूसरी तरफ नित्य प्रति दिन लाठी गोली और धारा-144 की खबर आ रही थी
💎अतः बीकानेर में नागरिक अधिकारोंकी सही स्थिति की जांच के लिए अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद की राजपूताना प्रांतीय परिषद के अध्यक्ष श्री गोकुल भाई भट्ट और मंत्री श्री हीरालाल शास्त्री बीकानेर में जांच के लिए भेजे गए
💎 देश की राजनीति परिस्थितियोंको देखते हुए महाराजा ने अपना रवैया बदला 1946 को श्री रघुवरदयाल गोयल और चौधरी कुंभाराम को जेल से रिहा कर दिया गया
💎बीकानेर नगर में प्रजा परिषद का कार्यालय पुनः प्रारंभ किया गया
💎1946 में राज्य हेतु संविधान बनाने के लिए महाराजा ने दो समिति बनाई संवैधानिक समिति एवं मतादिकार समिति की स्थापना की गई
#imp.💎31 अगस्त 1946 को बीकानेर नरेश उत्तरदायी शासन की घोषणा की
#imp.💎राज्य में 1947 में एक नया संविधान लागूकर दिया
💎इसके तहतराज्य में अंतरिम सरकार बनाने और सविधान के अंतर्गत धारा सभा के चुनाव कराने के लिए राज्य व परिषद के बीच एक समझौता हुआ
💎लेकिन इस समझौते को लेकर परिषद दो गुटोंमें विभाजित हो गई
💎इस रिपोर्ट को लागू करने का आश्वासन तो दिया गया पर कोई ठोस कार्यवाही नहींहो पाई और उत्तरदायी शासन की मांग अधूरी ही रही
💎बाद में इन गुटों में समझोताहो गया और रामचंद्र चौधरी की अध्यक्षता में एक तदर्थ समितिगठित की गई
💎भारत की संविधान निर्मात्री सभा में रियासतों से अपने प्रतिनिधियों को भेजने के लिए नरेंद्र मंडल में एक स्थाई समिति बनाई गई
#imp.💎भोपाल के नवाब के नेतृत्व वाला एक गुट चाहता था कि रियासतें संविधानसभा में अपने प्रतिनिधि इतनी जल्दी नहीं भेजें
#imp.💎इसके विपरीत दूसरे गुट सहित बीकानेर महाराजा शार्दुलसिह अविलम्ब भारत की संविधान परिषद में शामिल होना चाहते थे
💎उन्होंने स्थाई समिति से बर्हिगमन”कर दिया
#imp.💎भारत की संविधान निर्मात्री सभा हेतु बीकानेर से सरदार के.एम. पणिक्करको भेजा गया
💎रियासतों की भारत में शामिल होने के प्रश्न पर भी बिकानेर महाराज ने पहल करते हुए 7 अगस्त को
इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन पर हस्ताक्षर कर दिए
💎महाराणा के इस साहसिक कदम की सरदार पटेल ने काफी तारीफकी
💎विजय सिह मेहता द्वारा बीकानेर राज्य में नादिरशाही नामक पुस्तक की रचना की गई थी
💎16 मार्च 1948 में जसवंत सिंह दाऊद सर के नेतृत्व में मंत्री मंडल बनाया गया
💎इस मंत्रिमंडल को प्रजा परिषद ने अस्वीकृत कर दिया और उसके मंत्रियों ने इस्तीफा दे दिया
💎30 मार्च 1949 को वृहत्तर राज्य के निर्माण के साथ रघुवरदयाल हीरालाल शास्त्री के मंत्रिमंडल में शामिल हो गया
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बीकानेर प्रजा मण्डल पार्ट_2
♻♻बीकानेर का झंडा विवाद🐾♻
💎बीकानेर राज्य में झंडा विवाद लंबे समयसे चला आ रहा था
💎रायसिहनगर गोली कांड के पश्चात राष्ट्रीय तिरंगे झंडे को का महत्व अत्यधिक बढ़ गया था
💎जनसामान्य में विशेषत: ग्रामीण क्षेत्र में राष्ट्रीय तिरंगा आम आदमी के अस्तित्व और मूलभूत अधिकारों का प्रतिनिधित्व करने वाला माना जाता था
💎जबकि इसके विपरीत बीकानेर महाराजा की दृष्टि में तिरंगा झंडा लोगों की भावनाओं को भड़काने का माध्यम था
💎अलवर से संचालित बीकानेर राज्य प्रजा परिषद के अध्यक्ष दाऊलाल आचार्य ने जयपुर के हीरालाल शास्त्री को लिखाकि राज्य में इस में झगड़े का मूल बिंदु तिरंगा झंडा है
💎बीकानेर सरकार इस पर दमन किये बिना नहींरहती है
💎किसानों मे तिरंगे के नाम पर बलिदान हो जाने की भावनाने जोर पकड़ लिया था
#imp💎 बीकानेर राज्य प्रजा परिषद द्वारा समय समय पर तिरंगा फहराए जाने पर आपत्ति जताते हुए महाराजा सार्दुल सिंह ने 22 जुलाई 1946 को पंडित जवाहरलाल नेहरू को एक पत्रलिखा था
💎इस पत्र में लिखा कि तिरंगा झंडा कांग्रेस का झंडा है बीकानेर राज्य एक स्वतंत्र इकाईहै और इस राज्य का अपना एक राजकीय झंडाहै जो यहां के निवासियों की एकता का प्रतीक भी है
💎ऐसी स्थिति में बीकानेर राज्य में तिरंगा झंडा थोपना न्याय संगत नहीं है
💎 यदि ऐसे प्रयास किए जाते हैं तो राजकीय झंडे के समर्थकों और तिरंगे झंडे के समर्थकों के बीच टकराव हो सकता है
💎जिससे राज्य में राजनीति उलझन पैदा हो सकती है
💎इस कारण राज्य में तिरंगा झंडा फहराने के संबंध में कोई निधि निर्धारित करना आवश्यक है 12 अगस्त 1946 को नेहरू ने महाराजा को पत्र लिखकर उनके विचारों से अपनी सहमति व्यक्त की
💎उन्होंने लिखा कि यह मामला दोनों पक्षों को आपसी सद्भाव से सुलझा लेना चाहिए
💎हमें झंडे के प्रश्न को लेकर किसी भी विवाद से बचना चाहिए 💎जहां इस झंडे का स्वागत ना हो वहां इस झंडे को नहीं थोपा जाना चाहिए
💎राष्ट्रीय झंडे को किसी भी स्थिति में राज्य के झंडे से झगड़े में नहीं आना चाहिए
💎यह स्थिती अन्य देशी रियासत के संबंध में थी
♻🐾बीकानेर प्रजामंडल से संबंधित तथ्य🐾♻
💎1931 की कुछ प्रमुख घटनाओं जैसे पत्र पत्रिकाओं में बिकानेर शासन व्यवस्था के बारे में छपे लेख, चूरू में लगान वृद्धि के विरोध सभा का आयोजन आदि राष्ट्रीय भावना वाले व्यक्तियों का दमन करने का निश्चय किया था
#imp💎सर्व हितकारिणी सभा के द्वारा लड़कियों लड़कियों के लिए पाठशालाएंस्थापित की गई थी
💎इसके लिए राज्य सरकार से शिक्षा के प्रसार और स्वच्छ प्रशासनकी मांग की गई थी
💎जिसके परिणाम स्वरूप महाराजा गंगा सिंह ने 8 व्यक्तियों को बीकानेर षडयंत्र द्वारा 3- 3 साल तक के कारावास की सजा सुनाई थी
💎उत्तरदायी शासन की मांग करने और बीकानेर राज्य परिषद की स्थापना के कारण रघुवरदयाल गोयल को बीकानेर महाराजा ने गिरफ्तार कर नजर बंदकर दिया था
💎बीकानेर सरकार की इस समय की राजस्थान की तमाम राज्यों में निंदा की गई
💎27 अक्टूबर 1944 को पूरे राजस्थान में बीकानेर दमन विरोधी दिवस मनाया गया
💎 इससे लोगों में चेतना आई और प्रजा परिषद का कार्यभी शुरू किया
💎दुधवा खारा आंदोलन से जनता में अभूतपूर्व राजनीतिक चेतना पैदा हुई
💎जिसके परिणाम स्वरुप सरकार ने वैद्य जी प्रजा परिषद के सदस्यों सहित अनेक नेताओं को कैद कर नजर बंद कर दिया
💎मार्च 1946 में एक प्रेस एक जारी कर समाचार पत्रों पर अनेक प्रतिबंध लगा दिए गए
💎बीकानेर के आयकर कानून के विरोध में नोहर और भादरा में हड़ताल मनाई गई
💎मई 1946 में बीकानेर में किसानों का एक जुलूसनिकला था
♻🐾आजाद पार्क में राजनीतिक सभा🐾♻
1946 में आजाद पार्क में मास्टर भोलानाथ के नेतृत्व में राजनीतिक सभा हूई
💎जिसमें सरकार के जुल्म की निंदाकी गई और उत्तरदायी शासनकी स्थापना की मांग की गई
💎इसके बाद बीकानेर राज्य में सरकारी कर्मचारियों की सामूहिक हड़तालके कारण राजनीतिक वातावरण तनावपूर्ण हो गया और सरकार में धारा 144 लागू कर दी थी
💎अप्रैल 1947 में बीकानेर राज्य प्रजा परिषदमें राजगढ़ में स्वामी कुमार आनंद के सभापतित्व मे अपना सम्मेलन करने का निश्चय किया
💎लेकिन महाराजा ने सम्मेलन से पूर्व ही अनेक लोगों को गिरफ्तारकर लिया
💎अंत में महाराजा को राजनीतिक दबावके आगे झुकना पड़ा और बीकानेर व्यवस्थापिका सभा की स्थापना की घोषणा की
#imp💎अप्रैल 1947 में बीकानेर केंद्रीय सविधान सभामें सम्मिलित होने वाला पहला राज्य बना
#imp💎स्वतंत्रता के बाद भारतीय संघ में सम्मिलित होने में भी बीकानेर महाराजा ने सबसे पहले कदम उठाया था
#imp💎17 दिसंबर 1933 को बीकानेर दिवस मनाया गया था
💎प्रथम विश्व युद्ध के समय राजस्थान के नरेशोने हर तरह से ब्रिटिश सरकार की सहायता की थी
💎प्रथम विश्व युद्ध के समय बीकानेर महाराजा गंगासिंह को साम्राज्यिक युद्ध मंत्री मंडल और साम्राज्यिक युद्ध सम्मेलन के सदस्य मनोनीत किया गया था
#imp💎इनंहें जर्मनी से संधि वार्ता में भाग लेने के लिए भारत का प्रतिनिधित्व करने हेतु पेरिसभेजा गया था
#imp💎बीकानेर के महाराजा गंगासिह पहले शासक थे
जिन्होंने प्रथम विश्व युद्ध के समय तार द्वारा सम्राट और वायसराय को सूचितकिया था कि वह स्वयं और उनकी सेना साम्राज्य के किसी भी भाग में सेवा अर्पित करने के लिए तैयार है
#imp💎महाराजा गंगासिह अपने प्रसिद्ध गंगा रिशाल (ऊंटों की पलटन)तथा शार्दुल लाइट इनफेंट्री के साथ युद्ध क्षेत्रमें पहुंचे
💎1917में जब महाराजा गंगासिह साम्राज्य की युद्ध मंत्री मंडल और युद्ध सम्मेलन में भाग लेने इंग्लैंडगए थे
उस समय भारत सचिव औस्तिन चेम्बरलेन महाराजा से आग्रह किया कि वह भारतीय समस्याओं पर अपने विचार लिखित रूप में प्रेषित करें
#imp💎मई 1917 में भारत लौटते समय महाराजा ने एक आलेख रोम से भारत सचिव को भेजा जिसे रोम नोट के नाम से जाना जाता है
#imp💎महाराजा गंगा सिंह के शासनकाल को बीकानेर राज्य में निरपेक्षता और दमन का प्रतीक कहा जाता है
💎दूसरे गोलमेज सम्मेलन में देसी राज्य के प्रतिनिधि के रूप में महाराजा गंगासिह लंदनगए थे
💎उसी समय अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद्का एक शिष्टमंडल भी जनता का दृष्टिकोण प्रस्तुत करने के लिए लंदनगया था
💎 इस मंडल ने इस सम्मेलन में ज्ञापन बांटकर महाराजा गंगा सिंह के प्रशासन की भत्सर्नाकी थी
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: जनवरी1938 में सुभाष चंद्र बोस जोधपुर आए
सुभाष चंद्र बोस ने लोगों को स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए त्याग और समर्पण करने के लिए प्रेरित किया
1938के कांग्रेस के हरिपुरा अधिवेशन के बाद 16 मई 1938 को श्री रणछोड़दास गट्टानी के नेतृत्व में मारवाड़ लोक परिषद का गठन किया गया
रणछोड़दास गट्टानी को परिषद का अध्यक्ष और अभयमल जैन को महासचिवबनाया गया
इस परिषद का उद्देश्य महाराजा की छत्रछाया में उत्तरदायी सरकार की स्थापनाकरना था
जोधपुर प्रजामंडल को असंवेधानिक घोषितकिए जाने के बाद से मारवाड लोक परिषद ने संवैधानिक अधिकारों उत्तरदायी शासन के लिए संघर्षजारी रखा
मारवाड़ लोक परिषद में सर्वप्रथम राजनीतिक कार्यकर्ताओं की रिहाई,जोधपुर नगर पालिका परिषद का पुनर्गठन और नगर पालिका परिषद के चुनाव सांप्रदायिकता के स्थान पर क्षेत्रीय आधार पर करवाने की मांग प्रस्तुत की
लोक परिषद के गठन के कुछ समय पश्चात जोधपुर सरकार ने जय नारायण व्यास का निर्वाचन खत्म कर उन पर लगे सारे प्रतिबंध हटादिए गए
जय नारायण व्यास जी पर से प्रतिबंध हटवाने में बीकानेर महाराजा गंगा सिंह जी का बड़ा योगदानथा
2 फरवरी 1939 को जोधपुर महाराजा ने राज्य की केंद्रीय सलाहकार परिषद का गठन किया
केंद्रीय सलाहकार परिषद का सदस्य जयनारायण व्यास को गैरसरकारी प्रतिनिधि के रूप में मनोनीत किया गया
जनवरी 1940 में जय नारायण व्यास जी ने अखिल राजस्थान देशी राज्य लोक परिषद् का पहला अधिवेशन जोधपुर में करानेकी घोषणा की थी
मारवाड़ में अकाल के दौरान लोक परिषद के सदस्यों ने अकाल राहत हेतु अभूतपूर्व कार्यकिए
जिस कारण लोक परिषद की ख्याति अधिक हो गई परिषद की बढती लोकप्रियता से सरकार आशंकित हो गई
मार्च 1940 को जोधपुर सरकार ने मारवाड़ लोक परिषद को अवैध घोषितकर दिया
जय नारायण व्यास अखिलेश्वर प्रसाद ,भँवरलाल सर्राफ,अभयमल जैन, रणछोड़दास गट्टानी, मथुरादास माथुर ,कन्हैयालाल मनिहार ,आनंद राज सुराणा आदी नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया
गांधीजी ने जोधपुर सरकार के इस कार्य की आलोचना हरिजन अंक में की
मारवाड़ी लोक परिषद को गैरकानूनी घोषितकरने के बाद सदस्यों ने शांतिपूर्ण प्रदर्शनों पर ध्यान केंद्रितकिया
इसके मुख्य नेता रणछोड़दास गट्टानी, मथुरादास माथुर कन्हैयालाल इंदरमल जेन आनंदराज सुराणा भवरलाल सर्राफ आदि ने अपना सारा ध्यान परिषद की विचारधारा लोकप्रिय बनाने में लगा दिया
अप्रैल 1940 में पंडित जवाहरलाल नेहरूने मारवाड़ की स्थिति के आकलन हेतु अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद द्वारा पंडित द्वारकानाथ काचरू को मारवाड़ भेजा गया था
द्वारकानाथ काचरू ने अपनी रिपोर्ट में जोधपुर के वातावरण को दम घुटने वाला बताया था
जोधपुर के महाराजा को इंग्लैंड जाना था
इस कारण जून 1940 में मारवाड़ लोक परिषद और मारवाड़ शासन के मध्य समझौताहुआ
मारवाड़ सरकार ने लोक परिषद को पहला खुला अधिवेशन करने की अनुमति दे दी गई
समझौते के तहतव्यास जी ने लोक परिषद को मारवाड़ पब्लिक सोसायटी एक्ट के तहत रजिस्टर करवाना स्वीकार कर लिया
इस परिषद का अध्यक्ष जयनारायण व्यास को चुना गया
आंदोलन की सफलता ने लोक परिषद के जीवन में नवीन चेतना और शक्ति का संचार किया
28 मार्च 1941 को मारवाड़ में उत्तरदायी शासन दिवस मनाया गया
8 जून 1941 को सरकार ने प्रथम बार जोधपुर नगरपालिका के चुनाव क्षेत्रीय आधार पर करवाए
श्री जयनारायण व्यास जोधपुर नगरपालिका के प्रथम निर्वाचित अध्यक्षबने
जोधपुर नगर पालिका के यह चुनाव क्षेत्रीय और बालिग मताधिकार के आधार पर संपन्न हुए
इससे पहले तक नगरपालिका का गठन जातीय आधारपर होता था
///// जी /////
♻🐾दुधवा खारा आंदोलन🐾♻
💎 राज्य के दूधवाखारा गांव में ठाकुर सूरजमल सिंह द्वारा जबरन वसूली के विरोध में कृषक नेता हनुमान सिंह महाराजा से मिलने गया
💎हनुमान जी को अपमानित”किया गया और गिरफ्तार करलिया गया
💎उनकी गिरफ्तारी के विरोध में और सूरज मल के अत्याचारों से तंगआकर
💎बिकानेर प्रजा परिषद के मार्ग निर्देशनमें 300 किसानों और कुछ स्त्रियो ने सत्याग्रह प्रारंभ कर दिया गया
Imp💎बीकानेर में वैद्य मद्याराम के नेतृत्व में यह आंदोलनकिया गया किया
Imp💎26 अक्टूबर 1944 को बीकानेर दमन विरोधी दिवस मनाया गया
💎जो राज्य में प्रथम सार्वजनिक प्रदर्शनथा
💎इसी बीच भारत में राजनीतिक गतिविधियां तेजहो गई और महाराज ने उत्तरदायीशासन की घोषणा की
💎फरवरी 1946 में महाराजा गंगा सिंह के देहांत के बाद उनके पुत्र शार्दुलसिंह गद्दीपर बैठे
Imp💎शार्दुलसिंह के कार्यकाल में पुन:पोलिटिकल एजेंट की नियुक्ति की गई
💎महाराज ने अनेक राजनीतिक बंदियों को रिहा कर दिया
💎परिषद के कार्यकर्ताओं ने महाराजा से प्रजा परिषद को मान्यता देने की मांग की
💎कोई परिणाम नहीं निकलने के कारण रघुवरदयाल गोयल को पुनः गिरफ्तार कर लूणकरणसर में नजर बंद कर दिया
Imp💎द्वारका प्रसाद नामकछठी कक्षा के बालक को संस्था से बाहर निकाला गया
💎क्योंकि इस बालक ने अपनी उपस्थिति गणना के समय जय हिंद बोल दिया था
Imp💎जय नारायण व्यासने बीकानेर राज्य के विरोध में जोधपुर में एक कार्यालय खोल कर वहां से गतिविधिया संचालित की थी
♻🐾बीकानेर में चना निकासी विवाद🐾♻
💎1947 के अंतमें महाराजा ने बीकानेर राज्य के गृह मंत्री ठाकुर प्रतापसिह को आपूर्ति मंत्रालयभी सोंप दिया
💎ठाकुर प्रतापसिंह ने लालची और भ्रष्ट व्यपारियो से साठगांठ करके बीकानेर से बाहर जाने वाले चने और सरसों के निकासी परमिट जारी करने में भ्रष्टाचार किया
💎जो एक बहुत बड़ा विवाद का विषय बन गया था
♻🐾बिकानेर में हरिजनों के मंदिर प्रवेश का मामला🐾♻
💎बीकानेर में हरिजनों को मंदिर में प्रवेश देने को लेकर कांग्रेस द्वारा आंदोलन चलाया गया
💎बीकानेर लोक सेवा संघ ने इस कार्य का विरोध किया
💎जिसमें कई जगह पर झगड़े मारपीट और दंगों की स्थितिउत्पन्न हो गई थी
///// जी /////
🌲मारवाड/जोधपुर प्रजामंडल आंदोलन🌲
20 वी शताब्दी के तृतीय दशक के आरंभ में मारवाड़ में निरंकुश और भ्रष्ट शासन था
जोधपुर की युवा महाराजा उम्मेदसिंह अनुभवहीन थे
शासन का नियंत्रण कट्टर अनुदारवादी कश्मीरी ब्राह्मण सर सुखदेव प्रसादके हाथ में था
राज्य में मारवाड़ राजद्रोह अधिनियम( 1909) और मारवाड प्रेस अधिनियम (1922)लागू थे
सभा, संघ सार्वजनिक भाषणअादि की राज्य में स्वतंत्रता नहीं थी
Impजोधपुर में जन आंदोलनकी शुरुआत 1918 में हो गई थी
Impजब चांद मल सुराणा ने मारवाड़ हितकारिणी सभा की स्थापना की थी
लेकिन यह सभा अधिक समय तक सक्रिय नहींरह सकी
Impइस कारण 1920 में जय नारायण व्यास ने मारवाड़ सेवा संघ का गठन किया
मारवाड़ सेवा संघ भी सही गतिविधियां नहीं होने के कारण निर्जीवसा हो गया
इस कारण 1923 में पुरानी संस्था मारवाड़ हितकारिणी सभा को पुनर्जीवित किया गया
राज्य सरकार की मादा पशुओं की निर्यात के आदेश के विरुद्ध मारवाड़ हितकारिणी सभा ने विरोधकिया था
इस कारण मारवाड़ हितकारिणी सभा अत्यधिक लोकप्रियहो गई
सर सुखदेव प्रसादने कुछ अवसरवादी व्यक्तियों को एक प्रतिद्वन्द्वी संस्थाबनाने के लिए प्रेरित किया
परिणाम स्वरूप राजभक्त देश हितकारिणी सभा का गठन किया गया
परंतु यह संस्था अधिक लोकप्रिय नहींहुई
कुछ कारणों से जय नारायण व्यास को ब्यावरजाना पड़ा
ब्यावर में राजस्थान सेवा संघ के सर्वे सर्वा मणिलाल कोठारी ने उन्हें तरुण राजस्थान का संपादक नियुक्त किया
इस पत्र के माध्यमसे उन्होंने वर्तमान मारवाड़शीर्षक के अंतर्गत मारवाड़ के भ्रष्ट और निरंकुश शासन की कटु आलोचना करी थी
1927 में अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद के मुंबईप्रथम अधिवेशन में भाग लेकर जय नारायण व्यास जोधपुर लौटे थे
इस समय मारवाड़ हितकारिणी सभा अधिक सक्रिय हो चुकी थी और राज्य के उत्तरदायी शासन की मांग प्रस्तुत की
अक्टूबर 1929 में जय नारायण व्यास ने मारवाड़ राज्य लोक परिवेश परिषद का अधिवेशन जोधपुर में करने की घोषणा की
लेकिन जोधपुर प्रशासन ने अधिवेशन को आयोजित करने की अनुमति नहीं दी इस पर प्रतिबंध लगा दिया
इसी समय प्रमुख राजनीतिक नेताओं जय नारायण व्यास आनंद दास सुराणा और भवरलाल सर्राफआदि को गिरफ्तार कर लिया गया
इन पर एक विशेष अदालत में राजद्रोह का मुकदमा चला कर इन तीनों को 4-5 वर्ष के कठोर कारावास की सजा दी गई
Impजोधपुर प्रशासन ने एक अध्यादेश जारी कर सभाओं, जुलूस,धरने, प्रदर्शनपर प्रतिबंध लगा दिया था
मारवाड़ राज्य लोक परिषद अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद की एक राज्य इकाई थी
Impमारवाड़ हितकारिणी सभा ने अपनी दो पुस्तिकाएं “”मारवाड़ी की अवस्था”” और “”पोपाबाई की पोल”” प्रकाशित की
जिनमें मारवाड़ प्रशासन की कटु आलोचना की गई
: मार्च 1931 में इन तीनों नेताओं को छोड़ दिया गया
जयनारायण व्यास, आनंद राज सुराणा ,भवरलाल सर्राफ ने जेल से छूटते ही 10 मई 1931 को मारवाड़ यूथ लीग की स्थापना की
मारवाड यूथ लिंग को अवैध घोषित करने के पहले ही कार्यकर्ताओं ने बाल भारत सभा नाम की एक अन्य संस्था बनादी थी
इस संस्था का मंत्री छगनलाल चौपासनी वाला को बनाया गया था
Imp24-25 नवंबर 1931को पुष्कर (अजमेर) में चांद करण शारदा की अध्यक्षता में मारवाड़ राज्य लोक परिषद् का अधिवेशन सफलतापूर्वक संपन्न किया गया
इस सम्मेलन में कस्तूरबा गांधी ,काका कालेलकर आदि उपस्थित थे
Impइस सम्मेलन के द्वारा मारवाड़ में राजनीतिक चेतना का प्रसार किया गया
जोधपुर सरकार ने मार्च 1932 में मारवाड़ हितकारिणी सभा, मारवाड़ यूथ लीग और बाल भारत सभाको अवैध घोषित कर दिया
इस अधिवेशन को कुछ असामाजिक तत्वों ने असफल बनानेका प्रयास किया
लेकिन जयनारायण व्यास और अन्य कार्यकर्ताओं की सतर्कता के कारण वह अपने उद्देश्य में सफल नहीं हो सके
Impइस सम्मेलन में राजनीतिक आर्थिक और सामाजिक जीवन संबंधी 22 प्रस्ताव पारित किए गए
गणेशी लाल उस्ताद ने सरकारी नौकरी छोड़करकविताओं द्वारा जन जाग्रति का कार्य प्रारंभ किया
उनकी कविताओं का संग्रह गरीबों की आवाज नामक पुस्तकमें किया गया
इन सभी अनुकूल परिस्थितियों के मध्य जोधपुर प्रजामंडलकी स्थापना की गई
Imp1934 में जय नारायण व्यास आनंद मन सुराणाआदि ने जोधपुर प्रजामंडल की स्थापनाकी गई
जिसका प्रथम अध्यक्ष श्री भवरलाल सर्राफको बनाया गया
इस संस्था का मुख्य उद्देश्य राज्य में उत्तरदायी शासन की स्थापना करना राज्य में लौकिक अधिकारों की रक्षा करना
जब इस सभा ने 1936 में राज्य में नागरिक अधिकारों और विधान सभा की स्थापना की मांग की गई तो सरकार ने इस संगठन को गैरकानूनी घोषित कर दिया
1936 में प्रांतों और राज्योंमें कांग्रेस की सहयोगी संस्था के रूप में सिविल लिबर्टीज यूनियनकी स्थापना की गई
जोधपुर में भी इस यूनियन का गठनकिया गया
1936 में कराचीमें अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद के अधिवेशन में जयनारायण व्यास को महामंत्री निर्वाचितकिया गया
Impजय नारायण व्यास ने बंबई से अखंड भारत का संपादनआरंभ किया
इस पत्र के माध्यम से देशी राज्यों के आंदोलन का खूब प्रचार किया गया
महाराजा बीकानेर गंगा सिंहश्री जय नारायण व्यास से अधिक प्रभावित थे
इस कारण उन्होंने गुमनाम तरीके से श्री जयनारायण व्यास की आर्थिक मददकरने की कोशिश की लेकिन जयनारायण व्यास ने इस मदद को लेने से इंकारकर दिया था
Impआर्थिक कठिनाइयों के कारण अखंड भारत समाचार पत्र का प्रकाशन बंदकरना पड़ा और व्यास जी को पुनह व्यावर आना पड़ा
1937मे ब्यावर से जोधपुर जाते समय वर्मा जीको पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर उन्हें वापस ब्यावर छोड़ागया
1937 में दीपावली के दिन जोधपुर प्रजामंडल और सिविल लिबर्टीज यूनियन को अवैध घोषित कर दिया गया
Imp: 26जनवरी 1942 को लोक परिषद के अंतर्गत स्वतंत्रता दिवस मनाया गया
इस समय मारवाड़ सरकार द्वारा दमन चक्र का सहारा लिया गया
जोधपुर महाराजा ने लोक परिषद को कुचलने के लिए सामन्ती तत्वोंकी सहायता के लिए बुलाया
सभी प्रमुख नेताओं को जेल में डाल दिया गया
28 मार्च 1942 में लोक परिषद ने अत्याचारों के विरुद्ध और राज्य में उत्तरदायी शासन के लिए आंदोलन आरंभ किया गया
नगरपालिका के दिन प्रतिदिन के कार्यों में शासन की दखल अंदाजी का व्यास जी द्वारा विरोध करने पर राज्य प्रशासन के दमन चक्र से राज्य का राजनीतिक माहौल गर्मा गया और लोक परिषद द्वारा राज्य सलाहकार परिषद के चुनाव के बहिष्कार का निर्णय लिया
गया
जय नारायण व्यास ने नगरपालिका अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया
जय नारायण व्यास ने परिषद का विधान स्थगित करके स्वयं को प्रथम डिक्टेटर नियुक्त किया
1942 में जय नारायण व्यास को पुन: गिरफ्तार कर लिया गया
जेल में सत्याग्रहियों के साथ साधारण केदीयों जैसा व्यवहार किया गया
इस पर व्यास जी ने 41 सत्याग्रहियों के साथ जेल में भूख हड़ताल प्रारंभ कर दी
Impश्री बाल मुकुंद बिस्सा का जेल में अव्यवस्था व अन्याय के विरुद्ध भूख हड़ताल करने के कारण स्वास्थ्य खराबहो गया
Impजिस वजह से 19 जून 1942 को बालमुकंद बिस्सा का निधन हो गया इसकी देश में सर्वत्र कड़ी प्रतिक्रिया की गई
इसी दौरान लाटाकून्ता और लाग-बाग की समस्या को लेकर चंदावल और निमाज की जागीरों में परिषद के कार्यकर्ताओं और जागीरदारों के बीच तनाव उत्पन्न हो गया
परिषद के कार्यकर्ताओं के घर जलादिए गए लेकिन राज्य सरकार ने जागीरदारों के विरुद्ध कोई कार्यवाही नहीं की
अप्रैल 1942 में चंडावल के ठाकुर ने लोक परिषद के कार्यकर्ताओं को खूब पिटवाया
लोक परिषद में जोधपुर के प्रधानमंत्री सर डोनाल्ड को पद से हटाने और राज्य में उत्तरदायी शासन की स्थापना के मुद्दों पर आंदोलन प्रारंभ कर दिया
मारवाड़ के सभी कार्यकर्ता जब जेल पहुंच गए तो बाहर से स्वामी कुमार आनंद मास्टर भोलानाथ आदि कई नेताओं ने जोधपुर आकर आंदोलन का नेतृत्व किया
Impलोक परिषद के आंदोलन के साथ ही 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन प्रारंभ हो गया
गांधी जी के भारत छोड़ो आंदोलन के साथ प्रजामंडल आंदोलन में भी तेजीआ गई
परिणाम स्वरुप देश के अन्य भागों की तरह मारवाड़ का विद्यार्थी समाज भी राजनीति में कूद पड़ा इन युवकों ने बम आदि बनाकर सरकारी संपत्तियों को नष्ट किया
जोधपुर में अक्टूबर 1942 में पहला बम केस हुआ
जिसमें सर्व श्री लाल चंद जैन हर्बल सिह,सोहनमल लोढा,देवराज जैन आदि युवा विद्यार्थीशामिल थे
जोधपुर का 1942 का आंदोलन लंबे समय तक चला जिस से कई कार्यकर्ता थक गए थे और सरकार से समझौता कर के बाहरआने लगे थे
व्यास जी ने सरकार को विश्वयुद्ध संबंधित कार्यों में बाधा नहींपहुंचाने का आश्वासन दिया
जिस कारण सरकार ने व्यास जी सहित सभी कार्यकर्ताओं को रिहाई के आदेश दिए
सिद्धांतों के धनी श्री रणछोड़दास गट्टानी जैसे कुछ कार्यकर्ता जेल में ही रहे
जून 1942 में मारवाड़ सरकार ने व्यास जी व उनके साथियों पर मुकदमा चलाया उन्हें 3 साल की सजादी गई
लोक परिषद के आंदोलन में मारवाड़ की महिलाएं भी महीमा देवी किंकर के नेतृत्व मे बराबर से भूमिका निभारही थी
Impजय नारायण व्यास की पुत्री रामादेवी अखिलेश्वर प्रसाद की पत्नी कृष्णा कुमारी आदि के नेतृत्व में महिलाओं ने आंदोलन को बढ़ाया
इन सभी महिलाओं ने भारत छोड़ो आंदोलनमें अपना पूर्ण सहयोग दिया श्री
लाल चंद जैन ने वीर और उत्साही युवकों को संगठित करने हेतु एक गुप्त संगठन मारवाड़ क्रांति संघ बनाया
27 मई 1944 को श्री जय नारायण व्यास और उनके अन्य साथियों को रिहा कर दिया गया
1944 में पुनः जोधपुर नगरपालिकाके चुनाव संपन्न हुए और लोक परिषद के श्री द्वारका दास पुरोहित अध्यक्ष निर्वाचित हुए
सवैधानिक सुधारोंपर अपने सुझाव देने के लिए महाराज द्वारा एस ए. सुधाकर की अध्यक्षता में “”प्रशासनिक सुधार आंदोलन”” का गठन किया गया
Imp24 जुलाई 1945को जोधपुर महाराजा द्वारा सवैधानिक सुधारों की घोषणा की गई और राज्य में विधान परिषदकी स्थापना हुई
लेकिन शासन संबंधी सभी अधिकार महाराजा व उनके मुख्यमंत्री के पास रहने के कारण जयनारायण व्यास ने इसकी घोर आलोचनाकरी थी
1945 में लोक परिषद के आमंत्रण पर श्री पंडित जवाहरलाल नेहरु मारवाड़ आए और महाराजा के साथ काफी विचार विमर्श किया
Impनेहरु जी की सलाह पर महाराजा ने सर डोनाल्ड के स्थान पर श्री सी.एस.वेंकटाचारी को प्रधानमंत्री नियुक्तकिया
इससे लोक परिषद और राज्य के संबंधों में अस्थाईसुधार आया इसी बीच में कैबिनेट मिशन योजना के तहत श्री जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में अंतरिम सरकार का गठनकिया गया
Impदेश की संविधान सभा में जोधपुर से श्री सी.एस.वेंकटाचारी और श्री जयनारायण व्यास को प्रतिनिधिबनाकर भेजा
///// जी /////
Impजनवरी1938 में सुभाष चंद्र बोस जोधपुर आए
सुभाष चंद्र बोस ने लोगों को स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए त्याग और समर्पण करने के लिए प्रेरित किया
1938के कांग्रेस के हरिपुरा अधिवेशन के बाद 16 मई 1938 को श्री रणछोड़दास गट्टानी के नेतृत्व में मारवाड़ लोक परिषद का गठन किया गया
Impरणछोड़दास गट्टानी को परिषद का अध्यक्ष और अभयमल जैन को महासचिवबनाया गया
इस परिषद का उद्देश्य महाराजा की छत्रछाया में उत्तरदायी सरकार की स्थापनाकरना था
जोधपुर प्रजामंडल को असंवेधानिक घोषितकिए जाने के बाद से मारवाड लोक परिषद ने संवैधानिक अधिकारों उत्तरदायी शासन के लिए संघर्षजारी रखा
मारवाड़ लोक परिषद में सर्वप्रथम राजनीतिक कार्यकर्ताओं की रिहाई,जोधपुर नगर पालिका परिषद का पुनर्गठन और नगर पालिका परिषद के चुनाव सांप्रदायिकता के स्थान पर क्षेत्रीय आधार पर करवाने की मांग प्रस्तुत की
लोक परिषद के गठन के कुछ समय पश्चात जोधपुर सरकार ने जय नारायण व्यास का निर्वाचन खत्म कर उन पर लगे सारे प्रतिबंध हटादिए गए
जय नारायण व्यास जी पर से प्रतिबंध हटवाने में बीकानेर महाराजा गंगा सिंह जी का बड़ा योगदानथा
2 फरवरी 1939 को जोधपुर महाराजा ने राज्य की केंद्रीय सलाहकार परिषद का गठन किया
केंद्रीय सलाहकार परिषद का सदस्य जयनारायण व्यास को गैरसरकारी प्रतिनिधि के रूप में मनोनीत किया गया
Impजनवरी 1940 में जय नारायण व्यास जी ने अखिल राजस्थान देशी राज्य लोक परिषद् का पहला अधिवेशन जोधपुर में करानेकी घोषणा की थी
मारवाड़ में अकाल के दौरान लोक परिषद के सदस्यों ने अकाल राहत हेतु अभूतपूर्व कार्यकिए
जिस कारण लोक परिषद की ख्याति अधिक हो गई परिषद की बढती लोकप्रियता से सरकार आशंकित हो गई
मार्च 1940 को जोधपुर सरकार ने मारवाड़ लोक परिषद को अवैध घोषितकर दिया
जय नारायण व्यास अखिलेश्वर प्रसाद ,भँवरलाल सर्राफ,अभयमल जैन, रणछोड़दास गट्टानी, मथुरादास माथुर ,कन्हैयालाल मनिहार ,आनंद राज सुराणा आदी नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया
गांधीजी ने जोधपुर सरकार के इस कार्य की आलोचना हरिजन अंक में की
मारवाड़ी लोक परिषद को गैरकानूनी घोषितकरने के बाद सदस्यों ने शांतिपूर्ण प्रदर्शनों पर ध्यान केंद्रितकिया
इसके मुख्य नेता रणछोड़दास गट्टानी, मथुरादास माथुर कन्हैयालाल इंदरमल जेन आनंदराज सुराणा भवरलाल सर्राफ आदि ने अपना सारा ध्यान परिषद की विचारधारा लोकप्रिय बनाने में लगा दिया
अप्रैल 1940 में पंडित जवाहरलाल नेहरूने मारवाड़ की स्थिति के आकलन हेतु अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद द्वारा पंडित द्वारकानाथ काचरू को मारवाड़ भेजा गया था
Impद्वारकानाथ काचरू ने अपनी रिपोर्ट में जोधपुर के वातावरण को दम घुटने वाला बताया था
जोधपुर के महाराजा को इंग्लैंड जाना था
इस कारण जून 1940 में मारवाड़ लोक परिषद और मारवाड़ शासन के मध्य समझौताहुआ
मारवाड़ सरकार ने लोक परिषद को पहला खुला अधिवेशन करने की अनुमति दे दी गई
समझौते के तहतव्यास जी ने लोक परिषद को मारवाड़ पब्लिक सोसायटी एक्ट के तहत रजिस्टर करवाना स्वीकार कर लिया
इस परिषद का अध्यक्ष जयनारायण व्यास को चुना गया
आंदोलन की सफलता ने लोक परिषद के जीवन में नवीन चेतना और शक्ति का संचार किया
Imp28 मार्च 1941 को मारवाड़ में उत्तरदायी शासन दिवस मनाया गया
8 जून 1941 को सरकार ने प्रथम बार जोधपुर नगरपालिका के चुनाव क्षेत्रीय आधार पर करवाए
Impश्री जयनारायण व्यास जोधपुर नगरपालिका के प्रथम निर्वाचित अध्यक्षबने
जोधपुर नगर पालिका के यह चुनाव क्षेत्रीय और बालिग मताधिकार के आधार पर संपन्न हुए
इससे पहले तक नगरपालिका का गठन जातीय आधारपर होता था
///// जी /////
: 🌲मारवाड़ आंदोलन से संबंधित तथ्य🌲
अक्टूबर 1947 में नवनिर्मित मंत्रीमंडल जागीरदार और महाराज के रिश्तेदारों से भरा हुआ था
14 नवंबर 1947 को मंत्री परिषदने हनुवंत सिंह के विरोध में विधानसभा विरोधदिवस मनाया
1948 में विलय पत्र पर हस्ताक्षर के बाद भी
उत्तरदायी सरकार का गठन हो पाया जमनालाल बजाज ने स्वयं अपनी लिखाी पुस्तक उत्तरदायी शासन के लिए संघर्षव श्री रणछोड़दास गट्टानी लिखित “”संघर्ष क्यो”” पुस्तक वितरित करवाई
11 मई से दूसरा सत्याग्रह के आरंभ किया गया
जोधपुर प्रजामंडल ने राज्य सर्वप्रथम राजनैतिक कार्य प्रारंभ किया
Impजोधपुर प्रजामंडल को गैरकानूनी घोषित करने पर 1936 में नागरिक अधिकार रक्षक सभा नाम से नया संगठन बनाया गया
नागरिक अधिकार रक्षक सभा ने मई जून 1936 को विद्यार्थियों की फीस वृद्धि के विरुद्ध आंदोलनकिया
21 जून 1936 को शिक्षा दिवस मनाया गया
मारवाड़ में राजनीतिक जागृति की जन्म जयनारायण व्यास थे
Imp मारवाड़ राज्य क्षेत्रफल की दृष्टि से राजस्थान का सबसे बड़ा देशी राज्यथा
छगनलाल चौपासनी वाला द्वारा स्वतंत्रता दिवस पर राष्ट्रीय ध्वज फहराया गया जिस कारण में बुरी तरह पीटागया था
छगनलाल चौपासनी वाला जब अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद के अधिवेशन में भाग लेने गए थे तो उन्हें गिरफ्तार कर छह माह के लिए नजर बंद करदिया गया था
1947 के प्रारम्भ में डीडवाना तहसील के डावरा गांव में 700 पुष्करणा ब्राह्मण परिवारों को बिना किसी कारण गांव से बाहरकर दिया गया था
3 जून 1947 को ब्रिटिश सरकार ने भारत की स्वतंत्रता और देश के विभाजन की घोषणा की थी
इस घोषणा में देसी राजाओं को भारत अथवा पाकिस्तान के साथ मिलने की खुली छूट दी
जोधपुर के हनवंत सिह को जिन्ना पाकिस्तान के साथ मिलने के लिए प्रलोभन दे रहा था
लेकिन जय नारायण व्यास के नेतृत्व में मारवाड़ परिषद ने अपने पूरे प्रयास से जोधपुर राज्य का भारत के साथ विलयकरवाया
लार्ड कर्जन द्वारा स्थापित की गई इंपीरियल कैडेट कोर में जोधपुर के महाराज सरदार जी को शिक्षा प्राप्तकरने के लिए भेजा गया था
असहयोग आंदोलनसे होने वाली गतिविधियों से जोधपुर महाराजा के संरक्षक सर प्रताप सिंह इस आंदोलन के कारण इतना बौखला उठेकि उन्होंने राज्य में विदेशी माल को प्रोत्साहन देना प्रारंभ कर दिया
Impश्री मोहनलाल सुखाड़िया पहली बार 1931 में प्रकाश में आए
Impजब उन्होंने श्रीमती इंदू बाला के साथ अंतर्जातीय विवाह कर मेवाड़ जैसे रूढीवादी प्रदेश में तहलकामचा दिया
मोहनलाल सुखाड़िया मेवाड़ ,भूतपूर्व राजस्थान और वृहद राजस्थान में मंत्री बने
सन 1954 में वह राजस्थान के मुख्यमंत्रीबने
इसके बाद वह कर्नाटक आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु के गवर्नरहै
बीकानेर के महाराजा गंगा सिंह ने गुमनाम तरीके से राय साहब सांगी दास द्वारा व्यास जी को आर्थिक सहायता का पैगाम भेजा था लेकिन व्यास जी ने सहायता के लिए मनाकर दिया
व्यास जी की इमानदारी से प्रभावित होकर बीकानेर के महाराजा गंगासिंह ने 21 फरवरी 1937 को जोधपुर के प्रधानमंत्री डोनाल्ड फिल्ड को पत्र लिखा
इसमें उन्होंने कहा ही निसंदेह श्री जय नारायण व्यास राजशाही की आलोचना करने में सबसे तीखे रहे हैं लेकिन वह पक्के ईमानदार हैं इनको कोई भ्रष्ट नहीं कर सकता
जय नारायण व्यास ने ब्यावर से मारवाड़ की अवस्था नामक पर्ची के माध्यम से सरकार के दमन की आलोचनाकरना प्रारंभ किया
🌻वागड क्षेत्र में प्रजामंडल आंदोलन🌻
#imp🍄राजस्थान की रियासतों में राजनीतिक चेतना के सृजन का श्रेय सर्वप्रथम महर्षि दयानंद सरस्वती और उनके द्वारा स्थापित आर्य समाज को जाता है
#imp🍄महर्षि दयानंद सरस्वती तीन बार राजस्थान में आए और यहां के राजा और जागीरदारों को प्रेरित किया
यह यहां के राजाओं और जागीरदारों के माध्यम से यहां के शासन में सुधारऔर जनता में सामाजिक और राजनीतिक जागृतिलाना चाहते थे
अत्याचारी सामंती व्यवस्था उसके संरक्षक निरंकुश राजतंत्र और ब्रिटिश साम्राज्यवाद के विरुद्ध सर्वप्रथम राजस्थान में विद्रोह का झंडा बुलंद करने का श्रेय यहां के आदिवासी भीलो और किसानोंको जाता है
गोविंद गिरी ने जो कि एक भील नेताथे
इन्होंने यहां की जनजातियों में जागृति उत्पन्न करी थी
#impगुरु गोविंद गिरी महर्षि दयानंद की शिक्षाओंसे प्रभावित थे
1938में हुए कांग्रेस के हरिपुरा अधिवेशनके बाद राजस्थान की विभिन्न रियासतों में नागरिक अधिकारों और उत्तरदायी सरकारों की स्थापना के लिए कहीं आंदोलन हुए
वागड़ क्षेत्र की जन जागृति और राजनीतिक आंदोलनों पर महात्मा गांधी की अहिंसा सत्याग्रह की अवधारणा का गहरा प्रभाव पड़ा
इस क्षेत्र में राजनीतिक जागृति रचनात्मक कार्योंके माध्यम से हुई
🌻डूंगरपुर प्रजामंडल🌻
डूंगरपुर में सेवा संघ नामक संस्था ने भीलो और अन्य जातियों में जागृति उत्पन्न की थी
इससे इन जातियों में शिक्षा का प्रसारहुआ और अनेक सामाजिक कुरीतियों के निवारण पर बल दिया गया
#impडूंगरपुर में जन जागृति करने का श्रेय गुरु गोविंद गिरी के पश्चात भोगीलाल पांड्याको है
#imp1919 में भोगीलाल पांड्या ने आदिवासी छात्रावासकी स्थापना कर जन चेतना के लाने का प्रयास किया
1929 में गौरी शंकर उपाध्याय ने सेवाश्रमस्थापित कर खादी प्रचार किया
वैज्ञानिक क्रांति फैलाने के लिए हस्तलिखित सेवक समाचार पत्र प्रकाशित किया
#impठक्कर बापा की प्रेरणा से भोगीलाल पांड्या ने हरिजन सेवा संघकी स्थापना की थी
1935 में ही शोभा लाल गुप्ता के नाम से आश्रमखोला गया था
#impमाणिक्य लाल वर्मा ने 1935 में डूंगरपुर में खांडलाई आश्रम स्थापित कर भीलो में शिक्षा का प्रसार किया था
#imp1935 में ही माणिक्य लाल वर्मा ,भोगीलाल पांड्या और गौरी शंकर उपाध्याय ने बागड़ सेवा मंदिर की स्थापना कर जन जागृति फैलाईथी
1938 में भोगीलाल पंड्या ने डूंगरपुर सेवा संघकी स्थापना कर जनजातियों में जनचेतना जारी रखी 1942 में सेवा संघ मे भारत छोड़ो प्रस्ताव का समर्थन किया
इससे सरकार और सेवा संघ के संबंध तनाव पूर्णहो गए
1944 को भोगीलाल पांडेय के प्रयत्नो से डूंगरपुर में प्रजामंडल की स्थापना हुई
इसके संस्थापक अध्यक्ष श्री भोगीलाल पांडेय थे हरिदेव जोशी गौरी शंकर उपाध्याय और शिव लाल कोटडिया इसके संस्थापक सदस्यों में से थे
अप्रैल 1946में डूंगरपुर में राज्य प्रजामंडल का पहला अधिवेशन भोगीलाल पांडेय के नेतृत्वमें हुआ
जिससे अन्य कार्यकर्ताओं के अलावा पंडित हीरालाल शास्त्री ,मोहनलाल सुखाड़िया और जुगल किशोर चतुर्वेदीने भाग लिया
इस अधिवेशन में उत्तरदायी सरकार की स्थापना ,डूंगरपुर के भारतीय संघ में शामिल होने आदि विषय पर प्रस्ताव स्वीकार किए गए
जब सरकार ने कटारा के अकाल ग्रस्त क्षेत्रों में लेवी वसूल करना शुरू किया तो किसानों ने सत्याग्रह शुरू कर दिया ।
श्री पांडेय और उनके साथियों को गिरफ्तारकर लिया गया
अंत में दमनात्मक नीति त्यागकर श्री भोगीलाल पांडेय सहित कार्यकर्ताओं को जेल से छोड़ दिया गया
यह प्रजामंडल की पहली विजय थी
जब राज्य कर्मचारियों ने 30 मई 1947 को सेवा संघ द्वारा संचालित पूनावाडा की पाठशाला को बंद करने का प्रयास किया तो
श्री पांडेय ने उनका विरोध किया
इस कारण भोगीलाल पांड्या को बंदी बनालिया गया
: 🌻रास्ता पाल हत्याकांड🌻
डूंगरपुर में 19 जून 1947 को पुलिस द्वारा रास्ता पाल नामक स्थान पर स्थित स्कूल बंदकरवाने गई
मकान मालिक नाना भाई खांट को स्कूल बंद कर चाबी सौपनेके लिए कहा कि
नाना भाई ने बिना सेवा समिति इजाजत की चाबी देने से इंकार कर दिया
रास्ता पाल में यह विद्यालय डूंगरपुर सेवा संघ द्वारा संचालित था
नाना भाई खांट की चाबी देने से इंकार कर देने पर पुलिस ने उन्हें इतना मारा कि उनका देहांत हो गया के
अध्यापक श्री सेंगा भाई की भी पुलिस ने भयंकर पिटाई की थी उन्हें ट्रक से बांधकर घसीटा गया
इसे देखकर एक 12 वर्षीय भील कन्या काली बाई ने अपनी दातली से ट्रक की रस्सी काटदी थी
जिससे कुपित होकर पुलिस ने कालीबाई व अंय महिलाओं पर गोली चला दी
इस गोलीबारी में काली बाई की मृत्यु हो गई और अनेक महिलाएं घायलहो गई थी
इस स्थान पर काली बाई और नाना भाई खांट की मूर्तियां लगवाकर पार्कबनवाया गया
जहां पर उनकी याद में प्रतिवर्ष मेलाभरता है
अंत में महारावल ने समझौते की नीति अपनाई
दिसंबर 1947 को महारावल डूंगरपुर ने राज्य प्रबंध कारिणी सभाकी स्थापना की
जिसमें गौरी शंकर उपाध्याय और भीखा भाई भील को प्रजामंडल प्रतिनिधि के रुप में सम्मिलित किया गया इस प्रकार
कुशलगढ़ में अप्रैल 1942 में भंवरलाल निगम द्वारा प्रजामंडल की स्थापनाकी गई थी
🌻डूंगरपुर प्रजामंडल से संबंधित तथ्य🌻
श्री माणिक्य लाल वर्मा ने भीलों में प्रचलित मद्यपान दापा और सागडी प्रथा को समाप्त करने के संबंध में कानून बनवाया था
सन 1933 में राज गुरु महन्त रविदास जी के सहयोगसे श्री भोगीलाल पंड्या के नेतृत्व में हरिजनों ने डूंगरपुर में राजा जी की छतरी के समीप स्थित जगदीश मंदिर में प्रवेश किया था
राजगुरु के मठ में स्थित मंदिर में हरिजनों का प्रवेश राज्य के इतिहासमें एक असाधारण घटना थी
डूंगरपुर महारावल लक्ष्मण सिंह ने हरिजन उत्थान के इस कार्यको हर तरह से प्रोत्साहन दिया
श्री नाना भाई खांट व काली बाई का दाहसंस्कार गैब सागर के पास सुरपुर गांव में किया गया था
डूंगरपुर राज्य प्रजामंडल के प्रथम अधिवेशन का उद्घाटन श्री गोकुल भाई भट्ट ने किया था
#impडूंगरपुर सरकार राजस्थान की ऐसी पहली सरकारथी जिसने शिक्षक व विद्यालय संचालन को दंडनीय अपराध मानकर कठोर पाशविक दमन की नीति अपनाई थी
डूंगरपुर महारावल द्वारा जंगली सूअरों का वध वर्जित कर रखा था
इस कारण डूंगरपुर के किसानों ने सावल निवासी देवराम के नेतृत्व में सरकार विरोधी आंदोलन छेड़ा
मार्च 1948 को गोरी शंकर को राज्य का प्रधानमंत्री नियुक्त कर दिया गया
25 मार्च1948 को महारावल में राजस्थान संघमें मिलना स्वीकार कर लिया
डूंगरपुर रियासती शासन की अन्याय पूर्ण नीतियों के विरोध ,जनता में जागृति उत्पन्नकरने के लिए डूंगरपुर प्रजामंडल ने प्रयाण सभाओं का आयोजनकिया था
#impबाबा लक्ष्मण दास व श्री शोभालाल गुप्त द्वारा सागवाड़ा में हरिजन आश्रमकी स्थापना की गई
कुशलगढ़ में 1948 को दाडम चंद के सहयोग से गांधी आश्रमकी स्थापना की गई थी